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सोमवार, अक्टूबर 31, 2011

प्यार में हिसाब नहीं जानता (सोमवारीय चर्चामंच 684)

     दोस्तों! मैं चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ फिर हाज़िर हूँ सोमवारीय चर्चामंच पर बहुरंगी चर्चा लेकर। सदी के महान् साहित्कार, व्यंग्यकार और भारतीय सामाजिक परिवेश के वास्तविक तथा सच्चे चितेरा आदरणीय श्रीलाल शुक्ल जी को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। अब चलते हैं सीधे लिंकों पर-
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 नं. 1-
     परम् ख़ुशी का विषय है कि पूरी दुनिया में शायद पहली दफ़ा ब्लॉग पर स्थित किसी सामग्री को शोध में शामिल किया गया है और इस पुनीत कार्य को अंजाम दिया है शालिनी पाण्डेय जी ने। उन्होंने हिन्दी के चुनिन्दा यात्रा-वृत्तों को, जो ब्लॉग पर प्रकाशित हैं, अपने शोध में शामिल किया है। इससे न केवल हिन्दी ब्लॉग-लेखन को बढ़ावा मिलेगा अपितु उसकी गुणवत्ता में भी इजाफ़ा होगा। शालिनी जी यक़ीनन बधाई और धन्यवाद की पात्रा हैं। उनके इस साधु प्रयास को देखिए उनके ब्लॉग "हिन्दी भाषा और साहित्य" पर 'ब्लॉगों पर स्थित कुछ प्रमुख यात्रा-वृत्त तथा उनके लेखकों का परिचय और समीक्षण' नामक शीर्षक में
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2-
अरुण कुमार निगम जी का कहना है 'प्यार में हिसाब नहीं जानता' तो भाई निगम जी आप जानेगे ही कैसे जब प्यार में हिसाब होता ही नहीं
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3-
घुटी घुटी सिसकियों में,
चंद साँसें अभी बाकी हैं
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DR.JOGA SINGH KAIT JOGI
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दोहे: तन-मन-धन-जन-अन्न  -mahendra verma
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भारतीय काव्यशास्त्र–89 -आचार्य परशुराम राय
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अमृता तन्मय के शून्य दिमाग़ में...
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वाह रे, रथयात्री!! -उड़न तश्तरी ....
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मध्यकालीन भारत - धार्मिक सहनशीलता का काल (आठ) 
-मनोज कुमार
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शब्दों का उजाला
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आधा सच... अब तो देर हो गई अन्ना... -महेन्द्र श्रीवास्तव
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मेरा फोटो
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इनायत हो गयी... विशाल जी! बधाई
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साधना वैद्य जी का एक और तमाशा
मेरा फोटो
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मेरा फोटो
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वेरा की लड़ाई---जो न कह सके--- सुनील दीपक जी
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पचरंगी फूल खिलाओगे! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उच्चारण
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मेरा फोटो
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काँच के रिश्ते? -निवेदिता
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और अन्त में
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आज के लिए इतना शायद पर्याप्त होगा, फिर मिलने तक नमस्कार!

रविवार, अक्टूबर 30, 2011

श्रीलाल शुक्‍ल जी को समर्पित ; चर्चा-मंच 683

निवेदन:- देवनागरी लिपि में अपने ब्लॉग-मित्रों का जीवन-परिचय प्रेषित करने का कष्ट करें |
अपना प्रोफाइल भी, देवनागरी लिपि में अद्यतन करने की कृपा करें |
----रविकर 

श्रद्धांजलि

वृन्दावन V.K. Tiwari

सूनी घाटी के सूरज  की  कीर्ति कथा अति न्यारी !

वरद लाल वाणी के भारत का जन मन बलिहारी !

विश्व पटल पर हिन्दी की नव व्यंग्य ध्वजा फहराकर ,

अमर हुए  श्रीलाल शुक्ल , रच  अमर  राग दरबारी!!

            सत्य धाम यात्रा पर करता नमन राष्ट्र यह सारा !
          श्रद्धा सुमन समर्पित पदतल कोटि प्रणाम हमारा !

