"चर्चा मंच" अंक-56 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं। कुछ ऐसे ब्लॉगों के साथ जिनकी चर्चा इस मंच पर कभी नही की गई! सभी ब्लॉग्ल पर उनका लिंक लगा है! आप इन पर जाइए और अपनी टिप्पणी आशीर्वाद के रूप में अवश्य दीजिए- थक गया हूँ मैं भले ही मैं मगर हारा नहीं हूँ... वक़्त हो कितना भी कातिल वक़्त का मारा नहीं हूँ !!…….. | यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं... तेरी खुशबू नहीं मिलती , तेरा लहजा नहीं मिलता हमें तो शहर में कोई तेरे जैसा नहीं मिलता यह कैसी धुंध में हम तुम सफ़र आगाज़ कर बैठे तुम्हें आंखें नहीं मिलती हमें चेहरा नहीं मिलता | हाथ काटे हैं ज़बां काटी है.सर हमारा तो अभी बाकी है. एक चिड़िया की तो हिम्मत देखो तोप पर बैठी गुनगनाती है लोग दातों में उँगलियाँ दाबें,……. डॉ.सुभाष भदौरिया.अहमदाबाद. | दोस्तों! पता नहीं ऐसा आप लोगो का दिल भी करता है अथवा नहीं, मगर मेरा दिल तो कभी-कभी मार खाने की भी ख्वाइशे पालता है ! :) खैर, अब वेलेंटाइन डे भी नजदीक आ रहा है, तो क्यों न आज कुछ नसीहते अपने युवा मित्रो को दे डालू ( नसीहत देने की पुरानी आदत जो है ) आ न जाना चक्कर में कभी किसी की चाल के…… अंधड़ ! | -अहमद फराज़-उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ।अब क्या कहें ये किस्सा पुराना बहुत हुआ।ढ़लती न थी किसी भी जतन से शब-ए-फ़िराक़,ए मर्ग - ए - नगाहाँ तेरा आना बहुत हुआ।हम खुल्द से निकल तो गये हैं, पर ऐ खु़दा,इतने से वाक्ये का फ़साना बहुत हुआ।अब हम हैं और सारे….. हमराही | आज कविता खुद अपनी दास्तां सुनाने आई है अपनी जुबान से अपने को आपका बनाने आई है। लोग कहते हैं मुझे पढ़ कर क्या हूं मैं कोई कहता है कविता तो दिल की आवाज है तो कोई उसे महज एक नजर देखकर समझता टाइम पास है किसी के लिये यह सिर्फ़ कोरी बकवास है तो किसी के लिये एक……… JHAROKHA | गातांक से आगे....सात निन्हव व दिगम्बर-श्वेताम्बर सम्प्रदाय -ऊपर जिन गणों कुलों व शाखाओं का उल्लेख हुआ है, उनमें कोई विशेष सिद्धान्त-भेद नहीं पाया जाता। सिद्धान्त-भेद की अपेक्षा से हुए सात निन्हवों का उल्लेख पाया जाता है। पहला निन्हव महावीर के जीवन काल……….. "हे प्रभु यह तेरापन्थ" | कल मिथिला पुत्र स्व. लल्लन प्रसाद ठाकुर का जन्म दिवस था और इस तिथि समारोह में तब्दील कर सामाजिक सेवा के साथ सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन कर स्व. एल पी. ठाकुर स्मृति न्यास ने ठाकुर जी को सम्पूर्ण श्रधांजलि दी।जैसा की न्यास की अध्यक्ष सुश्री कुसुम ठाकुर ने….. अनकही | नया ठौर चप्पल से निकला चुर्र-र - मैं जब भागते- भगाते देर शाम अपने मित्र शर्माजी के घर पहुंचा तो सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी। देखा, शर्मा की धर्मपत्नी खलबला रही थीं और अपने ड्राइंग रूम ... | SELECTION & COLLECTION शादी तीन रिग्स वाला सर्कस है - अंकल जी आंटीजी संपत का प्रणाम स्वीकार करे। आप लोगो से बहुत अंतराल के बाद मिलना हो रहा है । पर आपको मन ही मन रोजाना याद करता रहता हु। में मेरी दीदी की शादी.. | मानसी छू आई बादल के गाँव - *छू आई बादल के गाँव बहुत दिनों के बाद सखी री उमड़ घुमड़ कर गरजी बरसी बीते मौसम में हो आई धो आई स्मृतियों के ठाँव छू आई बादल के गाँव कुनमुन सी ये धूप सुन... | आदित्य (Aaditya) एक मुलाक़ात.. - कल दादा आये थे.. आदि से मिलने.. आदि के घर... कौन थे.. ये