आज की मंगलवारीय चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते आप सब का दिन मंगल मय हो
आज के दिन दो फूल खिले हैं जिनसे महका हिन्दुस्तान
जय जवान जय किसान
अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लोग्स पर
च स्मृतियों नें
चुहुल - ३३ एक नेता जी अपने चुनाव क्षेत्र के
बेमेल विवाह ……एक त्रासदी
वन्दना at ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
बेंगलूर में अखिल भारतीय साहित्य साधक मंच की काव्य गोष्ठी व मुशायरा संपन्न .. Dr. shyam gupta at श्याम स्मृति..The world of my thoughts
बुढ़ापे का दर्द ....(आज विश्व वृद़ध जन दिवस पर)
रश्मि at रूप-अरूप
गांधी जयंती पर गणि राजेन्द्र विजय का विशेष आलेख - गांधी की अहिंसा है मानवता का महागीतRavishankar Shrivastava at रचनाकार -
शब्दों का मौन !!!
सदा at SADA -
क्षितिज की ओर....
Kailash Sharma at Kashish - My Poetry -
Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
नौटंकी ...
उदय - uday at कडुवा सच
इसलिए राहुल सोनिया पर ये प्रहार किये जाते हैं .
शालिनी कौशिक at Mushayera -
शरीर का जायज़ा लेती बेहद की प्रोद्योगिकीय दखल
Virendra Kumar Sharma at कबीरा खडा़ बाज़ार में
tasveer
prritiy----sneh at PRRITIY .... प्रीति -
इसके साथ ही आज की चर्चा समाप्त करती हूँ फिर मिलूंगी तब तक के लिए शुभविदा, शब्बा खैर ,बाय बाय
**************************************************************
बहुत बढ़िया लिनक्स सहेजे चर्चा..... आभार
जवाब देंहटाएंबृद्ध दिवस पर सभी बृद्ध जनों को हार्दिक शुभ कामनाएं | अच्छी लिंक्स |
जवाब देंहटाएंआशा
सरकार को तेल और कोयला कम्पनियां ही तो चला रहीं हैं .सरकार तो सरकार कबकि गिरा चुकी है.
जवाब देंहटाएंसीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
सीख न बांदरा दीजिए ,बैया का घर जाय .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/10/blog-post_1.html
जवाब देंहटाएंवो चंद लफ्ज जो थे दोनों के दरमियाँ
वो लफ्ज़ जिंदगी को नए मायने दे गए ....अभी भी चलाये हैं वही लफ्ज़ ज़िन्दगी को . ........ज़िन्दगी
बढ़िया मुक्तक है .
तेरी उस तस्वीर को हवा भी छूती थी, कैसे सहता
दिल में तस्वीर को लगाया है जो जहां से भी छुपी है..
शीशा- ए- दिल में बसी तस्वीरे यार ,
जब ज़रा गर्दन झुकाई ,देख ली .
सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
सीख न बांदरा दीजिए ,बैया का घर जाय .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/10/blog-post_1.html
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
tasveer
prritiy----sneh at PRRITIY .... प्रीति -
अजी सितारा हो तो हम भी अर्घ्य चढ़ाएं .ब्लेक होल का क्या करें .चर्च के एजेंटों का क्या करें जिन्हें भारतीय राजनीति की काया पे जतन से रोपा गया है ?
जवाब देंहटाएंक्या बात है ...शर्मा जी ..सचमुच ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar Sharma ने कहा…
ब्लॉग जगत में कुछ महिलायें सोनिया जी को लेकर बहुत उद्वेलित हैं .नारी ब्लॉग किसी का सम्मान करे इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन यह सम्मान जेंडर आधारित नहीं होना चाहिए .क्योंकि उस हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी भी स्त्री वाचक है कम्पनी है तो क्या उसके कसीदे काढ़े जाएँ .
आपने सोनिया जी को देख लिया उनसे मिल लीं हैं बहुत अच्छा है .नहीं मिलीं हैं और बिना मिले भी उनके प्रति यह वफादारी है यह और भी अच्छा है लेकिन उन्हें (सोनिया जी )को आप नारी कहके तो देखें .क्या वह भी अपने को नारी मानतीं हैं ?कहकर देखिए उन्हें नारी और फिर देखिए उनकी प्रतिक्रिया.
