मित्रों! पितर पक्ष चल रहे हैं और हम भी आपके लिंकों को पाठकों के सम्मुख लाने में सतत् प्रयत्नशील हैं। लीजिए प्रस्तुत है शनिवार की चर्चा! |
सबसे पहले देखिए ये दो लिंक"बात अन्धश्रद्धा की नहीं है"(सुख का सूरज)"श्रद्धापूर्वक श्राद्ध किया"("धरा के रंग") |
शीर्षकहीन*मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |* *निज लक्ष्य से ना हटें कभी * *अटूट निश्चय पे डटें सभी * *ना सत्य वचन से फिरें कभी * *ना निज मूल्यों से गिरें कभी * *जो गर्दन नीची कर दे * *मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे… हिन्दी कविताएँ, आपके विचार |
शीर्षकहीनअग्निशिखा | प्रिंट मीडिया ने खोजा “ पेड न्यूज ” का तोड़TV स्टेशन .. | मेहँदी का पेड़जिंदगी की राहें |
बदले बिहार का बिकल्प नहीं हो सकते लालू प्रसाद यादव | दाही दायम दायरा, दुःख दाई दनु दित्य-रविकरमहानगर दाही दायम दायरा, दुःख-दायी दनु-दित्य । कच्चा जाता है चबा, चार बार यह नित्य । चार बार यह नित्य, रात में ताकत बढती । तन्हाई निज-कृत्य, रोज सिर पर जा चढती… |
पाप –पुण्यLaghu-Katha - My Hindi Short Stories -Pavitra Agarwal | श्याम स्मृति.....खाली पेट नहीं रहा होगा .. ड़ा श्याम गुप्त .. | कुछ रिश्ते ....ऋणी होते हैं, जिनकी कितनी भी किस्ते अदा की जायें ब्याज़ चुकाया जाये फिर भी इनका ऋण चुकता नहीं होता .. |
ज़िन्दगी में उजाले के साथ अन्धेरा भी ज़रूरीहंसने के साथ रोना भी ज़रूरीदोस्त के साथ दुश्मन भी ज़रूरी… | लेता जम के खाय, रात भर पड़ा डकारेपुत्र-पिता-पति-पुरुष, पडोसी प्रियतम पगला- बदला युग आधुनिक अब, सास-बहू में प्यार । दस वर्षों का ट्रेंड नव, शेष बहस तकरार… |
शीर्षकहीनप्रिय मित्रों, नमस्कार। काफी लम्बे अंतराल बाद आपसे मुखातिब हूं. दो बातें हैं जो आपसे साझा करनी हैं. पहली ये कि रांची में 8 अक्टूबर को सायं 5 बजे विकास भारती सभागार में मेरे काव्य संग्रह मचलते ख्वाब का और दो अन्य कविता संग्रहों जिनमें मेरी भी कविताएं संकलित हैं, का विमोचन होगा. जिसकी अध्यक्षता करेंगे श्री हरिवंश जी प्रधान संपादक प्रभात खबर व मुख्य अतिथि होंगे मुख्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा जी. आप सभी मित्र आमंत्रित हैं. उसका कार्ड भी संलग्न है..... दूसरी बात है कि वर्ष 2012 अब समाप्ति की ओर है. हम सभी ने अपने-अपने ब्लॉग पर तमाम कविताएं और कहानियां लिखी हैं. कुछ मित्रों की सलाह पर... |
पन्नों पर प्रकृति के रंगआजकल यहाँ सतरंगी मौसम छाया है । पेड़ों के पत्ते रंग बदल रहे हैं । पतझड़ का मौसम है तो लाल पीले रंग के पत्ते पेड़ों पर बहुत सुंदर लग रहे हैं । मैं भी कुछ पत्ते चुन लाया हूँ और उन्हें पन्नों पर सजाया है । आप देखें और पहचानें कि क्या बना है ? |
