मित्रों!
आज मंगलवार की चर्चाकार श्रीमती राजेश कुमारी जी के पास लैपटॉप नहीं है। इसलिए सोमवार की चर्चा में मेरी पसंद के कुछ लिंक देखिए।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उपासना में वासना, मुख में है हरिनाम।
सत्संगों की आड़ में, करते गन्दे काम।।
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इत्ती सी हंसी, इत्ती सी खुशी, इत्ता सा टुकड़ा चाँद का...
मेरे अनुभव पर Pallavi saxena
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आस्था....धर्मवीर भारती

मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
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एकांत में एकदम चुप कँपते ठंडे पड़े हाथों को आपस की रगड़ से गरम करती वो शांत है ना भूख है ना प्यास है बस बैठी है उड़ते पंछीयों को देखती घास को छूती तो कभी सहलाती और कभी उखाड़ती है जिस पर वो बैठी है उसी बग़ीचे में जहाँ के फूलों से प्यार है पर वो फूल सूख रहें हैं धीरे धीरे ...
स्पर्श पर Deepti Sharma
स्पर्श पर Deepti Sharma
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एक पुराना टुकड़ा मिला, हृदय के बहुत करीब है यह… इसे यहाँ लिख कर रख लेना चाहिए. जाने फिर कलम यह लिख पाए या नहीं, जाने कविता फिर हमसे कभी यूँ कुछ कह पाए या नहीं…!
कविता ने जिस क्षण यह कहा था, उसे स्मरण करते हुए… उस पल को जीते हुए, सहेज लेते हैं यहाँ भी, वह क्षण और कविता का कथ्य, दोनों ही...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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सिखा वक्त की मार दे, रविकर बात तमाम |
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तू अक्सर कहा करती थी वक़्त की मार का इलाज
हकीम लुकमान के पास भी नहीं ...
समय की करनी के आगे सर झुकाना पड़ता है ...
सही कहती थी माँ
समय के एक ही वार ने हर बात सिखा दी
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गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |...
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खूँटी पर लटका दिया ,भीतर नहीं प्रकाश
पर मेरे तुम काट कर ,निगल गए आकाश...
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बाबा का साक्षात्कारप्रश्न .....बाबाजी आपके ऊपर यौन शोषण और दुष्कर्म के इलज़ाम लगे हैं, इस पर आपको क्या कहना है ? बाबा जी ....आप लोगों की सांसारिक शब्दावली हमारे पल्ले नहीं पड़ती | आप लोग जिसे शोषण कहते हैं हमारे यहाँ उसी को पोषण कहा जाता है | और दुष्कर्म हम नहीं करते | हम तो बस कर्म करते हैं, जिसके आगे आप लोग दुर्भावना से ग्रसित होकर के दुष लगा देते हैं वैसे ये सब हमारे दुश्मनों का कर्म है हमें फंसाने केलिए | प्रश्न .....बाबाजी आप गिरफ्तारी से बचने के लिए भागे - भागे क्यूँ फिर रहे हैं ? बाबाजी .... मुर्ख प्राणी ! हम क्यूँ भागेंगे ? भागता तो आम इंसान है....
सादर ब्लॉगस्ते! पर rachna
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गौ ह्त्या , गो हत्यारे