ब्लॉग जगत को इस जेंडर बायास ,जेंडर तरफदारी से ऊपर उठना चाहिए .
सही को सही कहो ज़रूर कहो .
लेकिन औरों को भी अपनी बात कहने दो .अपनी जुबां उनके मुंह में फिट मत करो .फिर शौक से करें सोनिया स्तुति .गाएं वृन्द गान ....गाइए सोनिया जगबन्दन
वाह ! वीरेंद्र जी.... सही कहा ...जय जय चारण-गीत की.. जय हो ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar Sharma ने कहा…
ब्लॉग जगत में कुछ महिलायें सोनिया जी को लेकर बहुत उद्वेलित हैं .नारी ब्लॉग किसी का सम्मान करे इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन यह सम्मान जेंडर आधारित नहीं होना चाहिए .क्योंकि उस हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी भी स्त्री वाचक है कम्पनी है तो क्या उसके कसीदे काढ़े जाएँ .
आपने सोनिया जी को देख लिया उनसे मिल लीं हैं बहुत अच्छा है .नहीं मिलीं हैं और बिना मिले भी उनके प्रति यह वफादारी है यह और भी अच्छा है लेकिन उन्हें (सोनिया जी )को आप नारी कहके तो देखें .क्या वह भी अपने को नारी मानतीं हैं ?कहकर देखिए उन्हें नारी और फिर देखिए उनकी प्रतिक्रिया.
ब्लॉग जगत को इस जेंडर बायास ,जेंडर तरफदारी से ऊपर उठना चाहिए .
सही को सही कहो ज़रूर कहो .
लेकिन औरों को भी अपनी बात कहने दो .अपनी जुबां उनके मुंह में फिट मत करो .फिर शौक से करें सोनिया स्तुति .गाएं वृन्द गान ....गाइए सोनिया जगबन्दन
इसलिए राहुल सोनिया पर ये प्रहार किये जाते हैं .
शालिनी कौशिक at Mushayera -
क्या गजब नौटंकी देखने को मिलती है अपने मुल्क में 'उदय'
जवाब देंहटाएंउफ़ ! अर्थी सजाने की घड़ी में, सेहरा सज रहा भृष्टाचार(भ्रष्टाचार ) का ?......भ्रष्टाचार ......
बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .एक दम अपना ही अंदाज़ लिए अतुलनीय . नौटंकी ...
उदय - uday at कडुवा सच
jay ho ...
हटाएंपुरुष लम्पटता की तमाम परतों को खोलके रख दिया है इस रचना ने .वासना मरती नहीं है पल्लवित होती है लम्पट मन में .यही इस रचना का सन्देश है .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
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सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
भानमती की बात - साठा सो पाठा.
प्रतिभा सक्सेना at लालित्यम् -
भूसा बहुत बढ़िया रूपक उठाया है और आखिर तक इसे निभाया है .वाह क्या बात है भूसा हूं
जवाब देंहटाएंमैं
अन्न को
सहेज
रखता हूं
और अंत में
कर दिया जाता हूं
बाहर -
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
भूसा
अरुण चन्द्र रॉय at सरोकार -
खोल दूंगी ये तिजौरी
जवाब देंहटाएंबंद करके रख दिए
वो पल वो शब्द
वो वाकये जो आल्हादित
मलय की सुगंध देते थे ,
मन की तिजौरी में,
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है .
खोल दूंगी ये तिजौरी
Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
जवाब देंहटाएंअब क्यों करें अफ़सोस,
गुज़र गयी ज़िंदगी जैसे भी,
नहीं अब यह आस भी बाकी,
वह अंतिम समय आयेगा..........यही हासिल है पूत पालने का .पूत पालना और ऊत पालना एक समान .
पूत कपूत सुने हैं लेकिन माता हुईं सुमाता .....लेकिन माता बनने का अवसर गर्भ में ही कन्या से छीन लिया जाता है .फिर भी आँख नहीं खुलतीं पुत्र केन्द्रित समाज की .मत मार दी है आदमी की पिंड दान के लालच ने कर्म कांडी चिंतन ने .
