एक इशारा भर ही होगा बस टिप्पणी बक्से में काफी जिससे अगली बार न करें हम ऐसी कोई गुस्ताखी।
तो सुनों ध्यान से जरा इत्मीनान से ,केकड़ा मनोवृत्ति छोड़ों ,दूसरों के ब्लॉग पे भी जाया करो .महानता बोध से खुद को न भरमाया करो .कभी आया जाया करो .यहाँ वहां बे -मकसद बे -इरादा .
एक इशारा भर ही होगा बस टिप्पणी बक्से में काफी जिससे अगली बार न करें हम ऐसी कोई गुस्ताखी।
तो सुनों ध्यान से जरा इत्मीनान से ,केकड़ा मनोवृत्ति छोड़ों ,दूसरों के ब्लॉग पे भी जाया करो .महानता बोध से खुद को न भरमाया करो .कभी आया जाया करो .यहाँ वहां बे -मकसद बे -इरादा .
वह खालिस जाँ निसार करते हैं जिस पर आशिक ,
जानेमन तेरे तसव्वुर में उसे पा ही गया .
क्या बात है .
TUESDAY, 30 OCTOBER 2012
विदुषी ज्योतिष से जुड़ी, गत्यात्मक सन्दर्भ -
अधूरे सपनों की कसक (22) ! रेखा श्रीवास्तव मेरी सोच
दीदी संगीता पुरी जी विदुषी ज्योतिष से जुड़ी, गत्यात्मक सन्दर्भ । एक एक जोड़ें कड़ी, पढ़ें समय का गर्भ । पढ़ें समय का गर्भ , समर्पित कर दी जीवन । वैज्ञानिक सी दृष्टि, देखता श्रेष्ठ समर्पण । पूज्य पिता का क्षेत्र, जोड़ संगीता हरषी । शुभकामना अपार, जरा स्वीकारो विदुषी ।।
रविकर भाई !ज्योतिष में कोई एक समान प्रागुक्ति विधान नहीं है दस ज्योतिष 11 भविष्य फल .जैसे पैथोलोजिकल लैब हो . "what quakery is to medicine so is astrology to astronomy .
astrolgy is the predictional part of astronomy ,but in want of a universal methodology it is not relaible .
आलता लगा आलता पैर में, बना महावर लाख | मार आलथी पालथी, सेंके आशिक आँख | सेंके आशिक आँख, पाख पूरा यह बीता | शादी की यह भीड़, पाय ना सका सुबीता | बिगड़े हैं हालात, प्रिये पद-चाप सालता | आओ फिर चुपचाप, तनिक दूँ लगा आलता ||
क्या बात है दोस्त ,लक्षणा का ज़वाब नहीं .बढ़िया आलता लगाने की कोशिश है .पेशकश है .
MONDAY, OCTOBER 29, 2012 मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच "मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच पर पच्चीस प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि उससे देश के अल्प संख्यकों के नाम पर खैरात खा रहे दूसरे नंबर के बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों को ठेस पहुँचती वैसे भी इस्लाम या तो खतने में रहता है या खतरे में मैं पंद्रह प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि उससे वास्तविक अल्पसंख्यकों जैसे पारसी ,बौद्ध ,जैन और सिखों की आस्था को ठेस पहुँचती पचास प्रतिशत सच इस लिए नहीं बोल सका कि सनातन धर्मियों को ठेस न पहुँच जाय दस प्रतिशत सच से आर्य समाजी भी आहात हो सकते थे सो वह भी नहीं बोला आखिर सभी की भावनाओं का ख्याल जो रखना था इसलिए सौ प्रतिशत सच का एक प्रतिशत सच भी मैं नहीं बोल सका अब क्या करूँ ? सच की शव यात्रा निकल रही है फिर भी फेहरिश्त अभी बाकी है संविधान पर कुछ बोलो तो आंबेडकरवादियों को ठेस पहुँच जायेगी यों तो मैं तमाम घूसखोर जजों को जानता हूँ जो अब पेशकार के जरिये नहीं सीधे ही घूस ले लेते हैं कुछ पेशकार के जरिये भी लेते हैं पर उनकी वीरगाथा गाने से न्याय की अवमानना जो होती है सांसदों विधायकों की बात करो तो उनके विशेषाधिकार का हनन हो जाता है मैं लिखना चाहता था शत प्रतिशत सच पर उससे तो अखबार के कारोबार को ठेस पहुँचती थी मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच इसीलिए अब सोचता हूँ प्रकृति की बात करूँ ...प्रवृति की नहीं और इसीलिए अब बाहर कोलाहल अन्दर सन्नाटा है." ----राजीव चतुर्वेदी
बहुत सशक्त रचना अपने समय को ललकारती .फटकारती सेकुलर ताकतों को .संविधानिक आहटों को .
