पहली पोस्ट सभी को प्यारी होती है..नई जगह नये लोग..
मेरी कोशिश यही रहेगी कि खरी उतरूँ...
कुछ शुरुआती लिंक्स प्रसंगिक है
कुछ शुरुआती लिंक्स प्रसंगिक है
आज ईद का दिन है
आइये देखें कुछ प्रासंगिक लिंक्स
भाइयो मिलकर मनाओ ईद
दिल में न रह जाए कसक और फिकर
गर गरीबी में दबा हो कोई बन्दा
बाँट फितरा दिखा उसको भी जिगर
मेरे लिए ईद का मतलब ग़ालिब का यह शेर होता है.........
हमें क्या वास्ता ग़ालिब, ज़माने भर की ईदों से ।
हमारा चाँद दिख जाये, हमारी ईद हो जाये ।।
हिन्दू भी रखते हैं रोज़ा......चन्दन भाटी
सरहद पार रह रहे हिंदू-मुस्लिम परिवारों के रीति रिवाजों में भी कोई ज्यादा फर्क नही हैं। इनकी शादी-विवाह, मृत्यु, त्योहार,
खान-पान पहनावा तथा भाषा भी एक जैसे हैं।
हिंदू परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे भी रोजे रखते हैं।
सदा की "सदा"
पाक़ीजा रस्म
निभाओ गले मिल
ईद के दिन
सारी दुनियाँ को मुबारक हो रमज़ान का महीना
अल्लाह की इबादत हो, हो खुशिओं का ये महीना
ऐ ख्वाज़ा सलीम चिश्ती तू दुआओं से हाथ भर दे
तू दुनियाँ पे करम कर दे, ले ख्वाबों का मदीना
खुदा का इनाम है 'ईद-उल फितर'.....प्रस्तुति : बुरहानुद्दीन शकरूवाला
रमजान माह के रोजे को एक फर्ज करार दिया गया है,
ताकि इंसानों को भूख-प्यास का महत्व पता चले।
भौतिक वासनाएं और लालच इंसान के वजूद से
जुदा हो जाए और इंसान कुरआन के अनुसार अपने को ढाल लें।
है आबिदों को त‘अत-ओ-तजरीद की ख़ुशी
और ज़ाहिदों को जुहाद की तमहीद की ख़ुशी
रिन्द आशिकों को है कई उम्मीद की ख़ुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी
घर-घर को कर रही है मुअत्तर हवा ए ईद
सूझे न आज और तो कुछ भी सिवाए ईद
खुशहाल ज़िन्दगी हो, मुबारक हो हर घड़ी
सौग़ात है यही मेरी सब को बराए ईद
उपरोक्त लिंक्स प्रासंगिक हैं
इनके अलावा भी कुछ साहित्यिक लिंक्स कुछ हैं
जो आपकी नज़र करती हूँ
रोज सुबह सुबह जब मैं
अपनी अँजुरी में भर लेती हूँ
ओस से भीगे छोटे छोटे
उजली पंखुड़ियों केसरी डंडी वाले
पारिजात के इन फूलों को
परमात्मा ने मनुष्य को दिये हैं
कई रतन,
आत्मा, बुद्धि, तन और मन।
सुनो !!
मैं
आज
जरा भी नही रोई
जानते हो क्यूं???
खूब खटय्या खूब नचय्या
मचर-फचर फींच फिंचय्या
ताथा ताथा ताथा थइय्या
नीला पीला लाल गझीला
बात करोगी ना मुझसे
" मत करो ना मुझे इतनी रात को फ़ोन । कहा था न मेरी तबियत ठीक नही हैं और आपको कोई फर्क नही पढ़ता रूमानियत का आलम इस कदर छाया हैं तुम पर के तुम न वक़्त देखते हो न माहौल . बस सेल फ़ोन मिलाया और कैसी हो तुम !!!!
दिल डूब रहा इश्क में, ये क्या इश्कियाँ है ?
