मित्रों!
आज देखिए कुछ पुरानी पोस्टों के लिंक!
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ज़िंदगी में
कितनी बार
मरे कोई
बार बार
मर के
जिंदा
रहे कोई...
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सब घबराहट नाहक है, धरती बड़ी नियामक है
इस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है...
रविकर
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हकीकत से सामना
गुजारिश
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षटपदीय छंद
आदर्शवादी होकर , बने सिर्फ नाम के
चमचागिरी करके तुम , हो जाओ काम के....
साहित्य सुरभि
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जीवन भर का साथी ....मेरा जीवन साथी
आज से करीब डेढ़ साल पहले मेरी जिन्दगी में एक बहुत अहम मोड़ आया। एक मोड़ जिसने मेरी जिन्दगी में बहुत कुछ बदल दिया, जिन्दगी जीने का मेरा तरीका, अपने वर्तमान और भविष्य को देखने का मेरा नज़रिया। एक मोड़ जिसने मुझमें आत्मविश्वाश भर दिया, बेशक मैं कह सकती हूँ अबतक की मेरी ज़िन्दगी का सबसे हसीन मोड़, वह मोड़ जहाँ मिला मुझे मेरे जीवन भर का साथी ...…मेरा जीवन साथी...
Alokita(आलोकिता)
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लघुकथाएं - महादान, रिश्ते और आदत
जाड़े की सर्द रात
बरसती बरसातबाद्ल की गड़गड़ाहट
बिजली की चमचमाहट
जर्जर झोपड़ी में टूटी छ्त के नीचे……
एक मां..
Maheshwari kaneri
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"भगवान" की शरण में "भगवान"
हां! पहली नजर में आपको ये बात अटपटी लग सकती है कि भगवान की शरण में भगवान.. इसके मायने क्या है। मैं बताता हूं। एक हैं सत्य साईं जिन्होंने खुद को भगवान बताया और दूसरे सचिन तेंदुलकर जिन्हें लोग क्रिकेट का भगवान कहते हैं। दोनों में फर्क है, एक को लोग भगवान नहीं मानते और दूसरा खुद को भगवान नहीं मानता। एक ने कहा कि वो 96 साल तक जिंदा रहेंगे, पर इसके पहले ही उन्हें शरीर छोड़ना पड़ा, दूसरे को लोग सोचते थे उन्हें 21 साल के पहले क्रिक्रेट छोड़ना पड़ सकता है, पर वो आज भी बल्ला घुमा रहे हैं। हां दोनों भगवान में एक समानता है, दोनों ने अपने "खेल" से देश और दुनिया में करोडों प्रशंसक जरूर बनाए हैं....
महेन्द्र श्रीवास्तव
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भेद- अभेद
हैं दोनों भेद - रहित
फिर भी देखो कितना अन्तर है
एक मन मन्दिर में वास रहा
दूजा सड़कों का पत्थर है...
संगीता स्वरुप ( गीत )
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शरद तुम आ गए
लो ,काँस के फूल फिर खिल गए दिवास्पति ने समेट लिया है ताप धीरे - धीरे ,शरद तुम आ गए दिवस संकुचन में दिखती छाप ...
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दिल है छोटा सा
20 अक्टूबर 2009 को 23:23 बजे
आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है
हंसी मुझको भाति है लेकिन,
इस हंसी के हजारो दुश्मन हुवे है...
(१)
जी हाँ! मैं एक प्रबुद्ध काँग्रेसी नेता हूँ.
गांधी का नेहरू का और इंदिरा का वारिस हूँ.
मैं वारिस हूँ १८५७ की क्रान्ति का,
जलियाँवाला का और १९४२ के आन्दोलन का...
पुरुषोत्तम पाण्डेय
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"रिश्ते"
मौसम की तरह रंग बदलते यह बेलिबास रिश्ते,
वक़्त की आँधियों में ना जाने कहॉ खो जाते हैं,
हम रिश्तों की चादर ओढ़े हुये ऐसे मौसम में ,
दिल को यह समझाए चले जाते हैं,...
vandana gupta
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स्वर्गनहीं, यह यात्रा वृत्तान्त नहीं है और अभी स्वर्ग के वीज़ा के लिये आवेदन भी नहीं देना है। यह घर को ही स्वर्ग बनाने का एक प्रयास है जो भारत की संस्कृति में कूट कूट कर भरा है। इस स्वर्गतुल्य अनुभव को व्यक्त करने में आपको थोड़ी झिझक हो सकती है, मैं आपकी वेदना को हल्का किये देता हूँ...
