शुभम दोस्तों
मैं
सरिता भाटिया
हाजिर हूँ
चर्चामंच 1349
पर
|
आज की सोमवारीय चर्चा
के साथ
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खुदा नहीं देंगे
न माँ बंट जाए
.
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यह सब समझते हैं
आओ गति दें
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खुद को खुद से
अबू खां की बकरी
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गर बुरा हूँ
ब्लॉग प्रसारण
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कौसानी के रास्ते में
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हिम पर्वत
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एक मेरी पसंद सुनते हुए
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बड़ों को नमस्कार
छोटों को प्यार दीजिए इज़ाज़त .. शुभविदा .. "मयंक का कोना" अद्यतन लिंक -- लन्दन की फ़ज़ाओं में लंदन की फ़ज़ाओं में मदहोस मोहब्बत है लंदन की सदाओं में थेम्स की नज़ाकत है... Zindagi se muthbhed -- हमसाया सादर ब्लॉगस्ते! पर raviish 'ravi' -- न जाने क्यों ? फिर क़यामत के प्यार लिख डाला। और फिर ऐतबार लिख डाला।। लिखना चाहा उसे जभी दुश्मन, न पता कैसे यार लिख डाला... Tere bin पर Dr.NISHA MAHARANA -- गीले मोबाइल को कैसे सुखाएं तकनीक शिक्षा हब पर Lalit Chahar -- "सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए"
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत
"सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए"
प्रेम-प्रीत के चक्कर में पड़,
सीमाएँ मत पार कीजिए।
वैलेन्टाइन के अवसर पर,
सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए।।
-- शीलवंत सबसे बड़ा ,सब रत्नों की खान , तीन लोक की संपदा ,रही शील में आन। आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma -- धीरे-धीरे धीरे - धीरे दरक जाएंगी सम्बन्धों की दीवारें प्यार रिश्ते और फूल बिखर जाएँगे न धरती बचेगी न धात्री कोशिका की देह .. शब्द सक्रिय हैं पर सुशील कुमार -- "खरगोश"
रूई जैसा कोमल-कोमल,
लगता कितना प्यारा है।
बड़े-बड़े कानों वाला,
सुन्दर खरगोश हमारा है।।
उच्चारण-- पाँच ( दोहे ) काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया -- सीधा साधा एक लड़का था कभी मेरे स्कूल में भी पढ़ता था पक्ष की कर नहीं तो विपक्ष की ही कर सरकार की कर नहीं तो उसके ही किसी एक अखबार की कर बात करनी है तुझे अगर कुछ तो इनमें से किसी एक के ही कारोबार की कर किसने कहा था गाँव के स्कूल को छोड़ के बडे़ शहर के बडे़ स्कूल में चला .. उल्लूक टाईम्स पर सुशील -- विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक - "लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर -- खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा -
विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक |
नामुराद वे आदतन, करते पूरा शौक |
करते पूरा शौक, छौंक शेखियाँ बघारें |
बात करें अटपटी, हमेशा डींगे मारें...