न कोई ख़तावार,आँखों की गुस्ताखियाँ है॥
कल तलक न जानते पहचानते, थे हम जिसे,
आज उन्हीं से ही, फ़िज़ा की रंगीनियाँ है ॥
ना पर्वत श्रंखलाएं
एक ऊंचाई की होती
ना सारी नदियाँ
एक गति से बहती
ये लड़कियां -सतीश सक्सेना
और आज जब मैं किसी बहिन को,
अपने भाई के ड्राइंग रूम में,
मेहमान की तरह बैठे देखता हूँ
तब मुझे बेहद तकलीफ होती है !
सोच रही ....
डर जाना कहो
हार जाना कहो
जज़्बात का ह्रास कहो
सुनता कौन है
जिससे कुछ कहूँ
अमन का चमन है वतन ये हमारा।
नही दानवों का यहाँ है गुजारा।।
खदेड़ा है गोरों को हमने यहाँ से,
लहू दान करके बगीचा सँवारा।
परीक्षा की घड़ी
उतरती हूँ मैं
देखें कितनी खरी
यशोदा के नमन
"मयंक का कोना" कुछ अद्यतन लिंक
(1)
दिल से जुड़े हुए लोग
तमाशा-ए-जिंदगी पर तुषार राज रस्तोगी
(2)
सभी प्यारे दोस्तों को रमज़ानी ईद मुबारक़
Hasya Kavi Albela Khatri
(3)
(क)
जय भगवत गीते ! जय भगवत गीते !
हरि हिय कमल विहारिणि सुन्दर सुपुनीते !
(ख)
इन सेकुलरिष्टों को सेकुलैरिटी ही खायेगी
प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma
(ग)
"ईद मुबारक"
(घ)
कवि से आह्वान
"वेब कैम की शान निराली-
बालकृति-हँसता गाता बचपन से"
पता है तुम टीम बनाने वालों में आते हो
देश प्रेमियों में भी पहले गिने जाते हो
उल्लूक टाईम्स पर सुशील
(6)
ह्रदय की घाटी
*छू न पायेंगे ह्रदय की घाटियों को*
* ग्रीष्म के उजले फुएं से मेह.*
*ओ हवाओं इन फुओं को ले**
*उड़ाओ *
झलकने दो शांत नभ का नेह...
समय से यूं हूँ परे ..पर Manjula Saxena
(7)
आइये देखें कुछ प्रासंगिक लिंक्स
भाइयो मिलकर मनाओ ईद
दिल में न रह जाए कसक और फिकर
गर गरीबी में दबा हो कोई बन्दा
बाँट फितरा दिखा उसको भी जिगर
मेरे लिए ईद का मतलब ग़ालिब का यह शेर होता है.........
हमें क्या वास्ता ग़ालिब, ज़माने भर की ईदों से ।
हमारा चाँद दिख जाये, हमारी ईद हो जाये ।।
हिन्दू भी रखते हैं रोज़ा......चन्दन भाटी
सरहद पार रह रहे हिंदू-मुस्लिम परिवारों के रीति रिवाजों में भी कोई ज्यादा फर्क नही हैं। इनकी शादी-विवाह, मृत्यु, त्योहार,
खान-पान पहनावा तथा भाषा भी एक जैसे हैं।
हिंदू परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे भी रोजे रखते हैं।
सदा की "सदा"
पाक़ीजा रस्म
निभाओ गले मिल
ईद के दिन
सारी दुनियाँ को मुबारक हो रमज़ान का महीना
अल्लाह की इबादत हो, हो खुशिओं का ये महीना
ऐ ख्वाज़ा सलीम चिश्ती तू दुआओं से हाथ भर दे
तू दुनियाँ पे करम कर दे, ले ख्वाबों का मदीना
खुदा का इनाम है 'ईद-उल फितर'.....प्रस्तुति : बुरहानुद्दीन शकरूवाला
रमजान माह के रोजे को एक फर्ज करार दिया गया है,
ताकि इंसानों को भूख-प्यास का महत्व पता चले।
भौतिक वासनाएं और लालच इंसान के वजूद से
जुदा हो जाए और इंसान कुरआन के अनुसार अपने को ढाल लें।
है आबिदों को त‘अत-ओ-तजरीद की ख़ुशी
और ज़ाहिदों को जुहाद की तमहीद की ख़ुशी
रिन्द आशिकों को है कई उम्मीद की ख़ुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी
घर-घर को कर रही है मुअत्तर हवा ए ईद
सूझे न आज और तो कुछ भी सिवाए ईद
खुशहाल ज़िन्दगी हो, मुबारक हो हर घड़ी
सौग़ात है यही मेरी सब को बराए ईद
उपरोक्त लिंक्स प्रासंगिक हैं
इनके अलावा भी कुछ साहित्यिक लिंक्स कुछ हैं
जो आपकी नज़र करती हूँ
रोज सुबह सुबह जब मैं
अपनी अँजुरी में भर लेती हूँ
ओस से भीगे छोटे छोटे
उजली पंखुड़ियों केसरी डंडी वाले
पारिजात के इन फूलों को
परमात्मा ने मनुष्य को दिये हैं
कई रतन,
आत्मा, बुद्धि, तन और मन।
सुनो !!