Virendra Kumar SharmaOctober 31, 2012 7:17 AM MONDAY, OCTOBER 29, 2012 मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच "मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच पर पच्चीस प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि उससे देश के अल्प संख्यकों के नाम पर खैरात खा रहे दूसरे नंबर के बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों को ठेस पहुँचती वैसे भी इस्लाम या तो खतने में रहता है या खतरे में मैं पंद्रह प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि उससे वास्तविक अल्पसंख्यकों जैसे पारसी ,बौद्ध ,जैन और सिखों की आस्था को ठेस पहुँचती पचास प्रतिशत सच इस लिए नहीं बोल सका कि सनातन धर्मियों को ठेस न पहुँच जाय दस प्रतिशत सच से आर्य समाजी भी आहात हो सकते थे सो वह भी नहीं बोला आखिर सभी की भावनाओं का ख्याल जो रखना था इसलिए सौ प्रतिशत सच का एक प्रतिशत सच भी मैं नहीं बोल सका अब क्या करूँ ? सच की शव यात्रा निकल रही है फिर भी फेहरिश्त अभी बाकी है संविधान पर कुछ बोलो तो आंबेडकरवादियों को ठेस पहुँच जायेगी यों तो मैं तमाम घूसखोर जजों को जानता हूँ जो अब पेशकार के जरिये नहीं सीधे ही घूस ले लेते हैं कुछ पेशकार के जरिये भी लेते हैं पर उनकी वीरगाथा गाने से न्याय की अवमानना जो होती है सांसदों विधायकों की बात करो तो उनके विशेषाधिकार का हनन हो जाता है मैं लिखना चाहता था शत प्रतिशत सच पर उससे तो अखबार के कारोबार को ठेस पहुँचती थी मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच इसीलिए अब सोचता हूँ प्रकृति की बात करूँ ...प्रवृति की नहीं और इसीलिए अब बाहर कोलाहल अन्दर सन्नाटा है." ----राजीव चतुर्वेदी
बहुत सशक्त रचना अपने समय को ललकारती .फटकारती सेकुलर ताकतों को .संविधानिक आहटों को .
एक प्रतिक्रया :वीरुभाई .
(4)
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
RAJIV CHATURVEDI पर भैया तू सच बोल ही नहीं सकता , तू खान्ग्रेसी है स, और खान्ग्रेसी सिर्फ सोनिया -राहुल की जय बोल सकता है .
