"चर्चा मंच" अंक-50 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आइए आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं। आज केवल कविताओं की ही चर्चा प्रस्तुत है- कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ... शरद कोकास और मित्रों की कवितायें … - सिटी पोयम्स मुम्बई – सिद्धी विनायक
जो रास्ता पहले आम आदमी के कदम पहचानता था वह अब सिर्फ भक्तों के कदमों की आहट सुनता है….. | अपनी भावनाएं, और विचार बांट सकूं।
-- करण समस्तीपुरी स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!! हे प्रेमपुँज ! हे आश रूप !! ऋतुपति ! तेरी सुषुमा अनंत !! स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!! कानन की कांति के क्या कहने ! किसलय-कली-कुसुम बने गहने !! अवनी सूचि पीत सुमन पहने ! मानो, विधि की रचना जीवंत !! स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!! | यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं... हुआ रुखसत तो मुझ पे वो एहसान कर गया एक शख्स मेरी जिंदगी को वीरान कर गया ये कौन आ गया मेरे ख्वाब-ओ -ख्याल में जो मुझसे ही मेरे किरदार को अनजान कर गया …… | बढती उम्र और बढ़ता पेट, दोनों बहुत दुःख देते हैं. इतने बड़े दुःख के साथ जीने के लिए इंसान के पास लिखने का साधन हो तो याद करके लिख सकता है कि चार साल पहले उम्र कितनी कम थी और पेट कितना कम. ये ब्लॉग उन्ही यादगार पलों के लिए है. खैर, आप कविता बांचिये. भाई-चारा से चारा निकाल फिर उसमें थोड़ी मिर्च डाल अब खाकर थोड़ा मुंह बिचका औ कर ले भाई से भिड़ंत ब्लॉगर का धाँसू हो बसंत……. | सोचता हूं उस सर्द सुबह को कि जिसमें गया था मिलने तुम्हें, वहां जहां हवाना जाना चाहता है खेतों की खोज में, वहां तुम्हारे रौशन उपांत में। मैं अपनी रम की बोतल और अपनी जर्मन कविताओं की किताब के साथ, जो आखिरकार तुम्हें दे आया था तोहफे में। (या फिर रख लिया था तुमने ही उसे?)…….. | दोस्तो मैं पिछले चालीस साल में लगभग ३०० गजल कह पाया हूं यानि हर साल 7-8 गज़ल और ये सभी गज़ल मेरे ३ गज़ल संग्रहों.दुनिया भर के गम थे, शुक्रिया जिन्दगी और रेत का दरिया में प्रकाशित हो चुकी हैं,ब्लागिंग शुरू की तो यहां पोस्ट कर रहा हूं,और आप जानते ही हैं कि प्रकाशित रचनाओं का कापी राइट लेखक का होता है अत:आप को अगर इन्हे कहीं पर उद्धृत करना हो तो कृपया अनुमति लें, श्याम सखा श्याम अपनों को समझाना मुश्किल चुप भी तो रह पाना मुश्किल खोना मुश्किल पाना मुश्किल खाली मन बहलाना मुश्किल | हर किसी की अपनी दुनिया होती है जिसमें वह हर खुशी तलाश करता है. मेरी दुनिया भी कुछ ऐसे ही तत्वों से बनी है... क्यों चली आती हो ख्वाबों में क्यों भूल जाती हो तुमने ही खत्म किया था अपने उन सारे अधिकारों को मुझ पर से अब इन ख्वाबों पर भी तुम्हारा कोई अधिकार नहीं………. | मेरा नाम ध्रुव है . मुझे इस बात की फिकर है की यह ग्लोबल वार्मिंग हमारी धरती को नुकसान पहोचा सकती है इसलिए हमें सरकार व पूरी दुनिया से कहना चाहिए की वे फैक्ट्रीज और प्रदुषण पर रोक लगानी चाहिए और अगर हमने ऐसा नहीं किया तो हमें बुरे परिणाम भुगतने पड़ेंगे . देखो कोयल काली है पर मीठी है उसकी बोली . इसने ही तो कुक -कुक कर आमों में मिसरी घोली … …. | परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम अभिलाषा नहीं रही पुष्प होने की चाह होती हैं बस घुटकर रोने की क्यों चढ़ाया ही जाऊं उस शीश पर जो सलामी में झुका खोटे सोने की………. | समंदर की लहरों में छाई जवानी, धरा में बसी है दिलों की रवानी, सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर, ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर ! | ऊ जे 'पढ़ीस' का पढ़िस नाय.. 'बंसीधर' कै बंसी ना सुनिस.. 'रमई काका' मा रमा नाय.. ते का जानी अवधी हमारि.. पढ़ैयन का राम राम !!! ' अवधी कै अरघान ' की महफ़िल मा आप सबकै स्वागत अहै .. आज रमई काका कै जनम दिन आय .. काका कै जनम २ फरौरी १९१५ मा भा रहा .. अबहीं कुछ देरि पहिले काका जी के सुपुत्र सिरी अरुण त्रिवेदी जी से बात भै , काका के जनम दिन के निस्बते .. का करी ! …. कबिता : धरती हमारि धरती हमारि ! धरती हमारि ! है धरती परती गउवन कै औ ख्यातन कै धरती हमारि | धरती हमारि ! धरती हमारि ! हम अपनी छाती के बल से धरती मा फारु चलाइत है | माटी के नान्हें कन - कन मा , हमही सोना उपजाइत है ||….. | तेरी खुशबू को सांसों में बसा लेते है | याद आती है तो सीने में दबा लेते है || वक़्त ए तन्हाई में खो न जाएँ कहीं | तेरी यादों को रातों में जगा लेते है...