मैं
आज
जरा भी नही रोई
जानते हो क्यूं???
खूब खटय्या खूब नचय्या
मचर-फचर फींच फिंचय्या
ताथा ताथा ताथा थइय्या
नीला पीला लाल गझीला
बात करोगी ना मुझसे
" मत करो ना मुझे इतनी रात को फ़ोन । कहा था न मेरी तबियत ठीक नही हैं और आपको कोई फर्क नही पढ़ता रूमानियत का आलम इस कदर छाया हैं तुम पर के तुम न वक़्त देखते हो न माहौल . बस सेल फ़ोन मिलाया और कैसी हो तुम !!!!
दिल डूब रहा इश्क में, ये क्या इश्कियाँ है ?
न कोई ख़तावार,आँखों की गुस्ताखियाँ है॥
कल तलक न जानते पहचानते, थे हम जिसे,
आज उन्हीं से ही, फ़िज़ा की रंगीनियाँ है ॥
ना पर्वत श्रंखलाएं
एक ऊंचाई की होती
ना सारी नदियाँ
एक गति से बहती
ये लड़कियां -सतीश सक्सेना
और आज जब मैं किसी बहिन को,
अपने भाई के ड्राइंग रूम में,
मेहमान की तरह बैठे देखता हूँ
तब मुझे बेहद तकलीफ होती है !
सोच रही ....
डर जाना कहो
हार जाना कहो
जज़्बात का ह्रास कहो
सुनता कौन है
जिससे कुछ कहूँ
अमन का चमन है वतन ये हमारा।
नही दानवों का यहाँ है गुजारा।।
खदेड़ा है गोरों को हमने यहाँ से,
लहू दान करके बगीचा सँवारा।
परीक्षा की घड़ी
उतरती हूँ मैं
देखें कितनी खरी
यशोदा के नमन
"मयंक का कोना" कुछ अद्यतन लिंक
(1)
दिल से जुड़े हुए लोग
तमाशा-ए-जिंदगी पर तुषार राज रस्तोगी
(2)
सभी प्यारे दोस्तों को रमज़ानी ईद मुबारक़
Hasya Kavi Albela Khatri
(3)
(क)
जय भगवत गीते ! जय भगवत गीते !
हरि हिय कमल विहारिणि सुन्दर सुपुनीते !
(ख)
इन सेकुलरिष्टों को सेकुलैरिटी ही खायेगी
प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma
(ग)
"ईद मुबारक"
(घ)
कवि से आह्वान
हे कवि अपनी कलम के आज फिर जौहर दिखा दो ।
रचो कवितायें नयी एक क्रांति तुम फिर से जगा दो...
प्रस्तुतकर्ता shyama arora
(ड.)
क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में...
प्रस्तुतकर्ता मदन मोहन सक्सेना
(च)
खुदा का इनाम है 'ईद-उल फितर'.....
प्रस्तुति : बुरहानुद्दीन शकरूवाला
यशोदा दिग्विजय अग्रवाल
(4)प्रस्तुतकर्ता मदन मोहन सक्सेना
(च)
खुदा का इनाम है 'ईद-उल फितर'.....
