ऐसा कुछ महसूस कर रही हूँ
कि मैं इस चर्चा मंच के साथ न्याय नही कर पा रही हूँ
कि मैं इस चर्चा मंच के साथ न्याय नही कर पा रही हूँ
सूरज की पहली लाली जब इस धरती पर आती है
कहती है उठो शुरुआत हुई संघर्ष की अभी जो बाकी है
कहती है उठो शुरुआत हुई संघर्ष की अभी जो बाकी है
मन ,वुद्धि ,विवेक का स्रष्टा हो
ज्ञान विज्ञानं के तुम विधाता हो
ब्रह्मा रूपेण हो सिरजनहार तुम
शतकोटि प्रणाम तुम्हे , मेरे ज्ञान-गुरु हो।
ज्ञान विज्ञानं के तुम विधाता हो
ब्रह्मा रूपेण हो सिरजनहार तुम
शतकोटि प्रणाम तुम्हे , मेरे ज्ञान-गुरु हो।
गले मिलो ना मिलो
देख कर
मुस्काराया तो करो
हर छोटी बड़ी बात का
फसाना मत बनाया करो
देख कर
मुस्काराया तो करो
हर छोटी बड़ी बात का
फसाना मत बनाया करो
रंग अलग
रूप अलग
पसंद अलग
नापसंद अलग
हो सकता है
पूरी एक उम्र मैंने
यूँ ही नहीं गुज़ार दी है
हर लम्हा हर पल
खुद को भी मिटाया है !
रूप अलग
पसंद अलग
नापसंद अलग
हो सकता है
पूरी एक उम्र मैंने
यूँ ही नहीं गुज़ार दी है
हर लम्हा हर पल
खुद को भी मिटाया है !
सरकशी बढ़ गयी देखो, बगावत को बढ़ जाते हैं ,
हवाओं में नफरतों के गुबार सिर चढ़ जाते हैं
मुहब्बत मुरदार हो गयी,सियासी चालों में फंसकर ,
अब तो इंसान शतरंज की मोहरें नज़र आते हैं.
मंगलमय हो पूर्ण दिन, स्वर्ण कमल सम आज |
शांतिपूर्ण क्षण-क्षण रहे, सुखमय रहे समाज |
दुनिया के ऐश्वर्य की, मिले आप को भेंट,
यही प्रार्थना-कामना, करता प्रभु से 'राज' |
हवाओं में नफरतों के गुबार सिर चढ़ जाते हैं
मुहब्बत मुरदार हो गयी,सियासी चालों में फंसकर ,
अब तो इंसान शतरंज की मोहरें नज़र आते हैं.
मंगलमय हो पूर्ण दिन, स्वर्ण कमल सम आज |
शांतिपूर्ण क्षण-क्षण रहे, सुखमय रहे समाज |
दुनिया के ऐश्वर्य की, मिले आप को भेंट,
यही प्रार्थना-कामना, करता प्रभु से 'राज' |
समीकरण ज़िन्दगी का
आसां नहीं सुलझाना,
तमाम योग वियोग के बाद भी
ज़रूरी नहीं, अंत में शून्य आना,
आसां नहीं सुलझाना,
तमाम योग वियोग के बाद भी
ज़रूरी नहीं, अंत में शून्य आना,
क्या दीवार हमने बनाई है,
न इंट न सीमेंट की चिनाई है ,
पानी नहीं लहू से सिचतें है हम ,
कभी-कभी रेत की जगह,
इंसानों के मांस पिसते है हम।
तुम्हीं दर्द हो दवा तुम्हीं हो
जीवन पथ पे चला अकेला
छोड़ दुनिया का झूठा मेला
सहम गए क्यों ?
हर शब्द तेरा
मन ही मन मैं
गुनती रही
बार-बार दोहरा के उसे
खुद ही सुनती रही
उसका जरूर पढ़ना पर लिखना खुद अपना
ये नया आईडिया
तेरे दिमाग में किसने
आज घुसा दिया
वैसे भी तू कुछ बुरा
तो नहीं दिखता है
आज बस इतना ही....
आज्ञा दीजिये
यशोदा
जारी है मयंक दा का कोना
--
"फिक्र की खुराक इश्क का ज़ायका खराब किये दे रही है..."
जब बिस्तर में तुम्हारी जगह एक निरा निश्चल तकिया भर पडा देखती हूं
तो मालूम होता है कि तुम्हारा नींद में करवट भर बदल लेना भी एक सुकून है..
कभी यूं ही कच्ची नींद मे पूछ लेना कि "सोयी नहीं अब तक"
और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना ही
फिर करवट बदल कर सो जाना भी एक सुख है...
