"जय माता दी" अरुन
की ओर से आप सबको सादर प्रणाम. चलते हैं आप सभी के चुने हुए प्यारे
लिंक्स पर.
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प्रस्तुतकर्ता : (डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री 'मयंक')
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प्रस्तुतकर्ता : सदा
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प्रस्तुतकर्ता : Upasna Siag
प्रस्तुतकर्ता : Akshitaa Yadav
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प्रस्तुतकर्ता : रविकर
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प्रस्तुतकर्ता : ऋता शेखर मधु
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प्रस्तुतकर्ता : Yashoda Agrawal
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प्रस्तुतकर्ता : Anu
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प्रस्तुतकर्ता : Amit Srivastava
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प्रस्तुतकर्ता : Punam
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इसी के साथ आप सबको शुभविदा मिलते हैं रविवार को. आप सब चर्चामंच पर गुरुजनों एवं मित्रों के साथ बने रहें. आपका दिन मंगलमय हो | ||||||
जारी है 'मयंक का कोना'
-- इसे कहते हैं खुला खेल भोपाली झमूरा विलायती। कल को ये झमूरा सुप्रीम कोर्ट के बारे में भी कुछ भी प्रलाप कर सकता है - "ये सुप्रीम कोर्ट वोर्ट कुछ नहीं होता मैं फाड़के फांकता हूँ इसके निर्णय को " आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma -- ये नक्काशी करने वाले.... प्रस्तुतकर्ता swati jain एहसासों पर नक्काशी करने का अजब हुनर है उनमें जाने कब से एहसासों को पत्थर मान बैठे है और तैयार है हर बार एक नया चित्र उकेरने को... -- हाँ कुछ.... Rhythm of words...पर Parul kanani -- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता) फटी-सी एक डायरी में, लिख रखा है मैंने; है पाई-पाई का तेरे, हर जख्मों का हिसाब | कब तूने तोड़ा दिल, कब की थी रुसवाई; कब हुई थी बेवफा, हर तारीख है जनाब... मेरा काव्य-पिटारा पर ई. प्रदीप कुमार साहनी -- डर या रोमांच मुझे याद है डर से मेरा पहला परिचय हुआ था जब मैं शायद दूसरी या तीसरी में पढ़ती थी। उस समय ये अफवाह जोरो से फैली थी कि कुछ लोग आँखों में देख कर सम्मोहित कर लेते है... कासे कहूँ? पर kavita verma -- एक ही समय पर दोनों बात होती है! लिख जाने पर सुकून मिलता है, कह जाने पर मन हल्का हो जाता है लेकिन एक वो भी बिंदु है जब इतना उद्विग्न होता है मन कि न लिखा जाता है न कुछ कह पाने की ही सम्भावना बनती है... बस महसूस हो सकती है हवा की तरह... अनुशील पर अनुपमा पाठक -- पुष्पांजलि मुझे कुछ कहना है .... -- "देशी फ्रिज"
बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"
पानी को ठण्डा रखती है,
मिट्टी से है बनी सुराही।
बिजली के बिन चलती जाती,
देशी फ्रिज होती सुखदायी।।
हँसता गाता बचपन-- मात्र दिखावा हैं ये आयोजन हिंदी दिवस पर ‘पखवाड़ा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला? ! कौशल !परShalini Kaushik |
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रविवार, सितंबर 29, 2013
तुकबन्दी: चर्चामंच - 1383
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आज की चर्चा के लिए अच्छे अच्छे सूत्रों का संकलन !!
जवाब देंहटाएंसादर आभार !!
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा : पीछे कुछ भी नहीं -- हिन्दी ब्लागर्स चौपाल चर्चा : अंक 012
ललित वाणी पर : इक नई दुनिया बनानी है अभी
बढ़िया सूत्र संयोजन |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर लिंकों के साथ स्तरीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंअरुण जी आपका आभार।
रोचक व पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंअरुन जी, बधाई इस सुंदर चर्चा के लिए..आभार !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार भाई अरुण जी-
बहुत सुन्दर सूत्र संकलन, आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र संयोजन !
जवाब देंहटाएंThanks Arun.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र संकलन...सुंदर चर्चा..आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया सूत्र संकलन | 'मयंक का कोना' में मेरी रचना जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता) को स्थान देने के लिए आदरणीय शास्त्री जी का आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,सुंदर लिंक्स प्रस्तुति !!! आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
बहुत सुंदर लिंक्स ,अरूण जी .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और कमल
आभार
जवाब देंहटाएंशब्दों को मन में उपजाओ
जवाब देंहटाएंफिर इनसे कुछ वाक्य बनो
सन्देशों से खिलता गुलशन
स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन
बहुत सुन्दर रचना है कृपया इस पंक्ति को संशोधित कर लें -
फिर इनसे कुछ वाक्य बनो(बनाओ करें कृपया )
पानी को ठण्डा रखती है,
जवाब देंहटाएंमिट्टी से है बनी सुराही।
बिजली के बिन चलती जाती,
देशी फ्रिज होती सुखदायी।।
हँसता गाता बचपन
--इसको भैया कहो ठंडाई
जवाब देंहटाएंअरुण जी अनन्त बढ़िया लाये सेतु आप ,करें शुक्रिया अब स्वीकार ,ब्लॉग लगाए हमरा आप ,चर्चा मंच बिठाए आप।
डर हमारी मानसी सृष्टि है। अज्ञान इसका स्रोत है।
जवाब देंहटाएंडर या रोमांच
मुझे याद है डर से मेरा पहला परिचय हुआ था जब मैं शायद दूसरी या तीसरी में पढ़ती थी। उस समय ये अफवाह जोरो से फैली थी कि कुछ लोग आँखों में देख कर सम्मोहित कर लेते है...
कासे कहूँ? पर kavita verma
कभी प्यार से की बातें,
जवाब देंहटाएंकभी गोलियां जैसे बोली;
लहू-लुहान किया दिल को,
क्या तेरा भाई था कसाब ?
न हो तू यूँ बेताब,
तुझे मिल जायेगा जवाब;
जब छापूंगा ये किताब,
तेरे जख्मों का हिसाब |
न कहो किसी को कसाब ,
आजायेगा अजाब दिल के समुन्दर में।
(अजाब जलजले को भूकंप को कहते हैं )
जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
फटी-सी एक डायरी में, लिख रखा है मैंने;
है पाई-पाई का तेरे, हर जख्मों का हिसाब |
कब तूने तोड़ा दिल, कब की थी रुसवाई;
कब हुई थी बेवफा, हर तारीख है जनाब...
मेरा काव्य-पिटारा पर ई. प्रदीप कुमार साहनी