बहुत गहरे घाव करने वाली सीधी सपाट रचना .
क्षितिज की ओर....
Kailash Sharma at Kashish - My Poetry -
रोचक चर्चा से सजे सूत्र..
जवाब देंहटाएंबस सवालों के दायरे में
जवाब देंहटाएंएक मानसिक द्वंद (द्वंद्व )लिए ....द्वंद्व
कभी सहते आघात
कभी बन जाते घात
कभी तपस्वी की तरह
साधक हो जाते
निरर्थक से बिखर जाते
यहां-वहां
.........
जब भी कुछ बिखरा है
मैने अपनी दृष्टि को स्थिर कर
हथेलियों को आगे कर दिया
फिर वह तुम्हारी पलको(पलकों ).. से ......पलकों .....
गिरा कोई आंसू था
या कोई टूटा हुआ ख्वाब
बाहर तो शब्द ही होतें हैं और अर्थ होतें हैं हमारे अन्दर .....भीगे शब्दों का मौन मुखर होता है ,चीखता है चिंघाड़ता है ,मौन कलेजा फाड़ ता है भले शब्द भीग जाएं ....
बहुत सशक्त रचना है .
बहुत खूबसूरत अंदाज में
जवाब देंहटाएंहै की गयी चर्चा आज !
यादें : मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!
वाह बहुत खूब !
हर तरफ चल रहा है जब कोई अकेला
फिर ये साथ मिलकर कौन जा रहा है
आदमी चल रहा खुद अपने ही साथ में
भगवान बस भीड़ एक बना रहा है !
इस इतिहासिक दस्तावेज़ के लिए आपका आभार .गांधी जयंती के मौके पे इससे ज्यादा मौजू और हो भी क्या सकता था चर्चा मंच पे .आज की बेहद उत्कृष्ट रचना .
जवाब देंहटाएंगांधी जयंती पर गणि राजेन्द्र विजय का विशेष आलेख - गांधी की अहिंसा है मानवता का महागीतRavishankar Shrivastava at रचनाकार -
खुबसूरत एवं व्यवस्थित चर्चा...आभार!!
जवाब देंहटाएंबापू जी एवं लाल बहादुर शास्त्री जी को शत-शत नमन|
वृद्धजनों को हार्दिक सम्मान|
जवाब देंहटाएंहमारे वक्त को खंगालती बेहद सशक्त रचना .
जवाब देंहटाएंहमारे वक्त को खंगालती बेहद सशक्त रचना .
बुढ़ापे का दर्द ....(आज विश्व वृद़ध जन दिवस पर)
रश्मि at रूप-अरूप
बेहद स्वस्थ हास परिहास .व्यंग्य विनोद और कटाक्ष एक साथ सब कुछ .
जवाब देंहटाएंजाले
चुहुल - ३३ एक नेता जी अपने चुनाव क्षेत्र के
ZEAL
जवाब देंहटाएंमानसिक रूप से दिवालिया .
अपने दिमाग के
दिवालियेपन
का क्या कर लेंगे
दिमाग में भरी गैस
को कैसे बदलेंगे
वोट देने जायेंगे
जिस समय
उसी फटे थैले से
देखना बाहर
फिर से ही
हम निकलेंगे !
हिन्दी-हाइगा
जवाब देंहटाएंबापू को कोटि कोटि नमन -
सुंदर प्रस्तुति !
नवगीत की पाठशाला
जवाब देंहटाएंक्यों हमने घर छोड़ा था -
बहुत सुंदर गीत
सुंदर अभिव्यक्ति !
वटवृक्ष
जवाब देंहटाएंजीवन का सच
स्मृतियों नें
अनुभव धागों के टूटने
उलझने और सुलझने का !
दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी
जवाब देंहटाएंहोता दही दिमाग, युधिष्ठिर कथा अनकही - -
कहीं मिठाई तो कहीं पटाखा हो जाता है
रविकर जब टिपियाता है तो देखिये
जो होता है दूध उसका दही हो जाता है
ऎसा करना मैने देखा है अब तक
और किसी को नहीं आता है !
