मित्रों।
शनिवार के चर्चाकार आदरणीय राजीव कुमार झा ने
सूचित किया है कि आज वो बाहर रहेंगे।
इसलिए आज की चर्चा में मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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"आप" हुए मदहोश
आम आदमी के लिए, कौन आम या खास।
तोड़ा है सबने सुमन, आम लोग विश्वास...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
आम आदमी के लिए, कौन आम या खास।
तोड़ा है सबने सुमन, आम लोग विश्वास...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
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संजीवनी भूले --
पथिक अनजाना
पथिक अनजाना
जब जब अवतारों ने मानवता को जीवित रखने की खातिर
अनथक परिश्रम से संजीवनी शक्ति फैलाने का श्रम किया
जब जब भागीरथी ने मानवता के शुद्धिकरण की खातिर
गंगा को धरा पर अवतरित करने हेतू अपना जीवन दिया...
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श्याम स्मृति......
अकर्म ---
शासन, जन-सामान्य, विद्वतजन, संस्थायें ,
सामाजिक -संस्थायें , आप और हम
सभी को इसके बारेमें सोचना चाहिए
एवं इनसे बचना चाहिए , विरोध करना चाहिए |
डा श्याम गुप्त ..
अकर्म ---
शासन, जन-सामान्य, विद्वतजन, संस्थायें ,
सामाजिक -संस्थायें , आप और हम
सभी को इसके बारेमें सोचना चाहिए
एवं इनसे बचना चाहिए , विरोध करना चाहिए |
डा श्याम गुप्त ..
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बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा-
लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान ...
रविकर की कुण्डलियाँ
लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान ...
रविकर की कुण्डलियाँ
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एक पाठक का चुनाव :
टेड कूजर
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )
किसी कविता को , कविता की किसी किताब , कवि के कृतित्व को उसका अपना , अपने किस्म का पाठक मिले इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ! पाठक कैसा हो ? उसे कैसा होना चाहिए ? उसे कैसा दीखना चाहिए? उसे कैसा सोचना चाहिए? इस प्रकार के प्रश्न और उत्तरों की एक सरणि है जो चल रही और चलती रहेगी। आइए , कुछ इसी तरह की बात से जुड़ती हुई एक कविता पढ़ते हैं जिसे लिखा है मशहूर अमेरिकी कवि टेड कूजर ने। आज से कई साल पहले 'द न्यूयार्क टाइम्स ' को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि 'Poetry can enrich everyday experience, making our ordinary world seem quite magical and special.' आइए इस छोटी - सी कविता के बहाने देखने की एक कोशिश करते हैं कि हमारी रोज की दुनिया में कविता की कैसी दुनिया है और वह इस दुनिया की दैनन्दिन साधारणता में कितना और कैसा जादू उपस्थित कर पाती है...
कर्मनाशा पर siddheshwar singh
टेड कूजर
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )
किसी कविता को , कविता की किसी किताब , कवि के कृतित्व को उसका अपना , अपने किस्म का पाठक मिले इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ! पाठक कैसा हो ? उसे कैसा होना चाहिए ? उसे कैसा दीखना चाहिए? उसे कैसा सोचना चाहिए? इस प्रकार के प्रश्न और उत्तरों की एक सरणि है जो चल रही और चलती रहेगी। आइए , कुछ इसी तरह की बात से जुड़ती हुई एक कविता पढ़ते हैं जिसे लिखा है मशहूर अमेरिकी कवि टेड कूजर ने। आज से कई साल पहले 'द न्यूयार्क टाइम्स ' को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि 'Poetry can enrich everyday experience, making our ordinary world seem quite magical and special.' आइए इस छोटी - सी कविता के बहाने देखने की एक कोशिश करते हैं कि हमारी रोज की दुनिया में कविता की कैसी दुनिया है और वह इस दुनिया की दैनन्दिन साधारणता में कितना और कैसा जादू उपस्थित कर पाती है...