रविकर की कुण्डलियाँ पर रविकर-- न माँ बँट जाए आपका ब्लॉग पर Sriram Roy -- श्रीमदभागवत गीता (श्लोक ५६ और उससे आगे ) दुःख से जिसका मन उद्विग्न नहीं होता ,सुख की जिसकी आकांक्षा नहीं होती तथा जिसके मन से राग ,भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं ,ऐसा मुनि स्थित प्रज्ञ कहा जाता है। हमारा मन ही कामनाओं की फेक्टरी है। कामनाएं भले मन ,इन्द्रिय ,और बुद्धि में भी रहती हैं। लेकिन वहां ये ऐसे पड़ी रहती हैं जैसे गोदाम में चीज़ें।जब तक हम पदार्थ पर निर्भर रहते हैं भगवान् तक नहीं पहुँच पाते... आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma -- 'अब्बू खां की बकरी' भी उन से अच्छी है...सहबा जाफ़री आज़ादी की कीमत उन चिड़ियों से पूछो जिनके पंखों को कतरा है, आ'म रिवाज़ों ने आज़ादी की कीमत, उन लफ़्ज़ों से पूछो जो ज़ब्तशुदा साबित हैं सब आवाज़ों में आज़ादी की क़ीमत, उन ज़हनों से पूछो जिनको कुचला मसला है... मेरी धरोहर पर yashoda agrawal -- क्या हमारे यहाँ सही अर्थों में लोकतन्त्रिक व्यवस्था लागू है? हम लोग अपने सांसद-विधायकों को चुनते हैं. पहली बात तो यह कि मतदान का प्रतिशत औसत ४०-४५% रहता है. उसके बाद इसमें आधे से अधिक मत जीतने वाले के अलावा अन्य प्रत्याशियों में बंट जाते हैं, मतलब यह कि कुल मतों का १५-२०% पाने वाले प्रत्याशी को जीत हासिल हो जाती है, फिर इसका ५१% वाले सत्ता पा जाते हैं. सार यह कि सत्ता किसे देनी है यह कुल मतों के दसवें हिस्से से निर्धारित होता है.... भारतीय नागरिक -- कार्टून :- आतंकियों के लिए स्वास्थ्य सेवा योजना Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून |
सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंकविता मंच में किसी भी प्रकार की कविता आमंत्रित है और हमारा अतीत में हमारी प्राचीन संस्कृति सभ्यता धर्म व देश से संबंधित रचनाएं आमंत्रित है। ये दोनों ही सामूहिक ब्लौग है। कोई भी इनका रचनाकार बन सकता है। इन दोनों ब्लौगों का उदेश्य अच्छी रचनाओं का संग्रहण करना है। कविता मंच पर उजाले उनकी यादों के अंतर्गत पुराने कवियों की रचनआएं भी आमंत्रित हैं। आप kuldeepsingpinku@gmail.com पर मेल भेजकर इसके सदस्य बन सकते हैं। प्रत्येक रचनाकार का हृद्य से स्वागत है।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार आप दोनों को
एक ही मंच मे सहबा ज़ाफरी की रचना दो बार
सरिता दीदी
और मयंक भैय्या दोनों नें मेरी पसंद को सराहा
आभार
सादर
बढ़िया चर्चा आज |
जवाब देंहटाएंआशा
सुप्रभात...आप सबका दिन मंगलमय हो..!
जवाब देंहटाएं--
छोटी और संक्षिप्त चर्चा को मैंने थोड़ा विस्तार दे दिया।
आभार सरिता भाटिया जी आपका।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक सयोजन बढ़िया चर्चा मंच, मेरी पोस्ट को शामिल करने के किये आभार।
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी
जवाब देंहटाएंजनता जब लोकतंत्र से है हारी
अब हम कर सकते हैं
बस आपसे ही गुजारिश !
आभार डा. रूप चंद्र शास्त्री जी का
हेम मिश्रा की गिरफ्तारी के विरोध के लिये लिखे गये कुछ शब्दों
"सीधा साधा एक लड़का था
कभी मेरे स्कूल में भी पढ़ता था" को
आपने चर्चा के कोने में स्थान देकर अनुग्रहीत किया
अल्मोड़ा शहर का ये बच्चा सकुशल पुलिस की गिरफ्त से लौटे
आपके इस आशीर्वाद के लिये अल्मोड़ा आपका आभारी रहेगा !
रोचक पठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंवासना से प्रेम की ओर जाने का मार्ग बतलाती रचना।
जवाब देंहटाएंधड़कन जैसे बँधी साँस से,
ऐसा गठबन्धन कर लो,
पानी जैसे बँधा प्यास से,
ऐसा परिबन्धन कर लो,
सच्चे प्रेमी बन साथी से,
अपनी आँखें चार कीजिए।।
वैलेन्टाइन के अवसर पर,
सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए।।
सुन्दर प्रेम गीत। प्रेम पाठ कहिये इसे।
सुन्दर सुन्दर सेतु संजोये ,उनमें हमको भी दिखलाया ,
जवाब देंहटाएंकरें शुक्रिया उनका दिल से जिनने है परवान चढ़ाया।
बढ़िया व्यंग्य बाण।
जवाब देंहटाएंसीधा साधा एक लड़का था
कभी मेरे स्कूल में भी पढ़ता था
पक्ष की कर नहीं तो विपक्ष की ही कर सरकार की कर नहीं तो उसके ही किसी एक अखबार की कर बात करनी है तुझे अगर कुछ तो इनमें से किसी एक के ही कारोबार की कर किसने कहा था गाँव के स्कूल को छोड़ के बडे़ शहर के बडे़ स्कूल में चला ..