एक लिफाफा दो-दो खत खता समझ लो या किस्मत | एक तरफ है नील गगन एक तरफ सपनों की छत | एक तरफ दुनियादारी एक तरफ दिल की चाहत | आम चुराना बागों से बचपन की सी है आदत |
अधूरे सपनों की कसक (22) ! रेखा श्रीवास्तव मेरी सोच दीदी संगीता पुरी जी विदुषी ज्योतिष से जुड़ी, गत्यात्मक सन्दर्भ । एक एक जोड़ें कड़ी, पढ़ें समय का गर्भ । पढ़ें समय का गर्भ , समर्पित कर दी जीवन । वैज्ञानिक सी दृष्टि, देखता श्रेष्ठ समर्पण । पूज्य पिता का क्षेत्र, जोड़ संगीता हरषी । शुभकामना अपार, जरा स्वीकारो विदुषी ।।
करवाचौथ की फुलझड़ियाँ ("माहिया" में पति पत्नी की चुहल बाजी Rajesh Kumari HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
पूछा अपने दोस्त से, ओ पाजी सतवंत । सन बारह का हो रहा, दो महीनों में अंत । दो महीनों में अंत, बुरा दिन एक बताना । और कौन सा भला, दिवस वह भी समझाना । कहता है सतवंत, बुरा दिन साल गिरह का । बढ़िया करवा चौथ, बोल कर पाजी चहका ।।
मन की नदी Anita मन पाए विश्राम जहाँ मन की गंगा को मिले, मंजिल कभी कभार । जटाजूट में भटकती, हो मुश्किल से पार । हो मुश्किल से पार, करे कोशिशें भगीरथ । परोपकार सद्कर्म, जिन्दगी रविकर स्वारथ । स्वांस मौन के बीच, मचाये किस्मत दंगा । इसीलिए खो जाय, अधिकतर मन की गंगा ।।
धर्म कर्म से लौ लगी, बाती जलती जाय | करे प्रकाशित कोष्ठ-मन, जग जगमग कर जाय | जग जगमग कर जाय, करे ना चिंता अपनी | कर्म करे अनवरत, तभी तो देह सिमटनी | करे प्राप्त घृत तेल, नियामक बने मर्म से | होवे सेहतमंद, लगे फिर धर्म कर्म से ||
तांडव शंकर दे मचा , नचा विश्व परिदृश्य | विशिष्ट ऊर्जा जल भरे, करे जलजला पृश्य | करे जलजला पृश्य, दृश्य नहिं देखा जाए | जल जाए जब जगत, हजारों जाने खाए | क्षिति जल पावक गगन, वायू से मंच पांडव | छेड़ छाड़ कर बंद, नहिं तो झेले तांडव ||
बहुत सुंदर चर्चा .. परंपरागत ज्योतिष में जो खूबिया या खामियां रही हो .. पर हमारे शोध के बाद ज्योतिष शास्त्र से विज्ञान बन गया है .. इस वीडियो से इसे साफ साफ समझा जा सकता है!!
चर्चा मंच में सजे सभी रचनाएँ बहुत खूब हैं आदरणीय वीरू भाई के द्वारा दी गई टिप्पणियों ने चर्चा को अति सार्थक बना दिया है अनिल कार्की जी की तीन कविताएँ अनीता जी की मन की नदी धीरेन्द्र जी की खता एक से बड कर एक रचनाएँ पढ़ने को मिली सुन्दर चर्चा के लिए हार्दिक बधाई
मंच में सजे सभी रचनाएँ बहुत खूब हैं आदरणीय वीरू भाई के द्वारा दी गई टिप्पणियों ने चर्चा को अति सार्थक बना दिया है अनिल कार्की जी की तीन कविताएँ अनीता जी की मन की नदी धीरेन्द्र जी की खता एक से बड कर एक रचनाएँ पढ़ने को मिली सुन्दर चर्चा के लिए हार्दिक बधाई
शब्दों से शब्द कहते कुछ खास कहानी है हर शेर लगे उम्दा ये खास निशानी है नारी की शक्तियों का सुन्दर सजा है दर्शन चूल्हे से पद्मिनी तक की राह बयानी है नारी की उन्नयन की है बात सही लगती नारी के बिना जीवन मर जाये जवानी है यमराज को भी झुकना इसके लिए पड़ा था हर देवता है झुकते वो मातु भवानी है जो कर रहे है हत्या तू कंस अब समझ ले अरुण कह रहा है आकाश की वानी है
बहुत सुन्दर गजल है भाई अरुण हार्दिक बधाई हर शेर लाजवाब है
शब्दों से शब्द कहते कुछ खास कहानी है हर शेर लगे उम्दा ये खास निशानी है नारी की शक्तियों का सुन्दर सजा है दर्शन चूल्हे से पद्मिनी तक की राह बयानी है नारी की उन्नयन की है बात सही लगती नारी के बिना जीवन मर जाये जवानी है यमराज को भी झुकना इसके लिए पड़ा था हर देवता है झुकते वो मातु भवानी है जो कर रहे है हत्या तू कंस अब समझ ले अरुण कह रहा है आकाश की वानी है बहुत सुन्दर गजल है भाई अरुण हार्दिक बधाई हर शेर लाजवाब है
@ Rajeev Chaturvedi---मैंने तो जब भी बोला , सच ही बोला, दिल खोल कर सच ही बोला ! क्योंकी सच न बोलकर , चुप रह-रहकर , मेरे सत्यवादी दिल को 'ठेस' पहुँचती थी!
