मित्रों! श्राद्धपक्ष के अन्तिम रविवार की चर्चा प्रस्तुत कर रहा हूँ! देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक! |
हिन्दी ब्लागिंग को समृद्ध करती महिलाएंवर्तमान साहित्य में नारी पर पर्याप्त मात्रा में लेखन कार्य हो रहा है, पर कई बार यह लेखन एकांगी होता है। यथार्थ के धरातल पर आज भी नारी-जीवन संघर्ष की दास्तान है। नारी बहुत कुछ कहना चाहती है पर मर्यादाएं उसे रोकती हैं। कई बार ये अनकही भावनाएं डायरी के पन्नों पर उतरती हैं या साहित्य-सृजन के रूप में। पर न्यू मीडिया के रूप में उभरी ब्लागिंग ने नारी-मन की आकांक्षाओं को मानो मुक्ताकाश दे दिया हो। वर्ष 2003 में यूनीकोड हिंदी में आया और तदनुसार तमाम महिलाओं ने हिंदी ब्लागिंग में सहजता महसूस करते हुए उसे अपनाना आरंभ किया। आज 50,000 से भी ज्यादा हिंदी ब्लाग हैं और इनमें लगभग एक चौथाई ब्लाग महिलाएँ.. |
रामविलास शर्मा
पहली बार |
बस कलम तेरामेरे वास्ते बचा क्या था बस कलम तेरा , काग़ज़ में छुपा के रखूँ अब मरहम तेरा रोज़ बस एक ही सवाल करती है कलम , की मेरी स्याही पे निशार हो कदम तेरा धुल में लिपटे हुए पन्ने को उठा कर लिख दे , देर तक संभालेंगे किताबों में परचम तेरा मेरे हर्फ़ यहाँ साज बन गए और राह तकें बेजुबां हो न जाएँ ,ढूंढते हैं सरगम तेरा… |
बचपन शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे अपना बचपन वापस नहीं चाहिए - अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी , तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता… Shrouded Emotions | उँगलियों के इशारे नचाने लगी BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN -- कैसी विडंबना है"निरंतर" की कलम से... | होंठों पर तैरती मुस्कान! हर शासकीय अवकाश के दिन सरकारी कामकाज के लिए दफ्तर पूरी तरह से बंद हों, इस बात का पता लगाना आम आदमी के लिए कोई हँसी खेल का काम तो … KAVITA RAWAT |
वो आँसू खारे थे - *डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा* *1* *सागर क्यूँ खारा है **?* *मीठी सी नदिया*** *तन** - मन सब वारा है ।* *2* *कब पास हमारे थे **?* *जो दिन रैन बहे*** *वो आँसू खारे थे... | ब्रह्मचर्य का पालन ही मनुष्य को सात्विक बनाता है ... - पिछली पोस्ट पर विषय अति संवेदनशील होने के कारण डिस्क्लेमर तो लगा दिया था लेकिन विश्वास भी था कि… | जी चाहता है.... ऐसे न आया करो रोज तुम मेरे ख्वाबों में। इन खूबसूरत ख्वाबों को हकीकत बनाने को जी चाहता है… |
मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (ग)मीनार (१) प्रगति का घट ‘प्रगति का घट’,’प्रेम-जल से रह गया रीता | छल रहा है हमें कितना ‘स्वर्ण-सम्मोहन’…. | कुछ अनसुलझे से पहलु रुक ... थोडा ठहर | ओ ... उड़ते हुए बादल | सवालों में उलझे अनसुलझे , पहलुओं को सुलझा जा | किस शर्त पर , आसमां के सीने में तू अठखेलियाँ करता?... | नदी हुई नव-यौवना, बूढ़ा पुल बेचैन - म. न. नरहरि !!सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन!! |
