मित्रों! असत्य पर सत्य की विजय का पर्व तो आपने धूमधाम से मना लिया। ये मुहिम पूरे साल चलती रहनी चाहिए! मगर मुझे आभास हो रहा है कि रावण रक्तबीज की तरह से पैदा होते रहेंगे और हम हर साल उनको बिना मारे ही उनके पुतले जलाते रहेंगे। अब शनिवार की चर्चा का शुभारम्भ करता हूँ! ईदुलजुहा की मुबारकवाद! कुबूल फरमायें!! (0) क़ुर्बानी पशुबलिजानवरों की सामूहिक हत्याकुर्बानी शब्द के सही मायने क्या हैं ? हमने तो बचपन से जो शब्दार्थ पढ़ा - उसके अनुसार तो "कुर्बानी" का अर्थ "त्याग" है | किसी के लिए / धर्म के लिए अपने निजी दुःख / नुकसान / जान की भी कीमत पर कुछ त्याग करना क़ुरबानी होती है | यही पढ़ा है, यही सुना है | "बकरीद" के अवसर पर बकरे की कुर्बानी के बारे में कई बातें सुनी हैं - पक्ष में भी और विपक्ष में भी | कुछ सवाल हैं जो पूछना चाहूंगी ------निरामिष गाय पर निबंध लिखोराजनैतिक नजरिये से देखें तो गाय को लेकर अभी प्रकाश सिंह बादल ने मृत गाय की आत्मा की शांति के लिए विधान सभा में शोक प्रस्ताव रखने और गाय के भव्य स्मारक के निर्माण के लिए करोड़ों रु.स्वीकृत करने जैसे अप्रत्याशित कारनामे पंजाब में किये तो दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी ने जन्माष्टमी पर अपने ब्लॉग में कांग्रेस की सरकार पर गोमांस का निर्यात करने का बहाना बना कर हल्ला बोला.पर गऊ माता का दिनरात माला जपने वाली भाजपा बादल के निर्णय का स्वागत करने के बदले चुनावी नफे नुक्सान को देखते हुए कभी हाँ तो कभी ना करने की मुद्रा में...
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हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक मृदुला गर्ग जी का आज जन्म दिन है । वे आज ही के दिन 1938 मे कोलकाता में जन्मी थी…
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"कुछ कहना है"द्वितीय पुरस्कार - रविकर फ़ैज़ाबादी की कुण्डलिया- http://www.openbooksonline.com/ चित्र से काव्य तक अंक १९: सभी रचनाएँ एक साथ"चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक १९ का निर्णय - Posted by योगराज प्रभा...
(3)
नीम-निम्बौरीपगली है तो क्या हुआ, मांस देख कामांध- - पगली है तो क्या हुआ, मांस देख कामांध । अपने तीर बुलाय के, तीर साधता सान्ध | तीर साधता सान्ध, बांधता जंजीरों से | घायल तन मन प्राण, करे जालिम तीरों से |. |
(4) ध्रुव गाथा - एक मधुर काव्य-यात्रा चला बिहारी ब्लॉगर बनने | (5) समुंदर का मोती मेरे अरमान.. मेरे सपने.. |
(8) हेलोवीन बोले तो (चौथी और पाँचवी क़िस्त ) ram ram bhai | (9) यही विश्वास बाकी है किसी का ख्वाब ना तोड़ो, मेरी इतनी गुजारिश है दिलों को दिल से जोड़ें हम, यही दिल की सिफारिश है |
(10) अब लेनिन के बुत भी बर्दाश्त नहीं अपना पंचू | (11) संस्मरण - ढाई मन सब्जी में एक जोड़ा लोंग - नवीन सी. चतुर्वेदी ठाले बैठे |
(12) इसे प्रश्नोत्तरी कहो या वार्तालाप या आरोप प्रत्यारोप…3 एक प्रयास | (13) करते हटकु हलाक, मूर्ख संतान बचाले - दिनेश की दिल्लगी, दिल की सगी |
(14) कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.मेरे दिल से सीधा कनेक्शन. |
(15) लघुकथा क्षेत्र क्यों बदहाल*तीन तिलंगे जुटकर कभी पटना में कोई 'राष्ट्रीय सम्मेलन' ठोंक देते हैं तो कभी चार चौकड़ी एकत्र हो अन्यत्र कोई 'अन्तर्राज्यीय सम्मेलन'। ऐसी हरकतों से जो हश्र स्वाभाविक है, वही सामने है। लघुकथा क्षेत्र अंतत: हिन्दी साहित्य का एक ऐसा इलाका होकर रह गया है जिसे अब 'बुद्धि वंचित बौनों का अभयारण्य' माना जाने लगा है। यहां आम तौर पर न कोई प्रयोगधर्मी लेखन दिख रहा है, न सतत् रचनारत कोई संजीदा नाम। दो दशकों से यह विधा संदिग्ध होने का संताप झेल रही है… |