सबद...
मैं हूँ और वे हैं इस बीच कई बार बार धूप खिली. अचार के मर्तबान से गुप्ताजी के सिर तक तक फैलकर उसने मनमाने चित्र बनाये. बहुत दिनों बाद देखकर खुश हो जाऊं, ऐसे आई थी वह. समय के बीतने के साथ उसका कोई सम्बन्ध है ज़रूर. वह आती है और हर याद स्मृति हो जाती है..... | वन्दे मातरम मेरे प्रिय गीतकार गुरु घनश्याम चौरसिया बादल की रचना जो दिल की गहराइयों में आज तक सम्हाली हुई है आप सभी के लिए सादर प्रस्तुत है ….. | aapka Just another Hindi Blogs Network weblog छणिकाएं Filed under: Uncategorized; हम तो बता देंगे पता इस राह की, पूछ्ना था आप हैं क्या- राहजन या राहगीर देश की चिंता किसे कब था मगर, सेंकने के लिये अंगीठी जल गई प्रांत को मानुस बनाने की फिकर, मनसे पूछो आपके मन में है क्या आंख पर चश्मा जुबां पर आग है, हर तरफ है आग देश तबाह है दाल की बदकिस्मती गलती नहीं, शरद की कंपकंपी तो होनी चाहिए अब खोज कर लाओ किसी आयत कुरान का, जिसमें लिखा हो हुक्म कत्लेआम का …. | When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words... कुछ कहने का मन करता है सोच की उन तंग सी गलियों में रहने का मन करता है वो लिखने का मन करता है जो शब्दों की अबूझ पहेली है जिस सोच का कोई अंत नहीं जिन जज्बों से ये दुनिया खेली है जो ख़ामोशी से रिस न सकी उस अनकही में बहने का मन करता है ॥ …… | दोछत्ति पर पड़ा कबाड़ है स्मृतियों का ढेर या फिर विस्म्रतियों का ................................ तीन टांग की कुर्सी एक रंगहीन गुलदान छोटू का आधी सूड वाला हाथी घर का पहला श्वेत- श्याम टी वी और टीन का बहुत पुराना कनस्तर और भी बहुत कुछ टूटा - फूटा .... | साहित्य के नाम पर जो कुछ मेरा अपना है ..... होगा कई, शहरों -कस्बों , मैदानों-सड़कों, का मालिक, फ़िर भी, चला वो, सड़क किनारे, नहीं बीच में, चलते देखा॥ ……. | तुम्हारे सामने आते ही दिल कि बात जुबां तक आकर रुक जाती है, तुम्हे देखने के लिए झुकी नज़र उठती है तो सारे राज़ कह जाती है ……….. | मेरे श्याम-सांवरे !!!! अंतर क्या दोनों की चाह में बोलो... तन्हाई दिल में घर किये बैठी है.... अंघेरे मकां का खौफ़ नहीं मुझको.... आहिस्ता - आहिस्ता दर्द बरसता है.... टूटी छत से ज्यों पानी रिसता है.... मेरी नसों में लावा बहता है... पैरों तले अंगारों का खौफ़ नहीं मुझको..... | ललकारो मुझे, मैं चुप रहूँगा तुम कोंचो मुझे, मैं चुप रहूँगा तुम थूरो मुझे, मैं चुप रहूँगा तुम हूरो मुझे, मैं चुप रहूँगा लेकिन..... | || MERI MAANSIK HALCHAL || || मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल || मन में बहुत कुछ चलता है। मन है तो मैं हूं| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग| आत्म-अधिक हो प्यारे तुम, आँखों के दो तारे तुम । रात शयन से प्रात वचन तक, सपनों, तानों-बानों में, सीख सीख कर क्या भर लाते विस्तृत बुद्धि वितानों में, नहीं कहीं भी यह लगता है, मन सोता या खोता है, निशायन्त तुम जो भी पाते, दिनभर चित्रित होता है, कृत्य तुम्हारे, सूची लम्बी, जानो उपक्रम सारे तुम, आँखों के दो तारे तुम ।१ ……… | प्यार के अविस्मरणीय पलों की चाशनी में पगे साहित्य की मिठास, एक नवीन आरंभ के साथ हो सकती थी सोनचिरइया मेरे भी जीवन में इक इन्द्रधनुष के सातों रंगा सकते थे मुझको भी दिख होती कुछ ज्यादा ही रौशन रौशनी मेरे जीवन की….. There could be a golden bird in my life too, could see all the flying colors of a rainbow... Light of this life could be brighter than its size, your reduced price might make it possible to buy you at my cost… …. | कहीं है ज्वार और भाटा कहीं है, कहीं है सुमन और काँटा कहीं है, करीने से सजने लगी गन्दगी है! जवानी में थकने लगी जिन्दगी है!! जुगाड़ों से चलने लगी जिन्दगी है!!! ………………………………………… | मुझको बता दो -- मैं तुम्हारी हृदय-वीणा की मधुर झंकार सुनना चाहता हूँ!