ZEAL
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कशमकश
कभी कभी परिस्थितियाँ इन्सान को बचपन में ही सयाना बना कर जिम्मेदारियां थमा देती हैं. मोहन भगत जब सात साल का था, तभी पिता का साया सिर से उठ गया. उस समय उसकी दो छोटी और दो बड़ी बहनें सभी नाबालिग थी. इसके अलावा घर में पाँच बड़ी सयानी अनब्याही बुआयें भी थी, पर माँ बहुत जीवट वाली थी. परिवार की गाड़ी रुकी नहीं. बुरा समय भी कट जाता है, हिम्मत रखनी होती है....
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय
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आसाराम पे अंधविश्वास क्या हम दोषी नहीं हैं?
ख़बरों की मानें तो जब 15 अगस्त के दिन पूरा हिन्दुस्तान आजादी दिवस मना रहा था आसाराम बापू जी धर्म के नाम पे खुद को मिली आजादी का जश्न एक नाबालिग़ लड़की के साथ बेशर्मी कर के मना रहे थे | और तो और उस लड़की की माँ का इन आसाराम पे इतना अन्धविश्वास था की उसी कमरे के दरवाज़े पे बैठी बाबा के कहे अनुसार तंत्र-मंत्र अनुष्ठान में जप के लिए बाहर बैठी थीं। 15 अगस्त को आश्रम में तांत्रिक अनुष्ठान के आयोजन से पहले आसाराम ने लड़की के माता-पिता से बात की थी। आसाराम ने पीड़िता के माता-पिता से कॉटेज के बाहर गेट के बगल में बैठकर ध्यान लगाने के बाद जाने को कहा था...
अमन का पैग़ाम
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O Arjuna !Of these three Gunas Sattva being
pure is luminous and wholesome

आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
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कार्टून :- बाबा अभी बिज़ी है

काजल कुमार के कार्टून
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कामिनी के श्रृंगार कभी
जीवन से तो मोह बहुत पर फीका है संसार
कभी लगते हैं कुछ दिन फीके तो आ जाते त्योहार
कभी सूरज आस जगाने आता और चाँदनी मुस्काती
पल कुछ ऐसे भी मिलते जब बढ़ जाता है प्यार...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
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क्या हश्र हुआ शाहजहाँ के तख्ते ताऊस
या मयूर सिंहासन का ?

कुछ अलग सा
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शायद आपमें से कोई सुझा पाये
जानती हूं कि मुझे class में बच्चों के सामने इस तरह नहीं रो देना था... यूं कमज़ोर हो कर टूट नहीं जाना चाहिये था. पता नहीं मेरा उन पर स्नेह था या उनकी सज़ा की वज़ह होने की ग्लानि कि मैं आंसुओं को रोक ही नहीं पायी. उस orphanage cum school की दीवारें ज्ञान से र्ंगी हुई हैं... ये आश्रम बाल गोपालों का निवास है... बच्चों की सेवा, प्रभु की सेवा .. वगैरह वगैरह....
मन के झरोखे से...पर monali
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"बसन्त"
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
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एक गीत
हर्षित होकर राग भ्रमर ने गाया है!
लगता है बसन्त आया है!!...
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"उपासना में वासना"

