"चर्चा मंच" अंक-53 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं। अनुभवी चर्चाकार श्री सन्तु गधेड़ा जी से- इश्क का दामन थामे वह वक्त के साथ बहता चला जा रहा था। उसे भी उम्मीद नहीं थी कि वह जिन अनजान राहों पर चल पड़ा है वो उसे ऐसे मुकाम पर पहुंचा देगी जिसकी तलाश में खुद अनजान बरसों भटका हो। अब इसे इश्क की वफादारी कहें या किसी को पाने की जद्दोजहद वह एक दिन अपनी सारी शीतलता को छोड़ हवा का झोंका बन जाता है। चाहत से भरा आसमान पाने के बावजूद हवा का यह झोंका आज भी जमीन थामे है। जड़ों से अपनीगहरा लगाव उसे बार-बार गांव ले आता है। उसकी कविता में माटी की सोंधी खुशबू मिलती और एक आम आदमी का अक्स दिखता है। बालीवुड का ग्लैमरस संसार कवि हृदय को समीर के नाम से जानता है तो अपना बनारस उसे शीतला प्रसाद पांडेय पुकारता है। एक दोपहर वाराणसी के मेहतानगर (शिवपुर) स्थित घर पर उनके मोहब्बत के जख्म पर हाथ धर दिया तो वे खुलते चले गए। …… | पिछले छह दिन यात्रा पर रहा। कोई दिन ऐसा नहीं रहा जिस दिन सफर नहीं किया हो। इस बीच जोधपुर में हरिशर्मा जी से मुलाकात हुई। जिस का उल्लेख पिछली संक्षिप्त पोस्ट में मैं ने किया था। रविवार सुबह कोटा पहुँचा था। दिन भर काम निपटाने में व्यस्त रहा। रात्रि को फरीदाबाद के लिए रवाना हुआ, शोभा साथ थी। सुबह उसे बेटी के यहाँ छोड़ कर स्नानादि निवृत्त हो कर अल्पाहार लिया और दिल्ली के लिए निकल लिया वहाँ। राज भाटिया जी से मिलना था। इस के लिए मुझे पीरागढ़ी चौक पहुँचना था। मैं आईएसबीटी पंहुचा और वहाँ से बहादुर गढ़ की बस पकड़ी। बस क्या थी सौ मीटर भी मुश्किल से बिना ब्रेक लगाए नहीं चल पा रही थी। यह तो हाल तब था जब कि वह रिंग रोड़ पर थी। गंतव्य तक पहुँचने में दो बज गए। भाटिया जी अपने मित्र के साथ वहाँ मेरी प्रतीक्षा में थे। मैं उन्हें देख पाता उस से पहले उन्हों ने मुझे पहचान लिया और नजदीक आ कर मुझे बाहों में…………..… | Rhythm of words... रुक! - आज फिर थोड़ी सी जिंदगी मन के करघे पे कात लूं ॥ ख्वाहिशों के धागों से बुनने को फिर कोई बात लूं ॥ बैठे रहे यूँ देर तक ख़ामोशी के कहकहो में खो जाये साँसों को ढूँ... | MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर मुंबई मेरे ताऊ की - यह सवाल ही बेकार है की मुंबई किसकी है ? 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शास्त्री जी वृहद चर्चा के लिए शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंइस बार फिर कई एसी पोस्ट का पता चला जो पहले नहीं देख पाया था.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा..सारे लिंक कवर कर लिए यहाँ से.
जवाब देंहटाएं... एक अच्छा ब्लाग, प्रस्तुतियां भी प्रभावशाली हैं !!!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, यह गधा कहाँ से ले आए? हमने तो सुना था कि गधे आँख नहीं मारते लेकिन यहाँ तो? अच्छी पोस्ट, बधाई।
जवाब देंहटाएंbadhiya chitthca charcha...dhanywaad shstri ji
जवाब देंहटाएंबहुत वृहद और सराहनीय कार्य है. अक्सर चुनिंदा पोस्ट यहां से ही मिल्जाती हैं. अग्रीगेटर की जरुरत ही नही लगती. बस जारी रखिये इस जज्बे को.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भई वाह्! ये गधे महाश्य तो इन्सानों से ज्यादा समझदार दिख रहे हैं....खैर समझदार तो होगा ही आखिर गधा किसका है----ताऊ का :)
जवाब देंहटाएंलाजवाब चर्चा!!
आभार्!
bahut hi gazab ki charcha..........aajkal kafi links aapki post se hi mil jate hain........shukriya.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंजन्मदिन पर भी आपने विश्राम नहीं किया? आभार...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
Gazab kar diya ji
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