(16) रुपाली सिन्हा की कवितायेंरूपाली सिन्हा* से मेरा परिचय कालेज के दिनों का है. हमने एक छात्र संगठन में काम किया है, न जाने कितनी बहसें की हैं, लडाइयां लड़ी हैं और इस डेढ़ दशक से भी लम्बे दौर में शहर दर शहर भटकते हुए भी दोस्त रहे हैं. रूपाली की कवितायेँ एकदम शुरूआती दौर से ही सुनी हैं. गोरखपुर स्कूल के अन्य कवि मित्रों की तरह ही उनका जोर लिखने पर कम और छपवाने पर बिलकुल नहीं रहा है, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं. मुझे कई वर्षों की लड़ाइयों के बाद अचानक जब कुछ दिनों पहले ये कवितायेँ मिलीं तो सुखद आश्चर्य हुआ रूपाली अपने मूल स्वभाव से एक्टिविस्ट हैं. कालेज के दिनों से लेकर अब तक वह लगातार संगठनों से जुडी रही हैं.. |
(17) खुशखबरीआज खटीमा निवासी डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"जी ने मेरे चित्र पर यह बाल कविता लिखी है। उनकी अनुमति से इसे आप सब मित्रों के साथ शेयर कर रही हूँ। "खेल-खेल में रेल चलायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') (चित्र साभार-डॉ.प्रीत अरोरा) आओँ बच्चों खेल सिखायें। खेल-खेल में रेल चलायें।। इंजन राम बना है आगे, उसके पीछे डिब्बे भागे, दीदी हमको खेल खिलायें। खेल-खेल में रेल चलायें।। मेरी साधना |
(18) दिपावली पर वालपेपर | (19) नेताओं का काम | (20) फ्री नेट चलाइए |
(30) कहाँ हो ! शिप्रा की लहरें
(31)
कलयुग में अब तक रावण-दहन नहीं हुआ
(32)
कुछ भी रहा अब |
(33) "दरख़्त का पीला पत्ता"पागल तो हो सकता हूँ, पर डरा हुआ नही हो सकता। निद्रा में हो सकता हूँ, पर मरा हुआ नही हो सकता।। जो परिवेशों में घटता है, उसको ही मैं गाता हूँ। गूँगे-बहरे से समाज को, लिख-लिखकर समझाता हूँ।। अच्छा तो हो सकता हूँ, पर बहुत बुरा नही हो सकता।। |
(34-क) उलूक टाइम्स से देखिए यह उपयोगी "संदेश"चाँद पे जानामंगल पे जाना दुनिया बचाना बच्चो भूल ना जाना । मोबाइक में आना मोबाईल ले जाना कापी पेन बिना स्कूल ना जाना । केप्री भी बनाना हिप्स्टर सिलवाना खादी का थोडा़ सा नाम भी बचाना । जैक्सन का डांस हो बालीवुड का चांस हो गांधी टैगोर की बातें कभी तो सुन जाना । पैसा भी कमाना बी एम डब्ल्यु चलाना फुटपाथ मे सोने वालों को ना भूल जाना । भगत सिंह का जोश हो सुखदेव का होश हो आजाद की कुर्बानी जरा बताते चले जाना । पंख भी फैलाना कल्पना में खो जाना दुनिया बनाने वाला ईश्वर ना भुलाना । कम्प्टीशन में आना कैरियर भी बनाना माँ बाबा के बुढापे की लाठी ना छुटवाना। (34-ख) ताऊ डाट इन ताऊ महाराज रावण को गुस्सा क्यों आता है? दर्शकों, ताऊ टी.वी. के चीफ़ रिपोर्टर रामप्यारे का झटकेदार नमस्कार कबूल किजिये. अभी चार दिन पहले ही ताऊ महाराज रावण ने एक प्रेस कांफ़्रंस बुलायी थी जिसमें… |
(35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
आज फेसबुक पर डॉ. प्रीत अरोरा जी का यह चित्र देखा तो बालगीत रचने से अपने को न रोक सका!
काश् हमारे भी पर होते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।
पल में दूर देश में जाते,
नानी जी के घर हो आते,
कलाबाजियाँ करते होते।
नभ में हम भी उड़ते होते।
अन्त में..
|
मासुम कली ek vedna bhari kabita betio ko bachane bhun hatya ka marm drisya ki par khuch likha hai naam maasum kali ise aap jarur padhe yah mere उमंगें और तरंगे naye blogs ki post hai accha lage yah blog to aaplog iske post yahan de sakte hai....