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।
एक इशारा भर ही होगा
जवाब देंहटाएंबस टिप्पणी बक्से में काफी
जिससे अगली बार न करें
हम ऐसी कोई गुस्ताखी।
तो सुनों ध्यान से जरा इत्मीनान से ,केकड़ा मनोवृत्ति छोड़ों ,दूसरों के ब्लॉग पे भी जाया करो .महानता बोध से खुद को न भरमाया करो .कभी आया जाया करो .यहाँ वहां बे -मकसद बे -इरादा .
(2)
काश लौट आए वो माधुर्य. (ध्वनि तरंगों पर ..)
shikha varshney
अच्छे लिंकों के साथ बढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंवह खालिस जाँ निसार करते हैं जिस पर आशिक ,
जवाब देंहटाएंजानेमन तेरे तसव्वुर में उसे पा ही गया .
क्या बात है .
इज़हारे-मोहब्बत
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
एक इशारा भर ही होगा
जवाब देंहटाएंबस टिप्पणी बक्से में काफी
जिससे अगली बार न करें
हम ऐसी कोई गुस्ताखी।
तो सुनों ध्यान से जरा इत्मीनान से ,केकड़ा मनोवृत्ति छोड़ों ,दूसरों के ब्लॉग पे भी जाया करो .महानता बोध से खुद को न भरमाया करो .कभी आया जाया करो .यहाँ वहां बे -मकसद बे -इरादा .
वह खालिस जाँ निसार करते हैं जिस पर आशिक ,
जानेमन तेरे तसव्वुर में उसे पा ही गया .
क्या बात है .
TUESDAY, 30 OCTOBER 2012
विदुषी ज्योतिष से जुड़ी, गत्यात्मक सन्दर्भ -
अधूरे सपनों की कसक (22) !
रेखा श्रीवास्तव
मेरी सोच
दीदी संगीता पुरी जी
विदुषी ज्योतिष से जुड़ी, गत्यात्मक सन्दर्भ ।
एक एक जोड़ें कड़ी, पढ़ें समय का गर्भ ।
पढ़ें समय का गर्भ , समर्पित कर दी जीवन ।
वैज्ञानिक सी दृष्टि, देखता श्रेष्ठ समर्पण ।
पूज्य पिता का क्षेत्र, जोड़ संगीता हरषी ।
शुभकामना अपार, जरा स्वीकारो विदुषी ।।
रविकर भाई !ज्योतिष में कोई एक समान प्रागुक्ति विधान नहीं है दस ज्योतिष 11 भविष्य फल .जैसे पैथोलोजिकल लैब हो .
"what quakery is to medicine so is astrology to astronomy .
astrolgy is the predictional part of astronomy ,but in want of a universal methodology it is not relaible .
बढ़िया प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति .बढ़िया चुहल बाज़ी है ,"माहिया" का बतरस है .
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
पीजा खा लिया मैडम !गुड जॉब बाडी .
जवाब देंहटाएंकार्टून /चित्र व्यंग्य -सोनिया :केंद्र का हज़ारों करोड़ रुपया खान गया ?
जवाब देंहटाएंखिला गम को, पानी पिलाया बहुत है-
यूँ तो मुहब्बत किया जान देकर-
मगर ख़ुदकुशी ने रुलाया बहुत है |
अगर गम गलत कर न पाए हसीना-
खिला गम को, पानी पिलाया बहुत है ||
तड़पते तड़पते हुआ लाश रविकर-
जबर ठोकरों ने हिलाया बहुत है ||
गाया गजल गुनगुनाया गुनाकर -
सुना मर्सिया तूने गाया बहुत है ||
दिखी तेरे होंठो पे अमृत की बूँदें -
जिद्दी को तूने जिलाया बहुत है ||
Posted by रविकर at 22:35 2 comments:
बहुत बढ़िया अंदाज़ हैं आपके .
