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सोमवार, जनवरी 27, 2014

"आशाओं-निराशाओं की आंखमिचोली" (चर्चा मंच-1505)

मित्रों। 
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गणतंत्र दिवस
चलो फिर से खुद को जगाते हैं;
अनुशासन का डंडा फिर घुमाते हैं;
सुनहरा रंग है गणतंत्र का शहीदों के लहू से;
ऐसे शहीदों को हम सब सर झुकाते हैं।

भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार

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"गणतन्त्र महान" 

नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥
ज्ञान गंग की बहती धारा ,
चन्दा , सूरज से उजियारा ।
आन -बान और शान हमारी -
संविधान हम सबको प्यारा ।
प्रजातंत्र पर भारत वाले करते हैं अभिमान ।
उच्चारण
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पराशक्ति 
 मेरे पैतृक गाँव गौरीउडियार 
(जो अब बागेश्वर जिला, उत्तराखण्ड में है) 
में एक बहुत बड़ी पौराणिक काल की प्रस्तर गुफा है, 
जिसे माता गौरी और भगवान शिव के 
मन्दिर के रूप में मान्यता दी गयी है....
जाले
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय)
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विचारें गणतंत्र – 
पारदर्शिता या पासदर्शिता ? 
आज हम आ खडे फिर इक चौराहे पर 
हैं राह जिसमें मनाई हैं खट्टी मीठी बरसियाँ  
दूजी पार के मुखौटे में छिपी पासदर्शिता  
तीजी गणतंत्र में विशुद्ध पारदर्शिता की हैं...
पथिकअनजानाआपका ब्लॉग
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२६ जनवरी इमरोज़ के जन्मदिन पर … 

 आज का ही दिन था 
जब रंगों से खेलता वह 
माँ की कोख से उतर आया था 
और ज़िन्दगी भर रंग भरता रहा 
मुहब्बत के अक्षरों में .... 
कभी मुहब्बत का पंछी बन गीत गाता 
कभी दरख्तों के नीचे हाथों में हाथ लिए 
राँझा हो जाता ....
हरकीरत ' हीर'
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यह दिन इतिहास में विशेष रहे 

फ्रॉक के घेरे को गोल गोल घुमाती 
खुद घेरे के संग गोल गोल घूमती 
मैंने सुना था तुम्हारा नाम 
और नन्हें मन ने सोचा था - 
कौन है ये इमरोज़ ! 
थोड़ी बड़ी हुई तो जाना - 
अमृता का इमरोज़ ...
मेरी भावनायें... पर रश्मि प्रभा..
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अपने ही देश में तिरंगा पराया हो जाएगा... 
किसने सोंचा था! 
‘‘केसरिया’’ 
आतंक के नाम से जाना जाएगा.. 
‘‘सादा’’ 
की सच्चाई गांधी जी के साथ जाएगा.. 
‘‘हरियाली’’ 
के देश में किसान भूख से मर जाएगा...
चौथाखंभा पर ARUN SATHI 
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यह खनक कैसी हुयी ? 
कुछ गिरा क्या ? 
मैं जिन्दगी मैं दौड़ता जा रहा था 
यह खनक कैसी हुयी ? 
कुछ गिरा क्या ? ... 
देखता हूँ ...उठाता हूँ ...
Shabd Setu पर RAJIV CHATURVEDI 
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मानव कौल- उम्मीदों का आसमान 

वक़्त कैसा भी हो, 
मन कितनी भी मनमानियां कर रहा हो, 
कुछ ठिए ऐसे होते हैं 
जहाँ पल भर ठहरना सुकून देता है.…
प्रतिभा की दुनिया ... पर 
Pratibha Katiyar 
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सिद्धान्तहीन राजनीति और 
नकारात्मक आलोचनाओं का गणतंत्र ! 
यह जनादेश का अपमान ही होगा कि 
चुनी हुयी सरकारों को 
सिर्फ इसलिये गाली दी जाये कि 
काश हम सत्ता में क्यों न हुए... 
HASTAKSHEPरांचीहल्ला पर Amalendu Upadhyay
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आओ गण तंत्र दिवस मनाएं... 
जलाकर लोकतंत्र की मशाल, 
दिखता है भारत अब खुशहाल, 
आशा, उमंग, अमन का, 
दे रहा है संदेश मित्रता का। 
भारत की सार्वभौमिकता देखो कहीं मिटने न पाए, 
इस शपथ के साथ हम, 
आओ गण तंत्र दिवस मनाएं... 
मन का मंथन। पर Kuldeep Thakur 
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"प्यार लेकर आ रहे हैं" 

प्रीत और मनुहार लेकर आ रहे हैं।
हम हृदय में प्यार लेकर आ रहे हैं।।

गाँव का होने लगा शहरीकरण,
सब लुटे किरदार लेकर आ रहे हैं।
हम हृदय में प्यार लेकर आ रहे हैं।।
सुख का सूरज
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नज़्म कहते हैं किसे और ग़ज़ल कहाँ पर है 
 कौन सी बात दिल में और क्या जुबाँ पर है 
बंदगी ,बेकली ,दर- ब-दर का फिरना 
जाने इलज़ाम क्या क्या मेरे गिरेबाँ पर है...
कविता-एक कोशिश पर नीलांश