जवाब देंहटाएंmai chaunga aaplog yah maasum kali jarur padhe
कंप्यूटर वर्ल्ड हिंदी।फ्री सोफ्टवेयर, गेम ,मूवी , ट्रिक & टिप्स And Much more.....
मोबाईल वर्ल्ड। फ्री- Movie,विडियो,Mp3,गेम,song,App.,मोबाईल टिप्स & ट्रिक
मासुम कली
जवाब देंहटाएंजहाँ से चली थी वह अँधेरी गली थी
दुनिया की अब तो रोशनी दिख चली थी
माँ के पेट में ही दिन रात ढली थी
फिर मुझे क्यों मार दिया गया माँ
माँ मैं तो एक मासुम कली थी ....puri kavita padhne ke liye is link par jaye..http://gustandwaves.blogspot.in/2012/10/blog-post_26.html
मूर्ति ,कर्तव्य ,ईश्वर , गॉड पार्टिकिल अन्य कणों को द्रव्यमान (मॉस ) उपलब्ध करवाता है .विज्ञान ने ईश्वर को कभी नहीं नकारा ,यहाँ आस्था का स्वरूप भिन्न है बस .सत्य का अन्वेषण है ईश्वर .
जवाब देंहटाएंकुर्बानी अपने दुर्गुणों की ,सबसे बड़ी कुर्बानी मानी गई है रमादान के दौरान भी रोज़ा सिर्फ शरीर का नहीं है मन की पवित्रता का भी है ,सु -विचार का भी है .
सेहत के हिसाब से आज शाकाहार ही सारी दुनिया के लिए निरापद माना जा रहा है .
अलबत्ता धार्मिक मान्यताएं (भले रूढ़ हो गईं हों )सभी धर्मों में हैं .
सबसे पहली बात ईद मुबारक .
मकसद कुर्बानी शब्द की व्याख्या है .कुरआन या मोहम्मद साहब के कहे बताये की नहीं है .
रचना जी से सहमत .
ईदुलजुहा की मुबारकवाद!
कुबूल फरमायें!!(0)
क़ुर्बानी पशुबलि
जानवरों की सामूहिक हत्या
कुर्बानी शब्द के सही मायने क्या हैं ? हमने तो बचपन से जो शब्दार्थ पढ़ा - उसके अनुसार तो "कुर्बानी" का अर्थ "त्याग" है | किसी के लिए / धर्म के लिए अपने निजी दुःख / नुकसान / जान की भी कीमत पर कुछ त्याग करना क़ुरबानी होती है | यही पढ़ा है, यही सुना है | "बकरीद" के अवसर पर बकरे की कुर्बानी के बारे में कई बातें सुनी हैं - पक्ष में भी और विपक्ष में भी | कुछ सवाल हैं जो पूछना चाहूंगी ------
निरामिष
जवाब देंहटाएंशिल्पा जी विवेचना में बेरिस्ट्री नहीं होनी चाहिए .हर बात तर्क से नहीं समझाई जा सकती .आप अपनी बात कहिये .वजन से कहिये .
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार जी कार्टून (चित्र व्यंग्य )की इतनी पैनी धार हमने कम ही देखी है .ये महंगाई ही खा जायेगी इस सरकार को भ्रष्टाचार तो पिछली सीट पर रहा है भारत में .
बहुत सुन्दर बाल गीत है भाई साहब .बहुत पया प्रयोग है -पल में दूर देश में जाते,
जवाब देंहटाएंनानी जी के घर हो आते,
कलाबाजियाँ करते होते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।
(काश !)/प्रभु
हाँ कई ब्लोगाचारी महारथी हैं ,
जवाब देंहटाएंस्पैम बोक्स बने टिपण्णी डकारें .
इनके ब्लोगों को प्रभु तारें ,
प्रभु भाव यह खुद ही धारें .
राधारमण जी सही कह रहें हैं तकनीकी ज्ञान न होने की वजह से हम तो कई मर्तबा ब्लॉग पोस्ट तक पहुँच ही नहीं पायें हैं .अब जाके थोड़ा थोड़ा इल्म है ब्लॉग पोस्ट तक पहुंचे तो कैसे पहुंचें .राधा रमण जी मैं आपके
ब्लॉग पे आता रहा हूँ आइन्दा भी यह कर्म जारी रहेगा .मुझे अपने बारे में कैसा भी संभ्रम नहीं है .खुली बाहों से ब्लोगिंग में आया हूँ 2008 सितम्बर से .अब तक 50000से ज्यादा पोस्ट प्रकाशित कभी किसी को
इनका ब्योरा आज तक नहीं दिया .अभी बहुत काम करना है .अलबत्ता कोफ़्त होती है कुछ के यहाँ नियमित जाकर भी ये लोग पलट के नहीं देखते हैं .एक्स एक्स और एक्स वाई बोले तो लोग लुगाई दोनों शामिल हैं
इस महानता बोध में .सम्मोहन में .
