दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
लिंक 1-
स्टिंग में फंस गए बेचारे संपादक -महेन्द्र श्रीवास्तव
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लिंक 2-
चारो खाने चित टीम केजरीवाल -महेन्द्र श्रीवास्तव
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लिंक 3-
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लिंक 4-
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लिंक 5-
एक शाम तेजेंद्र शर्मा के नाम -शिखा वार्ष्णेय
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लिंक 6-
नवगीत -महेन्द्र वर्मा
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लिंक 7-
ब्लॉगिंग एक नशा नहीं आदत है -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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लिंक 8-
गद्य सी अपठित हुई हैं छन्द जैसी लड़कियां -आनन्द परमानन्द
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लिंक 9-
शेक्सपियर के नाटकों का मंचन क्यों? -डॉ. श्याम गुप्त
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लिंक 10-
नाम उसका ही लिखा है -डॉ. वर्षा सिंह
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लिंक 11-
छोटी सी ये दुनिया -संजय
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लिंक 12-
चाहूं तो भी -निरन्तर
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लिंक 13-
भारतीय काव्यशास्त्र–127 -आचार्य परशुराम राय
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लिंक 14-
आपके गुरुजी से दीक्षा कैसे मिलती है? -राजीव कुलश्रेष्ठ
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लिंक 15-
पहली फ़िल्म पर प्रीमियम में नहीं गया -पीयुष मिश्रा, प्रस्तुति-माधवी शर्मा गुलेरी
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लिंक 16-
राम राम भाई! बोले तो पेशीय फड़क है क्या? -वीरू भाई
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लिंक 17-
जूठन का दंश -पुरुषोत्तम पाण्डेय
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लिंक 18-
"ज़ेल डायरी" तिहाड़ से काबुल-कंधार तक : शेर सिंह राणा
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लिंक 19-
ख़ामोशी क्यों कभी ख़ामोश नहीं रहती? -मोनिका जैन
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लिंक 20-
दिल बहलाने -सुशील
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!
बहुत शानदार-जानदार चर्चा लगाई है ग़ाफ़िल जी!
जवाब देंहटाएंआपका आभार!
दुर्गाष्टमी की शुभकामनाएँ!
बेहतरीन सुन्दर सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार गाफ़िल जी
उज्ज्वल हो प्रात-सा
जवाब देंहटाएंयुग का नव संस्करण,
चिंतन के सागर में
सुलझन का अवतरण,
रावण के संग-संग
कलुष सब जले।
नव गीत नव बयार लेकर आया है .तंज भी सकारात्मक भाव भी लिए आया है यह गीत नव आस भी ,उजास भी .बधाई .
लिंक 6-
नवगीत -महेन्द्र वर्मा
काव्यानुभूति और बदलाव की कसक यकसां है इस रचना में .
जवाब देंहटाएं_______________
लिंक 8-
गद्य सी अपठित हुई हैं छन्द जैसी लड़कियां -आनन्द परमानन्द
काव्यानुभूति और बदलाव की कसक यकसां है इस रचना में .
जवाब देंहटाएंगज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,
हमारे हौंसले पोले हुए हैं ,
हमारा कद सिमट के घट गया है ,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं .
सच यही है ,यथा स्थिति के पूजक इस दौर में कुछ भी कहें -
अन्ना 'गाँधी' बन गये,'भगतसिंह'अरविंद
बिगुल बज उठा युद्ध का, जागेगा अब हिंद
लिंक 2-
चारो खाने चित टीम केजरीवाल -महेन्द्र श्रीवास्तव
मित्रों, आमतौर पर मैं कभी भी सार्वजनिक मंच का उपयोग अपनी सफाई के लिए नहीं करता हूं। लेकिन ये बात मुझे इसलिए करनी पड़ रही है कि एक वरिष्ठ ब्लागर श्री वीरेंद्र कुमार शर्मा जी अक्सर मेरे ब्लाग पर गैर मर्यादित टिप्पणी करते हैं। मैं मानता हूं कि कई बार ऐसा होता है कि आप लेख, कविता कुछ भी लिख रहे हैं तो वर्तनी की गलती हो सकती है। उसे ठीक करने के लिए आप शिष्ट शब्दों में ब्लागर का ध्यान आकृष्ट करा सकते हैं। लेकिन शर्मा जी अकसर चर्चा मंच पर वो लोगों की गल्तियां इस तरह से पेश करते हैं जैसे लेखक मूर्ख है।
जवाब देंहटाएंहद तब हो गई, जब उन्होंने मेरे सही शब्दों को गलत बताया और उसके साथ आपत्तिजनक टिप्पणी की । टिप्पणी में कहा कि क्या " चैनालिए पिये " रहते हैं। इस लिंक पर आप उनकी टिप्पणी को देख सकते हैं।
http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/10/blog-post_19.html?showComment=1350844069840#c1922656921443151315
आपकी सुविधा के लिए उनकी टिप्पणी यहां दे दे रहा हूं। पहले आप उनकी टिप्पणी पढ़ लीजिए, फिर मैं आपको अपनी बात बताता हूं। हालांकि मैने अपने ब्लाग पर उन्हें विस्तार से जानकारी दी है, लेकिन जरूरी समझ रहा हूं कि यहां भी बता दिया जाए, क्योंकि वो हमेशा इसी जगह का इस्तेमाल करते हैं। एक ही टिप्पणी कोई कई बार जानबूझ कर लिखते हैं।
Virendra Kumar Sharma20 October 2012 08:10
आधा सच...: चारो खाने चित "टीम केजरीवाल".......चारों खाने चित्त
TV स्टेशन ...परमहेन्द्र श्रीवास्तव - 7 घंटे पहले
आधा सच...: चारो(चारों )........ खाने चित (चित्त )............"टीम केजरीवाल": खुलासा सप्ताह मना रही टीम अरविंद केजरीवाल फिलहाल चारो(चारों )...... खाने चित्त हो गई है। वजह और कुछ नहीं बल्कि केजरीवाल समेत उनके अहम सहयोगियों पर नेत...
आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है .वर्तनी के अशुद्धियाँ खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .?
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महेन्द्र श्रीवास्तव21 October 2012 23:57
आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है .वर्तनी के अशुद्धियाँ खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .?
कमेंट में ये तीन लाइने शर्मा जी की हैं। जरा गौर से देखिए कि तीन लाइनों में कितनी गलती है। पहला तो वाक्य विन्यास गलत है। इसे इस तरह लिखा जाना चाहिए.." भाई साहब आधा सच पूरे झूठ से ज्यादा ख़तरनाक है "
फिर आपने लिखा वर्तनी के अशुद्धियां, ये भी पूरी तरह गलत है। यहां " वर्तनी की " लिखा जाना चाहिए था।
आगे आपने लिखा.... टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ? यहां अक्सर के बाद ये . लगाने की क्या जरूरत है ? इसे नहीं लगाना चाहिए।
आगे आप ने लिखा " चैनालिए " ये भी गलत है, आपको चैनलिए लिखना चाहिए था।
और आखिर में " पिये " लिखा गया, जबकि ये गलत है। होना चाहिए पीये।
अब मेरा सवाल है कि मात्र तीन लाइन का कमेंट लिखने में शर्मा जी ने कितनी गलतियां की हैं, आप ही गिन लीजिए। अब जो तीन लाइन कमेंट शुद्ध नहीं लिख रहे हैं, क्या उन्हें इतनी बड़ी- बड़ी बातें करने का हक है। मैं काम में व्यस्त रहता हूं, इसलिए इनकी बातों को नजरअंदाज करता रहता हूं, पर मैं लगातार देख रहा हूं कि आज वो व्यक्ति पूरे ब्लाग परिवार को ज्ञान दे रहा है जो तीन लाइन शुद्ध नहीं लिख पा रहा है। इसलिए जरूरी हो गया सही बात यहां रखी जाए।
अच्छा इन्हें प्रूफ की गलतियां उस लेख में दिखाई देती है, जो लेख इनके पसंद का नहीं होता है। आप कांग्रेस के खिलाफ लिखिए तो खुलेमन से आपकी प्रशंसा करेंगे, लेकिन बीजेपी और अरविंद केजरीवाल के मुद्दे पर लिखेंगे तो शर्मा जी वर्तनी की कमियां तलाश कर पाठकों का ध्यान बांटने की साजिश करेंगे। इनकी कोशिश मूल विषय से लोगों का ध्यान हटाने की हो जाती है।
मेरे मन में एक सवाल है शर्मा जी के ब्लाग का नाम है " कबीरा खड़ा बाज़ार में " ये आप सब ज्यादा जानकार हैं तय कीजिए। मुझे पक्का यकीन है कि शर्मा जी के ब्लाग का नाम गलत है। ब्लाग का नाम " कबिरा खड़ा बाज़ार में " होना चाहिए। यानि ब मे छोटी इ की मात्रा होनी चाहिए। कबीर लिखना हो तो ठीक है पर दोहे में कबिरा ही सही है। ऐसे में सवाल उठता है कि ब्लाग का नाम सही लिखा नहीं, लोगों को ज्ञान रोज दे रहे हैं।खैर कुछ लोगों की आदत होती है, वो सामने वाले को छोटा साबित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
शर्मा जी आपको मेरी बात से कष्ट पहुंचा हो तो मुझे खेद है, पर आप अपने कमेंट को जरूर देखिए और विचार कीजिएगा। आपने पहले भी ऐसा किया है, जिस पर गुस्से से मुझे भी कुछ कहना पड़ा।
जवाब देंहटाएंआद. शास्त्री जी,
आप मुझे माफ कीजिएगा। क्योंकि इसी मंच पर शर्मा जी कई बार मेरे बारे में अभद्र, अमर्यादित टिप्पणी कर चुके हैं और यहां मित्रों ने उस पर कोई आपत्ति नहीं की। एक बार तो उन्होंने मेरी टिप्पणियों को अपने ब्लाग में गलत तरीके से पेश किया, मुझे अफसोस है कि उस पोस्ट को चर्चा मंच पर भी जगह दी गई। खैर अगर उन्हें अमर्यादित टिप्पणी करने की छूट है तो कम से कम मैं अपनी सफाई तो यहां रख ही सकता हूं। पर मैं जानता हूं कि मंच इस काम के लिए नहीं है। आगे से मैं तो ऐसा नहीं करुंगा, लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप उन्हें भी ऐसा करने से रोकेंगे।
महेन्द्र श्रीवास्तव...
गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,
जवाब देंहटाएंहमारे हौंसले पोले हुए हैं ,
हमारा कद सिमट के घट गया है ,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं .
सच यही है ,यथा स्थिति के पूजक इस दौर में कुछ भी कहें -
अन्ना 'गाँधी' बन गये,'भगतसिंह'अरविंद
बिगुल बज उठा युद्ध का, जागेगा अब हिंद
लिंक 2-
चारो खाने चित टीम केजरीवाल -महेन्द्र श्रीवास्तव
और " पिये " नहीं होता है शर्मा जी पीये होता है।
जवाब देंहटाएंमहेंद्र भाई !आप सही कह रहें हैं असल शब्द पीये ही है .मुझे ख़ुशी हुई है ,मैं ला -वारिश नहीं हूँ।आपने मेरी गलती पकड़ी शुक्रिया दिल से .
आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है ."वर्तनी के अशुद्धियाँ "खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .
महेंद्र जी "वर्तनी की अशुद्धियाँ " ही होना चाहिए था .मंशा हमारी और हम सबकी यही रहनी चाहिए हम शुद्ध लिखें जहां तक संभव हो ,कोई गलती निकाले स्वागत करें .सीखें उससे .आखिर चिठ्ठा एक ऐसा अख़बार है
जिसके सब कुछ हम ही हैं सम्पादक भी ,हाकर भी .दिल पे न लो दोस्त जो कुछ आपने क़हा सर आँखों पर अनुज हैं आप .
कबीरा खड़ा बाज़ार के प्रशासक हम नहीं हैं हमारा चिठ्ठा है "राम राम भाई "
अस्वस्थ होने के बाद भी आपने बहुत अच्छी तरह से चर्चा मंच को सजाया है। यहां शामिल सभी लिंक्स एक से बढकर एक हैं। मुझे भी यहां स्थान देने के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंआधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है ."वर्तनी के अशुद्धियाँ "खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .
जवाब देंहटाएंमहेंद्र जी "वर्तनी की अशुद्धियाँ " ही होना चाहिए था .मंशा हमारी और हम सबकी यही रहनी चाहिए हम शुद्ध लिखें जहां तक संभव हो ,कोई गलती निकाले स्वागत करें .सीखें उससे .आखिर चिठ्ठा एक ऐसा अख़बार है
जिसके सब कुछ हम ही हैं सम्पादक भी ,हाकर भी .दिल पे न लो दोस्त जो कुछ आपने क़हा सर आँखों पर अनुज हैं आप .
कबीरा खड़ा बाज़ार के प्रशासक हम नहीं हैं हमारा चिठ्ठा है "राम राम भाई "
दोस्त दिल पे इतना वजन रखे बैठे थे .(दिल पे पथ्थर रखे बैठे थे ),वजन हटा लिया अच्छा किया .
यहाँ विचार वैभिन्न्य है .मन भेद नहीं है मतभेद है यह ब्लॉग एक परिवार है सिर -फुटोवल कर लो कोई बात नहीं लिखो जहां तक संभव हो शुद्ध .
निंदक नियरे राखिए ,आंगन कुटी छवाय ,
बिन साबुन पानी बिना ,निर्मल होत सुभाय .
आप निंदक नहीं है, निंदक को तो मैं बहुत आदरणीय मानता हूं। निंदक लेख के बारे में अपनी राय देता है।
हटाएंउसकी राय ऐसे नहीं होती कि शराब पी के लिखते हो क्या ?
पहले तो इस बात के लिए आपको माफी मांगनी चाहिए कि सही लिखे को आप गलत बता रहे हैं... और ज्ञानी इतना बन रहे हैं कि वहां ये भी कह रहे हैं चैनल वाले शराब पीये रहते हैं क्या ...
आप निंदक नहीं घमंड है आपको अपने ज्ञान पर . मैने आज तक ऐसा कुछ नहीं देखा जिससे मै आपको 24 कैरेट का निंदक समझ सकूं
गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,
जवाब देंहटाएंहमारे हौंसले पोले हुए हैं ,
हमारा कद सिमट के घट गया है ,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं .
सच यही है ,यथा स्थिति के पूजक इस दौर में कुछ भी कहें -
अन्ना 'गाँधी' बन गये,'भगतसिंह'अरविंद
बिगुल बज उठा युद्ध का, जागेगा अब हिंद
खबरिया चैनलों का कमोबेश कोर्पोरे -टी- करण हो चुका है अब प्रबंधक ही सम्पादक होता है .प्रिंट मीडिया में भी सम्पादक दिखाऊ तीहल ज्यादा होता है ,नौकर होता है वह .पत्रकारिता में से गणेशशंकर विद्यार्थी तत्व
जवाब देंहटाएंविलुप्त प्राय :है .
बढ़िया खबर लाये हैं आप .बधाई .पेशकश और चिंता भी आपकी वाजिब रही .
लिंक 1-
स्टिंग में फंस गए बेचारे संपादक -महेन्द्र श्रीवास्तव
आप कितना गलत लिखते हैं, कभी अपना लिखा दोबारा पढ़ते हैं। तीन लाइन का कमेंट शुद्द नहीं लिख पाते हैं.. दूसरों को ज्ञान कैसे दे लेते हैं।.
हटाएंदेखिए क्या लिखा है आपने...
"पत्रकारिता में से गणेशशंकर विद्यार्थी ......."
ये क्या है ? पत्रकारिता में लिखिए या पत्रकारिता से लिख दीजिए। में भी से भी क्या लिखते हैं.
आप लिखने के बाद पढ़ा जरूर कीजिए
गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,
जवाब देंहटाएंहमारे हौंसले पोले हुए हैं ,
हमारा कद सिमट के घट गया है ,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं .
सच यही है ,यथा स्थिति के पूजक इस दौर में कुछ भी कहें -
अन्ना 'गाँधी' बन गये,'भगतसिंह'अरविंद
बिगुल बज उठा युद्ध का, जागेगा अब हिंद
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लिंक 2-
चारो खाने चित टीम केजरीवाल -महेन्द्र श्रीवास्तव
हौंसले नहीं होता है हौसले होता है..
हटाएंभाषा के ज्ञानी है , आप गलती करते हैं तो ठीक नहीं लगता
अन्ना 'गाँधी' बन गये,'भगतसिंह'अरविंद
जवाब देंहटाएंबिगुल बज उठा युद्ध का, जागेगा अब हिंद
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग _______________
लिंक 2-
चारो खाने चित टीम केजरीवाल -महेन्द्र श्रीवास्तव पर .