आओ फिर चुपचाप, तनिक दूँ लगा आलता -
रविकर
आलता
जवाब देंहटाएंलगा आलता पैर में, बना महावर लाख |
मार आलथी पालथी, सेंके आशिक आँख |
सेंके आशिक आँख, पाख पूरा यह बीता |
शादी की यह भीड़, पाय ना सका सुबीता |
बिगड़े हैं हालात, प्रिये पद-चाप सालता |
आओ फिर चुपचाप, तनिक दूँ लगा आलता ||
क्या बात है दोस्त ,लक्षणा का ज़वाब नहीं .बढ़िया आलता लगाने की कोशिश है .पेशकश है .
जवाब देंहटाएंवाह कोई नादानी सी नादानी है .औरत पे उनकी कितनी मेहरबानी है .वो सुहाग की निशानी हैं .
(14)
शीर्षक रहित
Neelima sharrma
shukriya Virendra jee
हटाएंआपको पढना एक गीत गुनगुनाना है ,ज़िन्दगी का तराना है .औरत बस एक फसाना है .
जवाब देंहटाएंMONDAY, OCTOBER 29, 2012
जवाब देंहटाएंमैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
"मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर पच्चीस प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे देश के अल्प संख्यकों के नाम पर खैरात खा रहे
दूसरे नंबर के बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों को ठेस पहुँचती
वैसे भी इस्लाम या तो खतने में रहता है या खतरे में
मैं पंद्रह प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे वास्तविक अल्पसंख्यकों जैसे
पारसी ,बौद्ध ,जैन और सिखों की आस्था को ठेस पहुँचती
पचास प्रतिशत सच इस लिए नहीं बोल सका कि
सनातन धर्मियों को ठेस न पहुँच जाय
दस प्रतिशत सच से
आर्य समाजी भी आहात हो सकते थे सो वह भी नहीं बोला
आखिर सभी की भावनाओं का ख्याल जो रखना था
इसलिए सौ प्रतिशत सच का एक प्रतिशत सच भी मैं नहीं बोल सका
अब क्या करूँ ? सच की शव यात्रा निकल रही है फिर भी फेहरिश्त अभी बाकी है
संविधान पर कुछ बोलो तो आंबेडकरवादियों को ठेस पहुँच जायेगी
यों तो मैं तमाम घूसखोर जजों को जानता हूँ
जो अब पेशकार के जरिये नहीं सीधे ही घूस ले लेते हैं
कुछ पेशकार के जरिये भी लेते हैं
पर उनकी वीरगाथा गाने से न्याय की अवमानना जो होती है
सांसदों विधायकों की बात करो तो उनके विशेषाधिकार का हनन हो जाता है
मैं लिखना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर उससे तो अखबार के कारोबार को ठेस पहुँचती थी
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
इसीलिए अब सोचता हूँ
प्रकृति की बात करूँ ...प्रवृति की नहीं
और इसीलिए अब बाहर कोलाहल अन्दर सन्नाटा है." ----राजीव चतुर्वेदी
बहुत सशक्त रचना अपने समय को ललकारती .फटकारती सेकुलर ताकतों को .संविधानिक आहटों को .
एक प्रतिक्रया :वीरुभाई .