गनीमत है दही जम जाता है....दूध फटता नहीं है ...
हटाएंजाले
जवाब देंहटाएंचुहुल - ३३ एक नेता जी अपने चुनाव क्षेत्र के
बहुत खूब
नेता जी का हवाई जहाज बना दिया
ऎसा जवाब मिला कि हवा में उड़ा दिया !
बहुत बढ़िया....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा...
सार्थक लिंक्स...
महात्मा गांधी,शास्त्री जी,और सभी बुजुर्गों को नमन.
सादर
अनु
बेमेल विवाह ……एक त्रासदी
जवाब देंहटाएंवन्दना at ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
एक पक्ष बहुत सटीक :
कुछ तो वाकई बेमेल रिश्ते हो जाते हैं
कुछ रिश्तों में मेल बनाया जा सकता है
हम भी कम नहीं ये सब कहाँ किसी
को यूँ ही सिखाने की कभी सोच पाते हैं
सोच सोच की बात है कहीं मेल के
दिखते दिखते बेमेल हो जाते हैं
बहुत सुलझे हुऎ बेमेल भी होते हैं
मिलने के बाद उनसे अच्छे मेल
कहीं फिर नजर ही नहीं आते हैं !
बेंगलूर में अखिल भारतीय साहित्य साधक मंच की काव्य गोष्ठी व मुशायरा संपन्न .. Dr. shyam gupta at श्याम स्मृति..The world of my thoughts
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
शुभकामनाऎं !
धन्यवाद सुशील जी ...
हटाएंबुढ़ापे का दर्द ....(आज विश्व वृद़ध जन दिवस पर)
जवाब देंहटाएंरश्मि at रूप-अरूप
आम तौर पर
जवानी में जो
रास्ते हम
दूसरों को
दिखाते हैं
अपने लिये
बनाते हैं
बुढा़पे मे वोही
रास्ते चलने
के लिये
हमारे सामने
आते हैं !
गांधी जयंती पर गणि राजेन्द्र विजय का विशेष आलेख - गांधी की अहिंसा है मानवता का महागीतRavishankar Shrivastava at रचनाकार -
जवाब देंहटाएंभटकाव को अगर
ठहराव की तरफ
ले जाना है
गाँधी अभी भी
उतना ही कारगर है
और सटीक है
यही सत्य तो
सबको समझाना है !
शब्दों का मौन !!!
जवाब देंहटाएंसदा at SADA -
सुंदर !
शब्द भीगते हैं जब भी
भारी भारी हो जाते हैं
तैरना चाहते हुऎ भी
मगर शब्दों में डूब जाते हैं !
क्षितिज की ओर....
जवाब देंहटाएंKailash Sharma at Kashish - My Poetry -
सुंदर भाव !
कहीं कटु है बहुत
पर कहीं बहुत
मीठा भी होता है
किसी किसी का
बुढा़पा सपने
जैसा भी होता है
वैसे जो जैसा
बोता है
हर बार तो नहीं
फिर भी
ज्यादातर पेड़
वैसा ही
पैदा होता है !
खोल दूंगी ये तिजौरी
जवाब देंहटाएंRajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
वाह !
करोड़ की पौटली
तिजोरी मैं ठूँस ली
निकाल भी ली
कम नहीं हुई
दो करोड़ दे गई !
bahut bahut dhanyvaad susheel ji.
हटाएंभूसा
जवाब देंहटाएंअरुण चन्द्र रॉय at सरोकार -
मत बताओ
मत कहो
मैं भूसा हूँ
भूसा होने
तक ही ठीक
होता है
जिस दिन
पता हो
जाता है
सामने वाला
भैंस की तरह
उसके बाद
पेश आता है !
भानमती की बात - साठा सो पाठा.
जवाब देंहटाएंप्रतिभा सक्सेना at लालित्यम् -
ऎसे लोगों को
जूते भी तो
नहीं लगाता कोई
पता होता भी है
फिर भी
कुछ बोल नहीं
पाता कोई
मौका आता है
तब भी बस
इस पर
फुसफुसाता कोई !
