मित्रों!
बुधवार के चर्चा मंच के अंक-1486 में
आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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वाह ! वाह ! गोबिंद सिंह आपे गुरु चेला
उन्नयन पर udaya veer singh
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खालसा पंथ के संस्थापक
श्री गुरु गोबिन्दसिंहजी के 348 वें
प्रकाशोत्सव पर बधाई
अलबेला खत्री
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यह अभी नहीं तो कभी नहीं का खेल है,
जो जीता वही सिकन्दर होगा
अलबेला खत्री
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वाह ! वाह ! गोबिंद सिंह आपे गुरु चेला
उन्नयन पर udaya veer singh
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खालसा पंथ के संस्थापक
श्री गुरु गोबिन्दसिंहजी के 348 वें
प्रकाशोत्सव पर बधाई
अलबेला खत्री
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यह अभी नहीं तो कभी नहीं का खेल है,
जो जीता वही सिकन्दर होगा
अलबेला खत्री
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"विदुरनीति का हुआ सफाया"
मुक्तक गीत
सुख का सूरज नहीं गगन में।
कुहरा पसरा है आँगन में।।
......
जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है?
गांधीजी का मन्त्र कहाँ है?
जिसके लिए शहादत दी थी.
वो जनता का तन्त्र कहाँ है?
कब्ज़ा है अब दानवता का,
मानवता के इस कानन में।
कुहरा पसरा है आँगन में।...
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और उड़ना भी नहीं सिखाया ..
माँ ने अपनी नन्ही सी बिटिया को चिड़िया भी कहा
और उड़ना भी नहीं सिखाया..
नयी उड़ान + पर Upasna Siag
माँ ने अपनी नन्ही सी बिटिया को चिड़िया भी कहा
और उड़ना भी नहीं सिखाया..
नयी उड़ान + पर Upasna Siag
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हास्य कविता-काका हाथरसी
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा
हम भेड़-बकरी इसके यह गड़ेरिया हमारा...
भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा
हम भेड़-बकरी इसके यह गड़ेरिया हमारा...
भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार
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दिल का पैगाम
उनकी आमद से हसरतों को, मिले नए आयाम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम...
तमाशा-ए-जिंदगी पर
Tushar Raj Rastogi
उनकी आमद से हसरतों को, मिले नए आयाम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम...
तमाशा-ए-जिंदगी पर
Tushar Raj Rastogi
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"कुहरा और सूरज"
कुहरे और सूरज में,जमकर हुई लड़ाई।
सुख का सूरज
एक गीत
जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।।
ज्यों ही सूरज अपनी कुछ किरणें चमकाता,
लेकिन कुहरा इन किरणों को ढकता जाता,
बासन्ती मौसम में सर्दी ने ली अँगड़ाई।
जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।।
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अब तो चलना सीख लिया है...
पत्थर और अंगारों मे,
खड़ा खड़ा अब नहीं थकता,
इन लंबी लंबी कतारों में।
गांव मुझे बुलाता है,
याद भी बहुत आता है...
मन का मंथन पर Kuldeep Thakur
पत्थर और अंगारों मे,
खड़ा खड़ा अब नहीं थकता,
इन लंबी लंबी कतारों में।
गांव मुझे बुलाता है,
याद भी बहुत आता है...
मन का मंथन पर Kuldeep Thakur
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यादों का वो इक सफ़र है नाम दे गया
जाने वाला साल सब सुख चैन ले गया
नयनों में है नीर दिल में दर्द दे गया।
क्या मनाएं साल उस बिन अब लगे न दिल
एक झटके में सभी अरमान ले गया..
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
जाने वाला साल सब सुख चैन ले गया
नयनों में है नीर दिल में दर्द दे गया।
क्या मनाएं साल उस बिन अब लगे न दिल
एक झटके में सभी अरमान ले गया..
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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ग़ज़ल - याद पर याद किये..