अन्ना 'गाँधी' बन गये,'भगतसिंह'अरविंद
जवाब देंहटाएंबिगुल बज उठा युद्ध का, जागेगा अब हिंद
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग _______________
लिंक 2-
चारो खाने चित टीम केजरीवाल -महेन्द्र श्रीवास्तव पर .
पठनीय लिंक्स संयोजन के लिए बधाई गाफिल जी।
जवाब देंहटाएंआभार।
वीरेंद्र कुमार शर्मा जी...
जवाब देंहटाएं.........................
अगर आप गल्तियों की ओर इशारा कर रहे होते तो ठीक था, वो दुरुस्त करने के लिए मैं भी तैयार हूं। हर कोई तैयार है, लेकिन गल्ती ऐसे दुरुस्त कराई जाती है जैसे आप करा रहे हैं। आप उसमें कह रहे हैं कि लोग शराब पीए रहते हैं क्या।
मैने आपको बताया है कि तीन लाइन आप शुद्द नहीं लिख पाए हैं। उसमें क्या क्या गल्ती की आपने..
तीन लाइन में वाक्य विन्यास की गल्ती
गलत शब्दों को इस्तेमाल
कई शब्दों में वर्तनी की गल्ती
अपनी गलतियों को देखिए और फिर आत्ममंथन कीजिए ..
Virendra Kumar Sharma20 October 2012 08:10
आधा सच...: चारो खाने चित "टीम केजरीवाल".......चारों खाने चित्त
TV स्टेशन ...परमहेन्द्र श्रीवास्तव - 7 घंटे पहले
आधा सच...: चारो(चारों )........ खाने चित (चित्त )............"टीम केजरीवाल": खुलासा सप्ताह मना रही टीम अरविंद केजरीवाल फिलहाल चारो(चारों )...... खाने चित्त हो गई है। वजह और कुछ नहीं बल्कि केजरीवाल समेत उनके अहम सहयोगियों पर नेत...
आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है .वर्तनी के अशुद्धियाँ खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .?
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महेन्द्र श्रीवास्तव21 October 2012 23:57
आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है .वर्तनी के अशुद्धियाँ खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .?
कमेंट में ये तीन लाइने शर्मा जी की हैं। जरा गौर से देखिए कि तीन लाइनों में कितनी गलती है। पहला तो वाक्य विन्यास गलत है। इसे इस तरह लिखा जाना चाहिए.." भाई साहब आधा सच पूरे झूठ से ज्यादा ख़तरनाक है "
फिर आपने लिखा वर्तनी के अशुद्धियां, ये भी पूरी तरह गलत है। यहां " वर्तनी की " लिखा जाना चाहिए था।
आगे आपने लिखा.... टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ? यहां अक्सर के बाद ये . लगाने की क्या जरूरत है ? इसे नहीं लगाना चाहिए।
आगे आप ने लिखा " चैनालिए " ये भी गलत है, आपको चैनलिए लिखना चाहिए था।
और आखिर में " पिये " लिखा गया, जबकि ये गलत है। होना चाहिए पीये।
अब मेरा सवाल है कि मात्र तीन लाइन का कमेंट लिखने में शर्मा जी ने कितनी गलतियां की हैं, आप ही गिन लीजिए। अब जो तीन लाइन कमेंट शुद्ध नहीं लिख रहे हैं, क्या उन्हें इतनी बड़ी- बड़ी बातें करने का हक है। मैं काम में व्यस्त रहता हूं, इसलिए इनकी बातों को नजरअंदाज करता रहता हूं, पर मैं लगातार देख रहा हूं कि आज वो व्यक्ति पूरे ब्लाग परिवार को ज्ञान दे रहा है जो तीन लाइन शुद्ध नहीं लिख पा रहा है। इसलिए जरूरी हो गया सही बात यहां रखी जाए।
अच्छा इन्हें प्रूफ की गलतियां उस लेख में दिखाई देती है, जो लेख इनके पसंद का नहीं होता है। आप कांग्रेस के खिलाफ लिखिए तो खुलेमन से आपकी प्रशंसा करेंगे, लेकिन बीजेपी और अरविंद केजरीवाल के मुद्दे पर लिखेंगे तो शर्मा जी वर्तनी की कमियां तलाश कर पाठकों का ध्यान बांटने की साजिश करेंगे। इनकी कोशिश मूल विषय से लोगों का ध्यान हटाने की हो जाती है।
मेरे मन में एक सवाल है शर्मा जी के ब्लाग का नाम है " कबीरा खड़ा बाज़ार में " ये आप सब ज्यादा जानकार हैं तय कीजिए। मुझे पक्का यकीन है कि शर्मा जी के ब्लाग का नाम गलत है। ब्लाग का नाम " कबिरा खड़ा बाज़ार में " होना चाहिए। यानि ब मे छोटी इ की मात्रा होनी चाहिए। कबीर लिखना हो तो ठीक है पर दोहे में कबिरा ही सही है। ऐसे में सवाल उठता है कि ब्लाग का नाम सही लिखा नहीं, लोगों को ज्ञान रोज दे रहे हैं।खैर कुछ लोगों की आदत होती है, वो सामने वाले को छोटा साबित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
मुझे अच्छा लगेगा अगर आप लेख को पढ़कर जो बात उसमें कही गई है, उस पर अपनी राय रखें, लेकिन आपके लिए मुश्किल लगता है।
आप अरविंद की पूजा करते रहिए, बेहतर होगा कि उनकी तस्वीर घर पर लगा लें, फिर पूजिए।
आपको मेरे राय की जरूरत नही है, लेकिन अगर आप उनके विचारों का प्रतिनिधित्व करतें हैं तो कहिए मैं अंधा भक्त हूं। गुण दोष नहीं देखता अपने भगवान अरविंद में..
बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति ..आभार
जवाब देंहटाएंशर्मा जी आज आप यहां लोगों की वर्तनी ठीक नहीं कर रहे हैं। आप तो सार्वजनिक मंच पर वर्तनी ठीक करते हैं...
जवाब देंहटाएंपहले तो मेरे ब्लाग में सही लिखे को जो आपने गलत तो बताया ही वहां अमर्यादित टिप्पणी की है, उस पर माफी तो मांगिए।
मैं भी देखना चाहता हूं कि आप निंदक को कितना करीब रखते हैं ?
स्टिंग में फंस गए बेचारे संपादक ...
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र श्रीवास्तव
TV स्टेशन ...
खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र ।
मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।
सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना ।
तुझपर सारा दोष, करे जो खबर खभरना ।।
खबर खभरना = मिलावटी खबर
जवाब देंहटाएं"ब्लॉगिंग एक नशा नहीं आदत है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
जुआँ खेलना छूटता, नहिं दारु के घूँट ।
धूम्रपान की लत गई, क्लब ही जाये छूट ।
क्लब ही जाये छूट , मित्र कुछ अच्छे पाए ।
पथ जाऊं गर भटक, मार्ग सच्चा दिखलायें ।
घर में किच-किच ख़त्म, किन्तु कुछ उठे धुआँ है ।
सूर्पनखा से बचो, जिन्दगी एक जुआँ है ।
Those nagging jerks बोले तो पेशीय फड़क
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar Sharma
ram ram bhai
खता तंतु पेशीय की, कुछ अद्भुत दृष्टांत |
हुई पिटाई इस कदर, हुई देहरी क्लांत |
हुई देहरी क्लांत, संकुचन बड़ा अनैच्छिक |
करता चित्त अशांत, कहीं पर यह अत्याधिक |
रविकर करे सचेत, दवा करवाओ देशी |
हो जाओ ना खेत, होय ना कोरट पेशी ||
अधूरे सपनों की कसक (14) !
जवाब देंहटाएंरेखा श्रीवास्तव
मेरी सोच
जो कुछ अपने पास है, करिए उसपर गर्व |
किस काया की कल्पना, पूर्ण हुई क्या सर्व ?
पूर्ण हुई क्या सर्व , घटा उपलब्धि दीजिये |
सपनो के संग तौल, इन्हें इक बार लीजिये |
खुद के सपने सत्य, हुआ घाटा है थोडा |
उनके क्या हालात, जिन्हें इस खातिर छोड़ा ??
कमेंट देने में कंजूसी पर लड़ने को तैयार हमारी आर्मी !!
जवाब देंहटाएं:)) ;)) :))
वाह वही अंदाजे गाफिल
हमेशा की तरह
चटपटी चर्चा
सुंदर चर्चा
आभार !!
बक बक का
चयन करने
के लिये !
जवाब देंहटाएंलिंक 21-
ग़ाफ़िल की अमानत
बहुत खूब !
लिफाफा भेजता है गाफिल खाली एक
बस उनको ही पता चलता है कुछ !
जवाब देंहटाएंलिंक 7-
ब्लॉगिंग एक नशा नहीं आदत है -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
अरे इस अगर आदत से नशा भी हो रहा है तो होने भी दीजिये ना वैसे पीने वाले को पियक्कड़ बोला जाता है ब्लागिंग करने वाले को क्या कहा जाये? :)
जवाब देंहटाएंलिंक 16-
राम राम भाई! बोले तो पेशीय फड़क है क्या? -वीरू भाई
बहुर सुंदर ज्ञानवर्धक आलेख !
बहुत सुंदर चर्चा | अच्छे लिंक्स सजाये आपने | आभार |
जवाब देंहटाएंमार्मिक शब्द चित्र बाल श्रम का उस देश में जहां नौ दिन तक शक्ति स्वरूपा शिव शक्तियों का पूजन अर्चन होता है .काव्य सौन्दर्य देखते ही बनता है
जवाब देंहटाएंरविकर जी की दोहावली ,कुंडलियों में .बधाई .
"पाठकों, श्रोताओं एवं दर्शकों को नीर में से क्षीर निकालना
जवाब देंहटाएंआता है, कोयले में आग लगा कर रोटियाँ सेकना बहुत अच्छे
से आता है....."
दिल बहलाने बहुत बढ़िया रचना है भाई साहब ,बधाई .
जवाब देंहटाएंकुछ बनी बनाई है चिपकाते (हैं चिपकाते )
फूलों पर मंडराती
बेहतरीन रचना है ,सवाल दागती ,दागती ज़वाब भी दे जाती है :खामोशी क्यों कभी खामोश नहीं रहती ?
जवाब देंहटाएंतूफ़ान, Tufaan, मन कविता, Man Kavita, ख़ामोशी, Khamoshi Shayari, Khamoshi Poem, Silence Poems in Hindi
ख़ामोशी क्यों कभी ख़ामोश नहीं रहती ?
मन के समंदर में
उठते है तूफ़ान।।।।।।।।।।।।।।।।उठते हैं तूफ़ान ............
और उमड़ती है अनगिनत लहरें।।।।।।।।।।।।।।उमड़ती हैं .....
किनारों की तलाश में.
पर हर लहर को किनारों का
सहारा नहीं मिलता.
ख्यालों के गणित में
उठते है अनगिनत सवाल
अबूझे और असुलझे
जवाबों की तलाश में.