नौटंकी ...
जवाब देंहटाएंउदय - uday at कडुवा सच
मैं अपने लोकतंत्र का
क्या कर पाउंगा
घर पर तानाशाह
जब हो जाउंगा
वोट देने चला
गया तब भी
मोहर तो अपनी
ही सोच की लगाउंगा !
इसलिए राहुल सोनिया पर ये प्रहार किये जाते हैं .
जवाब देंहटाएंशालिनी कौशिक at Mushayera -
सटीक !
शरीर का जायज़ा लेती बेहद की प्रोद्योगिकीय दखल
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar Sharma at कबीरा खडा़ बाज़ार में
बहुत सुंदर !
अगले कडी़ का इंतजार रहेगा !
जवाब देंहटाएंभानमती की बात - साठा सो पाठा.
शर्मिन्दा पौरुष हुआ, लपलपान जो नीच ।
पैर कब्र में लटकते, ले नातिन को खींच ।
ले नातिन को खींच, बचे ना होंगे बच्चे ।
यह तो शोषक घोर, चबाया होगा कच्चे ।
है इसको धिक्कार, धरा पर काहे जिन्दा ।
खुद को जल्दी मार, हुआ रविकर शर्मिंदा ।।
tasveer
जवाब देंहटाएंprritiy----sneh at PRRITIY .... प्रीति -
और अंत में :-
तस्वीर शब्दों की बहुत उम्दा सी कुछ बनाई
दिख भी रही है और छूना भी मुमकिन नहीं !
आभार राजेश कुमारी जी ....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चामंच सजाने पर !
बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स
सुंदर सूत्रों सजी बेहतरीन चर्चा,,,,
जवाब देंहटाएंRECECNT POST: हम देख न सके,,,
बहुत सुन्दर लिंक्स...रोचक चर्चा..आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चाएं ---बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sundar ... jay ho ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति के लिए अआभर
जवाब देंहटाएंगाँधी जी संग शास्त्री जी को नमन!
बहुत सुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक सजाया है आपने....मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंकों के साथ साफ-सुथरी चर्चा पेश करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं2 अक्टूबर की बधाई!
achhi rachnaon ke saath meri panktiyon ko sthan dene ke liye abhaar
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
आप सभी का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंram ram bhai
जवाब देंहटाएंमुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
विदुषियो ! यह भारत देश न तो नेहरु के साथ शुरु होता है और न खत्म .जो देश के इतिहास को नहीं जानते वह हलकी चापलूसी करते हैं .
रही बात सोनिया जी की ये वही सोनियाजी हैं जो बांग्ला देश युद्ध के दौरान राजीव जी को लेकर इटली भाग गईं थीं एयरफोर्स की नौकरी छुड़वा कर .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
इसलिए राहुल सोनिया पर ये प्रहार किये जाते हैं .
शालिनी कौशिक at Mushayera -
जवाब देंहटाएंमंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
विदुषियो ! यह भारत देश न तो नेहरु के साथ शुरु होता है और न खत्म .जो देश के इतिहास को नहीं जानते वह हलकी चापलूसी करते हैं .
रही बात सोनिया जी की ये वही सोनियाजी हैं जो बांग्ला देश युद्ध के दौरान राजीव जी को लेकर इटली भाग गईं थीं एयरफोर्स की नौकरी छुड़वा कर .
भारतीय राजकोष से ये बेहिसाब पैसा खर्च करतीं हैं अपनी बीमार माँ को देखने और उनका इलाज़ करवाने पर .
और वह मंद बुद्धि बालक जब जोश में आता है दोनों बाजुएँ ऊपर चढ़ा लेता है गली मोहल्ले के गुंडों की तरह .
उत्तर प्रदेश के चुनाव संपन्न होने के बाद कोंग्रेस की करारी हार के बाद भी इस बालक ने बाजुएँ चढ़ाकर बोलना ज़ारी रखा -मैं आइन्दा भी उत्तर प्रदेश के खेत खलिहानों में
आऊँगा .इस कुशला बुद्धि बालक के गुरु श्री दिग्विजय सिंह जी को बताना चाहिए था -बबुआ चुनाव खत्म हो गए अब इसकी कोई ज़रुरत नहीं है .
