"चर्चा मंच" अंक-69 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आज के "चर्चा मंच" को सजाता हूँ “अदा” जी के “काव्य-मंजूषा” की प्रथम व अद्यतन पोस्ट के साथ- 'अदा'
About Meस्वप्न मंजूषा सपनों का डब्बाInterests
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अब आपको कुछ अन्य ब्लॉगर्स की पोस्टों से रूबरू कराता हूँ-“संगीता स्वरूप का बालगीत”“चूहे की होली” |
ललितडॉटकॉम गांव-गली के बच्चे-बुढे,लोग-लुगाई-सारे चलो मेले मे भाई (ललित शर्मा) - भारत की माटी में आस्था एवं श्रद्धा की खुशबु है, यहाँ की नदियों में पवित्र रुन-झुन, रुन-झुन, कल-कल करने वाले संगीत की धारा अविरल प्रवाहित होती रहती है. यहाँ... | Gyan Darpan ज्ञान दर्पण वह राम ही था –2 - भाग -१ से आगे ..... जिसने रावण जैसे आततायी को भी मारने से पहले उसे सुधरने का मौका दिया और युद्ध टालने की हर संभव और उचित चेष्टा की - लक्ष्मण की मृत्यु प.. |
मेरी रचनाएँ !!!!!!!!!!!!!!!!! इसीलिए सिर्फ प्रेम करना चाहिए..: महफूज़ - *अन्नपूर्णा* कूड़ा फेंकने घर के बाहर आई तो देखा कि तीन बूढ़े व्यक्ति घर के बाहर वाले चबूतरे पर बैठे हैं. अन्नपूर्णा ने उन्हें नहीं पहचानते हुए कहा " वैसे... | नवगीत की पाठशाला आ गया वसंत - शिशिर का हुआ नहीं अन्त कह रही है तिथि कि आ गया वसन्त ! क्या पता कैलेन्डर को सर्दी की मार क्या है। कोहरा कुहासा और चुभती बयार क्या है। काटते हैं दिन एक ए.. |
रोना भी क्या एक कला है" रोना भी क्या एक कला है "रोना क्यों कर दुर्बलता है ?यह तो नयनों की भाषा है ।सुख देखे तो छलक जाता है ।दुःख में फिर भी सहज आता है ।लाख संभालो , न तब रुकता है ।न निकट हो कोई आहत करता है ।उमड़ घुमड़ जो बस जाता है ,श्रांत ह्रदय वह कर देता है ।रोना भी क्या एक…..Kusum's Journey | मुझे पीने का शौक़ नहीं, पीता हूँ ग़म भुलाने को: सलीम ख़ानआपने यह फ़िल्मी नगमा तो ज़रूर सुना होगा 'मुझे पीने का शौक़ नहीं, पीता हूँ ग़म भुलाने को' लगता है सलीम भाई को आजकल यह गाना भा गया है. अरे, अरे ! घबराइए नहीं !! परेशान न होईये !!! और यह भी न सोचिये कि ये जनाब जिन्होंने वैसे तो ज्ञान की बातें करते करते……Science Bloggers Association of India |
क्या पुलिस वाले इंसान नही कीड़े-मकौड़े है? क्या उनका कोई मानवाधिकार नही?सुबह-सुबह मोबाईल की स्क्रीन पर एक अंजान नम्बर चमका।थोड़ा कन्फ़्यूसियाने के बाद कौन हो सकता है?जिज्ञासा के कीड़े को शांत करने की गरज़ से रिस्क लेकर काल रिसीव कर ली।उधर से आवाज़ पहचानी-पहचानी सी थी लेकिन एकदम से पहचान नही पाया और पूछ बैठा कौन?उधर से आवाज़ आई………..अमीर धरती गरीब लोग | प्रियतम तो परदेस बसे हैं, नयन नीर बरसाये रेनीर अर्थात् सलिल, नीरद, नीरज, जल या पानी! यह नीर कभी नयन से बरसता है तो कभी मेघ से बरसता है। नयन से नीर जहाँ गम में बरसता है वहीं खुशी में भी बरसता है। प्रियतम के विरह में प्रियतमा कहने लगती हैःप्रियतम तो परदेस बसे हैं, नयन नीर बरसाये रेतो दूसरी ओर……..धान के देश में! |
निर्मल और नैनीतालनैनीताल हमारी यादो मे | तनहाई कुछ बोल गयी ...कसमोकी रस्मोको नहीं समजा हमने ,हमने तो प्यारकी सच्चाई पर यकीं किया सदा…….जिंदगी : जियो हर पल प्रीति टेलर | उच्चारण "सात रंगों से सजने लगी है धरा” |