(4)
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
RAJIV CHATURVEDI
Virendra Kumar SharmaOctober 31, 2012 7:17 AM
जवाब देंहटाएंMONDAY, OCTOBER 29, 2012
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
"मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर पच्चीस प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे देश के अल्प संख्यकों के नाम पर खैरात खा रहे
दूसरे नंबर के बहुसंख्यक समुदाय मुसलमानों को ठेस पहुँचती
वैसे भी इस्लाम या तो खतने में रहता है या खतरे में
मैं पंद्रह प्रतिशत सच इसलिए नहीं बोल सका क्योंकि
उससे वास्तविक अल्पसंख्यकों जैसे
पारसी ,बौद्ध ,जैन और सिखों की आस्था को ठेस पहुँचती
पचास प्रतिशत सच इस लिए नहीं बोल सका कि
सनातन धर्मियों को ठेस न पहुँच जाय
दस प्रतिशत सच से
आर्य समाजी भी आहात हो सकते थे सो वह भी नहीं बोला
आखिर सभी की भावनाओं का ख्याल जो रखना था
इसलिए सौ प्रतिशत सच का एक प्रतिशत सच भी मैं नहीं बोल सका
अब क्या करूँ ? सच की शव यात्रा निकल रही है फिर भी फेहरिश्त अभी बाकी है
संविधान पर कुछ बोलो तो आंबेडकरवादियों को ठेस पहुँच जायेगी
यों तो मैं तमाम घूसखोर जजों को जानता हूँ
जो अब पेशकार के जरिये नहीं सीधे ही घूस ले लेते हैं
कुछ पेशकार के जरिये भी लेते हैं
पर उनकी वीरगाथा गाने से न्याय की अवमानना जो होती है
सांसदों विधायकों की बात करो तो उनके विशेषाधिकार का हनन हो जाता है
मैं लिखना चाहता था शत प्रतिशत सच
पर उससे तो अखबार के कारोबार को ठेस पहुँचती थी
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
इसीलिए अब सोचता हूँ
प्रकृति की बात करूँ ...प्रवृति की नहीं
और इसीलिए अब बाहर कोलाहल अन्दर सन्नाटा है." ----राजीव चतुर्वेदी
बहुत सशक्त रचना अपने समय को ललकारती .फटकारती सेकुलर ताकतों को .संविधानिक आहटों को .
एक प्रतिक्रया :वीरुभाई .
(4)
मैं बोलना चाहता था शत प्रतिशत सच
RAJIV CHATURVEDI
पर भैया तू सच बोल ही नहीं सकता ,
तू खान्ग्रेसी है स,
और खान्ग्रेसी सिर्फ सोनिया -राहुल की जय बोल सकता है .
सच के लफड़े में नहीं पड़ता .
ReplyDelete
पर
बहुत बहुत शुक्रिया प्रदीप जी !
जवाब देंहटाएंसादर
खता,,,
जवाब देंहटाएंखता,
खता बता कर क्या करें, ख़त खतियाना ख़त्म ।
खेल ख़तम पैसा हजम, यही पुरानी रश्म ।
यही पुरानी रश्म, कुबूला जैसी हो तुम ।
शायद भूला रूल, सीध होती नहिं यह दुम ।
तेरे द्वारे आय, भौंकता रविकर प्यारी ।
गरज गरज ठुकराय, रही क्यूँ गरज हमारी ।
बहुत उम्दा चर्चा उम्दा सूत्रों के साथ !
जवाब देंहटाएंकभी तो झरो शब्द-बूंद.....स्मृति आदित्य
जवाब देंहटाएंशब्द बूँद हों,शब्द फूल हों,या हों शब्द बयार
बने शब्द परिधान पर , नहीं बनें तलवार ||
बहुत सुन्दर चर्चा ,.. सहानी जी कों बधाई ...
जवाब देंहटाएंखता,,,,,,,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंएक लिफाफा दो-दो खत
खता समझ लो या किस्मत |
एक तरफ है नील गगन
एक तरफ सपनों की छत |
एक तरफ दुनियादारी
एक तरफ दिल की चाहत |
आम चुराना बागों से
बचपन की सी है आदत |
जवाब देंहटाएंअधूरे सपनों की कसक (22) !