प्रवीण पाण्डेय
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परिचयनामा
डा. शाश्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. हमारी आपसे अनेको बार फ़ोन पर बात होती रही है. इस बार की झुलसाने वाली गर्मी मे हमने रुख किया नैनीताल का और रास्ते मे हम मिले डा. शाश्त्री जी से जहां यह इंटर्व्यु सम्पन्न हुआ. आईये अब आपको मिलवाते हैं इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी से...
ताऊ डाट इन
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छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके,
छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके,
मेरे ही गम का मुझको - औज़ार बनाके,
तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
यादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके...
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अजब सी ये उलझन
अजब सी ये उलझन, कुछ अलग कशमकश है.
जहर से भी घातक मोहोब्बत का रश है.
संभल जाऊं खुद मै या, संभालूं इस दिल को.
अब नहीं जोर चलता और नहीं चलता वश है.
अरुन शर्मा 'अनन्त'
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दोहा छंद...
कुछ दोहे मेरी कलम से.....
बड़ा सरल संसार है , यहाँ नहीं कुछ गूढ़
है तलाश किसकी तुझे,तय करले मति मूढ़.
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गाथा हिंदुस्तान की
घटती बढती महिमा सबकी, घटी नहीं बेईमान की |
सतयुग,त्रेता,कलियुग सबमें,-सदा चली बेईमान की |
देवभूमि भगवान की,-ये गाथा हिन्दुस्तान की |...
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आज के नेता...
एक अरब लोगों को पागल बना रहे है
अलग अलग पार्टी बनाकर
हमे आपस में लडवाकर
अपना मतलब निकाल रहे है,
कर रहे है बड़े बड़े घोटाले...
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
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“गीत मेरा:- स्वर-अर्चना चावजी का...”
आज सुनिए मेरा यह गीत!
इसको मधुर स्वर में गाया है -
अर्चना चावजी ने!
मंजिलें पास खुद, चलके आती नही!
अब जला लो मशालें, गली-गाँव में,
रोशनी पास खुद, चलके आती नही।
राह कितनी भले ही सरल हो मगर,
मंजिलें पास खुद, चलके आती नही।।
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कार्टून: भौंदू भाई ,एक बार मुस्कुरा के तो देख...
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आज के लिए केवल इतना ही...!
आगे देखिए...कुछ अद्यतन लिंक
गुजारिश
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षटपदीय छंद
आदर्शवादी होकर , बने सिर्फ नाम के
चमचागिरी करके तुम , हो जाओ काम के....
साहित्य सुरभि
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जीवन भर का साथी ....मेरा जीवन साथी
आज से करीब डेढ़ साल पहले मेरी जिन्दगी में एक बहुत अहम मोड़ आया। एक मोड़ जिसने मेरी जिन्दगी में बहुत कुछ बदल दिया, जिन्दगी जीने का मेरा तरीका, अपने वर्तमान और भविष्य को देखने का मेरा नज़रिया। एक मोड़ जिसने मुझमें आत्मविश्वाश भर दिया, बेशक मैं कह सकती हूँ अबतक की मेरी ज़िन्दगी का सबसे हसीन मोड़, वह मोड़ जहाँ मिला मुझे मेरे जीवन भर का साथी ...…मेरा जीवन साथी...
Alokita(आलोकिता)
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लघुकथाएं - महादान, रिश्ते और आदत
कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में अकाल पड़ा हुआ था। हमने अपनी संस्था के माध्यम से गाँवों में कुएं गहरे कराने का कार्य प्रारम्भ किया। किसान के पास इतना पैसा नहीं था कि वह स्वयं अपने कुओं को गहरा करा सके...
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खबरों का दर्द……...जाड़े की सर्द रात
बरसती बरसातबाद्ल की गड़गड़ाहट
बिजली की चमचमाहट
जर्जर झोपड़ी में टूटी छ्त के नीचे……
एक मां..