अधूरी हसरतों का ताजमहल जो तफ़सील से सुन सके जो तफ़सील से कह सकूँ वो बात , वो फ़लसफ़ा एक इल्तिज़ा, एक चाहत एक ख्वाहिश, एक जुनून चढाना चाहती थी परवान ढूँढती थी वो चारमीनार जिस पर लिख सके... | how to setup image and text zoom script *इमेज़ व टेक्स्ट ज़ूम स्क्रिप्ट को अपने ब्लॉग पर कैसे स्थापित करें ?* जैसा कि नाम से जाहिर है | जी हाँ ! आज आपके लिए पेश है * इमेज़ ज़ूम स्क्रिप्ट… टिप्स हिंदी में | सुबह की सैर - आज सुबह घूमने गया तो कुछ तस्वीरें खीँची। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी के सामने बने लॉन पर बगुले और कौओं को एक साथ घूमते देख कर यह गीत.. बेचैन आत्मा |
.कुली कैसे शहंशाह बने हम्माली में... जनता को भी याद नही घोटाले कितने हुए, कितने मुंह काले हुए कोयले की दलाली में........... पचास लाख क्यूँकर पाँच सौ करोड़ बने, कुली कैसे शहंशाह बने हम्माली में..... | पर भाव तो निरा निरक्षर है... वर्णमाला के बिखरे-बिखरे बस थोड़े से ही अक्षर हैं कुछ और मैं कहना चाहूँ पर भाव तो निरा निरक्षर है... Amrita Tanmay | आटा मंहगो हो रह्यो, फेरी खायगो कब.. - कुछ महीनों पहले किसान ने गेहूँ बेचा था ११०० रुपये कुंतल. इस समय यही गेहूँ बिक रहा है १५०० रुपये को और आटा पहुँच गया है २५ रुपये किलो. |
कह दो हर दिल से-कह दो दिलों से आज कि इक दिल ने आवाज दी है बन जाओ सहारे उनके जो कि बेसहारा हैं। गुलामी की वो जंजीरें जो टूटी नहीं हैं अब तलक तोड़ दो उन पाबन्दियों को जिन पर हक़ तुम्हारा है। बड़ी फ़ुरसत से वो इक शै बनाई है खुदा ने वो तुम इंसान ही तो हो जिसे उसने संवारा है… |
कैसे यकीं दिलाऊं...तुम अलबेली छैल छबीली,मैं कांटा जीवन मेरी कंटेली, फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का तुम सुलझी राजकुमारी मुझमें अब तक उलझी गँवारी… हृदयगाथा : मन की बातें |
रात का सूनापन अपना थारात का सूनापन अपना था। फिर जो आया वह सपना था॥ सोने की नीयति ही थी के उसको भट्ठी में तपना था।… |
तेरे होंठ की सुर्खी...तेरे होंठ की सुर्खी ले-ले कर हर फूल ने आज किया सिंगार तेरे ज़ुल्फ़ की खुशबु मौसम में तेरे दम सेकालियों पे है निखार… (कविता संग्रह 'हो न हो' से..) |
होता हलुवा टेट, फेल कंपनी विदेशी एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय | माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय | | मेरे कदम... न वो चिनार के बुत, न शाम के साए, एक सहज सा रस्ता, न पिआउ, न टेक | बस तन्हाई से लिपटे, मेरे कदम, चलते ही जाते हैं न जाने कहाँ । मिले थे चंद निशाँ, कुछ क़दमों ... काव्य मंजूषा |
खींच सकी नहिं कान, तभी नख-शिख तड़पाया- मन्त्र-शक्ति से था बसा, पहले त्रिपुर-स्थान । लटक गए त्रिशंकु भी, इंद्र रहे रिसियान… | आखिर इतना मज़बूत सिलिंडर लीक हुआ कैसे ? .. इसका ज़वाब तो भ्रष्टाचार की पटरानी के पास भी नहीं है .यह वाड्रा को आगे करके रंग भूमि से जो खेल खेल रहीं थी… |
पुस्तकें बुलाती हैं पुस्तकों से एक स्वाभाविक लगाव है। किसी की संस्तुति की हुयी पुस्तक घर तो आ जाती है, पर पढ़े जाने के अवसर की प्रतीक्षा करती है… | आप में और मुझ में है फर्क बड़ा...??? आप एक कवि और मैं एक साधारण इंसान || ख़ुशामद वो शै है,जो कहने में बुरी और सुनने में अच्छी लगती है || ...अज्ञात |
“उसके उड़ाये कौवे कभी डाल पर ना बैठे” : कहावत गांव में बचपन से बुजुर्गों से अक्सर झूंठ बोलने वाले, लंबी-लंबी डींगे हांकने वालों के लिए या किसी को झूंठे सब्ज बाग दिखाने वाले व्यक्तियों के बारे में… | दुनिया के किसी भी आश्चर्य से कम नहीं – अजन्ता और एलोरा की गुफाएं औरंगाबाद से 120 किमी की दूरी पर स्थित अजन्ता गुफाएं भारतीय कला और संस्कृति की अनूठी मिसाल है। यह अद्भुत ही नहीं अपितु आश्चर्यचकित करने वाली हैं… अजित गुप्ता का कोना |
फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' आपको पता है, दुनिया में सबसे मुश्किल काम क्या है ? घर संभालना ....लेकिन सबको लगता है यही एक आसान काम है ! बिना तारीफ बिना मूल्य का अगर कोई काम है तो वह है... " भ्रष्टाचार का वायरस " | प्रिय छोटे भाई और हिंदी के ख्यातिप्राप्त चिट्ठाकार अजय झा के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए शुभकामनाएं |
ज़माना किस क़दर बेताब है करवट बदलने को... जब होंगे लोगों के दिल में वलवले मचलने को आ जायेंगे वो भी इन्कलाब के रस्ते चलने को ऐ सियासतदानों जरा तुम मुड़ कर के तो देखो ज़माना किस क़दर बेताब है.. |
दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार केदोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शबे-गम गुज़ार के वीरां है मैकदा ख़ुमो-सागर(1) उदास है तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के.. |
**~टप...टप...टप...~ बूँदें एकाकीपन की...~***रात का सुनसान सन्नाटा... जब हर आवाज़, हर हलचल... सो गयी ...**खामोशी से......! अचानक सुनाई पड़ी तभी.. एक आवाज़... टप...टप...टप.. तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्राबिटिया मलाला को समर्पितउठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं वीर मलाला ।।और अन्त में देखिए! |
" कुछ प्यार की बातें करें"ज़िन्दगी के खेल में, कुछ प्यार की बातें करें। प्यार का मौसम है, आओ प्यार की बातें करें।।.. छपते-छपते (१)महिला शादी-शुदा जब, करती कार्य-बलात-- (२) मूल्याँकन का मूल्याँकन *दो सप्ताह से व्यस्त * *नजर आ रहे थे प्रोफेसर साहब मूल्याँकन केन्द्र पर बहुत दूर से आया हूँ सबको बता रहे थे कर्मचारी उनके बहुत ही * *कायल होते जा रहे थे... उल्लूक टाईम्स (३) किताब और किनारे वह एक किताब थी , किताब में एक पन्ना था , पन्ने में हृदय को छू लेने वाले भीगे भीगे से, बहुत कोमल, बहुत अंतरंग, बहुत खूबसूरत से अहसास थे ... Sudhinama |
चर्चामंच बढिया सजाया है कुछ लिंक्स पढे हैं बाकी उत्तराखंड की यात्रा से आकर पढूंगा
जवाब देंहटाएंआज का चर्चा मंच बहुत सुन्दर लिंक्स देकर सजाया है
जवाब देंहटाएंजरुर पढूंगी ...मुझे स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार !
बहुत सुन्दर लिंक संजोये हैं शास्त्री जीआपने अपनी चर्चा में |
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को स्थान दिया दिल से धन्यवाद |
टिप्स हिंदी में
नव -जनसंचार का शिखर ब्लॉग गौरवान्वित महसूस करता है नारी की इस सहभागिता पर .फलो फूलो आबाद रहो .
जवाब देंहटाएंकुछ तो चारपाई पे बैठ जांचते हैं कापियां ,
जवाब देंहटाएंहवा में उछालते हैं एक बंडल कापियां ,
जो चारपाई पे आ जाएँ ,वो पास .
जो रह जाएं वह फेल .
कोर्पोरेट सेकटर में वक्त का देखो खेल ,
स्पोट इवेल्युएशन बे -मेल
(२)
मूल्याँकन का मूल्याँकन
चाहत पर है नियंत्रण, नहीं बहुत की चाह |
जवाब देंहटाएंदो रोटी मिलती रहे, लो नि:शुल्क सलाह ||
ज़वाब नहीं भाई साहब आपका .सुन्दर भाव दोहे की छोटी सी काया में समाया है .बोध का बोध दोहे का दोहा .निश्शुल्क सीख .मेरी सुबह वाली टिपण्णी स्पैम में से निकालो भाई साहब .