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मैं तुम हम अहम् 

मै-मैगल अंकुश-रहित, *गलगाजन जलकेलि  |
पग जकड़े गलग्राह जब, होय बंद अठखेलि |
मैगल=हाथी    गलगाजन=आनंद से गरजना

होय बंद अठखेलि, ताल में ताल ठोंकते  |
लड़ें युद्ध गज-ग्राह, समूची शक्ति झोंकते |

शिथिल होंय पद-चार, शुण्ड ऊपर कर विह्वल |
त्राहिमाम उच्चार, हुआ प्रभुमै मै मैगल ॥
"कुछ कहना है"
रविकर
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केवल एक सोच 
मृत्यु जीवन का एक शाश्वत सत्य, जिसे देख जिसके बारे में सुन आमतौर पर लोग भयभीत रहते हैं। लेकिन मेरे लिए यह हमेशा से चिंतन का विषय रहा। इससे मेरे मन में सदा हजारों सवाल जन्म लेते हैं। जब भी इस विषय से जुड़ा कुछ भी देखती या पढ़ती हूँ तो बहुत कुछ सोचने लगती हूं। या इस विषय को लेकर मेरे मन में सोचने-समझने की प्रक्रिया स्वतः ही शुरू हो जाती है...
मेरे अनुभव पर Pallavi saxena
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शब्दों के पुल
आड़ी-तिरछी 
जीवन की डगर 
सँभलकर 
***** 
जुड़ें हैं हम 
विविध होकर भी 
ज्यों मालगाड़ी 
***** 
मिलाए छोर 
जीवन और मृत्यु 
शब्दों के पुल
अंतर्मन की लहरें पर सारिका मुकेश
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गणतन्त्र दिवस की शुभकमानाएँ 
आग भी है शोले भी हैं....
हम बारूद के गोले भी हैं....
रण ही ठहर गया खुद....
छाती बदन तो खोले ही हैं...

KNOWLEDGE FACTORY पर मिश्रा राहुल 
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कोई है साँप, कोई साँप का निवाला है... 
मयंक अवस्थी

फ़लक है सुर्ख़ मगर आफ़ताब काला है 
अन्धेरा है कि तिरे शहर में उजाला है... 
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
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'शब्दों के पुल' की समीक्षा 

*मर्मस्पर्शी हाइकुओं का संकलन है* 
*“शब्दों के पुल”* 
अंतर्मन की लहरें पर सारिका मुकेश
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कोई गुलाम नहीं रह गया था  
तो हल्ला किस आजादी के लिये हो रहा था 
समझ में कुछ
आया या नहीं
बस ये ही पता
नहीं चला था
पर रट गया था
पंद्रह अगस्त दो अक्टूबर
और छब्बीस जनवरी
की तारीखों को
हर साल के नये
कलैण्डर में हमेशा
के लिये लाल कर
दिया गया था...

उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी

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आर्य आक्रमण की कल्पना 
मात्र एक कुटिल कल्पना 
हित्ती(कुर्दिस्तान ) सभ्यता में वृषभ   हमारी पाठ्य पुस्तकों में और इतिहास की पुस्तकों के यह मिथक बार बार प्रचारित किया जाता रहा है की "आर्य  और द्रविड़ " नस्लीय शब्द है , द्रविड़ यहाँ के मूल निवासी थे और आर्य विदेशी आक्रमणकारी थे | यद्यपि यह धरना किसी भी साक्ष्य पर आधारित नहीं थी और पूर्णतयः असत्य भी सिद्ध हो चुकी है परन्तु ...
मुक्त सत्य 

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    कहीं जाइयेगा कहीं भ्रष्टाचार लौटेगा ब्रेक के बाद |शब्दों के पुल पार किये हैं कई वाडे किये हैं |
    पूरे हों ना हों |
    अच्छी लिंक्स आज चर्चा मंच पर |
    आशा

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  2. अति सारगर्भित चर्चा, आनन्द आ गया, संयोजन में बहुत मेहनत की गयी है.
    फलक है सुर्ख मगर आफताब काला है.
    काजल कुमार जी का सत्य उजागर करता हुआ कार्टून.
    पल्लवी जी के अनुभव,
    नया वर्ष स्वागत करता है पहन नए परिधान.
    सुलेखन और सुसयोजन के लिए शास्त्री जी को हार्दिक बधाइयाँ.

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  3. बहुत सुन्दर और आकृषक चर्चा .
    आभार शास्त्री जी और शुभकामनाएं .

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  4. बढ़िया लिंक्स...
    इमरोज़ जी को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ!!
    हमारी पुस्तक की समीक्षा के लिंक को यहाँ स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवं ६५वें गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें !

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  5. बहुत सुंदर चर्चा !
    उल्लूक का 'कोई गुलाम नहीं रह गया था तो हल्ला किस आजादी के लिये हो रहा था ' को शामिल किया आभारी हूँ !

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  6. बहुत सुन्दर और बढ़िया लिंक्स,आपका हार्दिक आभार.

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  7. सुंदर सूत्र संकलन ! धन्यवाद एवँ आभार आपका शास्त्री जी !

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  8. सुन्दर संयोजन ..मेरी भावाभिव्यक्ति के प्रति आपके स्नेह और सम्मान के लिए आपका हृदय से आभार ...बहुत शुभ कामनाएँ !
    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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