पर हर सवाल के नसीब में
सुलझा कोई ज़वाब नहीं होता.
क्यों उलझनों में उलझा मन
सुलझने की चाह में
और उलझ जाता है.
क्यों मन की लहरों का तूफ़ान
थमने की बजाय
और उबल जाता है.
खुद जवाब ही कभी कभी
समय के झंझावातों में उलझ
सवाल बन जाते है................सवाल बन जाते हैं ......
लहरों से टकराते टकराते
सागर के किनारें भी
एक दिन बदल जाते है..............हैं ....
ख़ामोशी क्यों कभी ख़ामोश नहीं रहती ?
जवाब देंहटाएंकहानी जूठन का दंश मन कसैला कर गई ..प्रति शोध की विभीत्सता पाठक को भी अपनी चपेट में ले लेती है .
लिंक 17-
जूठन का दंश -पुरुषोत्तम पाण्डेय
उस समय तो यह आभास भी नही(नहीं ) था कि इस प्रश्न का उत्तर क्या देना है?
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग के बारे में बस यह ही -
एक आदत सी हो गई है ,तू
और आदत कभी नहीं जाती ,
ज़िन्दगी है के जी नहीं जाती ,
ये जुबां हमसे सी नहीं जाती .
ब्लोगिंग ने लिखाड़ी को सम्पादक के वर्चस्व से मुक्त किया है .एक क्लिक के साथ आप दुनिया भर में पहंच जाते
हैं .अखबार इन्टरनल फ्लाईट है ब्लोगिंग अंतर -राष्ट्रीय उड़ान फिर नशा तो होगा ही अलबत्ता यह नशा सात्विक
है .पर ज्यादा न पी जाए यह मय भी .बढ़िया पोस्ट है शास्त्री जी की .
पीयूष मिश्र जी से बढ़िया बातचीत .उसने कहा था कहानी बारहवीं कक्षा इंटरमी डियेट साइंस के पाठ्यक्रम में पढ़ी थी -धत !तेरी कुडमाई हो गई ?अमृत सर की बाज़ारों का हू -बा -हु चित्रण इस वातावरण प्रधान कहानी
जवाब देंहटाएंको एक अलग जगह दिलवा गया .आज उनकी पोती की कलम से निकला यह संस्मरण बहुत खूब लगा एक रंगमंची कलाकार की जुबानी फिल्मों में प्रवेश तक का सफर।
हरकीरत ' हीर'21 October 2012 21:27
जवाब देंहटाएंचारो खाने चित' ही सही शब्द है ....
इसमें वर्तनी की कोई गलती नहीं ....
चित्त .- मन
चित- पीठ के बल या बेहोश
Reply
मुद्दा वर्तनी नहीं है महेंद्र जी ,हरकीरत जी ,
वह तो प्रसंग वश कोई बात निकल आती है तो मैं कह देता हूँ लिखके इशारा कर देता हूँ .शुद्ध अशुद्ध रूप तो वर्तनी के माहिर ही बतला सकतें हैं या फिर
आप जिसने थोड़ी बहुत हिंदी पढ़ी भी होगी .मैं तो विज्ञान का विद्यार्थी हूँ .
कोई अच्छा शब्द कोष देखिए रही बात माफ़ी की तो पहले वह सक्षमता हासिल कीजिए ,फिर आप से माफ़ी मांग लूंगा .फिलहार चारो चारो करोगे
.........हुआं हुआं करोगे तो चारों तरफ से घिर जाओगे .माफ़ी तो मैं सरकार से भी नहीं मांगता आपको कुछ दे ही रहा हूँ .ले कुछ नहीं रहा आपसे .
रही बात चित और पट्ट की पट्ट के वजन से चित्त लिखा जाता है .चित सचेत है चित्त नहीं .
प्रभुजी मोरे औगुन चित न धरो .......
पहली मर्तबा हुआ है इस देश में सरकार ही पूरी भ्रष्ट हो गई है .जिस मंत्री से आपका हाथ छू जाए वह भ्रष्ट निकलता है .ऐसी सरकार की मैं आलोचना
करता हूँ तो आपको बुरा लगता है .क्या जिस पार्टी की सरकार है आप उसके सदस्य हैं ?हैं तो पार्टी छोड़ दो आप तो पत्रकार हैं ऐसा आसानी से कर सकतें
हैं .
इस गुलाम वंशी मानसिकता के साथ क्यों रह रहें हैं भारत धर्मी समाज में ?भारत का हित सोचो ."भ्रष्ट कांग्रेस का नहीं " असल मुद्दा वर्तनी नहीं है .भ्रष्ट
सरकार है .
और हाँ कविता और भाषा में दोनों रूप प्रचलित हैं कबीर भी कबिर भी .
फिर दोहरा दूं कबीरा खड़ा ब्लॉग मेरा नहीं है मैं एक कन्ट्रीब्युटर हूँ प्रशासम नहीं हूँ इस ब्लॉग का .
और इक शब्द खुशबू भी कागज़ पर लिखा पड़ा था ....खुश्बू .............
सूरज की पहली धूप आकर बताती है सूरज का हाजर होना।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।हाज़िर होना ......
उडीकती लड़की आकर कबूतर से अपना कागज़ ले लेती है।।।।।।।।।हरकीरत जी कृपया बतलाएं यह उडीकती कौन सी भाषा का शब्द है ?क्या आंचलिक प्रयोग है .
असल शब्द चारों ही होता है चारो नहीं होता अनुवादक महोदया नोट कर लें .
