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रविवार, मार्च 03, 2013

माँ,तुम्हारी यादें : चर्चा मंच 1172

  "जय माता दी" रु की ओर से आप सबको सादर प्रणाम.
राजेंद्र कुमार
 
माँ,
आज आ रही है
तुम्हारी यादें बहुत
तन्हा छोड़ मुझे
जल्दी चली गयी तू
हर पल रखा
मेरी ही खुशियों का ख्याल
कभी भी न आने दी आँखों में नमी
अब हर पल रहती
तेरी यादों में आँखें नम
तुम्हारी लोरियों की गूंज
अब भी गूंज रही कानो में
उच्चारण
 
खो गये जाने कहाँ सारे सुमन।हो
गया है आज वीराना चमन।।
आज क्यो बंजर हुई अपनी धरा,
लील ली किसने यहाँ की उर्वरा,
अब यहाँ कैसे उगायें धान्य-धन।
हो गया है आज वीराना चमन।।
आज गंगा भी विषैली हो गयी,प
तित-पावन धार मैंली हो गयी,
अब यहाँ कैसे करें हम आचमन?
हो गया है आज वीराना चमन।।
दिनेश चन्द्र गुप्ता 'रविकर'
सर्ग-3
भाग-1 अ
शान्ता के चरण
चले घुटुरवन शान्ता, सारा महल उजेर |
राज कुमारी को रहे, दास दासियाँ घेर ||
सबसे प्रिय लगती उसे, अपनी माँ की गोद |
माँ बोले जब तोतली, होवे परम-विनोद ||
कौला दालिम जोहते, बैठे अपनी बाट |
कौला पैरों को मले, हलके-फुल्के डांट ||
दालिम टहलाता रहे, करवाए अभ्यास |
बारह महिने में चली, करके सतत प्रयास ||
हर्षित सारा महल था, भेज अवध सन्देश |
शान्ता के पहले कदम, सबको लगे विशेष || 
दशरथ कौशल्या सहित, लाये रथ को तेज |
पग धरते देखी सुता, पहुँची ठण्ड करेज ||
Neetu Singhal
Anita 
 
रेखा जोशी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
अज़ीज़ जौनपुरी
रुखसत के वक्त मर्सिया पढ़ने तेरा आना न हुआ
तुझसे मिलने मुझे आज कब्र से बाहर आना होगा ज़िद है,
जिन्दा रहने का सबब तुमको बताना होगा
मेरे अश्को को तुमको अपनी नज़रों में बसाना होगा
धोखे से उसका नाम मेरे होठों पे आगया
उससे मिलने अपनी तस्बीर से बाहर आना होगा
ता- उम्र उसने भूल से भी मुझको पूंछा ही नहीं
बेवफ़ा होने का राज़ चुप-चाप तुमको बताना होगा
आग में रख के कदम तोड़ कर दुनियाँ के भरम
पाँव के छालों को बारहां तुमको दिखाना होगा
चेतन रामकिशन "देव"
आँखों में नमी, दिल में दुखन होने लगी है!
गम इतना है के, रूह मेरी रोने लगी है!
मरते हुए इन्सां को, बचाता नहीं कोई,
इंसानियत भी लगता है, के सोने लगी है!
बारूद से धरती की कोख, भरने लगे सब,
मिट्टी भी अपनी गंध को, अब खोने लगी है!
आँखों में अँधेरा है, हाथ कांपने लगे,
लगता है उम्र मेरी, खत्म होने लगी है!
एक कौम को गद्दार यहाँ, "देव" क्यूँ कहो,
हर कौम ही अब खून से, मुंह धोने लगी है!"
'अनन्त' अरुन शर्मा
1.
मेरी कीमत लगाता बजारों में था.
वो जो मेरे लिए इक हजारों में था.
कब्र की मुझको दो गज जमीं ना मिली,
आशियाँ उसका देखो सितारों में था.
2.
लाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
तुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
कांटे तमाम वापस आने में लग गए...
Sikha Gupta
अनमनी और अजान
अवसाद में ...घिरी हैरान
कभी अंधेरों में ढूँढ़ती
खुद अपनी ...खोयी पहचान
सिकुड़ी सूखे पातों सी
गुज़री तंग गलियों से
दीवारों पे बिखरी जैसे
परछाई का देती भान
खुशबू महकाती रहीं
प्रीति टेलर
कल आयने में देखा था तुझे,
मेरे सपने दुल्हनका जोड़ा पहनकर
मुखातिब हुए थे मेरी आँखों में,
और शरमा रहे थे पलकोंकी चिलमनमें ......
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रात चाँद बैठा इंतज़ार कर रहा था मुंडेर पर,
वो बेखबर सोते रहे थे सपनोंकी रजाई ओढ़कर ...
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Alka Sarwat
भृंगराज का नाम आप लोगों के लिए नया नहीं है। तमाम हेयर आयल के विज्ञापन रोज प्रकाशित होते हैं,उनमें भृंगराज की चर्चा बड़े जोर-शोर से की गयी होती है।केशों के लिए यह महत्वपूर्ण तो है ही लेकिन इसके अन्य औषधीय गुण शायद और ज्यादा महत्वपूर्ण लगते हैं मुझे।
Manoj Nautiyal
सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||
नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?
मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||
बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||
सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||
अजित वडनेरकर
स मूचे भारतीय उपमहाद्वीप में ‘दारा’ नाम शक्ति का प्रतीक माना जाता है। पश्चिम में पेशावर से लेकर पूर्व में पूर्णिया तक ‘दारा’ नामधारी लोग मिल जाएँगे जैसे हिन्दुओं में दारा के साथ ‘सिंह’ का प्रत्यय जोड़ कर दारासिंह जैसा प्रभावी नाम बना लिया जाता है वहीं मुस्लिमों में ‘खान’ या ‘अली’ जैसे प्रत्ययों के साथ दाराख़ान या दाराअली जैसे नाम बन जाते हैं। कहते हैं यह ख्यात पहलवान, अभिनेता दारासिंह के नाम का प्रभाव है कि ‘दारा’ नाम के साथ ताक़त जुड़ गई। चलिए मान लिया।
Swati
पानी का छपका लगाती
कुछ पीती ,कुछ आँखों को धोती
याद आता है
कि कितने सालों से सपनों का किराया नहीं भरा
मैंने
और कितनी रातों का है कर्ज़ मुझ पर
उनींदी सुबहों की कतार
मेरी रूह खड़खड़ाती है
Omprakash Pandey 'naman'
भले इस एक दीपक से अँधेरा कम नहीं होगा
मगर ये दीप तम का कभी भी हमदम नहीं होगा। 'नमन'
मैं इन तनहाईयों में भी कभी तनहा नहीं होता
तुम्हारी याद न हो, ऐसा एक लम्हा नहीं होता। 'नमन
जिक्र तेरा जब भी आया हादसे याद आ गए
बेबसी और सब्र के प्याले जो तुम छलका गए।
प्रवीन मलिक
अकबर महफ़ूज़ आलम रिज़वी
 