……… | my own creation मेरी पहली अंग्रेजी रचना! - कृपया तस्वीर पर क्लिक करें! प्रिय मित्रो, आज मैं आपके लिए अपनी पहली अंग्रेजी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ! मुझे अंग्रेजी में लिखने का कीड़ा अपनी एक मित्र "डिम... | जज़्बात इतने काँटे कौन बोया? - *.* *रात रोया * *दिन ढोया* *.* *इतने काँटे* *कौन बोया?* *.* *रूठी रोटी * *भूखा सोया* *.* *खुद ताउम्र * *खुदी खोया* *.* *दाग पक्के* *खूब धोया*….. | हैप्पी अभिनंदन में आप ब्लॉगवुड की जिस हस्ती से मिलने जा रहे हैं, वे उन युवाओं के लिए किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं, जो समय न होने का बहाना लगाकर अपने कामों को बीच में छोड़ देते हैं। उम्र के जिस पड़ाव पर वीर बहुटी की लेखिका हैं,
चलते-चलते एक कार्टून-- Hi Friends. I am Irfan khan,an editorial cartoonist,based in New Delhi.For last 20 years I have worked for India's almost all leading newspapers and also have done my cartoons and talk shows on tv channels. | हिन्दी काव्य संग्रह ...... भारतीय संस्कृति का बन गया ......आचार स्वाद नया है , भ्रष्टाचार !! राजनीति क्या ? राज्य समिती क्या ? क्या नवयुवको के उच्य विचार छेड़ खानी करे लड़कियों से माता पिता से करे है, दुराचार भारतीय संस्कृति का बन गया .......आचार स्वाद नया है ,भ्रष्टाचार !! ……….. अब कविता चर्चा को, देते हैं विराम! कल तक के लिए, सबको राम-राम!! | |
बहुत बढ़िया और विस्तृत चर्चा!! बधाई.
जवाब देंहटाएंUttam, umda, khoobsoorat prastutikaran.. aapki mehnat ko salaam
जवाब देंहटाएंJai Hind...
पचासवीं पोस्ट पर बधाई स्वीकार कीजिए शास्त्री जी-आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया संकलन |
जवाब देंहटाएंपंडित जी की चर्चा को मिले अनंत विस्तार
जवाब देंहटाएंहमारे पास बस एक ही शब्द है ''सादर-आभार''
is charcha mein har tarah ke chitthon ko shamil kiya gaya ..accha laga ..
जवाब देंहटाएंaapki mehnat safal hui..
bahut bahut badhaii..
स्तुत्य चर्चा है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन 50वी चर्चा शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएं50 vi post ki hardik badhayi............aise hi aage badhte rahiye.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar charcha.
बहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंवाह जी
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बहुत लाजवाब चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही सुन्दर और विस्तारित रूप से आपने चर्चा किया है! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएं"चर्चाओं के दूसरे अर्धशतक की शुरूआत मुबारक़ हो!"
जवाब देंहटाएं--
मुझको बता दो -
"नवसुर में कोयल गाता है -मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
शानदार पचासवीं चर्चा ! नियमितता प्रसंशनीय है आपकी ! आभार ।
जवाब देंहटाएंअति उत्तम!!
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा के लिए बधाई....