इस पोस्ट में जो भाषा इस्तेमाल की गई है उसका भारतीय भाषा से कोई तालमेल नहीं है .यह चरण- चाटू भाषा है जो कहती है लाओ अपने चरण जीभ से चाटूंगी .सीधी- सीधी
चापलूसी है इस भाषा में कोई भी दो पंक्ति ले लीजिए पहली पंक्ति सामान्य रूप से कही जाती है ,दूसरी में ज़बर्ज़स्ती कीलें ठोक दी जातीं हैं किले खड़े कर दिए जातें हैं ..हरेक
पंक्ति के बीच यात्रा राहुल सोनिया के बीच की जाती है .एक छोर पर राहुल दूसरे पर सोनिया .
जिन्हें इतिहास का पता नहीं बलिदान का पता नहीं जिन्हें ये नहीं पता इस मुल्क के महाराष्ट्र जैसे राज्यों के तो कुल के कुल बलिदान हो गए,अनेक पीढियां हैं बलिदानी
.सावरकर को उम्र भर की सजाएं मिलीं .पंजाब में गुरुओं ने क्या जुल्म न सहे .क्या क्या कुर्बानी देश के लिए न दीं.
औरतें तो इस देश में खुद्द्दार हुआ करतीं थीं .चाटुकारिता कबसे करने लगीं? पुरुष बाहर रहता था उसे बेचारे को कई तरह के समझौते करने पड़ते थे .महिलाएं चारणगीरी नहीं
करतीं थीं .
और फिर चाटुकारिता के भी आलंबन होते थे .जिसकी चाटुकारिता की जाती थी उसमें कुछ गुण होते थे .जो योद्धा होते थे उनकी वीरता का यशोगान कर उनमें जोश भरा जाता
था .चाटुकारिता निश्चय ही राजपरिवारों के प्रति रही आई है .लेकिन इस पाए की नहीं .
लेकिन जिसे भारत की संस्कृति भाषा भूगोल आदि का ज़रा भी ज्ञान नहीं जिसका कोई कद और मयार नहीं वह आलंबन किस काम का .
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
गीता में अनासक्त भाव की भक्ति का योग है .लेकिन जिस भक्ति भाव और तल्लीनता से यह चाटुकारिता की गई है वह श्लाघनीय है
भले यह स्तुति इनका वैयक्तिक
मामला हो .
सन्दर्भ -सामिग्री :-
ram ram bhai
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Monday, October 1, 2012
इसलिए राहुल सोनिया पर ये प्रहार किये जाते हैं .
जीवन दृष्टि जीवन बोध सभी कुछ लिए है यह रचना .बधाई .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
यादें
मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!
किसी एक घटक के आभाव(अभाव ) में ,........अभाव .....
जवाब देंहटाएंजीवन सुखद नहीं लगता,
मानो जीवन से जी ऊब सा गया हो
और तब वह जीवन,
नीरव वन सा डरावना लगता है.
अभी सुख है अभी दुःख है ,अभी क्या था ,अभी क्या है ,
जहां दुनिया बदलती है उसी का नाम दुनिया है .
यहाँ बदला वफा का बे -वफाई के सिवाय क्या है .
मोहब्बत करके भी देखा मगर उसमें भी धोखा है .
जीवन के उतार चढ़ाव से सिंचित रचना .सुन्दर मनोहर .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
वटवृक्ष
पूरा एक इतिहास समेटे हैं तमाम हाइकु .यादें ही हैं ,बस उन दिनों की अब ,हाइकु बनकर .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
हिन्दी-हाइगा
बापू को कोटि कोटि नमन -
हर गली हर मोड़ पर सिसकते मिल रहें हैं ,
जवाब देंहटाएंये "सड़े" गले गलीज़ रिश्ते .........."सडे "शुद्ध करें इसे कृपया
दुष्परिणाम -
अभी उम्र थी मेरी बाली ,
बापू क्या देखा तुमने मुझमें ,और उसमें .................अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .....उसमे -----मुझमे क्या होता है ?गौर करें .