सुमित प्रताप सिंह
ZEAL
Sadhana Vaid
ग़म के सहराओं से ये आह सी क्यों आती है ,
दिल की दीवारों पे नश्तर से चुभो जाती है !
ये किसका साया मुझे छू के बुला जाता है ,
ये किसकी याद यूँ चुपके से चली आती है !
ये मुद्दतों के बाद कौन चला आया था ,
ये किसके कदमों की आहट कहाँ मुड़ जाती है !
ये किसने प्यार से आवाज़ दे पुकारा था ,
ये किस अनाम अँधेरे से सदा आती है !
Ritu Saxena
मदन मोहन बहेती'घोटू'
 
Chavanni Chap (चवन्नी चैप)
Yashoda Agrawal
इसी के साथ आप सबको शुभविदा मिलते हैं अगले रविवार को . आप सब चर्चामंच पर गुरुजनों एवं मित्रों के साथ बने रहें. आपका दिन मंगलमय हो
जारी है ..... मयंक का कोना
(१)
अज़ीज़ यूँ हीं नहीं दीवाना हुआ
तंज नहीं ये रंज है, ग़ज़ल हो गई आज।
दीवानो की बात को, सुनता नहीं समाज।।
(२)
मेहंदी
प्रीतम तेरे लिए मैं, लायी हूँ उपहार।
मेहँदी इस गन्ध में, बसा हमारा प्यार।।

19 टिप्‍पणियां:

  1. खामोशी की जुबान बड़ी होती है यदि अकेलापन महसूस हो तब |अच्छी लिंक्स से सजा आज का चर्चामंच |
    आशा

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  2. बहुत आकर्षक और परिश्रम से मन लगा कर की गयी चर्चा!
    आभार अरुन शर्मा 'अनन्त' जी आपका!

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार अरुण जी चर्चामंच पर मेरी 'खामोशी की जुबान' को आवाज़ देने के लिए ! सभी लिंक्स सुन्दर लग रहे हैं ! इंडिया के लिए सुबह की फ्लाईट पकड़नी है ! घर पहुँच कर पढ़ती हूँ इन्हें !

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  4. पठनीय लिंक्स सुंदर चर्चा ,,,,,आभार अरुन जी,,,

    RECENT POST: पिता.

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  5. अरुण शर्मा 'अनन्त' जी बहुत खूबसूरत और ज्ञानवर्धक लिंकों से सजी चर्चा प्रस्तुत की है आपने !!

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  6. बढ़िया चर्चा मंच-
    शुभकामनाएं प्रिय अरुण -

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  7. बेहतरीन सुन्दर और सार्थक लिंकों से सजी खुबसूरत चर्चा,सादर आभार.

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  8. बहुत ही साफ सुथरी चर्चा
    बहुत सुंदर लिंक्स

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  9. बेहतरीन लिंक्स से सजी है आज की चर्चा ... हमें चर्चा में शामिल करने के लिए आभार ...

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  10. बहुत ही सुन्दर लिंकों का संकलन किया है , बधाई भी और आभार भी.
    नीरज 'नीर'
    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा):

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  11. खूबसूरत लिंकों से सजी चर्चा

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  12. बहुत सुन्दर चर्चा अरुण जी.... विशेष रूप से चर्चा का आरम्भ बहुत सुन्दर विषय के साथ किया है.... बधाई!

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  13. सुंदर संग्रह
    बढ़िया संयोजन----बधाई

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  14. अरुण जी, देरी के लिए खेद है, आभार इस सुंदर चर्चा में मुझे स्थान देने के लिए..

    जवाब देंहटाएं

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