और अब कैद में हैवर्षों तक एक ही शब्द के जिस्म में पनाह ले रखी थी और बाहर महंगाई काट रही थी अक्षरों को पन्नों पर स्याही बिखरने लगा था और हम थे कि शुतुर्मुग की तरह तुफान न होने की सम्भावाना को बनाये रखने के लिये सिर छुपाये बैठे थे कहर कुछ इसतरह बरपा था कि सम्वेदनायें शाखो से कट कटकर गिर गई थी और हम ठूंठ पेड़ को समझ बैठे थे अपना घर पन्नों के हिस्से में थी प्यास जो खाली था उसे पढने के लिये ज्ञान की नही बल्कि दिल की जरुरत थी… |
******दिशाएं****** मुक्तक माला – १० |
वार्तालाप तुमसे या खुद से नही पता…………मगरआह ! और वक्त भी अपने होने पर रश्क करने लगेगा उस पल ………जानती हो ना मै असहजता मे सहज होता हूँ और तुम्हारे लि्ये लफ़्ज़ों की गिरह खोल देता हूँ बि्ल्कुल तु्म्हारी लहराती बलखाती चोटी की तरह… | Life is Just a Life: तब तक भाग्य नहीं बदलेगाजब तक भारत का आँसू , बस केवल आँसू बना रहेगा , जब तक आर्द भाव का झोंका , केवल झोंका बना रहेगा,जब तक भारत का टुकड़ा , केवल टु... |
ज़िंदगी के एहसास का मौक़ा
हिंदी की महत्वपूर्ण पाक्षिक पत्रिका द पब्लिक एजेंडा के ताजा अंक में मेरा संस्मरण कैंसर के बावजूद कुछ कर जाने वाले लोगों पर विशेष आयोजन के तहत प्रकाशित हुआ है। वही आलेख शब्दशः-- ज़िंदगी के एहसास का मौक़ा इसे मैं मौका कहूंगी- जीने का, जिंदा होने के एहसास का तीसरा मौका।
| जीवों की हत्या करना ही अधर्म है।*जीवो जीवितुमिच्छति। (योग-शास्त्र)* === प्राणी मात्र जीने की इच्छा करते है। - *सर्वो जीवितुमिच्छति। (योग-वशिष्ठ)* === सभी जीना चाहते है। - *अहिंस्रः सर्वभूतानां यथा माता यथा पिता। (अनुशासन पर्व, महाभारत)* | जन-गण हुआ उदासKumar Anilमुन्शिफ बहरा हो गया ,कौन सुने फरियाद न्याय व्यवस्था देख कर जन गण हुआ उदास, कीलें कितनी ठुक गई , खत्म हुए विश्वास बहरों ने लिख दिया फैशला ,अंधों की इजलास हमदर्दी रोती रही,भाव जले, खाक हुए अहसास.. |
मेरा हैप्पी वाला बर्थडेदर्श का कोना | हर उम्र में सबके लिए ज़रूरी है अच्छी नींद (पहली और दूसरी किस्त संयुक्त )*बेशक अच्छी पुरसुकून नींद ले पाना कुछ के लिए दिवास्वप्न सा अप्राप्य लक्ष्य बनता जा रहा है लेकिन हेल्दी स्लीप आज हेल्दी ब्रेकफास्ट और नियमित व्यायाम की ही तरह लेना ज़रूरी हो गया है .ताकि दिन भर की भागदौड़ में आपका ऊर्जा स्तर और दम खम बना रहे… |
वो इक मजदूर था...रात भर उसके सिर पर... नज़मों का बोझ रखता रहा... चाँद, तारे, सागर, अंबर... मय, साक़ी, पैमानों के झुंड... कितना कुछ वो एक नट की तरह.... सिर पर संहालता रहा... | हाय काजल लगी मदहोश तुम्हारी आखें.बला का हुस्न गज़ब का शबाब नींद में है है जिस्म जैसे गुलिस्ताँ गुलाब नींद में है उसे ज़रा सा भी पढ़ लो तो शायरी आ जाए अभी ग़ज़ल की मुकम्मल किताब नींद में है… | एक बेहतरीन फ्री एंटीवायरसज्यादातर ट्रायल वर्जन हैं.जिन्हें एक महीने के बाद उन्हें खरीदना पड़ता है.यानि रजिस्टर करना पड़ता है.लेकिन अविरा में ऐसा नही है.इसे इन्स्टाल करने के बाद आपको एक साल तक दूसरा एंटीवायरस डालने की जरुरत भी नही पड़ेगी. |