रेखा श्रीवास्तव
मेरी सोच
दीदी संगीता पुरी जी
विदुषी ज्योतिष से जुड़ी, गत्यात्मक सन्दर्भ ।
एक एक जोड़ें कड़ी, पढ़ें समय का गर्भ ।
पढ़ें समय का गर्भ , समर्पित कर दी जीवन ।
वैज्ञानिक सी दृष्टि, देखता श्रेष्ठ समर्पण ।
पूज्य पिता का क्षेत्र, जोड़ संगीता हरषी ।
शुभकामना अपार, जरा स्वीकारो विदुषी ।।
करवाचौथ की फुलझड़ियाँ ("माहिया" में पति पत्नी की चुहल बाजी
जवाब देंहटाएंRajesh Kumari
HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
पूछा अपने दोस्त से, ओ पाजी सतवंत ।
सन बारह का हो रहा, दो महीनों में अंत ।
दो महीनों में अंत, बुरा दिन एक बताना ।
और कौन सा भला, दिवस वह भी समझाना ।
कहता है सतवंत, बुरा दिन साल गिरह का ।
बढ़िया करवा चौथ, बोल कर पाजी चहका ।।
जवाब देंहटाएंमन की नदी
Anita
मन पाए विश्राम जहाँ
मन की गंगा को मिले, मंजिल कभी कभार ।
जटाजूट में भटकती, हो मुश्किल से पार ।
हो मुश्किल से पार, करे कोशिशें भगीरथ ।
परोपकार सद्कर्म, जिन्दगी रविकर स्वारथ ।
स्वांस मौन के बीच, मचाये किस्मत दंगा ।
इसीलिए खो जाय, अधिकतर मन की गंगा ।।
जवाब देंहटाएंवो अधजली लौ
Deepti Sharma
स्पर्श
धर्म कर्म से लौ लगी, बाती जलती जाय |
करे प्रकाशित कोष्ठ-मन, जग जगमग कर जाय |
जग जगमग कर जाय, करे ना चिंता अपनी |
कर्म करे अनवरत, तभी तो देह सिमटनी |
करे प्राप्त घृत तेल, नियामक बने मर्म से |
होवे सेहतमंद, लगे फिर धर्म कर्म से ||
मन की नदी...........
जवाब देंहटाएंमन की नदिया बड़ी सुहानी
श्वाँस सेतु पर आनी जानी
मौन नाव ,पतवार पुरानी
तट पहुँचे तो, बड़ी रवानी
मन की नदिया बड़ी सुहानी ||
वाह वाह बहुत सुन्दर सूत्रों का संकलन लेकर आये हैं प्रदीप कुमार जी हार्दिक आभार मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंSuper Storm Sandy
वीरू भाई
ram ram bhai
तांडव शंकर दे मचा , नचा विश्व परिदृश्य |
विशिष्ट ऊर्जा जल भरे, करे जलजला पृश्य |
करे जलजला पृश्य, दृश्य नहिं देखा जाए |
जल जाए जब जगत, हजारों जाने खाए |
क्षिति जल पावक गगन, वायू से मंच पांडव |
छेड़ छाड़ कर बंद, नहिं तो झेले तांडव ||
दूध मांसाहार है, अंडा शाकाहार ।
जवाब देंहटाएंभ्रष्ट-बुद्धि की बतकही, ममता का सहकार ।
ममता का सहकार, रुदन शिशु का अपराधिक ।
माता हटकु पसीज, छद्म गौ-बछड़े माफिक ।
पिला रही निज रक्त, मदर-विदुषी यह बोली ।
युगों युगों की खोज, बड़ी शिद्दत से खोली ।।
कामी क्रोधी लालची, पाये बाह्य उपाय ।
उद्दीपक के तेज से, इधर उधर बह जाय ।
इधर उधर बह जाय, कुकर्मों में फंस जाये ।
अहंकार का दोष, मगर अंतर से आये ।
हैं फॉलोवर ढेर, चेत हे ब्लॉगर नामी ।
पद मद में हो चूर, बने नहिं क्रोधी कामी ।।
इंजिनियर महोदय ,चर्चा स्वछ्य और सुन्दर सजाई गई है.बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
प्रदीप भाई नमस्कार सुन्दर-2 लिंक्स चुन कर लाये हैं बहुत बढ़िया बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा नारी महिमा,,,,अरुण जी,,,बधाई इस सुन्दर रचना के लिये,,,,
जवाब देंहटाएंइसी तरह मरती रही कन्याए इस जग का क्या होगा
एक दिन ऐसा आएगा जब पूरे जग में कोई न होगा,,,,
प्रदीप जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिये आभार ,
अभिनंदन सुंदर चर्चा .... ऐसे ही चर्चाएँ प्रस्तुत कीजिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा ..
