दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
लिंक 1-
इसे पढ़कर कौन ब्लॉगर बनना चाहेगा मठाधीश! (बाल्मीकि जयन्ती पर विशेष) -बेचैन आत्मा देवेन्द्र पाण्डेय
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लिंक 2-
ज्ञानबोध श्री विजय कुमार माथुर जी -दिव्या श्रीवास्तव ZEAL

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लिंक 3-
राम राम भाई! तर्क की मीनार -वीरेन्द्र कुमार वीरू भाई

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लिंक 4-
रोज़ एक धमाका -आशा सक्सेना

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लिंक 5-
कानून जो गिर पड़ा है -उदयवीर सिंह

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लिंक 6-
नारों पर लोग दौड़े जाते हैं -दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
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लिंक 7-

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लिंक 8-
एकै साधे सब सधै -बब्बन पाण्डेय

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लिंक 9-
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (३७वीं कड़ी) -कैलाश शर्मा

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लिंक 10-
इक दीवाली यह भी -श्यामल सुमन

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लिंक 11-

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लिंक 12-

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लिंक 13-
गहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे -दिनेश चन्द्र गुप्त ‘रविकर’
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लिंक 14-
मुझसे वे निर्मल बाबाओं जैसे चमत्कार की उम्मीद नहीं करते -राजीव कुलश्रेष्ठ

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लिंक 15-
गन्धर्वेश्वर और महानदी तीर की सुबह -ललित शर्मा

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लिंक 16-
ये जाहिल हैं, मुसलमान नहीं -कमल कुमार सिंह ‘नारद’