फिर एक चौराहा - डॉ नूतन गैरोलाइम्तिहान, इम्तिहान, इम्तिहान,.. न जाने जिंदगी कितने इम्तिहान लेगी, हर बार एक नया चौराहा, हर बार खो जाने का भय , मंजिल किस डगर होगी कुछ भी तो उसे खबर नहीं ,……. ……..मंथन मंथन मंथन जाने कितना ही आत्ममंथन, हर बार पहुंची उसी जगह ज्यूँ शून्य की परिधि पर चलती हुई … |
जां से गुज़र जाने की ज़िद !कोहरा ए फ़जर थी उसकी चाहत, भटकता रहा उम्र भर, कभी बनके शबनमी बूंदें वो टपकता रहा दिल में, नाज़ुक बर्ग की मानिंद, जज़्बात लरज़ते रहे बारहा, कभी ग़ाफ़िल कभी मेहरबां ज़रूरत से ज़ियादा… |
अगर मैं रूक गयी तो*सोचो मेरे बारे में भी,* *मैं थकने लगी हूँ अब,* *सदियों से चलते चलते,* *अब पाँव मेरे उखड़ने लगे हैं !* * **तुमने अपने जीवन को,* *सरल सहज बना लिया है,* *मेरे हर कदम को,* *अदृश्य सा बना दिया है !* * **मेरा नहीं तो कम से कम * *अपना ख्याल कीजिये,* *जो पौधे काट रहे हो,* *उनको उगा भी दीजिये ! * * |
मुझे याद है प्रिय ! याद है .Я помню, любимая, помнюकुछ दिन पहले *अनिल जनविजय* जी की फेस बुक दिवार पर* **एसेनिन सर्गेई* की यह कविता .Я помню, любимая, помню (रूसी भाषा में ) देखि. उन्हें पहले थोडा बहुत पढ़ा तो था परन्तु समय के साथ रूसी भी कुछ पीछे छूट गई. यह कविता देख फिर एक बार रूसी भाषा से अपने टूटे तारों को जोड़ने का मन हुआ.अत: मैंने इसका हिंदी अनुवाद कर डाला .कविता अनुवाद का ज्यादा अनुभव मुझे नहीं है. अपनी समझ के अनुसार मैंने अपनी पूरी कोशिश की है कि शब्दों के साथ कविता के भावो में भी न्याय कर सकूँ.परन्तु यदि किसी को बेहतर करने की कोई गुंजाइश लगे तो कृपया जरुर बताइयेगा. फिर गाहे बगाहे स्पंदन पर आपको रूसी कवितायेँ भी मिलेंगी. .. |
मैं ही नहीं तो कुछ नहीं !*मैं' अहम् नहीं* आरंभ है *मैं *से ही तुम और हम की उत्पत्ति है *मैं* ही नहीं तो कुछ नहीं ! प्रेम,परिवर्तन,ईर्ष्या,हिंसा.... सबके पीछे *मैं * इस *मैं* को प्रेम ना दो तो वह हिंसात्मक हो जाता है ईर्ष्या की अग्नि में जलता है परिवर्तन के नाम पर उपदेशक बन जाता है ... तो सर्वप्रथम *मैं* की अहमियत जानो… |
हरहुआ कोईराजपुर में बाध की मिट्टी खोदकर उठवा रहे खनन माफिया, पुलिस मौन कोई राजपुर में वरूणा नदी के किनारे बने बॉध की जेसीबी से खोदाई कर रहे खनन माफिया* * हरहुआ कोई | कहानी – आखिर कब तक ? फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी ! मालती जल्दी से रसोई से अपने पल्लू से हाथ पोंछती मन ही मन बुदबुदाती फ़ोन उठाने भागी”हेलो … म्हारा हरियाणा | ऐ मालिक तेरे बन्दे हम! मात्र यह एक फिल्मी गीत ही नहीं है, बल्कि एक भावप्रणव प्रार्थना भी है यह… तराने सुहाने |
तुमजागो मोहन जागो जागो रे मन जागो जागो जीवन जागो जागना है तुम्हें जगाना है तुम्हें जगजगाना है तुम्हें तुम देह नहीं माटी नहीं तुम न कोई दु:ख हो तुम्हारी स्वांस छू रहा कोई तुममें कोई स्वर कोई अनहद बज रहा… | एक झलकचौराहे पर एक व्यक्ति जार -बेजार रो रहा है . वहां से गुजरने वाले लोग उससके रोने का करण नहीं पूछ रहे हैं बल्कि अपनी-अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त रहे हैं ..आइये उनकी प्रतिक्रिया के बारे में जाने ...... |
दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी लेता जम के खाय, रात भर पड़ा डकारे - - पुत्र-पिता-पति-पुरुष, पडोसी प्रियतम पगला- बदला युग आधुनिक अब, सास-बहू में प्यार । दस वर्षों का ट्रेंड नव, शेष बहस तकरार । |
कार्टून:- दारू, जहाज़ और सुर्री....काजल कुमार के कार्टून |
________________नाहक़ ही प्यार आया -ग़ाफ़िल_________________अन्त में देखिए!"हनूमान के वंशज हो तुम"
कभी इलैक्शन मत लड़ना,
संसद में मारा-मारी है।
वहाँ तुम्हारे कितने भाई,
बैठे भारी-भारी हैं।।
हनूमान के वंशज हो तुम,
ध्यान तुम्हारा हम धरते।
सुखी रहो मामा-मामी तुम,
यही कामना हम करते।।
छपते-छपते...
यहाँ पर सुबह सुबह पहले तो एक मकान के आगे नतमस्तक खड़ा हुआ नजर आ रहा था आज से मंदिर हो गया है अखबार में पढ़कर आ रहा था वहाँ पर बेशरमों के बीच शरम का एक ...
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बहुत बढ़िया लिनक्स लिए चर्चा .... चैतन्य को शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब है पसंद आपकी .
जवाब देंहटाएंलीजिए एक शैर इसी पर -उनसे छींके से कोई चीज़ उतरवाई है ,काम का काम है अंगडाई की अंगडाई है .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
शनिवार, 6 अक्तूबर 2012
चील की गुजरात यात्रा
जवाब देंहटाएंKumar Anil :jn gn hua udas
चाहे तूँ माने न माने कल सुबह होगी जुरूर
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जन गण हुआ उदास
मुन्शिफ बहरा हो गया ,कौन सुने फरियाद
न्याय व्यवस्था देख कर जन गण हुआ उदास
कीलें कितनी ठुक गई , खत्म हुए विश्वास
बहरों ने लिख दिया फैशला ,अंधों की इजलास ....फैसला .....
हमदर्दी रोती रही,भाव जले, खाक हुए अहशास .......एहसास ......
न्याय पालिका मर गई , न्याय बन गई लाश
गाँधी जी रोते रहे, रो-रो, थक हो गए निरास .......निराश .......
सत्य अहिंसा जुर्म हो गया, गाँधी को बनबास
लोकतन्त्र का खून हो गया, टूट गये विश्वास
राष्ट्र गीत के पंख नुच गए,सत्यम हुआ निरास .......निराश .....
(स्वर्गीय अदम गोंडवी जी को समर्पित)
अज़ीज़ जौनपुरी
भाई साहब बेहतरीन रचना .आज की सच्चाई से रु -ब-रु करवाती .
ram ram bhai
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शनिवार, 6 अक्तूबर 2012
चील की गुजरात यात्रा
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंमुखपृष्ठ
शनिवार, 6 अक्तूबर 2012
चील की गुजरात यात्रा
बढिया लिंक्स
जवाब देंहटाएंअच्छी वार्ता
भाई साहब तमाम सेतुओं पर एक नजर दौड़ाई है .बढ़िया सेतु हैं .सुबह विस्तार से पढ़के टिपण्णी की जायेंगी .वीक एंड है .शब्बा खैर .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
मुखपृष्ठ
शनिवार, 6 अक्तूबर 2012
चील की गुजरात यात्रा
"बात अन्धश्रद्धा की नहीं है"
जवाब देंहटाएंश्राद्ध के बहाने पूर्वज याद आ जाते हैं
साल के कुछ दिन उन्हे हम बुलाते हैं
श्रद्धा से पुकारा गया हो अगर
किसी ना किसी रूप में जरूर आते हैं !