कैसे पढ़ी जाती हैं स्त्रियाँ-अनामिका-पढ़ा गया हमकोजैसे पढ़ा जाता है कागजबच्चों की फटी कापियों काचना जोर गरम के लिफाफे बनाने के पहले!देखा गया हमकोजैसे कि कुफ्त हो उनींदेदेखी जाती है कलाई घड़ीअलस्सुबह अलार्म बजने के बाद!सुना गया हमकोयों ही उडते मन सेजैसे सुने जाते हैं फल्मी……हमराही | उसकी प्यास न पानी बनी न आगउस रात वो अकेली नहीं उस के साथ रात भी जली थी मैंने उसे आग अर्पित की वो और भी सर्द हुई समन्दर की बात की तो वो और भी खुश्क हुई उस की प्यास न पानी बनी ना आग उसके दोष अँधेरे नहीं रौशनी थे उसकी भटकन केवल रिद्हम थी जब साज निशब्द हुए तो वो मीरा बनी राबिया हुई………मेरे आस-पास |
छू कर मेरे मन को.............. पक्षियों का कलरव शोर नही कहलाता क्योंकि जिस रव में अपनों से मिलने की उत्कंठा हो ,अपनों को सम्हालने का भाव हो सहयोग एवं प्रेम की उत्कठ पुकार हो वो शोर कैसे होगा। ...........पुस्तकें वे तितलियां है जो ज्ञान के पराकणें को एक मस्तिष्क से दूसरे………भोर की पहली किरण किरण राजपुरोहित नितिला | जिसको भी मारा अपनो ने मारा है-gazal१२१खारा है सागर सचमुच खारा है नदिया ने फ़िर भी सब कुछ हारा हैसातों के सातों सुर हैं उसकी मुठ्ठी मेंकहने को वो बेचारा इक तारा हैजीत सदा सच की होती कहने भर कोसच बेचारा द्वापर में भी हारा हैबेशक यह सुन्दर और गठीली भी हैदेह मगर कहते सांसो कीgazal k bahane श्याम सखा 'श्याम' |
मैच की तैयारियों का लिया जायजाछत्तीसगढ़ की जमीं पर पहली बार आ रही भारतीय हॉकी टीम के खिलाडिय़ों का यहां पर नेताजी स्टेडियम में होने वाले मैच की तैयारियों का जायजा सुबह को हरिभूमि के प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ खेल संचालक जीपी सिंह ने लिया। इन्होंने वहां पर उपस्थित खेल…….खेलगढ़ राजकुमार ग्वालानी | आखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा..मेरी कविता…विवेक रस्तोगीआखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा कभी एक पहलू को छूने की कोशिश में दूसरा हाथ से निकल जाता है और बस फ़िर दूसरे पहलू को वापस अपने पास लाने की जद्दोजहद उसके समीकरण हमेशा चलते रहते हैं, इसी तरह कभी भी ये दो पहलू मेरी पकड़ में ही न आ पायेंगे और……कल्पतरु Vivek Rastogi |
इयत्ता फाल्गुन आया रे ! - गोरी को बहकाने फाल्गुन आया रे । रंगों के गुब्बारे फूट रहे तन आँगन, हाथ रचे मेंहदी के याद आते साजन ॥ प्रेम-रस बरसाने फाल्गुन आया रे । यौवन की पिचक.. | अविनाश वाचस्पति 1411 - अब मैं रिक्शा खरीद ही लूं (अविनाश वाचस्पति) - सोच रहा हूं ऑफिस आने जाने के लिए एक रिक्शा खरीद ही लूं। स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और अतिरिक्त आय की संभावना भी बनेगी। अब अगर वेतनभोगी होगा तो दुतरफा लाभ को.. |
मसि-कागद वर्ना मैं तुझ जैसों के मुँह नहीं लगता.....-------->>>>>दीपक 'मशाल' - *एक लघुकथा-* उसके कंधे पे हाथ रख कर पहली बार इतनी आत्मीयता से बात करते हुए उस सुपर स्टार पुत्र ने वीरेंदर, जो कि उसका ड्राइवर था, को अपनी परेशानी बताते हुए.. | MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर बैंगलोर से मेरा पुराना नाता, गार्डन सिटी" कब "पत्थरो की नगरी बन गई!! - इन्ह दिनों बाहर रहने का अवसर मेरे लिए कुछ अधिक था! मित्र के घर के मोहरत के सिलसिले में मुझे बैंगलोर जाना पडा . मेरे मित्र, रिश्ते में मेरी बहिन के देवर .. |