इस ब्लॉग पर सभ्यता के साथ चोरी की जाती है!
- इस प्रकार से अपनी रचनाएँ प्रकाशित करने की मैं अनुमति नही देता हूँ।ReplyDelete
मेरे नाम और ब्लॉग के लिंक के साथ प्रकाशित कीजए मेरी रचनाओं को।
नहीं तो इस पोस्ट को हटा दीजिए। - अब आप यह तर्क मत देने लगना कि "Labels: डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक, यौन अपराध, सामाजिक" में आपका नाम है।
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लेबिल में भी क्लिक करने से समाज ही खुल रहा है।
मेरा लिंक है कहाँ मान्यवर।
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तुरन्त हटाइए इस पोस्ट को या मेरे नाम और ब्लॉग का लिंक दीजिए।
अन्यथा यह सभ्यता के दायरे में की गयी चोरी मानी जायेगी।
शुभ प्रभात
ReplyDeleteआज अच्छी रचनानाओ से अवगत करवाया आपने
सादर
विविध लिंक्स ने चर्चा को रोचक बना दिया |
ReplyDeleteआशा
बहुत ही सार्थक पठनीय लिंकों का चयन,सभी लिंक एक से बढकर एक हैं,आपका आभार।
ReplyDeleteसामयिक और सार्थक सूत्र।
ReplyDeleteसुन्दर सूत्र !!
ReplyDeleteसुन्दर-सार्थक चर्चा - अच्छे लिन्क्स का संकलन - बधाई
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स-
आभार गुरुदेव-
बेहतरीन चर्चा, कई बेहतरीन लिंक्स... आभार!
ReplyDeleteसुंदर बाबामय प्रस्तुति !
ReplyDeleteसुंदर व सार्थक चर्चाये..
ReplyDeleteऔर बढ़िया post लिंक्स..
बहुत सुंदर प्रयास-
सुंदर व सार्थक चर्चाये..
ReplyDeleteऔर बढ़िया post लिंक्स..
बहुत सुंदर प्रयास-
बहुत सुंदर चर्चा
ReplyDeleteसार्थक, सुन्दर लिंक ...
ReplyDeleteशुक्रिया मिझे भी शामिल करने का ...
हाहाहा आदरणीय शास्त्री जी आपने सच ही लिख दिया ,सच में लेपटाप बीच बीच में बस कुछ ही मिनटों के लिए हाथ में आ रहा है ,बहुत बढ़िया सूत्र हैं जैसे ही वक़्त/लेपटाप मिलेगा सब पढूंगी बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर सटीक चर्चा हेतु एवं मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार |
ReplyDeleteNice Post.
ReplyDeleteजगह जगह ऐसे तंात्रिकों और रूहानी आमिलों की दुकानें खुली हुई हैं जो ख़ुद को काले इल्म का माहिर बताते हैं और जिन्न और जादू का इलाज करने का दावा करते हैं। वे आम जनता को साधना और सिद्धि की ऐसी कहानियां सुनाते हैं। जिन्हें सुनकर आम लोग यह समझते हैं कि इतनी कठिन साधना तो वे कर नहीं सकते। लिहाज़ा अपना कष्ट हम ख़ुद दूर नहीं कर सकते। यही बाबा लोग हमारे कष्ट दूर कर सकते हैं। ये मुफ़्तख़ोर ढकोसलेबाज़ समाज का कष्ट दूर नहीं करते बल्कि उसका कष्ट बढ़ा रहे हैं। जो आदमी मालिक से दुआ करने में सक्षम है, वह अपना कष्ट स्वयं दूर करने में सक्षम है। अपनी दुआ कम लगे तो अपने मां-बाप से अपने लिए दुआ करवाए। उनकी सेवा करे। फिर भी कष्ट दूर न हो तो किसी अनाथ, विधवा, बीमार या किसी ग़रीब की मदद कर दे। उसकी आत्मा से जो दुआ निकलेगी। वह आपके कष्ट दूर होने का बहुत मज़बूत वसीला बनेगी।
तर्कशील बुद्धिजीवी ईश्वर, आत्मा और जिन्न आदि के वुजूद को नकारते हैं लेकिन भारत का हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई उनकी बात को स्वीकार नहीं कर सकता। भारत की प्रकृति में ही अध्यात्म रचा बसा है। नास्तिक दार्शनिकों ने हज़ारों साल कोशिश की है लेकिन वे भारत की प्रकृति को नहीं बदल सके। अब तक नहीं बदली है तो आगे भी नहीं बदलेगी और बदलने की ज़रूरत भी नहीं है।
असल कोशिश यह करनी है कि धंधेबाज़ धर्म और अध्यात्म को व्यापार और ठगी का ज़रिया न बनाएं। परंपरा और अनुष्ठान के नाम पर किसी की जान माल बर्बाद न होने पाए। कष्ट से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए लोगों को ज़िक्र, दुआ और ध्यान के आसान तरीक़े की शिक्षा दी जाए। जिसे वे बिना किसी पीर-पुरोहित के ख़ुद अन्जाम दे सकें।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/black-majic
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....आभार!
ReplyDeleteThanks You very much shastri ji.
ReplyDeleteसामायिक लिंकों की सुंदर चर्चा,,,
ReplyDeleteRECENT POST : फूल बिछा न सको
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....आभार!
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