हटाएं"बात अन्धश्रद्धा की नहीं है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
सुख का सूरज
श्रद्धा सह विश्वास की, सदा जरुरत घोर |
आस्था का यदि मामला, नहीं तर्क का जोर |
नहीं तर्क का जोर, पूर्वज याद कीजिये |
चलो सदा सन्मार्ग, नियम से श्राद्ध कीजिये |
पित्तर कोटि प्रणाम, मिले आशीष तुम्हारा |
पूर्ण होय हर काम, जगत में हो उजियारा ||
हिन्दी कविताएँ, आपके विचार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
हटाएंUntitled
Rajesh Kumari
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
कलयुग जाने से रहा, फिर भी रविकर साथ ।
सकल शुभेच्छा आपकी , पूर्ण करो हे नाथ ।
पूर्ण करो हे नाथ, हाथ अब पुन: लगाओ ।
पांच तत्व के साथ, जरा बारूद सटाओ ।
तन की गर्मी बढ़े, जले वह करके भुग-भुग ।
दुनिया को न खले, बदल जाए यह कलयुग ।।
अग्निशिखा
जवाब देंहटाएंशांतनु सान्याल / SHANTANU SANYAL / आधुनिक हिंदी कविता गुच्छ
बहुत खूबसूरत अंदाज
जरा हट के !
मेहँदी का पेड
जवाब देंहटाएंबहुत जानदार !
मेंहदी के पेडो़
को किसी ने
क्यों नहीं सिखाया
होगा समय के साथ
अपने आप को भी
बदल ले जाना
लाल रंग को कुछ
हल्का करते हुऎ
भूरा हो जाना !
बदले बिहार का बिकल्प नहीं हो सकते लालू प्रसाद यादव
जवाब देंहटाएंसही बात !
बिना पहिये की कार से अच्छी ही होती होगी बैलगाडी़ चलेगी तो सही कुछ दूर ही सही !
दाही दायम दायरा, दुःख दाई दनु दित्य-रविकर
जवाब देंहटाएंकुछ भी
कहा जाये
बहुत ही
कम है
रविकर की
कुण्डलियों में
बहुत दम है !
पाप –पुण्य
जवाब देंहटाएंLaghu-Katha - My Hindi Short Stories -Pavitra Agarwal
बहुत खूब !
श्याम स्मृति.....खाली पेट नहीं रहा होगा .. ड़ा श्याम गुप्त ..
जवाब देंहटाएंस्विस बैंक उस
समय शायद
नहीं होता होगा
नेता होता होगा
पर सो रहा
होता होगा
रोटी खाते होंगे
लोग बस
पैसा कोई शायद
उस समय
नहीं खा रहा होगा !
बहुत अच्छे सूत्र हैं सभी शास्त्री जी ! 'तराने सुहाने' से मेरी पसंद के गीत को चर्चा में सम्मिलित करने के लिये आपका धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंकुछ रिश्ते ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
लेता जम के खाय, रात भर पड़ा डकारे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति!
बहुत अच्छे लिंक्स...धन्यवाद और आभार
जवाब देंहटाएंसुप्रभात |बहुत शानदार विस्तृत चर्चा आपका परिश्रम परिलक्षित हो रहा है बहुत बहुत बधाई एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंफ्राइडे छुट्टी के बाद आज यहाँ आना हुआ.आज की चर्चा भी खूब है.मास्टर्स टेक पोस्ट शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंachchhi charchaa....
जवाब देंहटाएंप्रिंट मीडिया ने खोजा “ पेड न्यूज ” का तोड़ !