याद पर याद किये जाओ तुम ॥
ख़ुद को बर्बाद किये जाओ तुम ॥
तुमको काँटों से है मोहब्बत गर
जाओ बाहों में लिये जाओ तुम...
डॉ. हीरालाल प्रजापति
याद पर याद किये जाओ तुम ॥
ख़ुद को बर्बाद किये जाओ तुम ॥
तुमको काँटों से है मोहब्बत गर
जाओ बाहों में लिये जाओ तुम...
डॉ. हीरालाल प्रजापति
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हमारी प्रार्थनाएँ आपके साथ हैं....!
दह्यमानाः सुतीत्रेण नीचा पर-यशोऽगिना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकृर्वते।।
‘‘दुर्जन आदमी दूसरों की कीर्ति देखकर
उससे ईर्ष्या करता है और
जब स्वयं उन्नति नहीं कर पाता
तो प्रगतिशील आदमी की निंदा करने लगता है।’’
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
दह्यमानाः सुतीत्रेण नीचा पर-यशोऽगिना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकृर्वते।।
‘‘दुर्जन आदमी दूसरों की कीर्ति देखकर
उससे ईर्ष्या करता है और
जब स्वयं उन्नति नहीं कर पाता
तो प्रगतिशील आदमी की निंदा करने लगता है।’’
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
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उनकी इस देन के लिए
मानव जाति उनकी ऋणी है
और ऋणी रहेगी -
महान वैज्ञानिक गैलिलियोलो क सं घ र्ष ! पर
Randhir Singh Suman
मानव जाति उनकी ऋणी है
और ऋणी रहेगी -
महान वैज्ञानिक गैलिलियोलो क सं घ र्ष ! पर
Randhir Singh Suman
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सामने सिर झुकावेगा
सुनो मत भयभीत होवो
खुदा से ए मेरे प्यारे मित्र
जिन्हें खुद पर यकीन नही
वह भयभीत करते हैं
न फंसों बातों में लोगों की...
आपका ब्लॉग पर Pathic Aanjana
सुनो मत भयभीत होवो
खुदा से ए मेरे प्यारे मित्र
जिन्हें खुद पर यकीन नही
वह भयभीत करते हैं
न फंसों बातों में लोगों की...
आपका ब्लॉग पर Pathic Aanjana
ब्रेन डेड और कोमा में क्या अंतर है ?
कबीरा खडा़ बाज़ार में पर
Virendra Kumar Sharma
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अनभिज्ञ व्यक्ति (जन साधारण ),
जो चिकित्सा विज्ञान का माहिर नहीं है
'कोमा ' और 'ब्रेन डेड 'को एक ही बात समझ सकता है।
लेकिन चिकित्सा विज्ञान में इनका अर्थ
एक दम से अलग अलग है।
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--
समय की शिला पर...!
मुरझाते हुए खिलते हुए...
कोहरों में मिलते हुए...
कोहरे से ही निकलते हुए...
अजानी राहों के राही हम...
जुदा डगर पर चलते हुए...
सपनों की तरह नयनों में पलते हुए...
एक अरसे बाद मिले हम...
अनुशील पर अनुपमा पाठक -
--
चली बनके दुल्हन
उस साल दिवाली आयी और चली गयी...
मेरे लिए बिरह का तोहफा दे गयी...
BIKHARE SITARE पर kshama
--
अंधरौटी
पूस के अंजोरी रात रिहिसे।
तेन पाय के रात के घलोक बियारा ले बेलन
अउ दउरी के आरो मिलत रिहिस।
अरा ररा.... होर होर, हररे हररे...
चारीचुगली पर जयंत साहू
--
डूबता सूरज और -टुकड़ों में बिखरी मैं
अक्सर ही मै शाम को
डूबते सूरज को घर की --
सबसे ऊँची छत से निहारती फिर
देर तक रोई अपनी आँखों की लाली
मै सूरज को सौंप के नीचे आ जाती
पता है क्यूँ ...