मुद्दा वर्तनी नहीं है महेंद्र जी ,
जवाब देंहटाएंवह तो प्रसंग वश कोई बात निकल आती है तो मैं कह देता हूँ लिखके इशारा कर देता हूँ .शुद्ध अशुद्ध रूप तो वर्तनी के माहिर ही बतला सकतें हैं या फिर
आप जिसने थोड़ी बहुत हिंदी पढ़ी भी होगी .मैं तो विज्ञान का विद्यार्थी हूँ .
कोई अच्छा शब्द कोष देखिए रही बात माफ़ी की तो पहले वह सक्षमता हासिल कीजिए ,फिर आप से माफ़ी मांग लूंगा .फिलहार चारो चारो करोगे
.........हुआं हुआं करोगे तो चारों तरफ से घिर जाओगे .माफ़ी तो मैं सरकार से भी नहीं मांगता आपको कुछ दे ही रहा हूँ .ले कुछ नहीं रहा आपसे .
रही बात चित और पट्ट की पट्ट के वजन से चित्त लिखा जाता है .चित सचेत है चित्त नहीं .
प्रभुजी मोरे औगुन चित न धरो .......
पहली मर्तबा हुआ है इस देश में सरकार ही पूरी भ्रष्ट हो गई है .जिस मंत्री से आपका हाथ छू जाए वह भ्रष्ट निकलता है .ऐसी सरकार की मैं आलोचना
करता हूँ तो आपको बुरा लगता है .क्या जिस पार्टी की सरकार है आप उसके सदस्य हैं ?हैं तो पार्टी छोड़ दो आप तो पत्रकार हैं ऐसा आसानी से कर सकतें
हैं .
इस गुलाम वंशी मानसिकता के साथ क्यों रह रहें हैं भारत धर्मी समाज में ?भारत का हित सोचो ."भ्रष्ट कांग्रेस का नहीं " असल मुद्दा वर्तनी नहीं है .भ्रष्ट
सरकार है .
और हाँ कविता और भाषा में दोनों रूप प्रचलित हैं कबीर भी कबिर भी .
फिर दोहरा दूं कबीरा खड़ा ब्लॉग मेरा नहीं है मैं एक कन्ट्रीब्युटर हूँ प्रशासम नहीं हूँ इस ब्लॉग का .
माफी ईमानदार आदमी मांगता है। माफी कमजोर और कुतर्की नहीं मांग सकते। रही बात सक्षमता की तो आपकी तीन लाइनों में 75 गिनती गिना दी मैने।
हटाएंबहरहाल माफी अपने किए पर मांगनी चाहिए आपको.. आपने अपने छोटों को शराबी बताया। माफी इसलिए मांगनी चाहिए कि आपने सही को गलत ठहरा कर अपनी दूषित मानसिकता का परिचय दिया।
आप इतने भोले बन कर बता रहे हैं कि ऐसे ही शुद्ध अशुद्ध की बातें करता हूं, जब आपने हिंदी पढ़ी नहीं है तो क्यों जहां तहां टांग अड़ा रहे हैं।
रही बात मुझे सरकार का साथी बता रहे हैं, उससे साफ है कि आपका पढ़ाई लिखाई से कोई वास्ता है ही नहीं। वरना इसी ब्लाग में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राबर्ट वाड्रा, सलमान खुर्शीद, दिग्विजय के बारे में जितनी सख्त भाषा में लेख है, मुझे लगता है कि सरकार के विरोधी भी इतनी सख्त भाषा में लेख नहीं लिखते होंगे।
खैर आप व्यक्ति पूजा में लगे रहिए। किसी को कोई दिक्कत नहीं है।
मेरा मकसद सिर्फ आपको आइना दिखाना था, वो दिखा दिया कि आप क्या हैं, कितना जानते हैं, आपका असली चेहरा क्या है। लेख कविता मत पढिए, वर्तनी की कमियां तलाशते रहिए।
वैसे अच्छा होगा कि अपने से छोटों से बातचीत कैसे की जाती है, वो ठीक रखिए। दरअसल आपकी गल्ती नहीं है, जब आदमी देश छोड़कर बाहर जाता है तो सबसे पहले वो यहां की संस्कृति ही भूलता है, जो आप भूल चुके हो।
माफी मांग लीजिए अपने किए पर अच्छी नींद आएगी।
बढ़िया सजा है चर्चा मंच .बधाई गाफिल साहब .इस मर्तबा कुछ ज्यादा ही मज़ा है .
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच सजाइए ,
मुर्गे खूब लड़ाइए .
बधाई इस मनोरंजन मन रंजन के लिए .
बहुत-बहुत आभार आप सभी का ख़ास कर वीरेन्द्र जी शर्मा वीरू भाई और महेन्द्र जी श्रीवास्तव का जिन्होंने इस चर्चा को जीवन्त किया और सार्थक भागीदारी की...आशा है भविष्य में भी आप सब ऐसा ही सहयोग करते रहेंगे और चर्चामंच को सार्थकता प्रदान करते रहेंगे
जवाब देंहटाएंचलिए आपने अपने बंद कपाट तो खोले अभी तक तो सब खिड़की दरवाज़े बंद किए गाली गलौंच कर रहे थे .अब खुले में आयें हैं .मोडरेशन से हमें प्रवेश दिया है अपने घर में .संवाद बना रहे ,आइन्दा मिलें तो
जवाब देंहटाएंशर्मिन्दा न हों .
सामने दर्पण के जब तुम आओगे ,
अपनी करनी पर बहुत पछताओगे .
कल चला सिक्का तुम्हारे नाम का ,
आज खुद को भी बचा न पाओगे .
