नमस्कार....
ठंड के साथ बारिश के छींटे कुछ अजब ही अनुभव दे जाते....
एक अलग एहसास जैसा....
कलम को उठाने की वजह भी दे जाती ये सोंधी महक.....
कुछ पुराने दिन लिख देते....कुछ नए से....
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खैर जो भी हो
आज चर्चामंच की रविवारीय मंच पर मेरा
ई॰ राहुल मिश्रा का प्यार भरा नमस्कार.....!!!
.....अपने पसंदीदा लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ.....
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अब थोड़े दिन में बगिया के,
वृक्ष सभी बौराने वाले।
अपने उपवन के बिरुओं में
फूल बसन्ती आने वाले।।
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(नीलेश माथुर)
मैं एक आम आदमी
अब भी नहीं पहुंची है
परिवर्तन की लहर
मेरे जीवन मे,
सुबह के इंतज़ार मे
गुजरती है हर रात
हर सुबह फिर से ले आती है
अनगिनत चिंताओं की सौगात,
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(सुरेश स्वप्निल)
हर ज़ख़्म सुलगता है यारों की दुआओं से
पर बाज़ नहीं आते कमबख़्त जफ़ाओं से
ईमां-ए-दुश्मनां ने उम्मीद बचा रक्खी
बेज़ार हुए जब-जब अपनों की अनाऑ से
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(आशा सक्सेना)
कहाँ हूँ कैसी हूँ किसी ने न जाना
ना ही जानना चाहा
है क्या आवश्यकता मेरी
मुझ में सिमट कर रह गयी |
सारी शक्तियां सो गईं
दुनिया के रंगमंच पर
नियति के हाथ की
कठपुतली हो कर रह गयी |
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(रोशी)
बेटियां और धान का पौधा ,पाते हैं दोनों एक सी किस्मत
बोई जाती हैं कहीं ,रोपी जाती हैं रही और कंहीं ....
किस्मत होती अच्छी ,मिलती पौधे को उपजाऊ जमीं
खिल उठता ,फल -फूल जाता पाकर उचित देखभाल
बेटियां भी अगर पाती संस्कारी परिवार ,तो दमक उठता उनका रूप
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(वंदना शुक्ला)
मेक्सिम गोर्की
दशकों पहले
क्यूँ लगा था तुम्हे कि
स्वार्थ का क्षरण और संवेदनाओं की हिफाज़त
प्रथ्वी को बचाए रखने की सबसे ज़रूरी
कोशिश है
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(इमरान अंसारी)
समुंदर के किनारे
दूर तक फैली रेत पर
ताड़ के पेड़ से पीठ टीका
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(पथिक अंजाना)
बुजुर्गान भांप लेते दिल में तुम्हारे जो छिपा हैं
बनावट चेहरे या जुबान की बेनकाब हो जाती हैं
निगाहें हावभाव खुद तुम्हारेख्वाब जाहिर करते हैं
नही जरूरत उन्हें पूछने की कर्म हाजरी भरते हैं
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(डॉ कीर्तिवर्धन)
राष्ट्र का सम्मान करना चाहिये,
निज धारा का मान करना चाहिये।
सीखिये भाषाएँ, बोली, सारे विश्व की,
राष्ट्रभाषा पर अभिमान करना चाहिये।
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(चन्द्र भूषण मिश्र)
काश के ग़ाफ़िल! तेरे तसव्वुर में कोई खो जाता यूँ के
अहले ज़माना फिर कह उठता इश्क़ दीवाना होता है
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(सतीश सक्सेना)
बिन जाने तथ्यों की हंसी,उड़ाएंगे उल्लू के पट्ठे !
विद्वानों के बीच, जोर से , बोलेंगे उल्लू के पट्ठे !
निपट झूठ को आसानी से,सत्य बनाए चुटकी में
एक बात को बार बार, दोहराएंगे उल्लू के पट्ठे !
बड़बोले बेशर्मों जैसे, चमचा गीरी करते करते !
गंगू तेली,को ही भोज बताएँगे , उल्लू के पट्ठे !