(35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
जवाब देंहटाएंब्लॉग सबसे पहले एक विमर्श का ज़रिया है .अगर वह उद्देश्य ही पूरा न हो पाए तो चिठ्ठाकारी नव -मीडिया में स्थान न बना पाए .अभी इस सफर में सब को बहुत दूर जाना है .
(34-क)
जवाब देंहटाएंउलूक टाइम्स से देखिए
यह उपयोगी
"संदेश"
चाँद पे जाना
मंगल पे जाना
दुनिया बचाना बच्चो
भूल ना जाना ।
मोबाइक में आना
मोबाईल ले जाना
कापी पेन बिना
स्कूल ना जाना ।
केप्री भी बनाना
हिप्स्टर सिलवाना
खादी का थोडा़ सा
नाम भी बचाना ।
जैक्सन का डांस हो
बालीवुड का चांस हो
गांधी टैगोर की बातें
कभी तो सुन जाना ।
पैसा भी कमाना
बी एम डब्ल्यु चलाना
फुटपाथ मे सोने वालों
को ना भूल जाना ।
भगत सिंह का जोश हो
सुखदेव का होश हो
आजाद की कुर्बानी
जरा बताते चले जाना ।
पंख भी फैलाना
कल्पना में खो जाना
दुनिया बनाने वाला
ईश्वर ना भुलाना ।
कम्प्टीशन में आना
कैरियर भी बनाना
माँ बाबा के बुढापे
की लाठी ना छुटवाना।
(34-ख)/ज्यादा न सही थोड़ी सी बस थोड़ी सी पृथ्वी की व्यथा कथा भी बताना ,भ्रष्टाचार की वहां थाने में रिपोर्ट लिखवाना ,बतलाना वहां देश का सब काम रिमोट करता है .आदमी किसी और की सूरत तकता है .
उलूक टाइम्स नये कीर्तिमान बना रहा है .
दरख्त का पीला पत्ता पुन :अपनी खाद बन जाता है .कार्बन साइकिल में समाहित हो जाता है .खुद अपना भोजन बनातें हैं वृक्ष .देते ही हैं ता -उम्र लेते कुछ नहीं ,हरे रहें या पीले .शास्त्री जी संबोधन में जैसे -भाइयो !
जवाब देंहटाएंऔर बहनो! में अनुनासिक का प्रयोग नहीं किया जाता है .वैसे ही आओ बच्चो !होना चाहिए -गीत बच्चों की रेलगाड़ी में .आभार .हमारे मित्र डॉ .वागीश मेहता भाषा के आचार्य हैं
उनका सारा काम भाषा पर ही ,डी .लिट भी . ,उनसे
अकसर चर्चा होती रहती है ब्लॉग जगत में पसरे वर्तनी युद्ध के बाबत .हम उन्हीं के तोते हैं .हर पल सीखने की ललक है जानकारी बांटने के निमित्त ही होती है .पुनश्च :आभार .आपका पात्र हमेशा भरा रहता है फिर
भी आप लेने में भी संकोच नहीं करते यही आपका बड़प्पन और पल्लवन है .इसीलिए आपसे विमर्श चलता रहता है अप्रत्यक्ष .
पीला पात बहुत बढ़िया रचना है .
क़ुबूल कीजिये आदाब !ताऊ रामपुरिया साहब !
जवाब देंहटाएंधड़ाके से मारा है आपने संसदीय रावण को .बधाई !
(34-ख)
ताऊ डाट इन
ताऊ महाराज रावण को गुस्सा क्यों आता है?
दहशत गर्दी की पीड़ा को उकेरती बेहद सशक्त रचना है .शब्दार्थ देकर आपने इसे और भी उपयोगी बना दिया है .बधाई .
जवाब देंहटाएंअफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .
तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .
फराखी इनको न भाए ताज़िर हैं ये दहशत के ,
मादूम ऐतबार को कर फ़ज़ीहत ये कर जाते हैं .
न मज़हब इनका है कोई ईमान दूर है इनसे ,
तबाही में मुरौवत की सुकून दिल में पाते हैं .
इरादे खौफनाक रखकर आमादा हैं ये शोरिश को ,
रन्जीदा कर जिंदगी को मसर्रत उसमे पाते हैं .
अज़ाब पैदा ये करते मचाते अफरातफरी ये ,
अफ़सोस ''शालिनी''को खत्म न ये हो पाते हैं .