(१)
महिला शादी-शुदा जब, करती कार्य-बलात
आए जब भी पर्व कोई, प्यार से उपहार दें,
जवाब देंहटाएंछोडकर।।।।।(छोड़कर)....... शिकवे-गिले, त्यौहार की बातें करें।
हर तरफ आलम है भ्रष्टाचार का ,
मुस्कुराता है ,छद्मी पैरहन ,
ऐसे में कौन से मयार की बातें करें ,
हार की बातें नहीं ,तकरार की बातें हैं ये ,
चिरकुटी माहौल में अब कौन सी बातें करें .
आपकी रचना में कोमल भाव है, हैं बहुत माहौल में झर्बेरियाँ ,
ऐसे में कोई बताओ! प्यार की बातें करें ?
जवाब देंहटाएंअपने समय की आवाज़ को मुखर करती यह गज़ल बहुत सशक्त है अर्थ और व्यंजना में .कृपया सुरूर कर लें शुरूर के स्थान पर .आभार .
ज़माना किस क़दर बेताब है करवट बदलने को...
जब होंगे लोगों के दिल में वलवले मचलने को आ जायेंगे वो भी इन्कलाब के रस्ते चलने को ऐ सियासतदानों जरा तुम मुड़ कर के तो देखो ज़माना किस क़दर बेताब है..
जवाब देंहटाएंवीरां है मैकदा (मयकदा ) ख़ुमो-सागर(1) उदास है।।।।।।।।।मयकदा ........
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के
फैज़ अहमद फैज़ साहब को पढ़वाया शुक्रिया .
दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार के
दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शबे-गम गुज़ार के
वीरां है मैकदा ख़ुमो-सागर(1) उदास है
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के..
औरंगाबाद से 120 किमी की दूरी पर स्थित अजन्ता गुफाएं भारतीय कला और संस्कृति की अनूठी मिसाल है। यह अद्भुत ही नहीं अपितु आश्चर्यचकित करने वाली हैं। दो किलोमीटर के दायरे में फैले पहाड़ के गर्भ में अनेक गुफाओं को कलाकारों ने इस प्रकार से तराशा है कि वे विश्व के आश्चर्यों में चाहे शामिल नहीं की गयी हो।।।।।हों …हों ……. लेकिन वे किसी भी आश्चर्य से कम नहीं हैं। लेकिन इन्हें भारत के सात आश्चर्यो में अवश्य गिना जाता है। शेष पोस्ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें –
जवाब देंहटाएंमुझे एक मीटिंग के सिलसिले में नाशिक …………..(नासिक )………..जाना था, औरंगाबाद वहाँ से 4 घण्टे की दूरी पर था।
हम मंगलवार को दिन के 10 बजे औरंगाबाद पहुँचे हमारी योजना थी कि पहले एलोरा देखेंगे क्योंकि वह केवल 20 कीमी।।।।किमी …………किलोमीटर …… की दूरी पर ही स्थित है लेकिन हमारे ड्राइवर ने बताया कि आज अजन्ता चलेंगे क्योंकि एलोरा मंगलवार के दिन रख रखाव के कारण बन्द रहता है। अजन्ता सोमवार को बन्द रहता है। अब हमारे पास समय
कला और संस्कृति विहीना प्राणि विकास की आदिम अवस्था में ही रह जाता है .परिष्करण हैं कलाएं चाहें फाइन आर्ट्स हों,ललित कलाएं हों या या परफोर्मिंग आर्ट्स संगीत और नृत्य .दर्शन और सहानुभूति से आप्लावित है आपकी पोस्ट .