ये पन्ने ........सारे मेरे अपने -पर
Divya Shukla
--
अपनी करनी पर उतरनी-
लघु कथा
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
--
मेरी माँ
सात जनवरी २ ० ० १ को काल के क्रूरतम चक्र ने
मेरी माँ को मुझ से जुदा कर दिया था
पर मुझे कई बार महसूस हुआ है कि
अगर हम किसी को बेइन्तहा प्यार करते हैं तो
दुनिया की कोई ताकत
हमें उनसे जुदा नहीं कर सकती....
Tere bin पर
Dr.NISHA MAHARANA
कबीरा खडा़ बाज़ार में पर
Virendra Kumar Sharma
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अनभिज्ञ व्यक्ति (जन साधारण ),
जो चिकित्सा विज्ञान का माहिर नहीं है
'कोमा ' और 'ब्रेन डेड 'को एक ही बात समझ सकता है।
लेकिन चिकित्सा विज्ञान में इनका अर्थ
एक दम से अलग अलग है।
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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समय की शिला पर...!
मुरझाते हुए खिलते हुए...
कोहरों में मिलते हुए...
कोहरे से ही निकलते हुए...
अजानी राहों के राही हम...
जुदा डगर पर चलते हुए...
सपनों की तरह नयनों में पलते हुए...
एक अरसे बाद मिले हम...
अनुशील पर अनुपमा पाठक -
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चली बनके दुल्हन
उस साल दिवाली आयी और चली गयी...
मेरे लिए बिरह का तोहफा दे गयी...
BIKHARE SITARE पर kshama
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अंधरौटी
पूस के अंजोरी रात रिहिसे।
तेन पाय के रात के घलोक बियारा ले बेलन
अउ दउरी के आरो मिलत रिहिस।
अरा ररा.... होर होर, हररे हररे...
चारीचुगली पर जयंत साहू
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डूबता सूरज और -टुकड़ों में बिखरी मैं
अक्सर ही मै शाम को
डूबते सूरज को घर की --
सबसे ऊँची छत से निहारती फिर
देर तक रोई अपनी आँखों की लाली
मै सूरज को सौंप के नीचे आ जाती
पता है क्यूँ ...
ये पन्ने ........सारे मेरे अपने -पर
Divya Shukla
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अपनी करनी पर उतरनी-
लघु कथा
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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मेरी माँ
सात जनवरी २ ० ० १ को काल के क्रूरतम चक्र ने
मेरी माँ को मुझ से जुदा कर दिया था
पर मुझे कई बार महसूस हुआ है कि
अगर हम किसी को बेइन्तहा प्यार करते हैं तो
दुनिया की कोई ताकत
हमें उनसे जुदा नहीं कर सकती....
Tere bin पर
Dr.NISHA MAHARANA
सुन्दर चर्चा, हमेशा की तरह...!
जवाब देंहटाएंआभार!
बड़ी ही रोचक चर्चा प्रस्तुत की आपने
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा में मुझे मान व सथान दिया आभार।
जवाब देंहटाएंहर बार कि तरह बेहतरीन लिंकों के चयन के साथ बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण। मेरी प्रस्तुति को स्थान देने के लिए सादर आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा ! उल्लूक का "समय खुद लिखे हुए का मतलब भी बदलता चला जाता है" को स्थान दिया आभार !
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह
जवाब देंहटाएंbahut sundar thanks nd aabhar ....
जवाब देंहटाएंगुरुदेव प्रणाम ,मेरी गजल को स्थान देने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंमेरी छत्तीसगढ.ी कहानी को भी स्थान मिला है;
जवाब देंहटाएंस्थान देने के लिए शुक्रिया
लाजवाब लिंक..
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''याद पर याद किये जाओ तुम.....'' को शामिल करने हेतु ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया व अच्छे सूत्र , मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएं|| जय श्री हरिः ||
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-