महेन्द्र श्रीवास्तवOctober 22, 2012 10:03 AM
जवाब देंहटाएंआप कितना गलत लिखते हैं, कभी अपना लिखा दोबारा पढ़ते हैं। तीन लाइन का कमेंट शुद्द(ये शुद्द नहीं है बेटे जी ,सुद्दा पेट में होता है कब्जी के वक्त ,ये लफ्ज़ है शुद्ध ) नहीं लिख पाते हैं.. दूसरों को ज्ञान कैसे दे लेते हैं।.
शुद्ध .हां जब दोबारा पढके नहीं देखता हूँ गलतियां रह जातीं हैं आप तो अभी तक ग़लती को गल्ती गल्ती करे जा रहें हैं क्या गलाना चाहते हैं भाई साहब ?
महेन्द्र श्रीवास्तवOctober 22, 2012 10:03 AM
जवाब देंहटाएंआप कितना गलत लिखते हैं, कभी अपना लिखा दोबारा पढ़ते हैं। तीन लाइन का कमेंट शुद्द(ये शुद्द नहीं है बेटे जी ,सुद्दा पेट में होता है कब्जी के वक्त ,ये लफ्ज़ है शुद्ध ) नहीं लिख पाते हैं.. दूसरों को ज्ञान कैसे दे लेते हैं।.
शुद्ध .हां जब दोबारा पढके नहीं देखता हूँ गलतियां रह जातीं हैं आप तो अभी तक ग़लती को गल्ती गल्ती करे जा रहें हैं क्या गलाना चाहते हैं भाई साहब ?
महेन्द्र श्रीवास्तवOctober 22, 2012 10:03 AM
जवाब देंहटाएंआप कितना गलत लिखते हैं, कभी अपना लिखा दोबारा पढ़ते हैं। तीन लाइन का कमेंट शुद्द(ये शुद्द नहीं है बेटे जी ,सुद्दा पेट में होता है कब्जी के वक्त ,ये लफ्ज़ है शुद्ध ) नहीं लिख पाते हैं.. दूसरों को ज्ञान कैसे दे लेते हैं।.
शुद्ध .हां जब दोबारा पढ़के नहीं देखता हूँ गलतियां रह जातीं हैं आप तो अभी तक ग़लती को गल्ती गल्ती करे जा रहें हैं क्या गलाना चाहते हैं भाई साहब ?
वीरेंद्र शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंबस मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि रोज आपको इतना ज्ञान दूं। आज मैने आपके लिए ही पूरा वक्त दिया। दूसरे ब्लाग नहीं पढ़ पाया।
मकसद सिर्फ इतना था कि लोग आपकी असलियत जान पाएं और वो जान गए।
गल्ती निकालने वाले खुद कितना शुद्ध लिखते हैं..
अब आप खुश रहिए,
फूल की हर पंखुड़ी में नाम उसका ही लिखा है ,
जवाब देंहटाएंदेखती हूँ जिस तरफ भी चेहरा उसका ही दिखा है .
जिस तरफ भी देखता हूँ तू ही तू है ,......
बहुर सुन्दर बिम्ब .बधाई भाव कणिका के लिए .
लिंक 10-
नाम उसका ही लिखा है -डॉ. वर्षा सिंह
जवाब देंहटाएंVirendra Sharma
ब्लॉग जगत में छिड़ा हुआ है एक वर्तनी युद्ध ,
कौन यहाँ पे शुद्ध रे भैया !कौन यहाँ पे शुद्ध .
बैठे हैं देखो यहाँ ,वह होकर के क्रुद्ध ,
जिनको भी भैया यहाँ, जरा करो परिशुद्ध ,
कितने हैं निर्बुद्ध! रे भैया !,कितने हैं निरबुद्ध ,
छिड़ा वर्तनी युद्ध रे भैया ,छिड़ा वर्तनी युद्ध .
कर दो मीटर शुद्ध रे भैया ,कर दो मीटर शुद्ध ,
पब्लिक बड़ी प्रबुद्ध रे भैया ,पब्लिक बड़ी प्रबुद्ध .
वीरुभाई !
जवाब देंहटाएंVirendra Sharma
ब्लॉग जगत में छिड़ा हुआ है एक वर्तनी युद्ध ,
कौन यहाँ पे शुद्ध रे भैया !कौन यहाँ पे शुद्ध .
बैठे हैं देखो यहाँ ,वह होकर के क्रुद्ध ,
जिनको भी भैया यहाँ, जरा करो परिशुद्ध ,
कितने हैं निर्बुद्ध! रे भैया !,कितने हैं निरबुद्ध ,
छिड़ा वर्तनी युद्ध रे भैया ,छिड़ा वर्तनी युद्ध .
कर दो मीटर शुद्ध रे भैया ,कर दो मीटर शुद्ध ,
पब्लिक बड़ी प्रबुद्ध रे भैया ,पब्लिक बड़ी प्रबुद्ध .
वीरुभाई !
" कौन यहाँ पे शुद्ध रे भैया !कौन यहाँ पे शुद्ध "
जवाब देंहटाएंक्या लिख रहे हैं शर्मा जी, कम से कम आप से ऐसी उम्मीद नहीं है। दूसरों को बताते रहते हैं खुद गलत लिखते हैं।
मुझे बताइये " पे " क्या है। जैसे बातें करते हैं,वही लिख देते हैं, हो सके तो कोई शब्द कोष ले लिजिए । जब तक हिंदी आपकी पूरी तरह दुरुस्त ना हो जाए, तब तक ज्ञान देना बंद कर दीजिए।
गलत लिखतें है, फिर पकड़ी जाती है तो खुद को विज्ञान का विद्यार्थी बताने कर पल्ला छाड़ने की कोशिश करते हैं।
आपने पढ़ा तो होगा ही
बुरा जो देखन मैं चला, बुला ना मिलिया कोय...
समझ गए ना.. खुश रहिए