आज ही होनी थी गड़बड़ी
मेरे कम्प्यूटर में
फिर भी कुछ तो हासिल करूँगी ही
चलिये देखें क्या है आज....
मेरे कम्प्यूटर में
फिर भी कुछ तो हासिल करूँगी ही
चलिये देखें क्या है आज....
बात बिन बात की ,या बात थी बात की |
राज कोई खुला या खुली बात की ||
राज कोई खुला या खुली बात की ||
नन्द दुलारे यशोदा के प्यारे
सांवरे सलोने हे कृष्णा।
सांवरे सलोने हे कृष्णा।
तैयार हुआ हिंदू विश्वकोश
दुनिया के सबसे प्रमुख धर्मों में से एक हिंदू धर्म के विश्वकोश का
अगले हफ्ते साउथ कैरोलिना में लोकार्पण होगा।
यह अंग्रेजी में है। हिंदुवाद और इसके अनुशीलन से
दुनिया के सबसे प्रमुख धर्मों में से एक हिंदू धर्म के विश्वकोश का
अगले हफ्ते साउथ कैरोलिना में लोकार्पण होगा।
यह अंग्रेजी में है। हिंदुवाद और इसके अनुशीलन से
संबंधित इसमें करीब 7000 लेख हैं।
हदों में रहने वाले सरहदों की हदों से हैरान
हद फिर भी मिटती नहीं सरहदों की हदों पर।
राह में किसी घायल से कतरा के निकल जाने वाले ,
अब नहीं मिलते उन्हें अस्पताल पहुँचाने वाले .
कान्हा - रास नहीं अब समर चाहिये
इस बार सिखाओ कान्हा फिर,
भारत को एक और समर,
भूखों को अब भीख नहीं,
हक़ चहिये इस बार मगर।
धमनियों में बहती
भावनाओं की तरह,
नश्वर जीवन की
श्वास की तरह,
मेरो लड्डू गोपाल
कृष्ण अब लो, तुम अवतार,
मचा फ़िर से है, हाहाकार ।
बरसों की
प्रतीक्षा पूरी हो गयी
आज वकील की
चिट्ठी आ गयी
यदि मूर्खों से पाला पड़ जाए तो क्या करना चाहिये
हुजूर सरकार चुप रहना चाहिये
छलक जाते हैं अब आँसू, ग़ज़ल को गुनगुनाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ
हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ
फिर बीती एक रात
ध्रुव तारे से आंख मिलाते
चांद को बादलों तले
देखते ही देखते छुप जाते
रिश्ते कैसे कैसे
कितने बने कितने बिगड़े
कभी विचार करना
कब कहाँ किससे मिले
उन्हें याद करना
आज के लिये बस इतना ही
आज्ञा दीजिये यशोदा को
जारी है मयंक दा का कोना
--
नवगीत की पाठशाला की रचनाओं का पहला संकलन
नवगीत की पाठशाला
--
तन्वी श्यामा शिखरि दशना पक्व बिम्बाधरोष्ठी मध्ये
क्षामा चकित हरिणी प्रेक्षणा निम्ननाभि।
--
जगत मातु पितु सम्भु भवानी ,
तेहिं श्रृंगार न कहहु बखानी।
आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
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हुआ यूं कि ---
मनोज
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"सम्बन्ध"
--
भक्त और वोट
सरोकार पर अरुण चन्द्र रॉय
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हां मैं दे रहा हूं "सत्याग्रह" को फुल मार्क्स !
TV स्टेशन ...पर महेन्द्र श्रीवास्तव
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हम आपकी नज़रों में जीते हैं....अस्तित्व "अंकुर"
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
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उल्लूक की पोटली में कूड़ा ही कूड़ा
हवा में तैरती ही हैं
हर वक्त कथा कहानी कविताऎं
जरूरी कहाँ होता है
सब की नजर में सब के सब ऎसे ही आ ही जायें
सबको पसंद आ जायें शैतानियाँ ....
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
--
अर्चना भैंसारे- कुछ कवितायें, आत्मकथ्य और एक नोट
*हिंदी के लिए इस वर्ष का साहित्य अकादमी युवा सम्मान प्राप्त करने वाली
कवयित्री अर्चना भैंसारे को इस सम्मान के लिए हार्दिक बधाई देते
हुए आज असुविधा की यह पोस्ट उन पर केन्द्रित की गयी है.
आभासीय दुनिया में लोकप्रियता की जद्दोजहद के बीच,
यह एक सहज काव्य यात्रा का ईनाम है ...
असुविधा....
--
शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !
WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
हद फिर भी मिटती नहीं सरहदों की हदों पर।
राह में किसी घायल से कतरा के निकल जाने वाले ,
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कान्हा - रास नहीं अब समर चाहिये
इस बार सिखाओ कान्हा फिर,
भारत को एक और समर,
भूखों को अब भीख नहीं,
हक़ चहिये इस बार मगर।
धमनियों में बहती
भावनाओं की तरह,
नश्वर जीवन की
श्वास की तरह,
मेरो लड्डू गोपाल
कृष्ण अब लो, तुम अवतार,
मचा फ़िर से है, हाहाकार ।
बरसों की
प्रतीक्षा पूरी हो गयी
आज वकील की
चिट्ठी आ गयी
यदि मूर्खों से पाला पड़ जाए तो क्या करना चाहिये
हुजूर सरकार चुप रहना चाहिये
छलक जाते हैं अब आँसू, ग़ज़ल को गुनगुनाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ
हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ
फिर बीती एक रात
ध्रुव तारे से आंख मिलाते
चांद को बादलों तले
देखते ही देखते छुप जाते
रिश्ते कैसे कैसे
कितने बने कितने बिगड़े
कभी विचार करना
कब कहाँ किससे मिले
उन्हें याद करना
आज के लिये बस इतना ही
आज्ञा दीजिये यशोदा को
जारी है मयंक दा का कोना
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नवगीत की पाठशाला
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तन्वी श्यामा शिखरि दशना पक्व बिम्बाधरोष्ठी मध्ये
क्षामा चकित हरिणी प्रेक्षणा निम्ननाभि।
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तेहिं श्रृंगार न कहहु बखानी।
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हुआ यूं कि ---
मनोज
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"सम्बन्ध"
काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत
"सम्बन्ध"
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।...
सुख का सूरजअनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।...
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भक्त और वोट
सरोकार पर अरुण चन्द्र रॉय
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हां मैं दे रहा हूं "सत्याग्रह" को फुल मार्क्स !
TV स्टेशन ...पर महेन्द्र श्रीवास्तव
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हम आपकी नज़रों में जीते हैं....अस्तित्व "अंकुर"
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
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उल्लूक की पोटली में कूड़ा ही कूड़ा
हवा में तैरती ही हैं
हर वक्त कथा कहानी कविताऎं
जरूरी कहाँ होता है
सब की नजर में सब के सब ऎसे ही आ ही जायें
सबको पसंद आ जायें शैतानियाँ ....
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
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अर्चना भैंसारे- कुछ कवितायें, आत्मकथ्य और एक नोट
*हिंदी के लिए इस वर्ष का साहित्य अकादमी युवा सम्मान प्राप्त करने वाली
कवयित्री अर्चना भैंसारे को इस सम्मान के लिए हार्दिक बधाई देते
हुए आज असुविधा की यह पोस्ट उन पर केन्द्रित की गयी है.
आभासीय दुनिया में लोकप्रियता की जद्दोजहद के बीच,
यह एक सहज काव्य यात्रा का ईनाम है ...
असुविधा....
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शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !
WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
शुभ प्रभात |कम्प्युटर जब अधिक काम हो तो दुःख देता ही है क्या करें खुद को एडजस्ट करना पड़ता है |तब भी उम्दा चर्चा है यशोदा जी |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
प्रतिकूल परिस्थियों में भी आपने इतनी सुन्दर चर्चा की।
जवाब देंहटाएंयशोदा बहन आपका आभार।
चर्चा हमेशा ही चर्चा में रहती है
जवाब देंहटाएंइधर से और उधर से ला ला कर
बहुत कुछ पढ़ने को दे देती है
किसी ने बहुत अच्छा लिखा होता है
किसी का कूड़ा उठा के दे देती है
"उल्लूक की पोटली में कूड़ा ही कूड़ा"
को स्थान देने के लिये उल्लूक का
दिल से आभार !
बहुत खूब यशोदा जी । इतने सारे सुंदर सूत्रों को आपने पिरो कर हमारे सामने रखा । आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा आभार .
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः9
कृपया आप सब भी पधारें
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः9
बढ़िया चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
भाव प्रधान व्यतीत को खंगालती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंघूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
भाव का सागर है पूरी गजल।
जवाब देंहटाएंमेरी धरोहर पर yashoda agrawal
हमारे बचने की
जवाब देंहटाएंहै केवल एक शर्त
जो बच जाएँ
भक्त और वोट होने से
बढ़िया रचना संसार।
बढ़िया रचना संसार। इतने दिन बाद मिले अच्छा लगा। हम ढूंढते थे तुमको जब भी कुछ अच्छा लिखा गया याद किया आपको। आज आपको मुद्दत बाद पढ़ा तो पढ़ता ही रहा एक एक लफ्ज़ शिद्दत से लिखा गया है। बहुत सुन्दर बहुत नाज़ुक। स्वत :स्फूर्त सोते सा लेखन।
जवाब देंहटाएंरहिमन प्रीति न कीजिए, जस खीरा ने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन॥
मनोज
जिधर देखो उधर ही “रूप” का, सामान बिकता है,
जवाब देंहटाएंरईसों के यहाँ अब, इल्म रहता पायदानों में।
भाव का सागर है पूरी गजल। व्यंग्य पीड़ा लिए है।
बहुत बढिया लिंक्स
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
मुझे स्थान देने के लिए आभार
बढ़िया नाप दिया समीक्षकों को। सच बोलने से लोग सच दिखाके भी डरते हैं क्या ज़माना आ गया है प्रकाश झा साहब जी।
जवाब देंहटाएंTV स्टेशन ...पर महेन्द्र श्रीवास्तव
सुन्दर चर्चा .............
जवाब देंहटाएंsarthak links .mere blog ko yahan sthan pradan karne hetu aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्रों से भरी चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सारे लिंक्स...सारे अच्छे..मेरी रचना शामिल करने के िलए आभार
जवाब देंहटाएंbehatareen sutron se saja hai aaj ka manch.. meri post ko yahan sthaan dene ke liye aapka bohat bohat shukriya Yashoda ji..
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह!
जवाब देंहटाएं