चर्च मंच के सभी पाठकों को अभिवादन।
--
आज की चर्चा में देखिए
मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक...!
--
होलीगीत "खूब थिरकती है रंगोली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
तन में होली, मन में होली।
--
”ईमेल चैक करते रहना,एहसास करवाता रहूँगा; मैं हूँ।”
इस बार प्रदीप के शब्दों में जोश नहीं, प्रेम था। प्रेम जो सांसों में बह रहा और कह रहा हो "बस आख़िरी मिशन... फिर रिज़ाइन लिख दूँगा, अब बस और नहीं।"
--
झांको कभी निज नयनों में
और थोड़ा सा मुस्कुराओ,
रंग भरने हैं अंतर में मोहक यदि
हाथ कुदरत से अपना मिलाओ !
--
होली हो ले, उसके पहले सोचना तो बनता है होली अपने समय पर फिर आ पहुंची है ! गांवों-कस्बों में तो भले ही कुछ जिंदादिली बची भी हो पर शहरों में तो सिर्फ औपचारिकता ही शेष रह गई है ! अब ना ही पहले जैसा उत्साह है, ना ही उमंग है, ना हीं कोई चाव ! ना ढफली ना चंग ना हीं ढोलक ! ना हीं फाग ना हीं संगीत ना हीं मस्ती ! ना घर में बने पकवान, ना ठंडाई, ना बेफिक्री का आलम ! सब तिरोहित होता चला गया समय के साथ-साथ ! उस पर सदा से किसी षड्यंत्र के तहत, तथाकथित बुद्धिजीवी, छद्म इतिहासकार, परजीवी सोशल मीडिया, मौकापरस्त वार्ताकार, अपनी आस्था, संस्कृति, परंपरा, उत्सवों में मीनमेख निकालने वालों की, ऐन मौके पर पानी बचाने की नसीहतें ढहती दिवार पर धक्के का काम करती रहीं ! कुछ अलग सा
--
करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में ,
बिरज में खूब देतीं है मज़ा लठमार होली में ।
अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती
कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में।
--
--
--
--
नीर-क्षीर-विवेके हंस आत्मज्ञानी बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कोई न कोई अच्छाई ढूँढ लेता है, क्योंकि उसका ध्यान सदा सकारात्मकता की ओर ही होता है, वह हंस की तरह शांत रहता है और ज्ञान के मोती चुनता है।मन से की गयी भक्ति और श्रद्धा डोलती रहती है, विपत्ति आने पर वह मंदिरों के चक्कर लगाता है पर सुख के समय सब भूल जाता है। आत्मा सहज प्रेम स्वरूप है, उसमें टिकना ही भक्ति है। मन द्वंद्व का दूसरा नाम है, जहाँ दो हैं, वहाँ चुनाव भी होगा और संघर्ष भी, इसलिए भौतिकतावादी लोग जीवन को एक संघर्ष मानते हैं। आत्मा में एक ही है, वहाँ अद्वैत है, इसलिए आत्मज्ञानी जीवन को उत्सव कहते हैं। डायरी के पन्नों से
--
--
The Kashmir Files : वीपी की सरकार, बीजेपी का समर्थन, जगमोहन राज्यपाल... कश्मीर फाइल्स में कांग्रेस ने जोड़ा 1990 का पन्ना
--
युद्ध युद्ध के ऐलान पर किया जा रहा था शहरों को खाली लादा जा रहा था बारूद
तब एक औरत दाल चावल और आटे को नमक के बिना* बोरियों में बाँध रही थी
--
नोट- यह कहानी संग्रह मेरे द्वारा शब्द.इन मंच के 'पेड पुस्तक लेखन प्रतियोगिता (फरवरी-मार्च 2022)' के प्रतिभागी के रूप में प्रस्तुत किया गया है; जिसका परिणाम 31 मार्च 2022 को घोषित किया जाएगा। विजेता की पुस्तक का उनके द्वारा 'पेपरबैक प्रकाशन शब्द.इन के स्टैंडर्ड पब्लिशिंग पैकेज ' के तहत किया जायेगा। मेरी यह 10 कहानियाँ कहाँ तक उड़ान भरेंगी, यह मेरे पाठकों पर निर्भर करेगा, जिसका सुखद परिणाम देखने के लिए मैं बहुत उत्साहित हूँ।
मैं तो गरीबी में डॉक्टरी लेकर तैयार बैठी हूँ, लेकिन मुझे मेरे ब्लॉगर साथियों और पाठकों का विजेता बनाने में साथ देने की प्रतीक्षा है।
--
--
रहस्य के कमजोर तत्वों के चलते एक तेज रफ्तार पर औसत कॉमिक बन रह गई है 'लम्बू-मोटू और पत्थर की लाश'
--
जन्मकालीन समय से गुजरनेवाले ग्रह
N Chandrashekhar tata
--
आज की चर्चा में केवल इतना ही...!
--
बहुत ही सुन्दर चर्चा बढ़िया संकलन धन्यवाद सर मेरी रचना को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन हेतु आपका हर्दिक आभार सर।
जवाब देंहटाएंसादर
लघुकथा मैं हूँ को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर चर्चा.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय और रोचक अंक ।
जवाब देंहटाएंआपके श्रमसाध्य कार्य को नमन ।
सादर शुभकामनाएँ ।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु बहुत-बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, सभी रचनाकारों व चर्चा मंच के संयोजकों को होली की शुभकामनायें ! आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार श्रमसाध्य संकलन।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई,सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर, उपयोगी।
सादर।
बहुत सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंमुझे सम्मलित करने आभार