जवाब देंहटाएंपरंपरागत ज्योतिष में जो खूबिया या खामियां रही हो ..
पर हमारे शोध के बाद ज्योतिष शास्त्र से विज्ञान बन गया है ..
इस वीडियो से इसे साफ साफ समझा जा सकता है!!
प्रदीप जी, चर्चामंच को बहुत खूबसूरती से सजाया है आपने, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स के साथ उम्दा चर्चा
जवाब देंहटाएंसुव्यवस्थित सार्थक चर्चा..आभार .
जवाब देंहटाएंप्रदीप जी, मेरी रचना को शामिल करने के लिये आभार ,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंमन की नदिया बड़ी सुहानी ,
जवाब देंहटाएंबात ये भैया बड़ी पुरानी ,
दुनिया है ये आनी जानी
प्राणी मत करना नादानी .
करनी तेरी साथ है जानी,,
कह गए ऋषि मुनि और ग्यानी .
मन की नदी
Anita
मन पाए विश्राम जहाँ
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में सजे सभी रचनाएँ बहुत खूब हैं
हटाएंआदरणीय वीरू भाई के द्वारा दी गई टिप्पणियों ने चर्चा को अति सार्थक बना दिया है
अनिल कार्की जी की तीन कविताएँ अनीता जी की मन की नदी धीरेन्द्र जी की खता
एक से बड कर एक रचनाएँ पढ़ने को मिली
सुन्दर चर्चा के लिए हार्दिक बधाई
मंच में सजे सभी रचनाएँ बहुत खूब हैं
जवाब देंहटाएंआदरणीय वीरू भाई के द्वारा दी गई टिप्पणियों ने चर्चा को अति सार्थक बना दिया है
अनिल कार्की जी की तीन कविताएँ अनीता जी की मन की नदी धीरेन्द्र जी की खता
एक से बड कर एक रचनाएँ पढ़ने को मिली
सुन्दर चर्चा के लिए हार्दिक बधाई
चली मायके
जवाब देंहटाएंगम
भरोसा
आलता
बेहेतरिन कुंडली है सच्चाई के साथ साथ करारा व्यंग
हार्दिक बधाई आदरणीय भाई रविकर जी
शब्दों से शब्द कहते कुछ खास कहानी है
जवाब देंहटाएंहर शेर लगे उम्दा ये खास निशानी है
नारी की शक्तियों का सुन्दर सजा है दर्शन
चूल्हे से पद्मिनी तक की राह बयानी है
नारी की उन्नयन की है बात सही लगती
नारी के बिना जीवन मर जाये जवानी है
यमराज को भी झुकना इसके लिए पड़ा था
हर देवता है झुकते वो मातु भवानी है
जो कर रहे है हत्या तू कंस अब समझ ले
अरुण कह रहा है आकाश की वानी है
बहुत सुन्दर गजल है भाई अरुण हार्दिक बधाई
हर शेर लाजवाब है
शब्दों से शब्द कहते कुछ खास कहानी है
जवाब देंहटाएंहर शेर लगे उम्दा ये खास निशानी है
नारी की शक्तियों का सुन्दर सजा है दर्शन
चूल्हे से पद्मिनी तक की राह बयानी है
नारी की उन्नयन की है बात सही लगती
नारी के बिना जीवन मर जाये जवानी है
यमराज को भी झुकना इसके लिए पड़ा था
हर देवता है झुकते वो मातु भवानी है
जो कर रहे है हत्या तू कंस अब समझ ले
अरुण कह रहा है आकाश की वानी है
बहुत सुन्दर गजल है भाई अरुण हार्दिक बधाई
हर शेर लाजवाब है
@ Rajeev Chaturvedi---मैंने तो जब भी बोला , सच ही बोला, दिल खोल कर सच ही बोला ! क्योंकी सच न बोलकर , चुप रह-रहकर , मेरे सत्यवादी दिल को 'ठेस' पहुँचती थी!
जवाब देंहटाएंस्थान देने के लिये विनत आभार
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