रोज़ ओढ़ा और बिछाया .........ओढा कृपया शुद्ध करें ...
मर्यादा की बेड़ियाँ मेरे पाँव न जकड़ ...........
प्रासंगिक है यह रचना .विडंबना हमारे दौर की लेकिन अब सहजीवन स्वीकृत है .
अन्य परिणाम
और उसमें सबसे ज्यादा सहना औरत को ही पड़ता है ..........उसमे ......फिर नाक की अनदेखी ....
और अपने सुखों .......सुखो .....
आपसी विश्वास और सहिष्णुता ...........
एक आयाम और है ऐसे विवाहों का -बीवी( काली कलूटी ) नैन नक्श हीना हो कोई बात नहीं पैसा खूब ला रही है भले उम्र में चाची लगती हो .ऐसे बेमेल विवाह भी हमने देखे .अपना अपना चयन है .
कहीं दुल्हा सुदर्शन कहीं दुल्हन सुदर्शना दुल्हा कुरूप .
अच्छा सामाजिक मुद्दा उठाया है .
भले गद्यात्मक ज्यादा है .
विचार कविता में छूट होती होगी .
ee
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
अनुस्वार ,अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .लेकिन नाक पे तवज्जो इतनी ज्यादा भी नो
कि आदमी का मुंह ही गौण हो जाए .
भाषा की बुनावट कई मर्तबा व्यंजना में रहती है ,तंज में रहती है इसलिए दोस्तों बुरा न मनाएं .
बेमेल विवाह ……एक त्रासदी
वन्दना at ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
हर गली हर मोड़ पर सिसकते मिल रहें हैं ,
जवाब देंहटाएंये "सड़े" गले गलीज़ रिश्ते .........."सडे "शुद्ध करें इसे कृपया
दुष्परिणाम -
अभी उम्र थी मेरी बाली ,
बापू क्या देखा तुमने मुझमें ,और उसमें .................अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .....उसमे -----मुझमे क्या होता है ?गौर करें .
रोज़ ओढ़ा और बिछाया .........ओढा कृपया शुद्ध करें ...
मर्यादा की बेड़ियाँ मेरे पाँव न जकड़ ...........
प्रासंगिक है यह रचना .विडंबना हमारे दौर की लेकिन अब सहजीवन स्वीकृत है .
अन्य परिणाम
और उसमें सबसे ज्यादा सहना औरत को ही पड़ता है ..........उसमे ......फिर नाक की अनदेखी ....
और अपने सुखों .......सुखो .....
आपसी विश्वास और सहिष्णुता ...........
एक आयाम और है ऐसे विवाहों का -बीवी( काली कलूटी ) नैन नक्श हीना हो कोई बात नहीं पैसा खूब ला रही है भले उम्र में चाची लगती हो .ऐसे बेमेल विवाह भी हमने देखे .अपना अपना चयन है .
कहीं दुल्हा सुदर्शन कहीं दुल्हन सुदर्शना दुल्हा कुरूप .
अच्छा सामाजिक मुद्दा उठाया है .
भले गद्यात्मक ज्यादा है .
विचार कविता में छूट होती होगी .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
अनुस्वार ,अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .लेकिन नाक पे तवज्जो इतनी ज्यादा भी न हो
कि आदमी का मुंह ही गौण हो जाए .
भाषा की बुनावट कई मर्तबा व्यंजना में रहती है ,तंज में रहती है इसलिए दोस्तों बुरा न मनाएं .
जवाब देंहटाएं२२. बड़ी उदासी थी कल मन में
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया
राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
बेहद सशक्त रचना एक दर्द एक तीस लिए शहर की और पलायन का ,विवश कूच का .
ram ram bhai
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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
नवगीत की पाठशाला
क्यों हमने घर छोड़ा था -
बहुत सुन्दर प्रस्तुति राजेश जी .मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान देने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंsabhi post kamal ki hai mere geet ko yahan sthan dene ke liye bahut bahut abhar
जवाब देंहटाएंrachana