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रविवार, अप्रैल 22, 2012

"रोजमर्रा के दर्द" ( चर्चा मंच - 857 )

लीजिए प्रस्तुत है रविवासरीय चर्चा!
*हमें जब भी हसीं लम्हे पुराने याद आते हैं
सभी मिलने-मिलाने के बहाने याद आते हैं
चमन में गूँजती हैं आज भी वो ही सदाएँ हैं
तुम्हारे गुनगुनाए गीत-गाने याद आते हैं...
कविप्रवर कुमार मुकुल जी से मेरी पहली मुलाक़ात
बीकानेर हाउस, नई दिल्ली में हुई थी।
प्रस्तुत हैं उनकी पाँच कविताएँ
मरुआ - ये एक पौधा होता है,
जो तुलसी से काफी मिलता जुलता होता है,
इस में अनंत गुण होते है पर अभी सिर्फ
इस के एक गुण के बारे में बात करते है,
*कलकत्ता/कोलकाता से संबंधित चौरंगी,
विक्टोरिया मेमोरियल के बाद यह तीसरी किस्त है.
शहीद मीनार भी कोलकाता में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है
सपने देखना किसी परी कथा के जैसा होता है !
रोमांच और ख़ुशी से भरपूर !
जहाँ पर आपकी अपनी खुशियों का अपना संसार होता है ,
चारों ओर आनंद ही आनंद *
फ़ुरसत में ... 99 : आत्मा के लिए औषध!
मनोज पुस्तक आत्मौषधि सही, सुनो थीब्स का पक्ष ।
बिन पुस्तक का घर लगे, बिन खिड़की का कक्ष ।
अमरुद में मौजूद है लाइकोपीन .
यह सौर विकिरण के परा बैंगनी अंश
(परा -बैंगनी विकिरण,अल्ट्रा -वाय्लिट रेज़ ) से
चमड़ी को होने वाली नुकसान...
प्यार,मुहब्बत,इश्क,वफ़ा तू करके देख !
कसमो-वादों की गली से गुज़र के देख !!
धरती माँ की रक्षा में हर वीर की बाहें फडकी
वीरांगनाओं ने कमर कसी चेहरे पर भय का भाव नहीं
मंत्र - लोकतंत्र! जिसकी आत्मा में पहले "लोक", बाद में "तंत्र"।
मगर अब नित्य पाठ हो रहा- "तंत्र" का नया मंत्र।
अभी कल्हे-परसोटीवी पर देख रहे थे प्रोग्राम *“मूभर्स एंड सेखर”*...
अरे ओही अपना *सेखरसुमन* का प्रोग्राम.
एगो पाकिस्तानी हिरोइन को बोलाए हुए था, जिसके बारे म...
खो गए क़दमों के निशान उनके जो चलें हैं रेत पर
समंदर पर उनको ही मिला जो चल ही दिए हैं रेत पर
सीपियों के खोल तो मिल ही जाते हैं रेत पर
जीवनके खामोश सफर में, मुझको नींद नहीं आती है
मखमलरेशम के बिस्तर में, मुझको नींद नहीं आती है.
जीनासीख लिया तब जाना कितनाहै बेदर्द जमाना
कोई न जाने साथ निभाना...
एक लड़का था, बचपन में देखता था कि
सबकी माँ तो घर में ही रहती हैं, घर का काम करती हैं,
बच्चों को सम्हालती हैं, पर
उसकी माँ इन सब कार्यों के अतिरिक्त....
रोज चढ़ते हैं एवरेस्ट पर ,
फिसल जाते हैं ,
जिंदगी है कि मानती नहीं,
कदम बेकार हो गए हैं
रोजमर्रा के मर्ज इतने कि ,
बेहिसाब हो गए हैं ....
मेरे सारे तर्क कैसे एक बार में
एक झटके से ख़ारिज कर देते हो
और कहते कि तुम्हें समझ नहीं,
जाने कैसे अर्थहीन हो जाता...
अपना घर अपना होता है, ये जीवन का सपना होता है।
बड़े शहर में घर का सपना, केवल इक सपना होता है...
पाना चाहते हैं तो जल्‍द ही आपकी यह समस्‍या सुलझने वाली है।
वैज्ञानिकों ने एक ऐसा जैल बनाने का दावा किया है जो व्यक्ति को दाढी...
साधू बाबा भागे जा रहे थे और लड़के पीछा कर रहे थे ....
एक और एक और .... बाबा बच्चों को एक एक लचदाना दे रहे थे
पर बच्चों की संख्या से परेशान होकर...
लौंग के फूल की तरह,
तोड़ कर अलग कर दिया जाता है कवि,
और कविता चबा ली जाती है,
मुंह महकने के लिए...
- क्षितिज की लालिमा कोरी सी लगेगी,
सपाट हो जायेंगे, देवस्थलों के उतुंग शिखर!
बाढ़ सी छितरा देंगे, गंगा के ये उर्वरा मैंदान,
पिकासो की पेंटिंग 'सपना'.
इसमें मैरी वॉल्‍टर मॉडल के रूप में हैं.*
पिकासो का प्रेम-जीवन बहुत डरावना है.
पिकासो ने कई बार प्रेम किया
और हर बार वह ख़ुद ......
अक्सर दुर्भावनाओं से हिन्दुत्व पर
हिंसक और माँसाहारी होने के आरोपण किए जाते है
किन्तु हिन्दुत्व प्रारम्भ से ही अहिंसा प्रधान धर्म रहा है...
‘सोने पे सुहागा‘ ब्लॉग पर डा. अयाज़ लिखते हैं-
अवैध संबंधों के शक में धड़ाधड़ हो रही हैं
बेटियों-बीवियों की हत्याएं आनंद बाइक मैकेनिक था...
अब दीजिए आज्ञा!
अगले शनिवार फिर मिलूँगा,
कुछ और ब्लॉगों की चर्चा लेकर!
नमस्ते!!