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(रविकर)
सदियों से चम्पी करे, पंजे नोचें बाल |
कंघी बेंचे वह धड़ा, गंजे करें सवाल |
गंजे करें सवाल, नया हेयर कट पाया |
हर दिन अति उम्मीद, दीप नित नया जलाया |
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(अनुपमा त्रिपाठी)
कोलाहल में शून्यता
स्वार्थ से परमार्थ का बोध
अपने से अपनों तक
और अपनों से अपने तक
सत्य स्वत्व है
निज घट यात्रा
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(मीनाक्षी पंत)
जो मिल नही सकता उसका जिक्र ही कैसा ,
जो साथ है अपने उस से पर्दा फिर कैसा |
छुपाना क्यों , किससे हकीकत - ए - आरजू ,
सुख - दुःख है जिंदगी तो भ्रम फिर कैसा |
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(वंदना गुप्ता)
और एक खास भूख और होती है
जो अपना सर्वस्व खो देती है
फिर भी ना मिलकर मिलती है
प्रेम की भूख
शाश्वत प्रेम की चाहना
आदिम युग से अन्तिम युग तक भटकती
जो मिटकर भी ना मिटती
जिसकी चाह में
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(कैलाश शर्मा)
देखते जब स्वप्न
केवल अपने लिये
रह जाता बनके
केवल एक स्वप्न।
(नीरज कुमार)
आसमान से ऊपर
है एक सुन्दर बाग़
जहाँ रहती हैं परियां
नाजुक मुलायम
ऊन के गोले सी.
खिलते हैं सुवासित
सुन्दर फूल.
वहां बहती है एक नदी,
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....धन्यवाद....
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आगे है "मयंक का कोना"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान और
पांडव गुफाओं की खूबसूरत यादें
मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
--
पेट्रोल पंप वाले हमें कैसे धोखा देते है....
--
नोकिया का आखिरी फोन, आखिरी सलाम..!!
KNOWLEDGE FACTORY पर मिश्रा राहुल
--
शिक्षा और दूरियाँ
अंतर्नाद की थाप पर Kaushal Lal
--
चिंता
संघ बिल्ली है, चुपके सी आके आपके घर की दूध पि जाती है, और आप चाय से वंचित रह जाते है, संघ के लोग आपका बीडी छीन के पि जाते है, निश्चित ही ये दुःख की बात है, संघ के लोग आपके घर आके, खाना पीना भी भाभी/ माताजी जी से छीन छान के खा जाते होंगे, निश्चित ही यह अक्षम्य पाप है. ...
नारद पर कमल कुमार सिंह (नारद )
--
आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
--
बहुत भला होता है
भले के लिये ही
भला कर रहा होता है
ऐसा नहीं है कि भला करने वाले नहीं है
बहुत हैं बहुतों का भला करते हैं
अब इसमें क्या बुराई है कि ऐसा करने से
उनका भी कुछ कुछ
थोड़ा-थोड़ा सा भला हो जाता हो ...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
"उदगार ढो रहे हैं"
उनको जगा रहे हैं, जो हार सो रहे हैं।..
सुख का सूरज
--
परिस्थितियों से विवश
---पथिक अनजाना
--
धुंध
(लघुकथा)
क्या मुसीबत है,
ये स्कूल वाले तो सर्दियों की छुटियाँ
आगे ही बढ़ाते जा रहे हैं।
अब तो इतनी सर्दी भी नहीं है
पहले अच्छे भले पन्द्र्ह तारिख को स्कूल खुलने वाले थे
और अब बीस तारिख को खुलेंगे।
बस थोड़ी धुंध है...
आपका ब्लॉग पर सीमा स्मृति
--
कार्टून :-
मीडिया एकदम बकवास है जी...
--
दर्द का धुऑं है,
न जाने कहॉं कहॉं से उठता है
काजल कुमार के कार्टून
--
आगे है "मयंक का कोना"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान और
पांडव गुफाओं की खूबसूरत यादें
मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
--
पेट्रोल पंप वाले हमें कैसे धोखा देते है....
