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शनिवार, अगस्त 03, 2013

गगन चूमती मीनारें होंगी

दोस्तों शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है इस बार की चर्चा में सिर्फ़ आपकी पोस्ट के टाइटल पर ही कमेंट किया है इसलिये पोस्ट से मैच नहीं भी कर सकता है क्योंकि थोडा कहीं कहीं हास्य का पुट भी दिया है



फिर शोर में दरारें होंगी

गगन चूमती मीनारें होंगी 





प्रेम


पूर्ण होकर भी अपूर्ण और अपूर्ण होकर भी पूर्ण 


दीजिये - जनाब!


प्रस्तुत कर ही दीजिये 


कौन है?


बस खुद मत घूमना 


फिर शोर में दरारें होंगी 


चांद तन्हा है आसमां तन्हा...


क्यों सारे सितारे कहाँ चले गये ?


शब्द मेरे .. : ...कविता उसकी ...!!!


तो हो गयी बात अनूठी 


रामजी यादव की कविताएँ


हाजिर हैं आपके लिये 


पढिये और गुनिये


और कर भी क्या सकते हैं 


ये कैसा लगा बाज़ार 


चलो तुम भी दो कदम


 किसका किससे ?


और जानना जरूरी नहीं 


सच में 


ये वक्त आयेगा मुझ पर भी कल 


 चलो पूरी करें 


तुम्हें याद करते करते जायेगी उम्र सारी



तेरी याद का दीप जला दिया 


जो उमस भी अपने साथ लाया है

विपिन चौधरी की कवितायें


आइये गुनिये 



कौन सी  कहानी कह गये 


आज की चर्चा को यहीं विश्राम देती हूँ ………फिर मिलेंगे 
"मयंक का कोना" कुछ अद्यतन लिंक 
(1)
उफ़!!! न कर....

 *उफ़! न कर तू अब लब सी ले ...
मिले ग़र ज़हर का प्याला आँख मूंद उसे पी ले ...
यादें...पर Ashok Saluja
(2)
अपने ई-मेल एकाउंट को हैक होने से कैसे बचाएं

 आज हम आपको कुछ ऐसे तरीकों के बारे में बताएंगे जिससे आप अपनी ई मेल को हैक होने से बचा सकते हैं। 1- हमेशा अपना पासर्वड कठिन रखें, पासवर्ड क्रिएट करते समय अपना या फिर अपने घरवालों के नाम का प्रयोग कभी न करें और न ही अपना फोन न.पासवर्ड के रूप में... ...
हिंदी पीसी दुनिया  परDarshan jangra
(3)
कलम के सिपाही

प्रेमचंद जयंती के अवसर पर 'कलम के सिपाही' को शत शत नमन। प्रेमचंद की हर कहानी अद्भुत है। मैं बच्चों को प्रेमचंद की कहानी समय समय पर सुनाना बहुत पसंद करती हूँ। पता नहीं आजकल के बच्चे उनकी कहानियों की सार्थकता समझ पाते है या नहीं...
kagad ki lekhi पर Reena Pant 
(4)
अब भी,मन करता है

अपनों का साथ पर Anju (Anu) Chaudhary 

(5)
"हमारी मातृभाषा" 

 काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से 
एक गीत 
"हमारी मातृभाषा...
"धरा के रंग"
(6)
गज़ल : मेरे बचपन....
ये माना चाल में धीमा रहा हूँ मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ 
बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ....
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) पर  अरुण कुमार निगम

(7)
"याद आती रही" 

दिन गुज़रते गये, रात जाती रही। 
खलबली ज़िन्दग़ी में मचाती रही।
उच्चारण

26 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    लाजवाब चर्चा
    बेहतरीन प्रस्तुतिकरण
    कायल हो गई
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा की बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपका आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया और सुरुचिपूर्ण चर्चा और लिंक्स |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए शुक्रिया . बाकी लिनक्स भी शानदार बन पड़े है .

    बहुत आभार

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर चर्चा मंच
    आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  7. achchhe links .meri rachna ko yahan sthan pradan karne hetu aabhar

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर लिंक्स,मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  9. वन्दना जी, चुटीले कमेंट के साथ प्रस्तुत विविध लिंक्स के लिए बधाई और आभार भी !

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर लिंक्स बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुतिआभार , और मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. आपके कमेंट के साथ अच्‍छी चर्चा...मेरी रचना के लि‍ए आभार

    जवाब देंहटाएं
  13. लालिमा तो कभी याद आती नहीं.
    कालिमा “रूप” अपना दिखाती रही।

    मधुर गीत ने मुग्ध कर दिया.......

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत-बहुत आभार इस स्नेह के लिए ...
    स्वस्थ रहें !

    जवाब देंहटाएं
  15. सभी लिंक रोचक और ज्ञानवर्धक हैं...
    हमारी तहरीर शामिल करने के लिए शुक्रिया...

    जवाब देंहटाएं

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