"चर्चा मंच" अंक-54 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं। सबसे पहले कुछ कार्टून और उसके बाद
कुछ चिट्ठों की चर्चा करता हूँ-
हरिओम तिवारी | बचपन से मास्सबों के कार्टून बना-बनाकर कर कक्षा में अव्वल आता रहा। जवानी में नौकरशाही में घुसने के दंद-फंद में उलझकर औंधे मुंह गिरा, उठा तो कार्टून जैसे चिरपिरी शक्ल निकल आई थी। गांव का एक चित्रकार दूसरे के घरों की दीवार खराब करता था। सो उससे प्रेरणा लेकर अपने घर की दीवारों पर कला के ख्वाब बुने, पिताजी की डांट से खुमारी टूटी। पीटे जाने के एकाध अवसरों से बच निकलने के कौशल से कला में निखार आ गया। घर की दीवारें बचाने के लिए बाद में पिता जी ने शहर भेज दिया। सॉयल साइंस से एमएससी कर धरती से जुड़ गया। मित्रों ने पुराना बैर निकाला, कार्टून बनाने की एक प्रतियोगिता में ढकेला, तीसरा स्थान मिला तो सबको गलतफहमी हुई कि एक जबरदस्त कार्टूनिस्ट धरा पर प्रकट होने वाला है, जिस बीच अपन उस दोस्त को ढूंढने में जुटे रहे जिसने इस प्रतियोगिता में धक्का दिया था। इस धक्के से गाड़ी चल निकली। जहां रुकी, वहां स्वदेश का दफ्तर सामने था। बस यहां से कार्टूनगिरी शुरू हो गई। ग्वालियर के बीहड़ से शुरु हुआ कार्टून का सफर कुछ हिचकोले खाते हुए नवाबी शहर भोपाल पहुंचा। बस तब से काल के कपाल पर कार्टून बनाता चला आ रहा हूं। | by IRFAN SADA यादें सिमटती गईं .... - सूनी अंधेरी रात में यादों की गठरी गिर गई सारी यादें धरती पर थीं पड़ी, मैने उन्हें समेट कर वापस गठरी में रखना चाहा पर वे आपस में म.. | प्रतिभा की दुनिया ...!!! एक टुकड़ा याद - एक याद सपने की मानिंद उतरती है रोज पलकों में, नींद की चाप सुनते ही पंखुड़ी सी खुलने लगती है आंखों में रात भर गुनगुनाती है मिलन के गीत, दिखाती है सुंदर सपन.. | हास्यफुहार डिनर - * * *डिनर*** *एक दिन श्रीमान जी सुबह-सुबह **डायनिंग टेबुल पर बैठे **खा रहे थे। तभी बाहर से आवाज लगाते हुए फाटक बा**बू** घुसे, **“**सर जी कहां हैं? क्या. | समाचार:- एक पहलु यह भी शर्म आनी चाहिए नेता जी को - रैली के लिए मंच सजा हुआ और जनता धुप हो या सर्दी या फिर भारी बरसात हो रही हो, पलके बिछाये अपने नेता का इंतजार करती नजर आती है. उनका एक ही मकसद होता है की बस.. | शब्द से होता नहीं है अब समन्वय भावना का रागिनी फिर गुनगुनाये, है न संभव गीत कोई खो चुकी है मुस्कुराहट, पथ अधर की वीथिका का नैन नभ से सावनी बादल विदा लेते नहीं हैं कंठ से डाले हुए हैं सात फ़ेरे सिसकियों ने पल दिवस के एक क्षण विश्रांति का देते नहीं है….. | हर दिन तुमने न जाने हमें कितने मारे पत्थर सम्हाल के रक्खा है देखो अब कितने सारे पत्थर ठोकर तुमको लगती है हम जान नहीं पाए थे पलकें मेरी चुनती थीं वो कितने सारे पत्थर…. | अवैधानिक चेतावनी: ज्ञान पिपासु फिर कभी आएँ जब ज्ञान वार्ता हो रही हो। खेद है कि आज ज्ञान की दुकान बन्द है। आज अगम्भीर चिन्तन दिवस है।प्लास्टर उतर गया, जमकर रगड़ा लग गयाऔर हम खड़े खड़े, हॉस्पिटल में पड़े पड़ेहाथ खूब मुड़वाते औ तुड़वाते रहे।हाय रे मानव! तू सदा…. घुघूती बासूती | अनवरत उन्हें अकेला खाने की आदत नहीं है - पिछले छह दिन यात्रा पर रहा। कोई दिन ऐसा नहीं रहा जिस दिन सफर नहीं किया हो। इस बीच जोधपुर में हरिशर्मा जी से मुलाकात हुई। जिस का उल्लेख पिछली संक्षिप्त पोस्... | देशनामा खुश है ज़माना, आज पहली तारीख है...खुशदीप -*दिन है सुहाना आज पहली तारीख है,* ** * * *खुश है ज़माना आज पहली तारीख है,* * * *पहली तारीख है जी पहली तारीख है,* * * *बीवी बोली * * * *... | कस्बा qasba ये सब आपके लिए - कुछ दिनों से दिल्ली के मोहल्लों में भटक रहा हूं। कई तस्वीरें ली हैं। धीरे-धीरे आप तक लाने की कोशिश करूंगा। कुछ फेसबुक हैं। | लहरें अरसा पहले - हाँ वो भी एक दौर था, इश्क कापहला सीनदोस्त के कान में फुसफुसाते हुए, "पता है पता है, आज उसने मुझे मुड़ कर देखा"। उसके चेहरे पर ऐसा भाव आता है जैसे ये राज़ वो .. | आज के लिए इतना ही-…….! राम-राम! |
वाह, यह सांध्यकालीन सत्र की चर्चा भी बडी रोचक और विस्तृत है. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सच कह रहे हैं ....अब तो टिप्पणी पाना भी अपराध हो गया....
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा...
शास्त्री जी, चर्चा के लिए आभार्।
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा रही।
बढिया है जी...एकदम बढिया!!
जवाब देंहटाएंआभार्!
Bahut aachi lagi yah charcha bhi...Aabhar!!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
"NICE"
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मुझको बता दो -
"नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
बढ़िया रही चर्चा
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
आपकी चर्चा का अलग ही है अंदाज
जवाब देंहटाएंकभी न खोलना ये दिल लुभाने वाला राज
ab to NICE likhna hi padega..........sundar charcha.
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत सुंदर. कई नई पोस्टों की जानकारी के लिए आभार.
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