प्रस्तुति : बुरहानुद्दीन शकरूवाला
यशोदा दिग्विजय अग्रवाल
"वेब कैम की शान निराली-
बालकृति-हँसता गाता बचपन से"
"वेबकैम पर हिन्दी में प्रकाशित
पहली बाल रचना"
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वेबकैम की शान निराली।
करता घर भर की रखवाली।।
दूर देश में छवि पहुँचाता।
यह जीवन्त बात करवाता।।
(5)पता है तुम टीम बनाने वालों में आते हो
देश प्रेमियों में भी पहले गिने जाते हो
उल्लूक टाईम्स पर सुशील
(6)
ह्रदय की घाटी
*छू न पायेंगे ह्रदय की घाटियों को*
* ग्रीष्म के उजले फुएं से मेह.*
*ओ हवाओं इन फुओं को ले**
*उड़ाओ *
झलकने दो शांत नभ का नेह...
समय से यूं हूँ परे ..पर Manjula Saxena
(7)
शुभप्रभात
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार छोटी बहना
लिखना सार्थक हुआ
हार्दिक शुभकामनायें
सब को ईद मुबारक हो |आप सफल कैसे न होगी आप महनती जो हैं आपकी महानत रंग लाती है |बधाई बढ़िया लिंक्स के लिए |
जवाब देंहटाएंआशा
"ईद मुबारक" के साथ हरियाली तीज की भी शुभकामनाएँ...!
जवाब देंहटाएं--
बहन यशोदा दिग्विजय अग्रवाल जी आपने अपनी पहली ही चर्चा में मेरे लिए ईद का मतलब ग़ालिब का यह शेर होता है :चर्चा मंच 1332 ....में आज शुक्रवार (09-08-2013) को बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी है...!
आपका अभिनन्दन और स्वागत है,,,!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ईद की मुबारक आप सबों को....बेहतरीन चर्चा..
जवाब देंहटाएंआप को इस मंच पर देख कर हर्ष हुआ।... आप वासतव में साहित्य के अच्छे पारखी हैं।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंगुरुदेव भाई मयंक जी
कमाल तो आपने किया
सच में आप हकदार हैं
आपको मैं " ब्लागों के बादशाह " का ताज पहनाती हूँ
सादर
बहुत सुन्दर है शाष्त्री जी !आ मिल गले तू भी 'सेकुलर' ,तू मिले तो मेरी भी ईद हो।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा ईद के मौके पर
जवाब देंहटाएंनिखर रही है सभी को
ईद मुबारक जैसे
कह ले जा रही है
आभार है शास्त्री जी आपका
उल्लूक की सोच मयंक के
कोने में दिखलाई जा रही है !
बहुत सुन्दर है शाष्त्री जी !आ मिल गले तू भी 'सेकुलर' ,तू मिले तो मेरी भी ईद हो।
जवाब देंहटाएं"ईद मुबारक"
मुबारक हो सबको बार बार ईद।
जवाब देंहटाएंखुशहाल ज़िन्दगी हो, मुबारक हो हर घड़ी
सौग़ात है यही मेरी सब को बराए ईद
बढ़िया मंथन है इस रचना में। मंथन क्या निष्कर्ष ही है। इसीलिए कहा गया है खुदा गंजे को नाखून न दे।
जवाब देंहटाएंबुद्धि का पात्र निर्मल हो तो सही ज्ञान बुद्धि में टिके। निर्णय करने की शक्ति है बुद्धि आत्मा की। आत्मा का सर्वर है सर्च इंजन हैं। दासी है आत्मा की बुद्धि। फिल वक्त कुंडली मार बैठ गई है आत्मा पर विकार संसिक्त संदूषित बुद्धि।
परमात्मा ने मनुष्य को दिये हैं
कई रतन,
आत्मा, बुद्धि, तन और मन।
eid mubarak!bahut dinon baad charcha manch par aayaa bahut achhaa lagaa ...meree rachna ko sthaan dene ke liye yashoda ji ko hrady se dhanywaad
जवाब देंहटाएंEid mubarak
जवाब देंहटाएंईद मुबारक आप सब को....बेहतरीन चर्चा..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंईद मुबारक आप सब को.
जवाब देंहटाएं