मन के झरोखे से...पर monali
--
हिंदी की पूर्व-संध्या पर एक विचार मंथन
आपका ब्लॉग पर DrRaaj saksena
--
जब जीव हरि ते बिलगाना ,
तब ते निज देह गेहा माना ,
माया बस स्वरूप बिसरायो ,
तेहि बरम ते दारुन दुःख पायो।
आपका ब्लॉगपरVirendra Kumar Sharma
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♥ बिजली कड़की पानी आया ♥
हँसता गाता बचपन
--
बिखरे स्वर.
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
--
अपनी भाषा
Akanksha पर Asha Saxena
--
काश किसी गुरु की कृपा हम पर भी होती ---
ज़वानों की जुबानी सुनी, लाख तरकीबें अपनाई,
पर ज़वानी जो गई एक बार, फिर लौट कर ना आई !
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
--
प्रकृति विकेंद्रीकरण सीख !
हे प्रकृति छोटी धाराओं को तू कब तक यूं ही मिलाते ही चली जायेगी
लम्बी थकाने वाली दूरी चला चला कर समुद्र में डाल कर के आयेगी
कुछ सबक आदमी से भी कभी सीखने के लिये
अगर आ जायेगी तेरी बहुत सी परेशानियां चुटकी में दूर हो जायेंगी...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
--
फूटी किस्मत हाय, तभी दिल रविकर टूटा -
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर -
--
नीलिमा होती हैं न हैरानियाँ!!!
Rhythm पर नीलिमा शर्मा
--
अज़ीज़ जौनपुरी : न ज़ले न ख़ाक हो
हाय ये ज़िन्दगी न ज़ले,न ख़ाक हो,न आग़ लगे
फ़क़ीर कौम के आये हैं न सुर लगे न राग लगे.
हाय ये क़िस्मत , कि मर्सिया ही उन्हें फ़ाग लगे ख़ाली बोतल सी कहानी के मुंह पे जैसे क़ाग लगे ..
Zindagi se muthbhed
--
गुज़र रही है दो ज़िन्दगी
ग़ाफ़िल की अमानत पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
--
मेरी ख़ामोशी भी जिक्र तुम्हारा करती है.........!!!
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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"ग़ज़ल-तमन्नाओं की लहरे हैं"
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किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी -
रविकर की कुण्डलियाँ
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सुप्रभात मित्रोपत्नी को समर्पित एक मुक्तक आपके दरबार में-
न इंट न सीमेंट की चिनाई है ,
पानी नहीं लहू से सिचतें है हम ,
कभी-कभी रेत की जगह,
इंसानों के मांस पिसते है हम।
तुम्हीं दर्द हो दवा तुम्हीं हो
जीवन पथ पे चला अकेला
छोड़ दुनिया का झूठा मेला
सहम गए क्यों ?
हर शब्द तेरा
मन ही मन मैं
गुनती रही
बार-बार दोहरा के उसे
खुद ही सुनती रही
उसका जरूर पढ़ना पर लिखना खुद अपना
ये नया आईडिया
तेरे दिमाग में किसने
आज घुसा दिया
वैसे भी तू कुछ बुरा
तो नहीं दिखता है
आज बस इतना ही....
आज्ञा दीजिये
यशोदा
जारी है मयंक दा का कोना
--
"फिक्र की खुराक इश्क का ज़ायका खराब किये दे रही है..."
जब बिस्तर में तुम्हारी जगह एक निरा निश्चल तकिया भर पडा देखती हूं
तो मालूम होता है कि तुम्हारा नींद में करवट भर बदल लेना भी एक सुकून है..
कभी यूं ही कच्ची नींद मे पूछ लेना कि "सोयी नहीं अब तक"
और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना ही
फिर करवट बदल कर सो जाना भी एक सुख है...
मन के झरोखे से...पर monali
--
हिंदी की पूर्व-संध्या पर एक विचार मंथन
आपका ब्लॉग पर DrRaaj saksena
--
जब जीव हरि ते बिलगाना ,
तब ते निज देह गेहा माना ,
माया बस स्वरूप बिसरायो ,
तेहि बरम ते दारुन दुःख पायो।
मित्रों!
आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।
बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।
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♥ बिजली कड़की पानी आया ♥
बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
लू-गरमी का हुआ सफाया।।
मोटी जल की बूँदें आईं।
आँधी-ओले संग में लाईं।।
--
बिखरे स्वर.
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
--
अपनी भाषा
Akanksha पर Asha Saxena
--
काश किसी गुरु की कृपा हम पर भी होती ---
ज़वानों की जुबानी सुनी, लाख तरकीबें अपनाई,
पर ज़वानी जो गई एक बार, फिर लौट कर ना आई !
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
--
प्रकृति विकेंद्रीकरण सीख !
हे प्रकृति छोटी धाराओं को तू कब तक यूं ही मिलाते ही चली जायेगी
लम्बी थकाने वाली दूरी चला चला कर समुद्र में डाल कर के आयेगी
कुछ सबक आदमी से भी कभी सीखने के लिये
अगर आ जायेगी तेरी बहुत सी परेशानियां चुटकी में दूर हो जायेंगी...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
--
फूटी किस्मत हाय, तभी दिल रविकर टूटा -
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर -
--
नीलिमा होती हैं न हैरानियाँ!!!