शब्दार्थ :-फराखी -खुशहाली ,ताजिर-बिजनेसमैन ,
मादूम-ख़त्म ,फ़ज़ीहत -दुर्दशा ,मुरौवत -मानवता ,
शोरिश -खलबली ,रंजीदा -ग़मगीन ,मसर्रत-ख़ुशी ,
अज़ाब -पीड़ा-परेशानी
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त आलेख है बंधू1 यह नाटक नेहरु युग से अनवरत चला आरहा है पात्र बदलते हैं कथा वस्तु वही है जब गौ हत्या प्रस्ताव पारित करने का वक्त आया नेहरु जी ने धमकी दे दी -मैं इस्तीफा दे दूंगा .गाय से संदर्भित यू ट्यूब पर आधा घंटा की रिकार्डिंग मौजूद है जिसमे पूरा इतिहासिक सन्दर्भ है .
जवाब देंहटाएंThursday, October 25, 2012
आईने फिर अक़्स भुनाने निकले हैं
ग़ज़ल
देश को जुमलों से बहलाने निकले हैं
लगता यूं है देश बचाने निकले हैं
नाक पकड़ कर घूम रहे थे सदियों से
अंदर से जो ख़ुद पाख़ाने निकले हैं
नशा पिलाकर यारा इनका नशा उतार
ज़हन में जिनके दारुख़ाने निकले हैं
ज़िंदा लाशों की रहमत कुछ ऐसी है
चलते-फिरते मुर्दाखाने निकले हैं
बचके रहना, सामने मत इनके आना
आईने फिर अक़्स भुनाने निकले हैं
आम आदमी फिर कुछ खोने वाला है!
ख़ास आदमी फिर कुछ पाने निकले हैं
-संजय ग्रोवर
संजय ग्रोवर साहब सीधा संवाद है यह गजल आजकी बदकारी से व्यवस्था से .हर अश -आर .करता है मार ,बे -शुमार .
आज का कालम मे सभी के ब्लागो को स्थान देने के लिये आभार चर्चा मंच ने सभी ब्लागरो को एक देशी भाषा मे कहू तो एक चौक (आंगनत) प्रदान किया है जिसमे सभी एक साथ इक्टठा होते ये इसके लिये मै चर्चा मंच की टीम का तहेदिल से आभार प्रकट करता हॅ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक-सज्जा.. मुझे स्थान प्रदान करने का आभार!!!
जवाब देंहटाएंसुसज्जित, सुव्यवस्थित चर्चा...मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ब्लोगों से सुसज्जित सुन्दर चर्चा, मेरी रचना को स्थान दिया शास्त्री सर को अनेक-2 धन्यवाद। आदरणीया मृदुला जी को जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंईद की हार्दिक शुभकामनायें!
हैलोवीन बोले तो (समापन क़िस्त )
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar Sharma
ram ram bhai
अधकचरे नव विज्ञानी, परखें पित्तर पाख ।
दिखा रहे अनवरत वे, हमें तार्किक आँख ।
हमें तार्किक आँख, शुद्ध श्रद्धा का मसला ।
समझाओ यह लाख, समझता वह ना पगला ।
पर पश्चिम सन्देश, अगर धरती पर पसरे ।
चपटी धरती कहे, यही बन्दे अधकचरे ।।
जवाब देंहटाएंअब लेनिन के बुत भी बर्दाश्त नहीं
lokendra singh
अपना पंचू
लेनिन की प्रतिमा गई, बाम-पंथ कर गौर ।
क़त्ल हजारों थे हुवे, नया देख ले दौर ।
नया देख ले दौर, क्रूर सिद्धांत अंतत: ।
देते लोग नकार, सुधार लो अत: स्वत: ।
पूंजीवाद खराब, करें वे शोषण लेकिन ।
श्रमिक लीडरी ढीठ, बदल कर रखता लेनिन ।।
"मेरा सुझाव अच्छा लगे तो इस कड़वे घूँट का पान करें"
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
ब्लॉगमंच
अपना न्यौता बांटते, पढवाते निज लेख |
स्वयं कहीं जाते नहीं, मारें शेखी शेख |
मारें शेखी शेख, कभी दूजे घर जाओ |
इक प्यारी टिप्पणी, वहां पर जाय लगाओ |
करो तनिक आसान, टिप्पणी करना भाये |
कभी कभी रोबोट, हमें भी बहुत सताए ||
badhiya charcha
जवाब देंहटाएंThanks for Beautiful Links
जवाब देंहटाएंMake Blog Index: All Posts at 1 Page
बहुत बढ़िया विवरण पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को समेटे हुए .