पहली 

दीवाली और घर की सफाई

न दैन्यं न पलायनम्


दीवाली के पहले की एक परम्परा होती है, घर की साफ़ सफाई। घर में जितना भी पुराना सामान होता है, वह या तो बाँट दिया जाता है या फेंक दिया जाता है। वर्षा ऋतु की उमस और सीलन घर की दीवारों और कपड़ों में भी घुस जाती है। उन्हें बाहर निकालकर पुनः व्यवस्थित कर लेना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत आवश्यक है। जाड़े के आरम्भ में एक बार रजाई-गद्दों और ऊनी कपड़ों को धूप दिखा लेने से जाड़ों से दो दो हाथ करने का संबल भी मिल जाता है। पुराने कपड़ों को छोड़ने का सीधा सा अर्थ है नयों को सिलवाना। नयेपन का प्रतीक है, दीवाली का आगमन।

दूसरी

आस्था का महापर्व-छठ

ऋता शेखर 'मधु'


कार्तिक महीना त्योहारों का महीना हे| करवा चौथ तथा पंचदिवसीय त्योहार दीपावली मनाने के बाद अब आ रहा हे आस्था का चारदिवसीय महापर्व- छठ पर्व| दीपा...

 तीसरी 

अनुभूतियों का आकाश

दीपावली की शुभकामनाएं

इस छोर   से उस छोर तक 
उस पूरी लाइन में
जगमग करते
गली चौबारे
रोशनी और पटाखों से
खिलखिलाते बचपन
दीपावली की शुभकामनाएं

चौथी 

कुश ने मनाई 

परदेस  में  दिवाली 

देश के  बाहर की दीवाली, ,
सूनी सूनी खाली खाली. .

दो दीपक आँगन मे जलाएँ

एक शाम बिता लें मतवाली. .
जब खाने के लिए प्रकृति ने भाँती-भाँती की वनस्पतियाँ, फल और अनाज उपलब्ध करा दिए हों तो हिंसक पशुओं के समान 'लाश' के टुकड़े खाने की क्या आवश्यकता है ? कम से कम उन पशुओं से ही कुछ सीखिए जिनके मृत शवों को आप.............

छठी 

हमारी वाणी को नफ़रत फैलाने वाली ऐसी पोस्ट को प्रकाशित नहीं करना चाहिए 

सोने पे सुहागा

ZEAL: 'लाश' खाने के शौक़ीन हैं आप ?
कायस्थों में मांसाहार प्रचलित है, कुछ नहीं भी खाते होंगे जैसे कि डा. दिव्या नहीं खातीं लेकिन उन्होंने मांसाहारियों को राक्षस और दरिंदा घोषित कर दिया और इस सिलसिले में उन्होंने राष्ट्रभक्तों तक को नहीं बख्शा।

 सातवीं 

चुनमुन चिड़िया

मेरा फोटो
प्यारी सी एक चुनमुन चिड़िया,
रोज फुदकती है आँगन में.
दाना चुगती, चूँ चूँ करती,
खुशियाँ भरती मेरे मन में.

आठवीं 

जनता की मांग और उसकी चेतावनी

दिल की बातें

भ्रष्टाचार का बाज़ार आजकल  गर्म है | सभी राजनैतिक पार्टियाँ इसको मुद्दा बना कर सत्ता........

क्योंकि जनता तो बहुत भोली  है ......
जनता क्या मांगती ?

तुमने क्या कमाया है यह हिसाब नहीं मांगती, 
कैसे वह कमाया है यह जबाब नहीं मांगती |
भूखी प्यासी जनता सोना चाँदी नहीं मांगती,
वह तो तन को एक कपड़ा और रोटी सूखी मांगती |

*आज एक धडकन तुम्हारे नाम गिरवीं रख रही हूँ देखो ज़रा संभाल कर रखना अमानत मेरी बस उस दिन लौटा देना जब रुखसत होउँ जहाँ से मेरी चिता पर आखिरी आहुति दे देना बस उस धडकन पर अपना.............

