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शनिवार, सितंबर 07, 2013

बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता - चर्चा मंच


"सितारे टूट गये हैं..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक


काँग्रेस बेकसूर है ? ( सबूत ये रहे ) पढे बिना बोलिए मत

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अफगानिस्तान

अरुण चन्द्र रॉय 


श्रीमदभगवत गीता तीसरा अध्याय :कर्म योग


Virendra Kumar Sharma 

"शिक्षक दिवस" पर विशेष : भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के महत्वपूर्ण विचार और कथन

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प्रचार - 1 hour ago


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प्रेम सरोवर
  * मेरे चिंतन फ्रेम में **समय सरगम** * * * *कृष्णा सोबती जी का उपन्यास **जिंदगीनामा**, **डार से बिछुड़ी** एवं **मित्रों मरजानी** पढ़ने के बाद एक बार इनका उपन्यास **समय सरगम** पढ़ने का अवसर मिला था एवं जो कुछ भी भाव मेरे मन में समा पाए उन्हे आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं। 



लघु कथा : जय जय निराशा माई-जय जय 


पाखंडी बाबा की अधमाई


पुत्र रत्न की प्राप्ति हेतु आसक्त निराशा देवी ने पाखंडी बाबा से एक पाख तक यग्य कराया, और अंतत: पुत्र रत्न पाया । कहीं दस वर्षों बाद गुरु दक्षिणा चुकाने की बारी आई । सपरिवार पुन: उसी यग्य मढैया में जा पहुंची । अपनी बड़ी बेटी को बाबा की सेवा में लगाई । जय जय निराशा माई-जय जय पाखंडी बाबा की अधमाई- पर यह बात पिता को रास ना आई-और उसने दिल्ली में एक अर्जी लगवाई । महंगी पड़ी बाबाई-


यात्रा के कितने आयाम!


अनुपमा पाठक 



Patali-The-Village

Patali  


शिक्षक दिवस पर आरती शर्मा का लेख

Nirjhar Times


............. अपना देश :)

संजय भास्‍कर 

एक एक पल मौत के आगोश में जा रहा है राजेश

राजेश श्रीवास्तव 









गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल

गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल । 

गुरुजन रहे खिलाय गुल, गुलछर्रे गुट बाल । 

गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी । 

नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी । 

बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता । 

भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥

रविकर-पुंज
चल संसद की देख, चोचलेबाजी रविकर -
बाजी रविकर हारता, जब मंदा बाजार |
जार जार रोवें खड़ा, पड़ी गजब की मार |
पड़ी गजब की मार, नहीं मुद्रा हँस पाए |
चुप बैठी सरकार, हँसी जग में करवाए |
उधर सीरिया युद्ध, चीन इत बैठा घुसकर |
चल संसद की देख, चोचलेबाजी रविकर ||

दुष्कर्मी दुर्दांत वो, सचमुच बड़ा समर्थ-


कोसा-काटी कोहना, कुल कौवाना व्यर्थ । 
दुष्कर्मी दुर्दांत वो, सचमुच बड़ा समर्थ । 
सचमुच बड़ा समर्थ, पाप का घड़ा बड़ा है । 
हरदम जिए तदर्थ, अडंगा कहाँ पड़ा है । 
कह रविकर कविराय, कीजिए किन्तु भरोसा । 
कड़ा दंड वो पाय, शुरू रख कोसी-कोसा-
कोसा-काटी = गाली दे दे कर कोसना -
कौवाना = अंड-बंड बकना 


15 टिप्‍पणियां:

  1. किस अंदाज से
    चर्चा करता है
    कुछ अलग करता है
    जब रविकर करता है
    सूत्र एक ही तो
    चांद होता है
    रविकर अपनी
    टिप्पणी से उसे
    चार चाँद करता है !