जवाब देंहटाएंचश्में चौदह चक्षु चढ़, चटचेतक चमकार ।
रेगिस्तानी रेणुका, मरीचिका व्यवहार ।
मरीचिका व्यवहार, मरुत चढ़ चौदह तल्ले ।
मृग छल-छल जल देख, पड़े पर छल ही पल्ले ।
मरुद्वेग खा जाय, स्वत: हों अन्तिम रस्में ।
फँस जाए इन्सान, ढूँढ़ नहिं पाए चश्में ।।
मरुकांतर में जिन्दगी, लगती बड़ी दुरूह ।
लेकिन जैविक विविधता, पलें अनगिनत जूह ।
पलें अनगिनत जूह, रूह रविकर की काँपे।
पादप-जंतु अनेक, परिस्थिति बढ़िया भाँपे ।
अनुकूलन में दक्ष, मिटा लेते कुल आँतर ।
उच्च-ताप दिन सहे, रात शीतल मरुकांतर ।।
रविकर फ़ैज़ाबादी की कुण्डलिया
सबसे पहले मुबारक बाद .(कुंडलियां )द्वितीय पुरस्कार - रविकर
दोहे
हवा-हवाई रेत-रज, भामा भूमि विपन्न ।
रेतोधा वो हो नहीं, इत उपजै नहिं अन्न ।।
रेत=बालू / वीर्य
उड़ती गरम हवाइयाँ, चेहरे बने जमीन ।
शीश घुटाले धनहरा, कुल सुकून ले छीन ।।
(शीश घुटाले = सिर मुड़वाले / शीर्ष घुटाले धनहरा = धन का हरण करने वाला )
भ्रष्टाचारी काइयाँ, अरावली चट्टान ।
रेत क्षरण नियमित करे, हारे हिन्दुस्तान ।।
कंचन-मृग मारीचिका, विस्मृत जीवन लक्ष्य ।
जोड़-तोड़ की कोशिशें, साधे भक्ष्याभक्ष्य ।|
वाह !
जवाब देंहटाएंसतरंगी हो रहा है आज तो चर्चा मंच
मृदुला जी को जन्मदिन की बधाई
और साथ में आभार लिंक चुनने के लिये
वीरू वीरू छा रहे हैं टिप्पणी की बौछारों के साथ
क्या स्टेमिना है भाई वीरू लगे रहिये :))
चाहत के अशआर
जवाब देंहटाएंजानती थी नहीं आओगे ,
ले जाना उस चौराहे पे खड़े ,
गुलमोहर के तने पर लिखे ,
चाहत के अशआर और दीवानगी के निशाँ .
खूब सूरत प्रयोग धर्मी भाव कणिका .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है जो भी कहा है यारा .
Friday, October 26, 2012
एहसास तेरी नज़दीकियों का
एहसास तेरी नज़दीकियों का सबसे जुड़ा है यारा,
तेरा ये निश्छल प्रेम ही तो मेरा खुदा है यारा |
ज़ुल्फों के तले तेरे ही तो मेरा आसमां है यारा,
आलिंगन में ही तेरे अब तो मेरा जहां है यारा |
तेरे इन सुर्ख लबों पे मेरा मधु प्याला है यारा,
मेरे सीने में तेरे ही मिलन की ज्वाला है यारा |
समा जाऊँ तुझमे, मैं सर्प हूँ तू चन्दन है यारा,
तेरे सानिध्य के हर पल को मेरा वंदन है यारा |
आ जाओ करीब कि ये दूरी न अब गंवारा है यारा,
गिरफ्त में तेरी मादकता के ये मन हमारा है यारा,
समेट लूँ अंग-अंग की खुशबू ये इरादा है यारा,
नशा नस-नस में अब तो कुछ ज्यादा है यारा |
कर दूँ मदहोश तुझे, आ मेरी ये पुकार है यारा,
तने में लता-सा लिपट जाओ ये स्वीकार है यारा |
पास बुलाती मादक नैनों में अब डूब जाना है यारा,
खोकर तुझमे न फिर होश में अब आना है यारा |
एहसास तेरी नज़दीकियों का एक अभिन्न हिस्सा है यारा,
एहसास तेरी नज़दीकियों का अवर्णनीय किस्सा है यारा |
बहुत बढ़िया विवरण पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को समेटे हुए .