जवाब देंहटाएंबनिया डंडी मार के, ग्वाला पानी बेंच ।
चतुर सयाने लें कमा, पैदा करके पेंच ।
पैदा करके पेंच, नाप पेट्रोल कमाता ।
बेचारा अखबार, चला के क्या कुछ पाता ।
पेड न्यूज दे छाप, काँप लेकिन अब जाता ।
पीछे दिया लगाय, हाय क्यूँ जांच विधाता ।।
जवाब देंहटाएंहर उम्र में सबके लिए ज़रूरी है अच्छी नींद (पहली और दूसरी किस्त संयुक्त )
Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai
पुरसुकून हो नींद जो, रहे देह चैतन्य |
बारह घंटे बाल को, आठ सोइए अन्य |
आठ सोइए अन्य, सोय शिशु सोलह घंटे |
माता को आराम, जरा सा कमते टंटे |
रविकर का आलस्य, दिसंबर मई जून हो |
चौबीस घंटे नींद, रात-दिन पुरसुकून हो ||
जवाब देंहटाएंपन्नों पर प्रकृति के रंग
चैतन्य शर्मा (Chaitanya Sharma)
चैतन्य का कोना
कई पेड़ की पत्तियां, तरह तरह के रंग ।
कुदरत तो चैतन्य है, पत्ती कटी पतंग ।
पत्ती कटी पतंग, संग में हुई एकत्रित ।
पेन पेपर हैं दंग, ढंग से कर दे चित्रित ।
ले सुन्दर आकार, मोहता मन रविकर का ।
करता नवल प्रयोग, यहाँ पर नन्हा लड़का ।।
aabhar..bahut sundar---sarthak charcha..
जवाब देंहटाएंshamil karane ke liye shukriya ....sundar prastuti sir !
जवाब देंहटाएंअच्छे सुव्यवस्थित सूत्र ..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब चर्चा शास्त्री जी...आभार और बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा सजायी है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे -अच्छे लिंक्स..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और बढ़िया चर्चा मंच...
:-)
श्रृद्धा विहीना जीवन की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती .श्राद्ध उनके प्रति श्रृद्धा अवनत होना ही है .यह स्थिति उन लोगों ने खराब की है जो जीते जी माँ बाप की उपेक्षा करके उन्हें मानसिक रूप से तो मार ही देते हैं .कई तो मेले ठेलों में भी छोड़ आतें हैं .काशी करवट दिलवा देतें हैं .वृद्ध आश्रम अब इस दौर की हकीकत हैं .जीते जी भी सभी बुजुर्गों का सम्मान होना चाहिए .उनके आशीष के बिना जीवन फलित नहीं होता है .
जवाब देंहटाएंकौवों को ज़िमाना ,गाय(गौ ) ग्रास निकालना ,कुत्ते की रोटी निकालना तो वैसे भी पारितंत्रों के इन पहरुवों से जुड़ना जुड़े रहना है .महा -नगरों में अब उन्हीं हिस्सों में कौवे हैं जहां पेड़ पौधों और वनस्पति का डेरा है .हर जगह नहीं .
बचपन में हमने कौवों की बारात देखी है .छोटा सा नगर क्या कस्बा होता था गुलावठी (बुलंदशहर ,यू पी ),शाम ढले गौ धूलि की बेला में एक दिशा से कौवे आना शुरु करते थे लगभग आधा पौना घंटा यह सिलसिला चलता था .आ घर लौट चलें .तेज़ रफ़्तार में उड़ते कौवों के झुण्ड देखना बड़ा भला लगता था .अब तो कौवे सिर्फ राजनीति में ही रह गए पारि तंत्र तो टूट गये .
कभी इलैक्शन मत लड़ना,
जवाब देंहटाएंसंसद में मारा-मारी है।
वहाँ तुम्हारे कितने भाई,
बैठे भारी-भारी हैं।।
सुन्दर व्यंजना .मनमोहक मनमोहना बाल गीत .
अन्त में देखिए!
"हनूमान के वंशज हो तुम"
कभी इलैक्शन मत लड़ना,
संसद में मारा-मारी है।
वहाँ तुम्हारे कितने भाई,
बैठे भारी-भारी हैं।।
हनूमान के वंशज हो तुम,
ध्यान तुम्हारा हम धरते।
सुखी रहो मामा-मामी तुम,
यही कामना हम करते।।
छपते-छपते...