    जवाब देंहटाएं
  2. क्रूर प्रथाएं ब्याहता के मेहँदी रचे हाथ भी तरास लें बस चले तो। परले ज़माने की वाहियात बातें हैं यह जब औरत के केश भी काट दिए जाते थे चूड़ियाँ तोड़ दी जातीं थीं। कर्मों का लेखा होता है प्रालब्ध न की किसी मासूम के कदम किसी का प्रालब्ध लिखते बदलते हैं। बढ़िया लघु कथा कहने सा वृत्तांत लिए।

    नाओमी - लघु कथा
    Annapurna Bajpai
    सादर ब्लॉगस्ते! -

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बड़ा कलेवर है इस कथा लघु का। निराशा देवी अपनी निराशा दूर करबे पहुँचीं आशाराम के पास। बांझपन अतीत हु आ। लडकी जबान भई तो गुरु जीने दख्खिना मांगी करी। परोस दी वाने बड़ी लडकी।

    अब सारा कुसूरवार बा ढोंगी कु ही चौं समझा जाए ?

    एक सिरा और भी है इस कथा को जो इस सरकार की गिरती साख से आ जुड़ता है ना -हक़ ही कहीं अपनी गिरती साख को बचावे ये सरकार संतन को बाँधना ही सुरु न कर दे भैया। इब लाने जिनको पकरो गयो है साध्वी फाद्बी उनके खिलाफ तो या सरकार से आज तक चार्ज शीट तक दाखिल न भई फिर जो साशाराम संसद में छिपे बैठे हैं उनका क्या ?

    जे हुई मिनी काब्य कथा।


    Wednesday, 4 September 2013
    लघु कथा : जय जय निराशा माई-जय जय पाखंडी बाबा की अधमाई
    पुत्र रत्न की प्राप्ति हेतु आसक्त निराशा देवी ने पाखंडी बाबा से एक पाख तक यग्य कराया, और अंतत: पुत्र रत्न पाया ।

    कहीं दस वर्षों बाद गुरु दक्षिणा चुकाने की बारी आई । सपरिवार पुन: उसी यग्य मढैया में जा पहुंची ।
    अपनी बड़ी बेटी को बाबा की सेवा में लगाई ।

    जय जय निराशा माई-जय जय पाखंडी बाबा की अधमाई-
    पर यह बात पिता को रास ना आई-और उसने दिल्ली में एक अर्जी लगवाई । महंगी पड़ी बाबाई-

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत बड़े कलेवर की पोस्ट व्यंग्य भी वृत्तांत भी। चप्पल जूता गाय गोबर मंदिर एक साथ एक जगह पर देख हिन्दुस्तान याद आ गया। यहाँ भी हिन्दू टे- म्पिल हैं लेकिन यहाँ मजमा नहीं लगता न भिखमंगी होती है।

    वीरूभाई कैंटन(मिशिगन )

    अमरकंटक से भुवनेश्वर जाते समय ट्रेन में चोर ने मेरा बैग खंगाल ड़ाला
    SANDEEP PANWAR
    जाट देवता का सफर/journey

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रथम रविकर साहब का शुक्रिया की उन्होने मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान देकर पोस्ट का मूल्य बढ़ा दिया
    ओर रही चर्चा की बात तो
    " नाम ही काफी है - रविकर " कहेना उचित होगा :)
    बेहतरीन चर्चा ...बेहतरीन लिंक

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय रविकर सर जी पठनीय सूत्रों से सजा शानदार चर्चा के लिए हार्दिक आभार आपका.

    जवाब देंहटाएं
  7. इस ब्लौग पर आनंदित होआ मन आकर
    मैं भी अपना ब्लौग बनाना चाहता हूं. मुझे बताएं कि मैं इस में गजट को कैसे ऊपर नीचे कर सकता हूं जैसे मैं सब से ऊपर घड़ी तत्पश्चात मां भारती की तस्वीर फिर भारत का झंडा फिर अपनी नयी रचना मुझे ब्लौगिंग की अधिक तकनिकी जानकारी नहीं है। मेरा मार्गदर्शन करें मुझे सरल यानी स्टैप से समझआएं. आप सब रचनाकार... सूचना मुझे मेरी ईमेल k.thakur444@gmail.com पर दें.
    krishan thukral.

    जवाब देंहटाएं
  8. शानदार सूत्रों का गुलदस्ता सजाया है रविकर भाई ने ,बधाई आपको |

    जवाब देंहटाएं
  9. सुंदर सूत्रों से सजी बहुत सार्थक चर्चा ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  10. पठनीय सूत्रों से अलंकृत प्रेरक चर्चा!!
    मेरे आलेख को समाहित करने के लिए आभार!!

    जवाब देंहटाएं
  11. बढ़िया लिंक्स
    सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

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