नवाबों के बिगडैल लौंडों को इसीलिए थोड़ी तहजीब सीखें के लिए मुजरे वालियों के पास भेजा जाता था
ना बैठे” : कहावत
गांव में बचपन से बुजुर्गों से अक्सर झूंठ बोलने वाले, लंबी-लंबी डींगे हांकने वालों के लिए या किसी को झूंठे सब्ज बाग दिखाने वाले व्यक्तियों के बारे में… दुनिया के किसी भी आश्चर्य से कम नहीं – अजन्ता और एलोरा की गुफाएं
औरंगाबाद से 120 किमी की दूरी पर स्थित अजन्ता गुफाएं भारतीय कला और संस्कृति की अनूठी मिसाल है। यह अद्भुत ही नहीं अपितु आश्चर्यचकित करने वाली हैं…
अजित गुप्ता का कोना
जवाब देंहटाएंऔरों के संजाये।।।।(संजोये .,सजाये ?)...... शब्द आपके जीवन में वैसे ही उतर आयेंगे, यह बहुत ही कम होता है, एक आकृति सी उभरती है विचारों की, एक बड़ा सा स्वरूप समझ का। धीरे धीरे वाक्यों को याद करने की बाध्यता समाप्त हो गयी और पुस्तकों को आनन्द निर्बाध हो गया। थककर पुस्तकालय में बहुत बार सो भी गया, भारी भारी स्वप्न आये, निश्चय ही वहाँ के वातावरण का प्रभाव व्याप्त होगा स्वप्नलोक में भी।
बैठे बैठे कईयों(कइयों .......ईकारांत का इकारांत हो जाएगा ) पुस्तकें उलट लेता हूँ, सारांश समझ लेता हूँ, अच्छी लग ही जाती हैं, खरीद लेता हूँ।
सात्विक नशा चढ़ता है तो चढ़ा ही रहता है .भगवान करे चढ़ा ही रहे .पुस्तकें भगवतस्वरूपा होतीं हैं .
बढ़िया निबंध लालित्य पूर्ण .
एक मर्तबा किसी लेखक का यह वक्तव्य पढ़ा था यदि आप दिन भर में सौ सफे पढतें हैं तब आपको हक़ हासिल है आप एक सफा लिखें .सफा बोले तो पृष्ठ .किताबों में सिर्फ शब्द होतें हैं .अर्थ हमारे अंदर
रहतें हैं .किताबें हमारा अर्थ बोध बढ़ातीं हैं .आप इस प्रतिमान को बचपन में ही पूरा कर लिए .पुस्तकें हमारी निश्शुल्क शिक्षक हैं .
कभी दगा नहीं करतीं .
चाहे गीता बांचिये या पढ़िए कुरआन ,
तेरा मेरा प्रेम ही हर पुस्तक की जान .
पुस्तकें बुलाती हैं
पुस्तकों से एक स्वाभाविक लगाव है। किसी की संस्तुति की हुयी पुस्तक घर तो आ जाती है, पर पढ़े जाने के अवसर की प्रतीक्षा करती है…
आप एक कवि और मैं एक साधारण इंसान || ख़ुशामद वो शै है,जो कहने में बुरी और सुनने में अच्छी लगती है || ...अज्ञात *एक कवि जो अपनी कल्पना
जवाब देंहटाएंके * *सुंदर शब्दों से कविता बनाता है|* * * *एक साधारण इंसान जो अपने गुज़रे * *लम्हों को अपनी यादों से सज़ाता है| * * * *आप अपने ज़स्बों।।।।।
(ज़ज्बों ,ज़ज्बातों ....)से लिखते हो* *में अपने तजुर्बों पे लिखता हूँ|* * * *आप ख्यालों में सपने बुनते हो * *में यादों में उनको चुनता हूँ|* * * *आप ठहाकों
में बह जाते हो * *में मुस्करा के रह जाता हूँ|* * * *आपकी आँखें सपने चमकाती हैं * *मेरी आँखें बस टिमटिमाती हैं |* * * *आप में अभी कोमलता का
एहसास है * *मुझ में समय की कढवाहट।।।।।।।।।(कड़वाहट )..... का वास है |* * * *आपक... अधिक »
आपकी कलम से जिंदगी निकलती है
मेरे हाथों से जिंदगी फिसलती है|
दादा कविता इन एहसासात से जुदा कहाँ है ?बढ़िया कही है आपने .
खुशामद में बड़ी ताकत ,खुशामद से ही आमद है .
आप में और मुझ में है फर्क बड़ा...???
आप एक कवि और मैं एक साधारण इंसान ||
ख़ुशामद वो शै है,जो कहने में बुरी और सुनने में अच्छी लगती है ||
...अज्ञात
सोने की नीयति ही थी के
जवाब देंहटाएंउसको भट्ठी में तपना था।
बहुत बढ़िया शैर कहा है भाई साहब .कृपया नियति कर लें नीयति को .