--
नोकिया का आखिरी फोन, आखिरी सलाम..!!
KNOWLEDGE FACTORY पर मिश्रा राहुल
--
शिक्षा और दूरियाँ
अंतर्नाद की थाप पर Kaushal Lal
--
चिंता
संघ बिल्ली है, चुपके सी आके आपके घर की दूध पि जाती है, और आप चाय से वंचित रह जाते है, संघ के लोग आपका बीडी छीन के पि जाते है, निश्चित ही ये दुःख की बात है, संघ के लोग आपके घर आके, खाना पीना भी भाभी/ माताजी जी से छीन छान के खा जाते होंगे, निश्चित ही यह अक्षम्य पाप है. ...
नारद पर कमल कुमार सिंह (नारद )
--
आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
--
बहुत भला होता है
भले के लिये ही
भला कर रहा होता है
ऐसा नहीं है कि भला करने वाले नहीं है
बहुत हैं बहुतों का भला करते हैं
अब इसमें क्या बुराई है कि ऐसा करने से
उनका भी कुछ कुछ
थोड़ा-थोड़ा सा भला हो जाता हो ...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
"उदगार ढो रहे हैं"
ऊसर जमीन में हम, उपहार बो रहे हैं।
हम गीत और गजल के उदगार ढो रहे हैं।।
बन कर सजग सिपाही, हम दे रहे हैं पहरे,
हम मेट देंगे अपने, पर्वत के दाग गहरे,उनको जगा रहे हैं, जो हार सो रहे हैं।..
सुख का सूरज
परिस्थितियों से विवश
---पथिक अनजाना
--
धुंध
(लघुकथा)
क्या मुसीबत है,
ये स्कूल वाले तो सर्दियों की छुटियाँ
आगे ही बढ़ाते जा रहे हैं।
अब तो इतनी सर्दी भी नहीं है
पहले अच्छे भले पन्द्र्ह तारिख को स्कूल खुलने वाले थे
और अब बीस तारिख को खुलेंगे।
बस थोड़ी धुंध है...
आपका ब्लॉग पर सीमा स्मृति
--
कार्टून :-
मीडिया एकदम बकवास है जी...
--
दर्द का धुऑं है,
न जाने कहॉं कहॉं से उठता है
काजल कुमार के कार्टून
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंकार्टून शानदार
बहुआयामी लिंक्स से सजा है चर्चा मंच आज |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
सुप्रभात मित्रों...।
जवाब देंहटाएंआज रविवार का दिन है।
मौसम का मज़ा लीजिए।
काम के साथ-साथ
कुछ आराम भी कीजिए
और आज की चर्चा को बाँचिए।
--
आभार राहुल मिश्रा जी आपका।
सुन्दर चर्चा, मेरी रचना "चिंता" को स्थान देने के लिए धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंसादर
कमल
बहुत सुन्दर और रोचक सूत्र..
जवाब देंहटाएंबहुत ही मेहनत से किया गया सूत्र संकलन , एक से बढ़कर एक पठनीय सामग्री .. मेर्री रचना "आसमान से ऊपर का बाग़ " को शामिल करने के लिए शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
उम्दा चर्चा के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रोचक सूत्र ..! मेरी पोस्ट को शामिल करने केलिए आभार ,शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
बढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन - : कंप्यूटर है ! तो ये मालूम ही होगा
बहुत सुन्दर और रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने का बहुत २ शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सुसज्जित सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंमम्मी जी ! जब गुड खाते हैं, तब गुलगुले से बैर नहीं करते.....
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा, मजेदार लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा, आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा ....बहुत सुंदर लिंक्स ....हृदय से आभार मेरी रचना को यहाँ स्थान दिया राहुल जी !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया राहुल जी हमारे ब्लॉग कि पोस्ट को यहाँ शामिल करने का |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंउल्लूक का "बहुत भला होता है भले के लिये ही भला कर रहा होता है" को शामिल किया आभार !