22 टिप्‍पणियां:

  1. रोजमर्रा के दर्दों में भी
    दिनेश की दिल्लगी जारी है
    चर्चामंच सजा है कुछ ऎसा
    फिर भी उसपर भारी है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  3. तेरह सौवें पुष्प की , खुशबू गाती गीत
    मुखरित अब भी बाग में, भूले बिसरे मीत
    भूले बिसरे मीत, सजा है मन का उपवन
    खिलते झरते पुष्प,इसी का नाम है जीवन
    बिछ जाते हैं नयन , कभी तनती हैं भौंहें
    खिलो सदा मुस्काओ, पुष्प ओ तेरह सौवें.

    सुंदर लिंक्स, साभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ।
    आभार ।।

    खिलें बगीचे में सदा, भान्ति भान्ति के रंग ।
    पुष्प-पत्र-फल मंजरी, तितली भ्रमर पतंग ।

    तितली भ्रमर पतंग, बागवाँ शास्त्री न्यारे ।
    दुनिया होती दंग, आय के उनके द्वारे ।

    नित्य पौध नव रोप, हाथ से हरदिन सींचे ।
    कठिन परिश्रम होय, तभी तो खिलें बगीचे ।।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  6. डाक्टर साहब,
    'चर्चा मंच' पर मेरी रचना को स्थान दिया,आपका दिल से आभार.

    जवाब देंहटाएं
  7. रंग-बिरंगे ब्लॉग पोस्ट से परिचय.. आभार शास्त्री जी!!

    जवाब देंहटाएं
  8. सभी लिंक्स बहुत ही सुन्दर और दमदार है....आभार!

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति !सुंदर लिंक्स,

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

    जवाब देंहटाएं
  10. इतनी मेहनत से लिए इतने सारे रंग ,

    प्रकृति नटी भी देखके रह गई देखो दंग .

    शाष्त्री जी के ढंग ,बढ़िया चर्चा अनोखे रंग

    जवाब देंहटाएं
  11. kshama kijiyega....abhi wo post complete nahi tha to use draft me dala hai.....waise us rachna ko charcha manch me shaamil karne ke liye shukriya...

    जवाब देंहटाएं
  12. समतोल चर्चा, श्रमसाध्य प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. आदरणीय शास्त्री जी बहुत अच्छी चर्चा रही ..सुंदर लिंक्स श्रम भरा कार्य ...आप की मेहनत साहित्य के संबर्धन में रंग लाती रहे
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

    जवाब देंहटाएं

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