"चर्चा मंच" अंक-47
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आइए आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं-
क्या है, न, हमें भी आदत थी , आप में से कईयों की तरह , कि कहीं कोइ बेहतरीन शेर या कविता पढी उसे सहेज लिया - - ऐसी ही किसी घड़ी में, ये शेर , हमने दर्ज कर लिए थे ...शायद आपने पहले भी सुने होंगें , पर आज यही आपके सामने प्रस्तुत करने का मन हुआ ..वीकेंड , |
ज़िन्दगी
बावरा मन - ये मन का उड़ता पंछी आकाश को पाना चाहता है जिस राह की कोई मंजिल नही उस राह को तकना चाहता है प्रणय बंधन में बँधे मनों को प्रेम का नव अर्थ देना चाहता है नामु.. | अंधड़ !
मिथ्या ही मान लो कि भगवान सब देखता है पर .. ! - *और यह रही मेरी पहली टिप्पणी अलग से मेरे ही पिछले लेख पर : आज जो हम लोग आम जीवन मे मानवीय मुल्यों का इतना ह्रास देख रहे है, उसकी एक खास वजह यह भी है कि हम... | Alag sa
इंसानियत की कोई जाति नहीं होती. एक सत्य घटना. - चाहे कोई बंगाली हो, पंजाबी हो, गुजराती हो। उसका प्रदेश चाहे छत्तीसगढ़ हो, उड़ीसा हो या आसाम हो। मानवता या इंसानियत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपसी प्रेम क... |
दिशाएं
किसी से भी नही गिला..... - संभल कर जब भी चला सिवा ठोकर के मुझे क्या मिला ? लेकिन मुझे इस बात का किसी से भी नही गिला। क्योंकि मेरा संभलना, उन मेरे अपनों के लिए दुखदाई हो जाता है। जिन्.. | पर्यानाद्
अब तो अपने बाघों को बचाएं - पिछली शताब्दी के आरंभ में बाघों की आबादी करीब 40 हजार थी। अब उनमें से केवल 1411 भारत में बाकी बचे हैं। पिछले वर्ष भारत में 86 बाघों की जान गई। भारत .. | कबाड़खाना
काफ़्का का ’द कासल’ - पियेत्रो सिताती की किताब ’काफ़्का’ के एक अध्याय से आपको पहले रू-ब-रू करवा चुका हूं. आज से उनके उपन्यास पर आधारित इसी किताब के ग्यारहवें अध्याय पर एक सीरीज़ शुर.. |
स्वप्नलोक
कर्ण की घोषणा - मैं कर्ण बल्द श्री अधिरथ, एतत् द्वारा घोषणा करता हूँ कि मेरी और दुर्योधन की मित्रता आज से समाप्त समझी जाय । मेरी तबियत अब कुछ ठीक नहीं रहती लिहाजा मैं म... | मानसी
ओ रे बचपन! - ओ रे बचपन जीवन के संग क्यों कट्टी मिट्ठी करता है बूढ़ी कबड्डी चक्कर घिन्नी अक्कड़ बक्कड़ बम्बई दिल्ली पुलिस पकड़ती अंडा चोरी मां से लड़कर डंडा गिल्ली ओ रे बचपन .. | कुछ हम कहें
रण - पिछले पंद्रह दिनों से झेल रहे अथक तनाव से तंग आ कर सोचा कि आज सनीमा…:) देखा जाए। अखबार तो आज कल बहुत कम देख पाते हैं उस पर फ़िल्मों की रेटिंग वेटिंग देखने .. |
निर्मल-आनन्द
दायें या बायें - यह उस फ़िल्म का नाम है जो मेरी समझ में हिन्दी फ़िल्म की एकाश्मी परम्परा से बहुत आगे, और बहुत ऊपर की संरचना में बुनी हुई है। जीवन का इतना गाढ़ा स्वाद औ.. | प्रत्यक्षा
द माईलस्टोन ... भाग 2 - ( अब आगे ... ) अगर किसी फिल्म की शूटिंग चल रही होती तो भीड़ होती और वह लौट जाती चुपचाप...लेकिन उसकी नजरें अभी जंगल और नदी तट को छान रही थीं... कहीं ‘कोई’ तो.. | मेरी छोटी सी दुनिया
समय चाहे जो भी लिखे, हम तो तटस्थ ही रहेंगे -आजकल जो हिंदी ब्लौग का माहौल बना हुआ है उसमें मेरे हिसाब से यही बात सही बैठती है.. तटस्थ ही रहें और अपनी ढफली बजाते रहने में ही भलाई है.. दो लोगों की.. |
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अत्यंत सुन्दर चर्चा शास्त्री जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar chittha charcha rahi......kai chhoote huye link bhi mil gaye ........aabhar.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा शास्त्री जी ........ धन्यवाद
जवाब देंहटाएंये चर्चा बड़ी है मस्त-मस्त
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शानदार चर्चा ...आनन्द आ गया सब लिंक्स पर यहाँ से जाकर.
जवाब देंहटाएंNICE!
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नवसुर में कोयल गाता है -"मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
आ. शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंचठ्ठा चर्चा में , मेरी प्रविष्टी को भी स्थान देने के लिए
आपका बहुत बहुत आभार ..
ये नेक काम है ..कई अच्छी कविता व नये लिखे
आलेखों का पता चल जाता है
- लावण्या
बेहतरीन चर्चा के लिये आभार ।
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