तस्वीरें देख कर पता लगा लो... पहचान गए न? | युवा दखल इतना कीचड़ मत उछालो अविनाश - *हमें गर्व है शमसुल इस्लाम और लालबहादुर वर्मा जैसे दोस्त शिक्षकों पर* *अविनाश को मै व्यक्तिगत तौर नहीं जानता*…मोहल्ला पर उनकी कारस्तानियों और एनानिमस नाम... | हर बार उभर आते हैंमेरे चेहरे परतुम्हारे प्रेम के निशानतबजब हम मिलते हैंसूरज मुस्कराता हैऔर, और तेज़ बहने लगती है नदीफर्राटा भर-भर हांफ उठती हैधरतीपर ये उन्माद नहीये सब करते हैंव्यंग्यहम परहम भी लगातार निचोड़ते रहेअपने-अपने हिस्से का…….. चौराहा | नुक्कड़ मुम्बई का डॉन कौन ? - व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट च्याइला! अपून एक-एक के कान के नीचे बजाएगा, कोई भंकस नहीं मँगता है। हिन्दी साइडर लोग को वार्निंग करके बोलता है कि इधर हँसने का तो मराठी.. | -- करण समस्तीपुरी आज फुर्सत में ख्याल आने लगा, आह ! जिन्दगी में कितना कष्ट है...... काश सप्ताह में दो ही दिन होता...... शनिवार और रविवार। फिर तो फुर्सत ही फुर्सत.... मौजा ही मौजा था !! लेकिन कमबख्त होता है पूरे सात दिन। न एक दिन कम न एक दिन ज्यादा..... मनोज | बहुत िदनों से अपने ब्लाग पर कुछ िलख्ाने की सोच रही थ्ाी पर मैं तकनीकी िदक्कतों की वजह से िलख्ा पाने आैर पोस्ट कर पाने में सक्ष्ाम नहीं हो पा रही थ्ाी। आज िफर कोिशश की है,कहना तो बहुत कुछ है लेकिन अभ्ाी मैं इस माध्यम की तकनीक में कमजोर हंु आैर यहां इन्द्रधनुष | Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून 'लोटपोट' साप्ताहिक पत्रिका मेरे पुराने कार्टून अभी भी प्रकाशित करती है अंक 16-22 अगस्त 2009 से. | हवा की तरह लिपट जाती है, छाया की तरह पीछे पीछे चलती है। पुकारने पर मेरी ही आवाज़, देर तक खंडहरों में गूंजती है आज उसे क्या हुआ है,बार बार मुझे छल जाती है। प्रवंचना की ऐसी सुलगती आग । ठगिनी कितनी बार,कितने जोगी का ऱूप लेकर पर्वत की ऊंचाइयों को लांघ कर, क्षितिज | आज की चर्चा को यहीं पर लिराम देता हूँ! |
धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सारे नये लिंक है। आभार
आपकी चर्चा कितनी current रहती हैं यह जानकर तो आश्चर्य होने लगा है. विनम्र आभार.
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और ताजी चर्चा.
जवाब देंहटाएंतामताम.
सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत ही गजब की करते हैं आप चर्चा
जवाब देंहटाएंछोड़ते नहीं हैं किसी का भी पर्चा
धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंबहुत ही मेहनत और ईमानदारी से की गई है चर्चा।
जवाब देंहटाएंBhai ji,
जवाब देंहटाएंKya kahen kya na kahen aapka charcha manch kamaal ka laga.Dil se Badhai!
शास्त्री जी, आज पहली बात (सारथी पर आपकी टिप्पणी द्वारा) इस चिट्ठे का दर्शन हुआ. मन प्रसन्न हो गया. चर्चा का एक नया अंदाज है, और पढने के लिये चुने आलेक मिल गये.
जवाब देंहटाएंइस चिट्ठे के ले-आउट को थोडा बदल कर Line-width कम और padding अधिक कर दिया जाये तो और अधिक आकर्षक लगेगा.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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एक और सुन्दर चर्चा के लिए शुक्रिया शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा. बधाई.
जवाब देंहटाएंbahut hi mehnat ki hai ..........sundar charcha.
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