दौरे-तरक्क़ी इंसाँ काँपे
जबकी हैवाँ को कँपना था।
बहुत बढ़िया तंज़ है इंतजामात पे ,इंतजामिया पर .
रात का सूनापन अपना था
रात का सूनापन अपना था।
फिर जो आया वह सपना था॥
सोने की नीयति ही थी के
उसको भट्ठी में तपना था।…
जवाब देंहटाएंचांदी कूटे रात दिन, बन माया का दास |
धर्म कर्म विज्ञान का, उड़ा रहा उपहास |
उड़ा रहा उपहास, धरे निर्मल-शुभ चोला |
अंतर लालच-पाप, ठगे वो रविकर भोला |
करे ढोंग पाखण्ड, हुई मानवता माँदी |
मिलना निश्चित दंड, काटले कुछ दिन चांदी ||
बहुत खूब सूरत तंज़ व्यवस्था गत भ्रष्टाचार पर .
खींच सकी नहिं कान, तभी नख-शिख तड़पाया-
मन्त्र-शक्ति से था बसा,
पहले त्रिपुर-स्थान ।
लटक गए त्रिशंकु भी,
इंद्र रहे रिसियान
मैं अपने विचार यहाँ रख रहा हूँ जो समाज जैविकी(Sociobilogy) के नजरिये से है ........(हैं ).........और कोई आवश्यक नहीं कि मेरा इससे निजी मतैक्य अनिवार्यतः हो भी?
जवाब देंहटाएंलो जी हम थक गए थे पढ़ते पढ़ते .,पूरा विमर्श .
एक आँखिन देखि -हमारे एक सर !हैं ,हाँ हम सर ही कहतें हैं उन्हें .किशोरावस्था से वर्तमान अवस्था में आने तक हमने उन्हें बहुत नजदीक से देखा है .सागर विश्व विद्यालय से रोहतक विश्व विद्यालय तक .बाद सेवानिवृत्ति आज भी उनसे संवाद ज़ारी है .
कोई आदर्श जोड़ा नहीं था यह पति -पत्नी का .अक्सर हमने इन्हें परस्पर लड़ते झगड़ते देखा .अपनी झंडी अकसर दूसरे से ऊपर रखते देखा .होते होते दोनों उम्र दराज़ भी हो गए .
73 -74 वर्षीय हैं ये हमारे सर !अभी कल ही इनकी पत्नी दिवंगत हुईं हैं .बतला दें आपको -गत आठ वर्षों से अलजाईमार्स ग्रस्त थीं .और ये हमारे सर उनको हर मुमकिन इलाज़ मुहैया करवाते रहे .पूरी देखभाल हर तरीके से उनकी की गई .घर की सुईं इनके हिसाब से घुमाई जाती थी ताकि इन्हें किसी भी बिध कष्ट न हो .आप जानते हैं अलजाईमार्स की अंतिम प्रावस्था में आदमी अपनों की पहचान भी भूलने लगता है .उसे यह भी इल्म नहीं रहता वह ब्रेक फास्ट कर चुका है .
चण्डीगढ़ में दो मंजिला कोठी और रहने वाली दो जान .कारिंदे इस घर में अपनी अपनी शिफ्ट में आते थे ,अपना काम करके चले जाते थे .सबके फोकस में इनकी पत्नी की देखभाल सर्वोपरि रखी गई थी .अब उनके जाने के बाद इस आदमी के पास करने को कुछ भी नहीं है एक बेहद का खालीपन हावी है .
तो ये प्रति-बद्धता ,कमिटमेंट सबसे ज़रूरी तत्व है शादी का .कर्तव्य को निजी भावना से ऊपर रखना पड़ता है .अपनी ड्यूटी से हमारे सर कभी नहीं भागे .आपस में बनी न बनी ये और बात है .
तू हाँ कर या ना कर?
noreply@blogger.com (Arvind Mishra) क्वचिदन्यतोSपि...
एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय |
माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय |
समय शीघ्र ही आय, श्वान सब होंय इकट्ठा |
केवल आश्विन मास, बने उल्लू का पट्ठा |
आएँगी कुछ पिल्स, काटिए महिने बाकी |
हो जाए ना जेल, रहो रविकर एकाकी ||
भाई साहब टिपण्णी गायब हो रहीं हैं .बढ़िया प्रस्तुति है मिश्र जी की मूल पोस्ट के अनुरूप .