 दसवीं 

मेरी त्वरित टिप्पणियां और लिंक -5

तन्मात्रा हो हे सखी, शब्द, रूप, रस, गन्ध |
सस्पर्श पञ्च-भूतियाँ, सांख्य-मत से बन्ध ||
कार्य में अपने हे सखी, रहो सदा लवलीन |
तन्नी नित खुरचा करे, मन-पट हुई मलीन ||

(२)
 हरिगीतिका छंद 
भारतीय नारी  
बड़े-बुजुर्गों से मिले, व्यवहारिक सन्देश |
पालन मन से जो करे, पावे मान विशेष ||

 ग्यारहवीं 

स्त्री-पुरुष विमर्श गाथा...भाग दो ..सहजीवन.व श्रम विभाजन ...



                   वह आकृति अपनी गुफा में से अपने फल आदि उठाकर आगंतुक की गुफा में साथ रहने चली आई | यह मैत्री भाव था, साहचर्य --निश्चय ही संरक्षण-सुरक्षा भाव था..पर अधीनता नहीं ....बिना अनिवार्यता..बिना किसी बंधन के.....| इस प्रकार प्रथम बार मानव जीवन में सहजीवन की नींव पडी | साथ साथ रहना...फल जुटाना ..कार्य करना..स्वरक्षण...स्वजीवन रक्षा...अन्य प्राणियों की भांति | चाहे कोई भी फल या खाना जुटाए...एक बाहर जाए या दोनों ...पर मिल बाँट कर खाना व रहने की निश्चित प्रक्रिया -सहजीविता - ने जीवन की कुछ चिंताओं को -खतरे की आशंका व खाना जुटाने की चिंता -अवश्य ही कुछ कम किया | और सिर्फ खाना जुटाने की अपेक्षा कुछ और देखने समझने जानने का समय मिलने लगा |

 बारहवीं 

गर्भ रोधी गोलियों का सेवन अंडाशयीय कैंसर के जोखिम को घटाता है .

कबीरा खडा़ बाज़ार में--गर्भ रोधी गोलियों का सेवन अंडाशयीय कैंसर के जोखिम को घटाता है .
एक अध्ययन से संपुष्ट हुआ है कि तकरीबन दस सालों तक जो महिलाएं गर्भज निरोधी गोलियों का नियमित सेवन करतीं हैं उनके लिए अंडाशयीय (ओवेरियन कैंसर )कैंसर के खतरे का वजन घटकर आधा ही रह जाता है .अध्ययन 'ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ कैंसर '(इंग्लैण्ड की मशहूर विज्ञान पत्रिका )में प्रकाशित हुआ है...
तेरहवीं

राग- हिंदुस्तान

 [भार्या ने कहा ,जा रहे हो ,तो कुछ आवश्यक सामान हैं ,हो सके तो लेते आना .......]
टूटे   ख्वाब   जोड़   देने  का  सामान  लेते  आना ,
मेरे आँगन में बरसे फूल  वो आसमान लेते आना -
          करुणा   का   संवेग , दया   की 
          धरा  का   कलरव  छम - छम ,
          क्षमा प्रेम  की ,मलय   निरंतर 
          न्याय ,नम्रता ,लहराए परचम

नाप सकें गहराई नभ  की ,प्रतिमान लेते आना
-


 चौदहवीं 

फुरसत में
 
मनोज कुमार
पिछले अंक में हमने देखा कि ई.पू. छठी शताब्दी के पहले मगध में बार्हद्रथ के वंश का शासन था। इसकी राजधानी राजगृह या गिरिव्रज में थी। राजगृह यानी राजा का घर या निवास स्थान। चारों तरफ़ पाहाड़ियों से घिरे होने के कारण इसका नाम “गिरिव्रज” पड़ा।
“गृध्रकूट”
राजगृह बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। राजकुमार सिद्धार्थ (बुद्ध) संसार त्यागने के बाद मोक्ष प्राप्त करने की अभिलाषा से इस नगर में आए थे। अपने धर्म के प्रचार के लिए लम्बे समय तक यहां ठहरे। बुद्ध के लिए इस नगर का सबसे प्रिय स्थल “गृध्रकूट” अथवा ........
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 पंद्रहवीं 

तुम हो तो !!


