नमस्कार....
आज बड़ी दिन बाद बचते बचाते निकल आई धूप हमारे गलियारे में और अजीब हरकत करने लगती हमारी कलम अचानक जैसे कोई छोटे बच्चे का हाथ पकड़ के कुछ लिखाना चाह रहा हो...!!
यादो के दरीचों से देखो आज..
कैसे छन रही महीन किरने...!!
बयार भाग रही उरस के..
वादों से भरी अनसुलझी गुच्छी...!!
पक रहा कही डेऊढ़ी तक आ..
गई किसी के अरमानो की महक...!!
आखों में चिपकाए ख्वाब आज..
ताप रहा चेहरा मधिम आंच पर...!!
जा पोछ ले लाल हो गया चेहरा फिर ..
पूछुंगा कितने अरमान ख़ाक किया...!!
आज इस वर्ष की पहली रविवारीय चर्चा मे ई॰ राहुल मिश्रा का आप सभी को प्यार भरा नमस्कार....
चलिये कुछ अपने चुनिन्दा लिंक परोसता हूँ मैं....
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भूख आगे बढने की
कभी देख ही नहीं पाती
कौन मरा कौन जीया
किसकी लाश पर पैर रखकर
किसने कौन सा खिताब पाया
भूख तो आखिर भूख है
शांत होने के लिये
कहीं ना कहीं कोई तो अलाव जलाना होगा
रोटियाँ बिना आग के नहीं पका करतीं
फिर चाहे सारे नियमों , नीतियों को ही
नेस्तनाबूद क्यों ना करना पडे
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तमाम रास्ते
बिखरे पत्ते
सूखे चरमराते हुए
अपने अंत की कहानी कह रहे थे
मुर्झाए फूल
अपनी शाख से गिर कर
अपनी निरर्थकता को कोस रहे थे
उस राह से गुजरते हुए
न जाने क्यों
कुछ मुर्झाए फूल
और पत्ते बटोर लिए मैंने
''हर जीवन का हश्र यही''
सोचते-सोचते न जाने कब
अपने आँचल की छोर में बँधी
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३.अब तो कुछ बात हो....अनीता
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३.अब तो कुछ बात हो....अनीता
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फूलों से बात करें, बिछौना बने घास
डालियों के साथ झूमें, निहारें आस-पास
चाँद संग होड़ लगे, चाँदनी संग हम भी जगें
सो लिए बरसों बरस, अब तो प्रमाद छंटे
जीवन को मांग लें, अनकही प्रीत को
सीख लें कुदरत से, बंटने की रीत को
स्वप्नों को तोड़ दें, सच से मुलाकात हो
भरमाते उम्र बीती, अब तो कुछ बात हो
आँखों में डाल आँखें, खुद से भी मिलें कभी
होना ही काफी है, बन न कुछ पाए कभी
होकर ही जानेंगे, कुदरत का हैं हिस्सा
जाने कब आँख मुँदे, बन जाएँगे किस्सा
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कुहरे की फुहार से,
ठहर गया जन-जीवन।
शीत की मार से,
काँप रहा मन और तन।
--
माता जी लेटी हैं,
ओढ़कर रजाई।
काका ने तसले में,
लकड़ियाँ सुलगाई।
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शून्य को खाते-पीते हुए
शून्य को ही मरते-जीते हुए
हम जैसे शून्यवादी लोग
अंकों के गणित पर
या गणित के अंकों पर
आदतन आशिक-मिज़ाजी से
किसकदर ऐतबार करते हैं
ये हमसे कौन पूछता है ?
कौन पूछता है हमसे कि
हम क्यों अंकों के
आगे लगने के बजाय
हमेशा पीछे ही लगते है
या फिर हमें बेहद खास से
उन तीन और छह को
अपने हिसाब से आगे-पीछे
या ऊपर-नीचे करते रहना
औरों की तरह क्यों नहीं आता है ?
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६..चलो कहीं चले....यशवंत यश
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१.