Maheshwari kaneri
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"भगवान" की शरण में "भगवान"
हां! पहली नजर में आपको ये बात अटपटी लग सकती है कि भगवान की शरण में भगवान.. इसके मायने क्या है। मैं बताता हूं। एक हैं सत्य साईं जिन्होंने खुद को भगवान बताया और दूसरे सचिन तेंदुलकर जिन्हें लोग क्रिकेट का भगवान कहते हैं। दोनों में फर्क है, एक को लोग भगवान नहीं मानते और दूसरा खुद को भगवान नहीं मानता। एक ने कहा कि वो 96 साल तक जिंदा रहेंगे, पर इसके पहले ही उन्हें शरीर छोड़ना पड़ा, दूसरे को लोग सोचते थे उन्हें 21 साल के पहले क्रिक्रेट छोड़ना पड़ सकता है, पर वो आज भी बल्ला घुमा रहे हैं। हां दोनों भगवान में एक समानता है, दोनों ने अपने "खेल" से देश और दुनिया में करोडों प्रशंसक जरूर बनाए हैं....
महेन्द्र श्रीवास्तव
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भेद- अभेद
हैं दोनों भेद - रहित
फिर भी देखो कितना अन्तर है
एक मन मन्दिर में वास रहा
दूजा सड़कों का पत्थर है...
संगीता स्वरुप ( गीत )
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शरद तुम आ गए
लो ,काँस के फूल फिर खिल गए दिवास्पति ने समेट लिया है ताप धीरे - धीरे ,शरद तुम आ गए दिवस संकुचन में दिखती छाप ...
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दिल है छोटा सा
आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है
हंसी मुझको भाति है लेकिन,
इस हंसी के हजारो दुश्मन हुवे है...
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विकल्प का संकल्प (व्यंग)(१)
जी हाँ! मैं एक प्रबुद्ध काँग्रेसी नेता हूँ.
गांधी का नेहरू का और इंदिरा का वारिस हूँ.
मैं वारिस हूँ १८५७ की क्रान्ति का,
जलियाँवाला का और १९४२ के आन्दोलन का...
पुरुषोत्तम पाण्डेय
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"रिश्ते"
मौसम की तरह रंग बदलते यह बेलिबास रिश्ते,
वक़्त की आँधियों में ना जाने कहॉ खो जाते हैं,
हम रिश्तों की चादर ओढ़े हुये ऐसे मौसम में ,
दिल को यह समझाए चले जाते हैं,...
vandana gupta
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स्वर्गनहीं, यह यात्रा वृत्तान्त नहीं है और अभी स्वर्ग के वीज़ा के लिये आवेदन भी नहीं देना है। यह घर को ही स्वर्ग बनाने का एक प्रयास है जो भारत की संस्कृति में कूट कूट कर भरा है। इस स्वर्गतुल्य अनुभव को व्यक्त करने में आपको थोड़ी झिझक हो सकती है, मैं आपकी वेदना को हल्का किये देता हूँ...
प्रवीण पाण्डेय
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परिचयनामा
डा. शाश्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. हमारी आपसे अनेको बार फ़ोन पर बात होती रही है. इस बार की झुलसाने वाली गर्मी मे हमने रुख किया नैनीताल का और रास्ते मे हम मिले डा. शाश्त्री जी से जहां यह इंटर्व्यु सम्पन्न हुआ. आईये अब आपको मिलवाते हैं इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी से...
ताऊ डाट इन
--
छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके,
छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके,
मेरे ही गम का मुझको - औज़ार बनाके,
तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
यादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके...
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अजब सी ये उलझन
अजब सी ये उलझन, कुछ अलग कशमकश है.
जहर से भी घातक मोहोब्बत का रश है.
संभल जाऊं खुद मै या, संभालूं इस दिल को.
अब नहीं जोर चलता और नहीं चलता वश है.
अरुन शर्मा 'अनन्त'
--
दोहा छंद...
कुछ दोहे मेरी कलम से.....
बड़ा सरल संसार है , यहाँ नहीं कुछ गूढ़
है तलाश किसकी तुझे,तय करले मति मूढ़.
--
गाथा हिंदुस्तान की
घटती बढती महिमा सबकी, घटी नहीं बेईमान की |
सतयुग,त्रेता,कलियुग सबमें,-सदा चली बेईमान की |
देवभूमि भगवान की,-ये गाथा हिन्दुस्तान की |...
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आज के नेता...
एक अरब लोगों को पागल बना रहे है
अलग अलग पार्टी बनाकर
हमे आपस में लडवाकर
अपना मतलब निकाल रहे है,
कर रहे है बड़े बड़े घोटाले...