जवाब देंहटाएंचश्में चौदह चक्षु चढ़, चटचेतक चमकार ।
रेगिस्तानी रेणुका, मरीचिका व्यवहार ।
मरीचिका व्यवहार, मरुत चढ़ चौदह तल्ले ।
मृग छल-छल जल देख, पड़े पर छल ही पल्ले ।
मरुद्वेग खा जाय, स्वत: हों अन्तिम रस्में ।
फँस जाए इन्सान, ढूँढ़ नहिं पाए चश्में ।।
मरुकांतर में जिन्दगी, लगती बड़ी दुरूह ।
लेकिन जैविक विविधता, पलें अनगिनत जूह ।
पलें अनगिनत जूह, रूह रविकर की काँपे।
पादप-जंतु अनेक, परिस्थिति बढ़िया भाँपे ।
अनुकूलन में दक्ष, मिटा लेते कुल आँतर ।
उच्च-ताप दिन सहे, रात शीतल मरुकांतर ।।
रविकर फ़ैज़ाबादी की कुण्डलिया
सबसे पहले मुबारक बाद .(कुंडलियां )द्वितीय पुरस्कार - रविकर
दोहे
हवा-हवाई रेत-रज, भामा भूमि विपन्न ।
रेतोधा वो हो नहीं, इत उपजै नहिं अन्न ।।
रेत=बालू / वीर्य
उड़ती गरम हवाइयाँ, चेहरे बने जमीन ।
शीश घुटाले धनहरा, कुल सुकून ले छीन ।।
(शीश घुटाले = सिर मुड़वाले / शीर्ष घुटाले धनहरा = धन का हरण करने वाला )
भ्रष्टाचारी काइयाँ, अरावली चट्टान ।
रेत क्षरण नियमित करे, हारे हिन्दुस्तान ।।
कंचन-मृग मारीचिका, विस्मृत जीवन लक्ष्य ।
जोड़-तोड़ की कोशिशें, साधे भक्ष्याभक्ष्य ।|
चाहत के अशआर
यही विश्वास बाकी है
जवाब देंहटाएंकिसी का ख्वाब मत तोड़ो, मेरी इतनी गुजारिश है
दिलों को दिल से जोड़ें हम, यही दिल की सिफारिश है
जहाँ पे ख्वाब टूटेंगे, क़यामत भी वहीं लाजिम
इधर दिल सूख जाते हैं, उधर नैनों से बारिश है
हकीकत से कोई उलझा, कोई उलझा बहाने में
बहुत कम जूझते सच से, लगे हैं आजमाने में
कहीं पर गाँव बिखरे हैं, कहीं परिवार टूटा है
दिलों को जोड़ने वाले, नहीं मिलते जमाने में
निराशा ही मिली अबतक, मगर कुछ आस बाकी है
जमीनें छिन रहीं हैं पर, अभी आकाश बाकी है
भले हँसकर या रो कर अब, हमे तो जागना होगा
उठेंगे हाथ मिलकर के, यही विश्वास बाकी है
पलट कर देख लें खुद को, नहीं फुरसत अभी मिलती
मुहब्बत बाँटने पर क्यों, यहाँ नफरत अभी मिलती
मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है
सुमन हों एक उपवन के, वही फितरत अभी मिलती
Posted by श्यामल सुमन at 8:05 PM
Labels: मुक्तक
सुमन जी श्यामल मुक्तक नहीं यह तो पूरा प्रबंध काव्य है दास्ताने हिन्द है .
मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है
सुमन हों एक उपवन के, वही फितरत अभी मिलती
बढ़िया व्यंजना .बढ़िया रूपक चूहे का .
जवाब देंहटाएंठनी लड़ाई
आज मेरी गणपति की सवारी के साथ ठन गई| गणपति के सामने लड्डुओं से भरा थाल रखा था| उन लड्डुओं पर भक्त होने के नाते मैं अपना अधिकार समझ रही थी और वह मूषक अपना...आखिर गणेश का प्रिय जो था| मेहनत की कमाई से लाए लड्डुओं को लुचकने के लिए वह तैयार बैठा था| चूहों की तरह कान खडे करके गोल-गोल आँखें मटकाता दूर से ही वह सतर्क था कि मैं कब अपनी आँखें बन्द करके ध्यान में डूबूँ और वह लड्डुओं पर हाथ साफ करे| मैं भी कब दोनों आँखें बन्द करने वाली थी| एक आँख बन्द करके गणेश जी को खुश किया और दूसरी आँख खुली रखकर चूहे पर नजर रखी| किन्तु ये भी कोई पूजा हुई भला...देवता से ज्यादा ध्यान चूहे पर!
पल भर के लिए सीन बदल गया| थाल में लड्डुओं की जगह मेहनत की कमाई दिख रही थी और चूहे में वह भ्रष्टाचारी जो एरियर का बिल बनाने के लिए पैसों पर नजर जमाए बैठा था| फिर तो मैंने भी ठान लिया...उस चूहे को एक भी लड्डू नहीं लेने दूँगी|
मेरे कार्टून को भी सम्मिलित करने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएं35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी
टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर
भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई
ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो
एक
के मन को आह्लादित करे ,दूसरे
के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .
भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच
का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .
इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .
जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?
बतलादें उनको -
मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .
बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .
अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -
लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -
तर्क की मीनार
मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -
तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,
पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -
इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,
क्योंकि मैं जानता हूँ -
क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,
क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -
क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .
अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,
जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -
चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,
कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,
जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,
और बाकी सबको आज़ादी है .