हिन्दी साहित्य मंच बहुत दिन हुए ........ [कविता]--------------रंजना (रंजू ) भाटिया - एक लम्हा दिल फिर से उन गलियों में चाहता है घूमना जहाँ धूल से अटे .... बिन बात के खिलखिलाते हुए कई बरस बिताये थे हमने .. बहुत दिन हुए ........... फिर से हंसी ... | An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे [5] - आइये मिलकर उद्घाटित करें सपनों के रहस्यों को. पिछली कड़ियों के लिए कृपया निम्न को क्लिक करें: खंड [1] खंड [2] खंड [3] खंड [4] स्वप्न के बारे में आगे बात करने.. | शब्दों का दंगल “दो सौ रुपये दीजिए! सम्मान लीजिए!!” - “तस्कर साहित्यकार” कुछ दिन पूर्व मेरे पास एक जुगाड़ू कवि आये। बोले- “मान्यवर! अपना एक फोटो दे दीजिए!” मैंने पूछा- “क्या करोगे?” कहने लगे- “आपको बाल साहि... |
"मेरी पुस्तक - प्रकाशित रचनाएँ : प्रेम फ़र्रुखाबादी" पाट बाबा की जय हो - जय हो जय हो जय हो पाट बाबा की जय हो भक्तों की रक्षा करते प्यार उन्हें सच्चा करते दुःख सारे ही हर लेते सुख सारे ही भर देते बाबा की किरपा से जीवन ये सुखमय ह.. | Rhythm of words... एक सवाल .. - वो वक़्त-बेवक्त भागता है अपने ही पीछे उसको इस जुनूं का असर चाहिए शायद कम पड़ गया है जिंदगी का आशियाँ जो अब ईट-पत्थरो का भी घर चाहिए ॥ भूलता जा रहा है वो इस भ... | गत्यात्मक ज्योतिष अन्य विज्ञानों से तालमेल बनाकर ही ज्योतिष को अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है !! - प्राचीन काल के आदि मानव से आज के विकसित मनुष्य बनने तक की इस यात्रा में मनुष्य के पास अनुभवों के रूप में क्रमश: जो ज्ञान का भंडार जमा हुआ , वो इतनी पुस्तक.. |
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चर्चा बहुत सुंदर लगी.... और अदाजी के बारे में जानकर तो और भी अच्छा लगा.... मैं तो उन्हें बहुत प्यार करता हूँ.... उनका लिखा हुआ मुझे बहुत अच्छा लगता है.... पर कभी उनकी पहली पोस्ट नहीं पढ़ी थी..... आज आपके माध्यम से पढने को मिली .... आपको नमन.... व आभार....
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा!
जवाब देंहटाएंउन सभी को बधाई,
जिनके ब्लॉग इसमें शामिल किए गए हैं!
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
अदा जी का परिचय प्राप्त हुआ. :)
जवाब देंहटाएंचर्चा बहुत उम्दा रही!!
बहुत धन्यवाद इस परिचय के लिये. सुंदर चरचा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अदा जी की पहली पोस्ट का तो मुझे भी नहीं पता था. आभार.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंअदा दीदी को हम तो जानते ही है और उनसे प्यार भी बहुत करते हैं , लेकिन उनकी पहली रचना आज ही पढ़ पायें इसके लिए आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंShastri ji,
जवाब देंहटाएंbahut aabhari hunaa pne mujhe is yogy samjha ..
baki ki prvishthiyaan bhi bahut acchi lagin..
punh aapka aabhaar..
bahut sundar charcha ....Aadarniy ko bahut bahut dhanywaad!
जवाब देंहटाएंwese to Ada didi ko ab kisi ke parichay ke jarurat hi nahi rahi ...wo sabaki itani chaheti banchuki hai kuntu pahali post pad kar bahut accha laga!
हम तो बहुत-सी पिछली प्रविष्टियाँ पढ़ गये हैं अदा जी की छाँट-छाँट कर ! हाँ अभी पहली तक तो पहुँचे ही नहीं थे ।
जवाब देंहटाएंयहाँ प्रस्तुति अच्छी लगी । आभार ।
इसमें कोई संदेह नहीं की बहुत कम समय में इस ब्लॉग जगत पर अदा जी ने अपनी एक अमिट छाप छोडी है !
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