Rhythm पर नीलिमा शर्मा
--
अज़ीज़ जौनपुरी : न ज़ले न ख़ाक हो
हाय ये ज़िन्दगी न ज़ले,न ख़ाक हो,न आग़ लगे
फ़क़ीर कौम के आये हैं न सुर लगे न राग लगे.
हाय ये क़िस्मत , कि मर्सिया ही उन्हें फ़ाग लगे ख़ाली बोतल सी कहानी के मुंह पे जैसे क़ाग लगे ..
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गुज़र रही है दो ज़िन्दगी
ग़ाफ़िल की अमानत पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
--
मेरी ख़ामोशी भी जिक्र तुम्हारा करती है.........!!!
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
--
"ग़ज़ल-तमन्नाओं की लहरे हैं"
हँसी भी है-खुशी भी है, तमन्नाओं की लहरे हैं
तभी नमकीन पानी में, बहुत से लोग ठहरे हैं
उमड़ती भावनाएँ जब, तभी तो ज्वार आता है
समन्दर की तलहटी में, पड़े माणिक सुनहरे हैं..
उच्चारण--
किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी -
रविकर की कुण्डलियाँ
--
सुप्रभात मित्रोपत्नी को समर्पित एक मुक्तक आपके दरबार में-
पूर्ण चन्द्र सम अनुपम आनन, कुन्दन रंग समाया है |
टपक रहा है अमिय अधर से,नैनन मृगमद छाया है |
पोर - पोर से टपक रही है, नव-यौवन रस-धार प्रिय,
रक्त-वर्ण ज्यों मिला दुग्ध में, रच हर अंग बनाया है |
--डा.राज सक्सेना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार बहन यशोदा दिग्विजय अग्रवाल जी...!
हर बार की तरह सजा आज का चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंतरह तरह की रचनाएं करती मन अनंग |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
मुझे तो शरम सी
जवाब देंहटाएंकुछ आ रही है
माईक्रो कविता की
बात की जा रही है
आभारी है उल्लूक
उसकी दो दो लम्बी
रेलगाडियां फिर भी
ला कर इस सुँदर छोटी
कविताओं की चर्चा मेँ
दिखाई जा रही हैं ।
नमस्कार यशोदा जी
जवाब देंहटाएंबड़े ही रोचक व पठनीय सूत्रों से सजा संकलन, आभार..
कृपया आप सभी मित्र यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे.
====================================================================
आज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17
सुन्दर चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय / आदरणीया
sundar prastuti .meri post ko sthan dene hetu aabhar
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंकों का बढ़िया चयन,,,
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को शामिल के लिए आभार शास्त्री जी,,,
सुन्दर सूत्रों का संकलन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों का संयोजन .शास्त्री जी मेरी रचना को सम्मान देने के लिय ह्रदय से आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों का संयोजन .शास्त्री जी मेरी रचना को सम्मान देने के लिय ह्रदय से आभार
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार सूत्रों से सजाया चर्चा मंच बधाई आपको यशोदा जी सभी पठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंक्स...आभार
जवाब देंहटाएंअपने वक्त की नवज टटोलती आला दर्जे की रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंसरकशी बढ़ गयी देखो, बगावत को बढ़ जाते हैं ,
हवाओं में नफरतों के गुबार सिर चढ़ जाते हैं
मुहब्बत मुरदार हो गयी,सियासी चालों में फंसकर ,
अब तो इंसान शतरंज की मोहरें नज़र आते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर है प्रतीक भी हटके सौंदर्य के प्रतिमान भी।
सुप्रभात मित्रोपत्नी को समर्पित एक मुक्तक आपके दरबार में-
पूर्ण चन्द्र सम अनुपम आनन, कुन्दन रंग समाया है |
टपक रहा है अमिय अधर से,नैनन मृगमद छाया है |
पोर - पोर से टपक रही है, नव-यौवन रस-धार प्रिय,
रक्त-वर्ण ज्यों मिला दुग्ध में, रच हर अंग बनाया है |
--डा.राज सक्सेना
मार्मिक
जवाब देंहटाएंमुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी-
टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
.
*बेटी
बड़ी हसरत थी कोई तो, जुबां अपनी हिलायेगा
जवाब देंहटाएंमगर इस जग के बाशिन्दे, तो गूँगे और बहरे हैं
बहुत खूब लिखा है।
आज के चर्चामंच पर मेरी रचना को भी स्थान दिया आपकी आभारी हूँ यशोदा जी ! सभी सूत्र पठनीय हैं ! सधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंbehtreen charcha......
जवाब देंहटाएं