और अन्त में
लिंक 18-
लिंक 18-
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!
हमेशा की तरह सुन्दर चर्चा, आभार
ReplyDeleteसादर ,
कमल
सार्थक सारगर्भित संकलन महत्वपूर्ण चिट्ठों का - बधाई
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
स्वान विवेक ,मठाधीश अभिषेक .बहुत सशक्त बोध उद्धहरण .बधाई .
ReplyDeleteram ram bhai
मुखपृष्ठ
सोमवार, 29 अक्तूबर 2012
Your memory is like a game of telephone
http://veerubhai1947.blogspot.com/
लिंक 1-
ReplyDeleteइसे पढ़कर कौन ब्लॉगर बनना चाहेगा मठाधीश! (बाल्मीकि जयन्ती पर विशेष) -बेचैन आत्मा देवेन्द्र पाण्डेय
स्वान विवेक ,मठाधीश अभिषेक .बहुत सशक्त बोध उद्धहरण .बधाई .
शनिवार, जून 04, 2011
ReplyDeleteतू भी है आदमजात क्या?
हारिश न हो जो हुस्न में तो इश्क़ की भी बात क्या?
लब से जो बरसे न मय, तो सावनी बरसात क्या?
वैसे तो हम शामो-सहर, मिलते हैं दौराने-सफ़र,
पर हो न जो बज्मे-तरब, तो फिर है मूलाक़ात क्या?
ये लक़ब जो 'सौहरे-रात' है, बस तोहफा-ए-जज़्बात है,
वर्ना हो शब तारीक तो फिर चाँद की औक़ात क्या?
वो बाग की नाजुक कली सहमी हुई सी, कह पड़ी,
के इस तरह घूरे मुझे, तू भी है आदमजात क्या?
ऐ हुस्न की क़ातिल अदा! सुन इश्क़ की भी ये सदा,
के तुझको भी मालूम हो, होती है ता'जीरात क्या?
'ग़ाफ़िल' गया जिस भी शहर, वाँ हर गली हर मोड़ पर,
पत्थर बरसते दर-ब-दर तो फिर हैं खुश-हालात क्या?
(हारिश- अपने को बना-चुना कर दिखाने का शौक, बज़्मे-तरब- महफ़िल का आनन्द, लकब- लोगों द्वारा प्रदत्त उपनाम, सौहरे-रात- राकापति (चाँद के लिए), शब- रात, तारीक- काली, ता’जीरात- कानून की वह किताब जिसमें दण्ड विधान निहित होता है।)
मकते से मतले तक हर शैर खूबसूरत .मर्बेहवा .
ReplyDeleteकाटें कौन सा शैर हम ,दिक्कत ये हो पड़ी ,...
और अन्त में
लिंक 18-
तू भी है आदमजात क्या? -ग़ाफ़िल
बहुत सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteइतने लिंक तो पढ़े ही जा सकते हैं!
आभार ग़ाफ़िल जी आपका!
शुक्रिया ये यादगार दिन आपने हमारे साथ सांझा किया .
ReplyDeleteलिंक 17-
"ग़ज़लकार बल्ली सिंह चीमा के साथ एक दिन"
बढ़िया चर्चा पर्याप्त लिंक्स समेटे हुए |
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
एक दम से सटीक विश्लेषण .हां ज़ालिम कौम नहीं होतीं हैं इनमें गफलत पैदा करने वाले बलवाई होते हैं .
ReplyDeleteलिंक 16-
ये जाहिल हैं, मुसलमान नहीं -कमल कुमार सिंह ‘नारद’
धन्यवाद गाफिल साहब........आभार
ReplyDelete
ReplyDeleteगहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे -
तर्क की मीनार
Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai
पत्नी भोजन दे पका, स्वाद लिया भरपूर |
बेटा रूपये भेजता, बसा हुआ जो दूर |
बसा हुआ जो दूर, हमारी तो आदत है |
नहीं कहें आभार, पुरानी सी हरकत है |
गरज तुम्हारी आय, ठोकते रहिये टिप्पण |
क्या बिगड़ेगा मोर, ढीठ रविकर है कृ-पण ||
बहुत सुन्दर रविकर जी मर्म पकड़ा है आपने मूल आलेख का .
पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा-
नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार |
महत्त्वपूर्ण इनसे अधिक, मात-पिता व्यवहार |
मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा |
पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा |
खेल वीडिओ गेम, जीत की हरदम इच्छा |
मारो काटो घेर, करे क्या नैतिक शिक्षा ||
महत्वपूर्ण ,मौजू मुद्दा उठाया है .
डिजिटलीकरण हो रहा है बच्चों का .
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लिंक 13-
गहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे -दिनेश चन्द्र गुप्त ‘रविकर’
आकर्षक बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार गाफ़िल जी
सोचने को है बाध्य
ReplyDeleteक्या लाभ ऐसी बहस का
जिसका कोइ ओर ना छोर
यूँ ही समय गवाया
कुछ भी समझ न आया
सर दर्द की गोली का
खर्चा और बढ़ाया |
आशा
भ्रष्टाचार करो ,तरक्की पाओ ,क़ानून से विदेश पद मंत्री पाओ .
बिलकुल मत शरमाओ ,जो मिल जाए खाओ ,
सर्व भक्षी कहलाओ .
बधाई इस परिवेश प्रधान रचना की चुभन के लिए .
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ReplyDeleteलिंक 4-
रोज़ एक धमाका -आशा सक्सेना
सोचने को है बाध्य
क्या लाभ ऐसी बहस का
जिसका कोइ ओर ना छोर
यूँ ही समय गवाया
कुछ भी समझ न आया
सर दर्द की गोली का
खर्चा और बढ़ाया |
आशा
भ्रष्टाचार करो ,तरक्की पाओ ,क़ानून से विदेश पद मंत्री पाओ .
बिलकुल मत शरमाओ ,जो मिल जाए खाओ ,
सर्व भक्षी कहलाओ .
बधाई इस परिवेश प्रधान रचना की चुभन के लिए .
(कोई ,गंवाया )
पत्र पुष्प, फल व जल को
ReplyDeleteभक्तिपूर्व जो अर्पित करता.
प्रेम पूर्वक उस अर्पण को
हर्षित हो स्वीकार में करता.
बहुत सुन्दर भाव सरणी ,भावानुवाद गंगा .
लिंक 9-
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (३७वीं कड़ी) -कैलाश शर्मा
बहुत सटीक व्यंग्य है दोस्त .देखते हो! देखते ही देखते वे विदेश मंत्री पद पा गए .कलम से लहू पर आगये .
ReplyDeleteदूसरा ,अब उनको पढ़ना .........पानी पे चलने जैसा है वाकई भाई साहब ,बहुत खूब रचना है ,बधाई .
ReplyDeleteहमारे वक्त का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है यह रचना .वह तो वैसे ही शरीर से बाधित हैं हम तो सद्य रहें .
लिंक 12-
क्या हमारा प्यार इतना कम है कि इन्हें हम छाती से न लगा पायें? -ज्योति
नारों पर लोग दौड़े जाते हैं-हिंदी कविता
ReplyDeleteसपने वह शय हैं
दिखाना जानो तो
लोग भूखे पेट भी सो जाते हैं,
फटेहाल हों जो लोग
सुंदर फोटो की तस्वीर दिखाओ
वह भी खुश हो जाते हैं।
कहें दीपक बापू
जिन्होंने लिया ज़माने को सुधारने का जिम्मा
उनके कारनामों पर
उंगली उठाना बेकार है
क्यों करें वह अपने वादों को पूरा
लोग रोज नये लगाने वाले नारों पर
उनके पीछे दौड़ जाते है।
बढ़िया सीख भी व्यंजना भी .ये खेल है भैया शह और मात का ,करामात का ,उनके हाथ की सफाई ,हमारी औकात का .
आदरणीय मिश्र जी चर्चा की बहुत -२ बधाईयाँ जी l सुन्दर आकषक चर्चा .....
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ReplyDeleteअच्छा विमर्श .
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लिंक 14-
मुझसे वे निर्मल बाबाओं जैसे चमत्कार की उम्मीद नहीं करते -राजीव कुलश्रेष्ठ
शुक्रिया वाकिफ करवाने का .कुछ और भी बताया होता और फायदा होता .बहुत संक्षिप्त परिचय दिया है .
ReplyDeleteलिंक 2-
ज्ञानबोध श्री विजय कुमार माथुर जी -दिव्या श्रीवास्तव ZEAL
तर्क की मीनार
ReplyDeleteVirendra Kumar Sharma
ram ram bhai
पत्नी भोजन दे पका, स्वाद लिया भरपूर |
बेटा रूपये भेजता, बसा हुआ जो दूर |
बसा हुआ जो दूर, हमारी तो आदत है |
नहीं कहें आभार, पुरानी सी हरकत है |
गरज तुम्हारी आय, ठोकते रहिये टिप्पण |
क्या बिगड़ेगा मोर, ढीठ रविकर है कृ-पण ||
बहुत सुंदर रही आज की चर्चा | सभी लिंक्स उम्दा |
ReplyDeleteआभार |
DHANYWAAD SH.CHANDRA BHOOSHANJI
ReplyDeleteमेरी पोस्ट को यहाँ शामिल करने के लिए आभार। देखता हूँ और लिंक्स भी।
ReplyDeleteमेरी पोस्ट को यहाँ शामिल करने के लिए आभार।
ReplyDeleteबहुत उम्दा चर्चा बेहतरीन सूत्र !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
बहुत रोचक चर्चा...आभार
ReplyDeleteग़ाफ़िल की ग़फ़लत को उत्साह देने के लिए आप सभी सुभेच्छुओं का बहुत-बहुत आभार विशेषतः वीरेन्द्र जी शर्मा वीरू भाई का जिनकी पैनी नज़र से शायद ही कोई लिंक छुपकर बच निकले, राम राम भाई!
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