जवाब देंहटाएंग़मे-फ़ुर्क़त का जो एहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
जो ग़म इस वस्ल के मौसम में आया बेशुमार आया।
तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
बाद अर्से के मुझपर ख़ुद मेरा ही इख़्तियार आया।
बाद अरसे के मौसमें ,बहार आया ,
मेरा दोस्त बढ़िया अशआर लाया .
उन्हें तो आया ,आया ,नहीं आया ,
हमें तो (गाफ़िल) हर अदा पे उनकी प्यारा आया .
भाई साहब बहुत बेहतरीन अशआर हैं गज़ल के .मर्बेहवा.
ऐसे लोगों के लिए ही तो है सब्सीडी बोले तो राज्य सहायता .
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार के कार्टून
टिप्पणियाँ गटक रहा है स्पैम बोक्स .गाफ़िल साहब की गजल पे अभी अभी की थी ,
जवाब देंहटाएंप्रणाम
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ गटक रहा है स्पैम बोक्स .गाफ़िल साहब की गजल पे अभी अभी की थी ,खा बेटे स्पैम बोक्स कित्ती खायेगा .पेट से ज्यादा तो खा नहीं सकता .खा और खा स्साले .
ग़मे-फ़ुर्क़त का जो एहसास था वह फिर भी थोड़ा था,
जवाब देंहटाएंजो ग़म इस वस्ल के मौसम में आया बेशुमार आया।
तुम्हारी बेरूख़ी का यह हुआ है फ़ाइदा मुझको,
बाद अर्से के मुझपर ख़ुद मेरा ही इख़्तियार आया।
बाद अरसे के मौसमें ,बहार आया ,
मेरा दोस्त बढ़िया अशआर लाया .
उन्हें तो आया ,आया ,नहीं आया ,
हमें तो (गाफ़िल) हर अदा पे उनकी प्यारा आया .
भाई साहब बहुत बेहतरीन अशआर हैं गज़ल के .मर्बेहवा.
टिप्पणियाँ गटक रहा है स्पैम बोक्स .गाफ़िल साहब की गजल पे अभी अभी की थी ,खा बेटे स्पैम बोक्स कित्ती खायेगा .पेट से ज्यादा तो खा नहीं सकता .खा और खा स्साले .
महेंद्र भाई श्रीवास्तव साहब !यही तो दिक्कत है इस बीमार व्यवस्था में सब गोल माल कर रहें हैं .लेकिन हिमायत बराबर की नहीं पा रहें हैं .अब देखो एक आरोप केजरीवाल साहब ने वाड्रा के खिलाफ लगाया पूरे कांग्रेसी ऐसे निकल आये जैसे बरसात में सांप अपने बिल से निकल आते हैं .अखबार और प्रिंट मीडिया को एक दूसरे को कोसना पड़ता है .यह ना -इंसाफी है .इन्हें समझना चाहिए हम तो एक ही बिरादरी हैं .नेता सारे अपनी पगार बढवाने के लिए अप्रत्याशित एका दिखाते हैं और जन संचार वाले एक दूसरे की ही डेमोक्रेसी (ऐसी की तैसी )करते रहतें हैं .ऐसा कब तक चलेगा ?
जवाब देंहटाएंVirendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai http://veerubhai1947.blogspot.com/ रविवार, 7 अक्तूबर 2012 कांग्रेसी कुतर्क
बहुत खूब एक से बढ़िया एक बिम्ब मानव मनोविज्ञान को दर्शाती पोस्ट -
जवाब देंहटाएंपुलिस वाला ----साला...शराब के नशे में
धूत पड़ा हुआ है.........धुत .............
बीवी के डर से
चौराहे पे खड़ा हुआ है .......
Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai http://veerubhai1947.blogspot.com/ रविवार, 7 अक्तूबर 2012 कांग्रेसी कुतर्क
शास्त्री जी नमस्कार...लखनऊ की मुलाकात के बाद आपसे पहली बार बात हो रही है...मिलकर बहुत अच्छा लगा था..अब ब्लॉग पर भी सक्रिय रहूंगी...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार...