आप सभी को "प्रदीप" का नमस्कार तथा विजयादशमी और दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें । माँ दुर्गा को स्मरण करते हुए शुरू करते हैं आज की चर्चा :-
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बच्चों का आकाश .... बच्चों के लिए
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(21-ख)"गीत गाना जानते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
फूलों को गर चाहते, करो शूल से प्रीत |
विरह गीत जो गा सके, सके स्वयं को जीत || |
दोस्तो ! मेरी कोशिश है कि मंजे हुए चिट्ठाकारों के उम्दा पोस्ट आप तक पहुंचाने के साथ-साथ नए चिट्ठाकारों तक आप सबको पहुंचा सकूँ | ताकि उन्हे भी आपका सहयोग, उत्साहबर्धन एवं मार्गदर्शन मिल सके |
इसी के साथ "दीप" को आज्ञा दीजिये | फिर मिलते हैं अगले बुधवार को |
आभार |
nice links
जवाब देंहटाएंnice...HAPPY DUSHEHARA..
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा..... विजयदशमी की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत सजा है चर्चामंच आज का !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्रों के साथ !
बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंविजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Virendra Sharma
जवाब देंहटाएं9 hours ago near Canton ·
23 अक्तूबर 2012
चींटी और हाथी !
हाथी चींटी से कहे,तू ना समझे मोहि ।
मेरे पांवों के तले,मौत मिलेगी तोहि ।।
चींटी बोली नम्र हो,मद से मस्त न होय ।
वंशहीन रावण हुआ,कंस न पाया रोय ।।
मरने से बेख़ौफ़ हूँ ,चलती अपनी चाल ।
हर पल जीती ज़िन्दगी,नहीं बजाती गाल ।।
छोटी-सी काया मिली,इच्छाएँ भी न्यून ।
छोटे-से आकाश में,खुशियाँ फैलें दून ।।
पेट तुम्हारा है बड़ा,धरती घेरे खूब ।
परजीवी बन चर रहा,इसकी-उसकी दूब ।।
सावधान लघु से रहो,सदा उठाये सूंड़ ।
चींटी मारेगी तुझे,तू अज्ञानी,मूढ़ ।।
प्रस्तुतकर्ता संतोष त्रिवेदी
वाह दोस्त एक बोध कथा एक संदेशा लो प्रोफाइल ज़िन्द्गी का लिए हुए है आपकी पोस्ट .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
गेस्ट पोस्ट ,गज़ल :आईने की मार भी क्या मार है
http://veerubhai1947.blogspot.com/
जवाब देंहटाएं(13)
चींटी और हाथी !
चींटी और हाथी !
हाथी चींटी से कहे,तू ना समझे मोहि ।
मेरे पांवों के तले,मौत मिलेगी तोहि ।।
चींटी बोली नम्र हो,मद से मस्त न होय ।
वंशहीन रावण हुआ,कंस न पाया रोय ।।
मरने से बेख़ौफ़ हूँ ,चलती अपनी चाल ।
हर पल जीती ज़िन्दगी,नहीं बजाती गाल ।।
छोटी-सी काया मिली,इच्छाएँ भी न्यून ।
छोटे-से आकाश में,खुशियाँ फैलें दून ।।
पेट तुम्हारा है बड़ा,धरती घेरे खूब ।
परजीवी बन चर रहा,इसकी-उसकी दूब ।।
सावधान लघु से रहो,सदा उठाये सूंड़ ।
चींटी मारेगी तुझे,तू अज्ञानी,मूढ़ ।।
प्रस्तुतकर्ता संतोष त्रिवेदी
वाह दोस्त एक बोध कथा एक संदेशा लो प्रोफाइल ज़िन्द्गी का लिए हुए है आपकी पोस्ट .
हर उजाले से अन्धेरा है बंधा,
जवाब देंहटाएंखाक दर-दर की नहीं हम छानते हैं।
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
शूल के ही साथ रहते फूल हैं,
बैर काँटों से नहीं हम ठानते हैं
हम विरह में गीत गाना जानते हैं।।
जीवन में "नकार "को बुहारती "सकार "को दुलराती ,सकारात्मक ऊर्जा से संसिक्त पोस्ट .बेहतरीन भाव अभिव्यंजना .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
बुधवार, 24 अक्तूबर 2012
हैलोवीन बोले तो (दूसरीऔर तीसरी क़िस्त )
http://veerubhai1947.blogspot.com/
हाईप्रोफाइल मच्छर: डेंगू का 'डंक'
जवाब देंहटाएंभगवन की भेंगी नजर, डेंगी का उपहार |
मानव की नित हार है, दिल्ली की सरकार |
दिल्ली की सरकार, हाथ पर हाथ धरे है |
बढती भीषण व्याधि, व्यर्थ ही लोग मरे हैं |
करो सफाई खूब, नहीं जमने दो पानी |
नहीं तो जाओ डूब, मरे ना उनकी नानी ||
इन दिनों तो भारत सरकार ही डेंगू की सरकार हो गई है प्राजातंत्र ही डेंगू ग्रस्त है .
(21-क)
फूलों को गर चाहते, करो शूल से प्रीत
इन दिनों तो भारत सरकार ही डेंगू की सरकार हो गई है प्राजातंत्र ही डेंगू ग्रस्त है ..
हटाएंयहां भी वाक्य विन्यास की गल्ती। इन दिनों के साथ " तो " नहीं लगाना चाहिए। इन दिनों पर्याप्त है। अगर आपको तो लगाना ही है तो आपको इन दिनों के बजाए लिखना चाहिए था " अब तो "
बताइये प्रजातंत्र नहीं लिख पा रहे हैं, और ब्लागर साथिओं में इतनी बड़ी बड़ी बातें करते हैं।
अच्छा एक बात पूछता हूं शर्मा जी कभी आप खुद से बात करते हैं। नहीं किया होगा, करके देखिए, आपको अपने बारे में सब कुछ पता चल जाएगा।
खुशनसीबों के ही साकार होतें हैं दिवास्वप्न .
जवाब देंहटाएं‘‘अमल-धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है।’’ को सुनाया। उस दिन के बाद तिवारी जी इतने शर्मिन्दा हुए कि बाबा को मिलने के लिए ही नही आये।
यह था मेरी खुली आँखों का सपना!
....शेष कभी फिर!
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"खुली आँखों का सपना"
ना जाने आप क्या कह रहे हैं, आपके अलावा तो किसी के समझ मे ये बात नहीं आई। वैसे आपको अपनी तारीफ खुद करने की जरूरत नहीं है। हम सब मानते हैं कि आप से बड़ा ज्ञानी ब्लाग परिवार मे कोई नहीं है।
हटाएंबस आपकी लिखी बात हम सबकी समझ में नहीं आती, ऊपर से चली जाती है।
अब देखिए आपने लिख दिया ....शेष कभी फिर!
हटाएंये गलत है शर्मा जी । ऐसे नहीं लिखा जाता है। आपको अपना लिखे में अटपटा नहीं लगता है।
इसे ऐसे लिखिए
शेष फिर कभी.....
कोई बात नहीं, मैं तो सिर्फ आपका ध्यान आकृष्ट करा रहा हूं, आप कभी किसी बडें मंच पर ऐसा करेंगे तो लोग हंसेगे। इसलिए यहीं आपकी भाषा में सुधार जरूरी है।
भाई साहब अब ई तो गजब होइगवा सगरी टिपण्णी गायब हुई गवा .
जवाब देंहटाएंज्वार-खेत को खा रहा, पापा नामक कीट-
पहली डेट
जामा पौधा प्यार का, पहला पहला प्यार ।
फूला नहीं समा रहा, तन जामा में यार ।
तन जामा में यार, घटा कैफे में नामा ।
मुझे पजामा बोल, करे जालिम हंगामा ।
रविकर पहली डेट, बना दी मुझको मामा ।
करे नया आखेट, भागती खींच पजामा ।।
भाई साहब अब ई तो गजब होइगवा सगरी टिपण्णी गायब हुई गवा .
बहुत बढिया प्रस्तुति है रविकर जी की ब्लॉग जगत के दिनकर जी की .बधाई .
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रविकर पहली डेट, बना दी मुझको मामा-
माफ कीजिएगा शर्मा जी , कम से कम आपको "टिप्पणी" लिखनी आनी ही चाहिए।
हटाएंआपने ऐसे लिखा है " टिपण्णी "
आदरणीय प्रभू ये गलत है। अच्छा मैं गलती करुं तो चलता है, हम तो सीख रहे हैं। आप तो ज्ञानी हैं, सबकी को ज्ञान देते रहते हैं, आपसे ये उम्मीद नहीं की जा सकती।
प्लीज शर्मा जी थोड़ा ध्यान से लिखिए
वाह वाह क्या महगाई आई.....
जवाब देंहटाएंयह कविता आज की महगाई की और ध्यान आकर्षित करने वाली है !
खून हुआ पानी. और पानी हुआ पसीना,
बस अब जलते है दिल और खामोस मन,
स्रोत-स्रोत शिप्रा प्यासी क्या महगाई आई.
हाथ सबेरे मलते,दिल पुरे दिन धू-धूकर जलते,
घर बार बने है अब फंदे फांसी के क्या महगाई आई.
क्या आटा क्या दाल सब आख दिखने लगे है
बूंद बूंद को हम प्यासे मेरे नेता भाई,
भूख करती हाहाकार क्या महगाई आई.
भूख लाचारी लपटें जसे चीलों सी,
अब तो माँ की ममता भी सूखी झीलों सी
वाह वाह क्या महगाई आई.....
ज़िन्दगी के यह दिन आये लोग कितने बेबस पाये
भूख और प्यास की सलाखों पर यहाँ इंसान लटकाये
वाह वाह क्या महगाई आई.
जब अँधेरा हो गया सता के गलियारों में
तब झोपड़े चुन-चुन कर जलाये गए हमारे
वाह वाह क्या महगाई आई.....
हर शाम को ग़मगीन करके युही सो जाते है हम
कल सुबह के हिस्से में अच्छा सा कोई काम आ जाएँ,
वाह वाह क्या महगाई आई....
इस कविता का शीर्षक "वहा वहा क्या महगाई " SAB टेलीविजन पर एक परोग्राम आता है उसका नाम है "वाह वह क्या बात है " उसके शीर्षक से लिया है क्यों की उस कार्यकर्म मे हस्ये कलाकरों द्वारा सुन्दर सुन्दर रचना और कवितायों से दर्शको को हसाया जाता है! आप को तो पता ही है आजकल हँसाने के नाम पर भी कितनी अश्लीलता दिखाई जाती है !
*****गजेन्द्र सिंह रायधना****
मेंहगाई से पैदा विद्रूप का सुन्दर चित्रण .
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वाह वाह क्या महगाई आई.....
लाडनूं अंचल (LADNUN ANCHAL)
आपका बहुत बहुत आभार वीरेंदर कुमार शर्मा जी
हटाएंमुझे नहीं पता कि ये लाइनें वीरेंद्र शर्मा जी की हैं या उन्होंने कहीं से उतारी है।
हटाएंऊपर से नीचे तक वर्तनी की सौ से ज्यादा गल्तियां हैं।
शर्मा जी आजकल आप वर्तनी की जांच कर नहीं रहे हैं।
मन नहीं लग रहा है, कमेंट पढ़ने में भी मजा नहीं आ रहा है।
छुट्टी के दिन थोड़ा ज्ञान बढ़ाता था आपकी टिप्पणियां पढ कर
विकलांत ,अशांत चला जा रहा है ,
जवाब देंहटाएंअसीम की ओर -
अनवरत ,अशब्द ,उद्वेलित है खुद में ,
परन्तु है निश्चिन्त -
देख रहा है -
सुन्दर भविष्य का गर्भ .
बरसों बाद इतनी कसाव दार प्रगाढ़ अनुभूत रचना पढ़ी है .लिखा आपने है ,भोगा हमने भी है ,हम सभी ने ये यथार्थ .
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भविष्य का गर्भ Beautiful Future
Snehil's World
वीरेंद्र कुमार शर्मा जी
हटाएंमैं थोड़ा कम जानता हूं, प्लीज इसके मायने भी लिख दीजिए.. वैसे इस तरह की हिंदी कहां बोली ओर लिखी जाती है, (आपके अलावा पूछ रहा हूं)
"इतनी कसाव दार प्रगाढ़ अनुभूत"
सुसज्जित चर्चामंच...बढ़िया लिंक्स...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार!!
विजयादशमी की शुभकामनाएँ!!
बहुत ही सार्थक चिंतन विश्लेषण परक दर्शन से संसिक्त आलेख आपने पढ़वाया है .रावण का हम सिर्फ रस्मी तौर पर मुखौटा जलातें हैं संसद में उसका पल्लवन होता है .कह सकतें हैं अब हर व्यक्ति एक रावण है क्योंकि उसी की चुनी हुई भ्रष्ट सरकार है
जवाब देंहटाएंएक भ्रष्टाचार से सौ अवगुण और लीलते हैं समाज को ,जीवन को जगत को .देह मंडी भी उसी का उत्पाद है .
कठिन हिंदी लिखने से आदमी ज्ञानी की श्रेणी में नहीं आता है...
हटाएं" विश्लेषण परक दर्शन से संसिक्त "
ये क्या है, कुछ भी लिखते हैं। विश्लेषण के साथ परक ये क्या है..
आप कह रहे है "रस्मी तौर पर मुखौटा जलातें" मुखौटा और पुतला में अंतर है। माननीय शर्मा जी.. क्यों ऐसा लिख कर अपनी हंसी उडवाते हैं...
मैं बार बार आपको कहता हूं लिखने के बाद पढिए, लेकिन आप कभी नहीं मानेगे.
अब ये क्या है...
"एक भ्रष्टाचार से सौ अवगुण और लीलते हैं समाज को" अगर भ्रष्टाचार समाज के अवगुणों को लीलता है तो लीलने दीजिए, अवगुण खत्म होंगे तो बेहतर समाज सामने आएगा... इसमें भी आपको दिक्कत है।
बहरहाल शर्मा जी वही शब्द इस्तेमाल कीजिए, जिसका अर्थ आपको पता हो।
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
चर्चा मंच सजा बहुरंगी लिंक्स से |विजयादशमी पर हार्दिक शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंआशा
आभार प्रदीप भाई !
जवाब देंहटाएंइंजिनीयर साहब का तो लिंक्स सजाने का अंदाज़ ही निराला है.बहुत सुन्दर.लिंक्स की तरतीब खूब ही सेट की है.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
बेहद सुन्दर लिंक्स संजोयें हैं प्रदीप भाई विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंसादर --
बेहतरीन लिंक्स,,,आपके द्वारा प्रस्तुत चर्चा पसंद आई,पदीप जी बधाई,,,,
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें ,,,
RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम
मेरे रचना को चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंविजयदशमी की हार्दिक बधाई!
बहुत सुन्दर चर्चा!सभी पठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंविजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा
बढ़िया लिंक्स बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा .विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स संजोये हैं आपने प्रदीप भाई .मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु आभार .
जवाब देंहटाएंशर्मा जी
जवाब देंहटाएं.............
आपको विजयादशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
पता नहीं आपको अपनी गल्ती का अहसास है या नहीं। लेकिन मुझे बहुत खराब लगता है कि मैं सार्वजनिक मंच पर आपकी हिंदी दुरुस्त कर रहा हूं।
वैसे आप मेरी हिंदी ठीक करते तो मुझे कोई गुरेज नहीं था, आपने अमर्यादित भाषा इस्तेमाल करते हुए ये कहा कि क्या चैनलिए शराब पीये रहते हैं।
मुझे लगता है कि आपके बच्चे अगर कुछ गलती करते होंगे तो आप उनका मुंह सूंघते होंगे कि कहीं ये शराब तो पीकर नहीं आया है।
खैर आपकी इस बात ने मेरे मन में आपके प्रति बहुत नफरत भर दी है। हो सके तो अपने भीतर के रावण को आज आप जला दीजिएगा। जिससे आपको फिर कभी अपने से छोटे से ऐसा कुछ सुनना ना पड़े। रही बात आपकी, आप कुछ भी कह सकते हैं और कहते रहते हैं, इसलिए आप क्या कहेंगे, मेरे पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
उम्मीद है कि आप को अपनी गलती का अहसास होगा..
बेहतरीन सूत्रों से सजी चर्चा..
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंमेरे रचना को चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत आभार...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स.....
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें......!!!!!
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स, मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार...
साभार!
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होने के लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार | इसी तरह चर्चा मंच पर पधारते रहें और इस मंच की रौनक बढ़ते रहें |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद |
एक-एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएंAdd Happy Diwali Greetings to your blog - मित्रों को शुभ दीपावली बधाइयाँ दीजिए