उल्लूक टाईम्स पर सुशील
बहुत अच्छा है निशाना .एक दम से सटीक .कपड़ो के नीचे देखोगे वो ही काया .
जवाब देंहटाएंदेकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे-
कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल |
पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल |
कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों |
व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |
मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे ॥
जवाब देंहटाएंलाल किला होता कहाँ ,कहाँ ताज का नूर|
दुनियाँ में होते नहीं , अगर कहीं मजदूर||
बाल न बांका कर सका, विपत्तियों की आग|
मेरे जीवन का कवच, मेरी माँ का त्याग||
भाव और अर्थ सौन्दर्य से भर पूर दोहे।
कपड़ों को सिर्फ कपड़ों को देखकर कोई समाज कैसे रिएक्ट करता है यह उस समाज की सीविलिटी ,नागर बोध का सूचक है। भारतीय समाज आज भी आदम स्थिति में है।अभी भी चड्डी का नाप ले रहा है। उसके लिए एक और आकर्षक शब्द निकाल रहा है -क्वाटर पेंट।
जवाब देंहटाएंअध्यात्म जीवन से विलुप्त हो चुका है। कौन बतलाये ये सुन्दर काया भी प्रतिक्षण बदल रही है। इसे भोगकर भी क्या पाओगे हद का सुख। अरे सुख ही पाना है तो पाओ बे -हद का सुख। पर पहले शरीर भोग से ऊपर उठना होगा। शरीर तो जानवर भी खुली सड़क पे भोग लेते हैं। कभी अन्दर का अन्तर्मुखता का रस लेके देख बावले। बढ़ता जाएगा ये रस संसार का रस तो छीजता जाता है। ऊपर से नीचे की ओर आता है ,लाता है यह आनंद तो बढ़ता जाता है। नीचे से ऊपर ले जाता है ऊर्ध्व गामी बनाता है।
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विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक -
कपड़ों को सिर्फ कपड़ों को देखकर कोई समाज कैसे रिएक्ट करता है यह उस समाज की सीविलिटी ,नागर बोध का सूचक है। भारतीय समाज आज भी आदम स्थिति में है।अभी भी चड्डी का नाप ले रहा है। उसके लिए एक और आकर्षक शब्द निकाल रहा है -क्वाटर पेंट।
जवाब देंहटाएंअध्यात्म जीवन से विलुप्त हो चुका है। कौन बतलाये ये सुन्दर काया भी प्रतिक्षण बदल रही है। इसे भोगकर भी क्या पाओगे हद का सुख। अरे सुख ही पाना है तो पाओ बे -हद का सुख। पर पहले शरीर भोग से ऊपर उठना होगा। शरीर तो जानवर भी खुली सड़क पे भोग लेते हैं। कभी अन्दर का अन्तर्मुखता का रस लेके देख बावले। बढ़ता जाएगा ये रस संसार का रस तो छीजता जाता है। ऊपर से नीचे की ओर आता है ,लाता है यह आनंद तो बढ़ता जाता है। नीचे से ऊपर ले जाता है ऊर्ध्व गामी बनाता है।
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
कपड़ों से फर्क पड़ता है
मुम्बई में महिला पत्रकार के साथ हुए गैंग रेप हादसे के बाद कुछ नेताओं ने कहा, महिलाओं को कपड़े पहनने के मामले में थोड़ा सा विचार करना चाहिए। यकीनन यह बयान महिलाओं की आजादी छीनने सा है। अगर दूसरे पहलू से सोचें तो इसमें बुरा भी कुछ नहीं, अगर थोड़ी सी सावधानी, किसी बुरी आफत से बचा सकती है तो बुराई कुछ भी नहीं। हमारे पास आज दो सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने वाले वाहन हैं, लेकिन अगर हर कोई इस सपीड पर कार चलाएगा तो हादसे होने संभव है। ऐसे में अगर कोई गाड़ी संभलकर चलाने की बात कहे तो बुरा नहीं मानना चाहिए। देश का ट्रैफिक, सड़कें भी देखनी होगी, केवल स्पीड देखने भर से काम तो नहीं हो सकता। ऐसी सलाह देश के कुछ नागरिकों को बेहद नागवार गुजरती है, लेकिन आग के शहर में मोम के