(समाप्त )
वीरुभाई :
इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।
नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में
उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था। उन्होंने
जवाब देंहटाएंइंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में लगभग तीन साल तक कटाक्ष नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा।
बहुत बहुत बधाई इस नाम चीन साहित्यिक हस्ती के जन्म दिन पर .हमारा सौभाग्य :चित्त कोबरा हमने भी पढ़ा था उस दौर में .विवादास्पद अंश तो याद भी है .चूचुक शब्द पहली मर्तबा यहीं पढ़ा था
जवाब देंहटाएंपीठ पर घर बांधे वे हर जगह मौजूद होती हैं
कभी-कभी उसे उतारकर कमर सीधी करती
हंसती हैं खिलखिलाती हैं बोलती बतियाती हैं
लेकिन जल्द ही घेर लेता है अपराधबोध
उसी क्षण झुकती हैं वे
घर को उठाती हैं पीठ पर हो जाती हैं फिर से दोहरी
इक्कीसवीं सदी में उनकी दुनिया का विस्तार हुआ है
वे सभाओं मीटिंगों प्रदर्शनों में भाग लेती हैं
वे मंच से भाषण देती हैं, उडती हैं अंतरिक्ष में
हर जगह सवार होता है
घर उनकी पीठ पर
इस बोझ की इस कदर आदत हो गयी है उन्हें
इसे उतारते ही पाती हैं खुद को अधूरी
कभी कभार बिरले ही मिलती है कोई
खाली होती है जिसकी पीठ
तन जाती हैं न जाने कितनी भृकुटियाँ
खाली पीठ स्त्री
अक्सर स्त्रियों को भी नहीं सुहातीं
आती है उनके चरित्र से संदेह की बू
कभी-कभी वे दे जाती हैं घनी ईर्ष्या भी
इस बोझ को उठाये उठाये
कब झुक जाती है उनकी रीढ़
उन्हें इल्म ही नहीं होता
वे भूल जाती हैं तन कर खड़ी होना
जब कभी ऐसी इच्छा जगती भी है
रीढ़ की हड्डी दे जाती है जवाब
या पीठ पर पड़ा बोझ
चिपक जाता है विक्रम के बेताल की तरह
और इसे अपनी नियति मान
झुक जाती हैं सदा के लिए
स्त्री विमर्श पर इस दौर की मर्म स्पर्शी रचना .घर के लिए जीती औरत ,घर में कहीं नहीं होती .अस्तित्व हीन यही उसकी नियति .सहर्ष स्वीकार ,निर्विकार भाव .
बहुत बढ़िया चर्चा..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिनक्स संजोये हैं आपने .व्यवस्थित व् रोचक प्रस्तुति हेतु आभार
जवाब देंहटाएंसबसे पहले देर से आने की माफ़ी चाहती हूँ | चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने का बहुत २ शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और विस्तृत चर्चा | मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंआभार |
35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी
टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर
भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई
ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो
एक
के मन को आह्लादित करे ,दूसरे
के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .
भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच
का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .
इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .
जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?
बतलादें उनको -
मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .
बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .
अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -
लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -
तर्क की मीनार
मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -
तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,
पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -
इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,
क्योंकि मैं जानता हूँ -
क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,
क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -
क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .
अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,
जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -
चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,
कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,
जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,
और बाकी सबको आज़ादी है .
(समाप्त )
वीरुभाई :
इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।
नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में .
बहुत शानदार लिंक्स का संयोजन किया है आपने मेरी प्रस्तुति को स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंचुनी हुई लिंक्स ,इत्मीनान से पढ़ी जायँ ऐसी .
जवाब देंहटाएं'कहाँ हो' चुनने हेतु आभार !
35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी
टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर
भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई
ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो
एक
के मन को आह्लादित करे ,दूसरे
के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .
भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच
का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .
इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .
जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?
बतलादें उनको -
मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .
बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .
अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -
लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -
तर्क की मीनार
मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -
तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,
पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -
इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,
क्योंकि मैं जानता हूँ -
क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,
क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -
क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .
अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,
जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -
चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,
कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,
जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,
और बाकी सबको आज़ादी है .
(समाप्त )
वीरुभाई :
इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।
नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में .
35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी
टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर
भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई
ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो
एक
के मन को आह्लादित करे ,दूसरे
के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .
भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच
का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .
इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .
जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?
बतलादें उनको -
मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .
बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .
अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -
लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -
तर्क की मीनार
मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -
तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,
पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -
इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,
क्योंकि मैं जानता हूँ -
क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,
क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -
क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .
अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,
जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -
चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,
कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,
जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,
और बाकी सबको आज़ादी है .
(समाप्त )
वीरुभाई :
इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।
नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में .
बहुत ही सुन्दर और रोचक चर्चा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा...
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