मेरी बात

तुम हो तो
चहूँ ओर बसंत
तुम नहीं तो
हर मौसम का अंत //

तुम हो तो
मेरी कुछ नहीं चलती
तुम नहीं तो
मेरी डफली बजती //

तुम हो तो
चहूँ ओर है मेला
तुम नहीं तो
हर तकिया गीला //

सोलहवीं  

 

मेरे सपने

 

जो तुम आ जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग;
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग;

आँसू लेते वे पथ पखार|

हंस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद,
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग;

आँखें देतीं सर्वस्व वार|
-महादेवी वर्मा

शनिवार, अक्टूबर 29, 2011

"खफा होके भी हमसे वो कहाँ जायेंगे" (चर्चा मंच-682)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा के लिए आज ही ब्लॉगजगत का भ्रमण कर लेता हूँ!
सबसे पहले देखते हैं कि स्पंदन SPANDAN पर इतिहास की धरोहर "रोम"..किस प्रकार से बनी! माना ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र है, मगर आखिर रुखसती के भी अपने रिवाज़ होते है! इसलिए आज दिवाली की रात, मै रो चुका हूँ! काश लोग समझ पाएँ भ्रष्टाचार गुनाह नहीं: लोकसत्य में ‘मेरा आशियाना’,यह ‘अमन का पैगाम’ लेकर आये हैं ज़नाब मासूम साहिब। *खफा होके भी हमसे वो कहाँ जायेंगे,* *थोडा सा रूठे हुए थे ही,* *थोडा सा और रूठ जायेंगे,* उड़ा ले जायेंगे .....!!!!!!!!* मोहब्बत और जुदाई ....!इसीलिए तो स्वप्न मेरे. कहते हैं- हाथ में सरसों उगा कर देखिये... - धार के विपरीत जा कर देखिये, जिंदगी को आजमा कर देखिये, खिड़कियों से झांकती है रौशनी, रात के परदे उठा कर देखिये! मनुष्य बना कर रखना तुम यह सीख कहीं सीख ही न रह जाए कि मेरे सवालों के दायरे में जब वो होती है तो उसका मन भी मेरी बातों में उलझने लगता है वह मुझे बहलाकर झट से बाहर हो जाती है ऐसी ही तो होती हैं-मन की बातें ...!!! सम्बन्धों की श्रृंखला, निर्विकार - निष्काम | जननी सम भगिनी दिखे, भर-जीवन अविराम || बहना के जियरा बसे, स्नेह परम-उत्ताल | *भइया की लम्बी आयु का,* *माँग रहीं है यम से वर।* * मंगलतिलक लगाती बहना,* *भाईदूज के अवसर पर। याद. आते हो तो कितने ---- अपने -से लगते हो तुम ---- वर्ना, हर लम्हां गुजरता हैं ---- तुम्हारे ख्यालो में, सुन सखी .... - कुछ रिश्ते बेनाम होते हैं कुछ रिश्तों के नाम होते हैं बेनाम रिश्ते में कोई शर्त नहीं होती सिर्फ प्रेम होता है। आने वाला पल जाने वाला है ...हो सके तो इसमें ज़िंदगी बिता दो पल जो यह जाने वाला है! दोहों की दीपावली, अलंकार के संग. बिम्ब भाव रस कथ्य के, पंचतत्व नवरंग.. बस एक टिकाऊपन का ही भय है वरना तो..... ! अंग्रेज़ों के दिल का नासूर - *गांधी और गांधीवाद! कौन हो तुम ..... अन्ना भी भ्रष्ट??......इसलिए , कौन सा लोकपाल? ....कहाँ का लोकपाल? रेत के महल-हिंदी रामायण में पढ़िए- गंगा, उमा, कार्तिकेय गाथाएं | बँधी उन्हीं से डोर - मधुर-नधुर बोलें वचन ,भीतर कपट कटार ।* *मौका मिलते ही करें, सदा पीठ पर वार!
Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून-

कार्टून:- बॉस

अन्त में-
साहित्यपुर का संत-- श्रीलाल शुक्ल - अभी- अभी दुखद समाचार मिला कि हमारे समय के श्रेष्ठ रचनाकार एवं मानवीय गुणों से संपन्न श्रीलाल शुक्ल नहीं रहे

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के मशहूर व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल का आज लखनऊ स्थित सहारा अस्पताल में निधन हो गया।
चर्चामंच परुवार की ओर से- भावभीनी श्रद्धांजलि .........!!