कपड़े पहनना भी बेवकूफी से कम न होगा। हमें कहीं न कहीं समाज को देखना होगा, उसके नजरिये को समझना होगा। जब हर कदम पर सलीब हो, और हर तरफ अंधेरा फैला हो, तो यकीनन हर कदम टिकाते समय बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी, पहले टोह लगानी पड़ेगी है, नीचे सलीब तो नहीं, एक दम दौड़कर निकलने वाले अक्सर लहू लहान होते हैं। देश की सरकार को कोसने भर से, देश की उन लड़कियों की आबरू वापसी नहीं आ सकती, जो हवश के तेज धार हथियार से घायल हो चुकी हैं। दिल्ली से मुम्बई तक। देश का शायद ही कोई कोना इससे बचा हो। ऐसा नहीं कि सेक्सी कपड़े पहनने वाली बालाओं को निशाना बनाया जाता है, लेकिन देश के ऐसे भी कई हिस्से हैं, जहां फैशन नाम की चिड़िया ने दस्तक नहीं दी। और वहां पर भी हादसे होते हैं। उसके भी कई कारण हैं, सबसे पहला कारण कमजोर कानून और सामाजिक प्रभाव, आम बोल चाल का हो, या सिनेमा हाल का।
अर्थ और भाव सौन्दर्य पूर्ण बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएं--
न माँ बँट जाए
चिल्लाओ मत इतना;
कान के पर्दे फट जाए ।
हिन्दुस्तान वतन है अपना;
आपस में न माँ बँट जाए ॥
अर्थ और पशुप्रेम से संसिक्त बढ़िया रचना। सुन्दर सरल सीख देती रचना।
जवाब देंहटाएं--
"खरगोश"
रूई जैसा कोमल-कोमल,
लगता कितना प्यारा है।
बड़े-बड़े कानों वाला,
सुन्दर खरगोश हमारा है।।
उच्चारण
अर्थ और पशुप्रेम से संसिक्त बढ़िया रचना। सुन्दर सरल सीख देती रचना।
जवाब देंहटाएंनिस्स्वार्थ प्रेम का मानवीय रूप है मूर्तन है यह प्रेम मिलन।
न जाने क्यों ?
पता नहीं क्या बात थी
वो हमारी पहली और अंतिम मुलाकात थी
हम कुछ वक्त एक दूसरे के साथ रहे
कुछ उनकी सुनी
कुछ अपनी सुनाई
बिछुड़ते वक्त वो थीं -----एक तरफ खड़ी
अचानक मेरे गले से आ लगीं,… फिर ----
न जाने क्यों ?
उनकी आँखें छलक पड़ीं
बरसों बाद कोई औरत मुझे
मेरी माँ जैसी लगीं
न जाने क्यों ?
निस्स्वार्थ प्रेम का मानवीय रूप है मूर्तन है यह प्रेम मिलन।
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों ?
पता नहीं क्या बात थी
वो हमारी पहली और अंतिम मुलाकात थी
हम कुछ वक्त एक दूसरे के साथ रहे
कुछ उनकी सुनी
कुछ अपनी सुनाई
बिछुड़ते वक्त वो थीं -----एक तरफ खड़ी
अचानक मेरे गले से आ लगीं,… फिर ----
न जाने क्यों ?
उनकी आँखें छलक पड़ीं
बरसों बाद कोई औरत मुझे
मेरी माँ जैसी लगीं
न जाने क्यों ?
सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार मेरे लिखे को सम्मान और स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंbahut sundar .......dhanyavad n aabhar ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित चर्चा सरिता जी बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप को चर्चाकार के रूप में शामिल किया जाता है। आपको किस दिन चर्चा करनी पसंद है। और हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
हटाएंक्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप को चर्चाकार के रूप में शामिल किया जाता है। आपको किस दिन चर्चा करनी पसंद है। और हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
हटाएंबहुत सुंदर लिंक्स,,,सरिता जी,
हटाएंमेरी रचना को मंच में शामिल करने के लिए आभार,,,शास्त्री जी...
RECENT POST : पाँच( दोहे )
मेरी इस रचना '' गर बुरा हूँ मुझे बुरा कहिए '' को अपने मंच पर स्थान स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया सरिता भाटिया जी !
जवाब देंहटाएं