कर्मनाशा पर siddheshwar singh
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"बेच रहा मैं भगवानों को"
बेच रहा मैं भगवानों को!
खोज रहा हूँ श्रीमानों को!!
ये सब मेरे भाग्य-विधाता!
भक्तों जोड़ो इनसे नाता!!
नन्हे सुमन
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बीड़ी जलइले
शादीवाले घरों में अक्सर कमरे का बंटवारा कर दिया जाता है। पुरुषों के कमरे अलग। औरतों के कमरे अलग। वो औरतों का कमरा था। बिहार के लोग थे ज्यादातर। शादी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में थी। कमरे की दीवारों से लगे जमीन पर बिछे गद्दे। सब पर चादर-तकिए वगैरा लगे थे। उन पर टेक लगाए ज्यादातर बुढ़ियाएं। सब की सब बीड़ी सुलगा रही थी...
वर्षा
शादीवाले घरों में अक्सर कमरे का बंटवारा कर दिया जाता है। पुरुषों के कमरे अलग। औरतों के कमरे अलग। वो औरतों का कमरा था। बिहार के लोग थे ज्यादातर। शादी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में थी। कमरे की दीवारों से लगे जमीन पर बिछे गद्दे। सब पर चादर-तकिए वगैरा लगे थे। उन पर टेक लगाए ज्यादातर बुढ़ियाएं। सब की सब बीड़ी सुलगा रही थी...
वर्षा
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"गधे बन गये अरबी घोड़े"
चाँदी की थाली में, सोने की चम्मच से खाने वाले।
महलों में रहने वाले करते, घोटालों पर घोटाले।।
नाम बड़े हैं दर्शन थोड़े,
गधे बन गये अरबी घोड़े,
एसी में अय्यासी करते,
ये घोड़े हैं बहुत निगोड़े,
खादी की केंचुलिया पहने, बैठे विषधर काले-काले।
उच्चारण
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बंद अगर तो ढंग से बंद :
व्यंग्य संग्रह
नुक्कड़
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हिंदी के सुपरिचित नवगीतकार
-श्रीकृष्ण तिवारी
श्रीकृष्ण तिवारी की हस्तलिपि में एक गीत
सुनहरी कलम से...पर जयकृष्ण राय तुषार
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सीप सा होना चाहती हूँ ...
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव
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आज राजा के जैसा...
डॉ. हीरालाल प्रजापति
-
'रहें ना रहें हम महका करेंगे'…
श्रद्धांजलि ।
सुचित्रा सेन
अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत"
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बंद अगर तो ढंग से बंद :
व्यंग्य संग्रह
नुक्कड़
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हिंदी के सुपरिचित नवगीतकार
-श्रीकृष्ण तिवारी
श्रीकृष्ण तिवारी की हस्तलिपि में एक गीत
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सीप सा होना चाहती हूँ ...
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव
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आज राजा के जैसा...
डॉ. हीरालाल प्रजापति
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'रहें ना रहें हम महका करेंगे'…
श्रद्धांजलि ।
सुचित्रा सेन
अंधड़ ! पर पी.सी.गोदियाल "परचेत"
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सुन्दर, रोचक व पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स शास्त्री जी आपका बहुत -बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत सूत्रों से की चर्चा ,शास्त्री जी आपका बहुत -बहुत आभार |सूचना में-राजीन को कृपया राजीव कर दें,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा--
आभार गुरुवर
बहुत सुन्दर लिनक्स आभार आदरणीय ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बढ़िया पेशकश के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार , शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंएक और खूबसूरत चर्चा सुंदर सूत्रों से सरोबार । उल्लूक का "समय के साथ मर जाने वाले लिखे पढ़े को
जवाब देंहटाएंछापने से क्या होगा" को स्थान देने के लिये आभार !
बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंमेरी रचना ''आज राजा के जैसा... '' को शामिल करने हेतु धन्यवाद ! मयंक जी !
जवाब देंहटाएं