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बड़े ही रोचक सूत्रों से सजी आज की चर्चा।
जवाब देंहटाएंकविता में निम्न शब्द शुद्ध करें -
जवाब देंहटाएंखुशबु (खुश्बू .....),सेकालियों पे (से कलियों पे ......),जाव (जाओ ......),शानो (शानों .......),ब्रेकिट में शुद्ध रूप हैं .
कविता में परम का उद्दात रूप व्यक्त हुआ है ,प्रेम पाकर प्रेयसी का प्रेमी गौरवान्वित है .
तेरे होंठ की सुर्खी...
तेरे होंठ की सुर्खी ले-ले कर
हर फूल ने आज किया सिंगार
तेरे ज़ुल्फ़ की खुशबु मौसम में
तेरे दम सेकालियों पे है निखार…
(कविता संग्रह 'हो न हो' से..)
बहुत ही सुंदर लिंक्स के साथ हुई चर्चा के लिए बहुत बधाई मयंक दा
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर सूत्रों से सजी हुई ..मुक्ताभ सा चर्चा के लिए बहुत-बहुत बधाई..
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन .
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति.
बहुत सुंदर लिंक्स के साथ उम्दा चर्चा |
जवाब देंहटाएंबढ़िया बढ़िया लिंक्स के साथ एक सुन्दर चर्चा फिर से चर्चामंच पर .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ..चर्चा में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
बहुत खूबसूरत चर्चा !
जवाब देंहटाएंआभार !
बढ़िया है |
जवाब देंहटाएंआभार सुन्दर -
प्रस्तुति के लिए ||
जवाब देंहटाएंमूल्याँकन का मूल्याँकन
सुशील
उल्लूक टाईम्स
चश्में का चक्कर गजब, अजब कापियां जाँच |
चश्मा जाँचेगा नहीं, टेढा आँगन नाच |
टेढा आँगन नाच, कहीं पर मुर्गी अंडा |
देता नम्बर सौ, कहीं पर खींचे डंडा |
अटकी जब पेमेंट, पड़ें भारी सब रश्में |
बिन चश्मे हैरान, बहाते पानी चश्में ||
" कुछ प्यार की बातें करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
बोलो कैसे करूँ मैं, प्रकट पूर्ण अनुराग ।
नियत करे सरकार जब, वेतन का लघु भाग ।
वेतन का लघु भाग, अभी तक पूरा वेतन ।
पायी बिन खटराग, लुटाई अपना तन-मन ।
कर के प्रेमालाप, जहर अब यूँ नहिं घोलो ।
कर दूंगी झट केस, अकेले में गर बोलो ।
.आखिर इतना मज़बूत सिलिंडर लीक हुआ कैसे ? ..
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar Sharma
ram ram bhai
परदेशी सामान है, जैसे चीनी माल ।
चींटी चाटे जो कहीं, पावे नहीं सँभाल ।
पावे नहीं सँभाल, लड़ाए उनसे नैना ।
डाल चोंच में चोंच, चुगाये चुन चुन मैना ।
फूट जा रहा पेट, पाप बढ़ जाए वेशी ।
होता हलुवा टेट, फेल कंपनी विदेशी ।।
बहुत ही रोचक लिंक्स ... बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका आभार शास्त्रीजी 'सुधीनामा' से मेरी रचना को भी आपने चुना इस सुसज्जित मंच के लिये ! बहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्…………खूबसूरत चर्चा
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ कि आपने मेरी रचना को चर्चा मंच का हिस्सा बनाया इस तरह का प्रोत्साहन मुझे और बेहतर लिखने कि प्रेरणा देता है |
जवाब देंहटाएंएक ब्लॉग सबका की इस ख़ास प्रस्तुती पर चर्चा मंच का ख़ास स्वागत है.
जवाब देंहटाएंब्लॉग का प्रचार कैसे करें?
हमेशा की तरह लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सी लिंक्स से सजी है आज की चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
शानदार सूत्रों से सजी बेहतरीन चर्चा के लिए बधाई आपको
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स ... बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति...मेरी कविता को स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा वाह!
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा.सुन्दर लिंक्स करीने से सजे हुए.
जवाब देंहटाएं