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
--
“गीत मेरा:- स्वर-अर्चना चावजी का...”
आज सुनिए मेरा यह गीत!
इसको मधुर स्वर में गाया है -
अर्चना चावजी ने!
मंजिलें पास खुद, चलके आती नही!
अब जला लो मशालें, गली-गाँव में,
रोशनी पास खुद, चलके आती नही।
राह कितनी भले ही सरल हो मगर,
मंजिलें पास खुद, चलके आती नही।।
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कार्टून: भौंदू भाई ,एक बार मुस्कुरा के तो देख...
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आज के लिए केवल इतना ही...!
आगे देखिए...कुछ अद्यतन लिंक
"रविकर का कोना"
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Randhir Singh Suman
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Virendra Kumar Sharma
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वाणी गीत
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anjana dayal
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(अ)"काव्यानुवाद-My Dad Wishes" (अनुवादक-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
My Dad Wishes
Samphors Vuth
अनुवादक-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पिता की आकांक्षाएँ
(काव्यानुवाद)
मेरे साथ सदा अच्छा हो,
यही कामना करते हो।
नहीं लड़ूँ मैं कभी किसी से,
यही भावना भरते हो।।
(आ)
"आम डाल के-अपनी बालकृति-हँसता गाता बचपन से" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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आपकी प्रविष्टियों की प्रतीक्षा है
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंतसल्ली हुई
सारे पसंदीदा लिंक्स मिले आज भी
भैय्या जी और मेरी पसंद एक जैसी है
तभी तो हम भाई-बहन हैं
सादर
यशोदा
नमस्कार मित्रों।
जवाब देंहटाएंआज रात तक घर पहुँच जाऊँगा।
इतने सारे पुराने सूत्रों को देख ब्लॉगयात्रा याद आ गयी, आभार।
जवाब देंहटाएंविस्तृत फलक और विविध तेवर लिए आये तमाम सेतु औ कोने। आभार एक कोने में हमें भी बसाने के लिए। ॐ शान्ति
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है कविता और चित्र दोनों रसीले सावर।
जवाब देंहटाएं(आ)
"आम डाल के-अपनी बालकृति-हँसता गाता बचपन से" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
हँसता गाता बचपन
सब घबराहट नाहक है, धरती बड़ी नियामक है
जवाब देंहटाएंइस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
पोल खोलती ढोल की सार्तःक प्रस्तुति
इस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
दोहों में दर्शन भरा ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर खिले पलाश
कुछ दोहे मेरी कलम से.....
बड़ा सरल संसार है , यहाँ नहीं कुछ गूढ़
है तलाश किसकी तुझे,तय करले मति मूढ़.
बधाई क्या बधाई नामा। अभिनव ब्लॉग की नै परवाज़।
जवाब देंहटाएंस्वर्गनहीं, यह यात्रा वृत्तान्त नहीं है और अभी स्वर्ग के वीज़ा के लिये आवेदन भी नहीं देना है। यह घर को ही स्वर्ग बनाने का एक प्रयास है जो भारत की संस्कृति में कूट कूट कर भरा है। इस स्वर्गतुल्य अनुभव को व्यक्त करने में आपको थोड़ी झिझक हो सकती है, मैं आपकी वेदना को हल्का किये देता हूँ...
प्रवीण पाण्डेय
बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स
निखरी हुई चर्चा में "
जवाब देंहटाएंउल्लूक" का सूत्र भी
दिखाने के लिये आभार !
बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय गुरुदेव श्री, मेरे शुरुवाती दौर की दो रचनाएँ आपने चर्चा मंच पर साझा की इस हेतु हार्दिक आभार, आज काफी समय बाद ये रचनाएँ पढ़ रहा हूँ और हैरान हूँ ये मैंने लिखी थी, कथ्य, शिल्प भाव सब डामाडोल हैं इन दोनों रचनाओं में. ह्रदय तल से आभार आपका.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा ...आभार
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत बढिया चर्चा और सुंदर लिंक्स.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत अच्छे लिंक्स...आभार
जवाब देंहटाएंarey vaah............ meri post bhi shaamil hai..... aapka saadar dhnyvaad ...
जवाब देंहटाएंMeri Dilli ko yahan jagah dene ke liye bahot shukriya!
जवाब देंहटाएं