नए वर्ष का हुआ विहान|
गिरधर छेड़ो अपनी तान||
नहिं नारी का हो अपमान|
कुछ ऐसा ही रचो विधान||
२.
वर्ष नवल आया है द्वार|
लेकर खुशियों का भंडार||
अनुपम है रब का उपहार|
सूर्य नवल कर लो स्वीकार||
३.
ज्यूँ कान्हा की बात सुनाय
हिय राधे का बहु अकुलाय
विकल नैन पुनि भरि भरि जाय
प्रीत विदुर की समझ न आय|
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फूलों के हार के पीछे
सुनहरे फ्रेम के अंदर
सजी तस्वीर में
अम्मा के चहरे पर
एक करुण मुस्कान है ,
हॉल में जुटा सारा परिवार
एकत्रित भीड़ के सामने
बिलख-बिलख कर हलकान है !
“भगवान की भी यह
कैसी अन्यायपूर्ण लीला है,
अम्माँ का हाथ हमारे
सिर से क्यों छीन लिया
यह आघात हम सब बाल बच्चों
के लिये कितना चुटीला है !”
अम्मा फ्रेम में ही कसमसाईं
तस्वीर के अंदर से झाँकती
उनकी आँखें घोर पीड़ा से
छलछला आईं !
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ज़रा सा और उभरने दे मुझे, अभी
तक हूँ मैं ग़म की परछाइयों
में सहमा सहमा, कहीं
नूर ए इश्क़ तेरा
न कर जाए
अचानक
हैरां !
अभी अभी बेख़ुदी से ज़रा सम्भले
हैं जिस्म ओ जां, कुछ देर
और, यूँ ही रहने दे
अब्र आलूद
हाल ए
दिल,
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तेरी साँसों की खुशबू से मेरे अहसास महके हैं,
तेरे लबों की गरमी से दिल के तार दहके हैं .
मै तुझमे हूँ तू मुझमे है ये अहसास है कैसा,
तेरी नज़रों से घायल हो मेरे जज़्बात बहके हैं .
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११.जब होती बेटी विदा....
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सुखद सुमन आते स्वजन, जाने पर बेचैन।
जब होती बेटी विदा, स्वतः बरसते नैन।।
है बेटी वो सम्पदा, छूटे कभी न मोह।
सुमन आँख मोती झरे, होता जहाँ विछोह।।
बेटा को प्रायः सुमन, अपने कुल का ध्यान।
अक्सर बेटी से बढ़े, दो दो कुल का मान।।
बेटा की चाहत लिए, फिरते कितने लोग।
लेकिन बेटी से सुमन, सच्चे सुख का भोग।।
अन्तर क्यों सन्तान में, करते हैं माँ बाप।
बेटा कुल-दीपक सुमन, बेटी है अभिशाप।।
सामाजिक व्यवहार में, बेटा अपना खून।
जिस घर में बेटी नहीं, सुमन वही घर सून।।
बेटा, बेटी जो मिले, उचित सभी पर ध्यान।
रौनक घर की बेटियाँ, सुमन करो सम्मान।।
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सिर्फ ख़्वाबों-औ-ख्यालों की बातें न कर
हम हकीकत में भी,…… तेरे दीवाने हैं ?
…
अभी-अभी, तुम्हारे वादों ने, ख्यालों में सताया है हमें
चलो अच्छा ही है … हकीकत में … महफूज हैं हम ?
…
तेरी ख्वाहिश की खातिर, आग से रिश्ता बनाया है
वर्ना, बर्फ के ……… आगोश में डूबे हुए थे हम ?
…
रहम कर बे-रहम
जनता सोई हुई है ?
…
उफ़ ! तनिक,…तू इंतज़ार तो कर
तुझे भी यकीं हो जाएगा हम पर ?
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१३. बीते लम्हे....अभिषेक शुक्ला
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१३. बीते लम्हे....अभिषेक शुक्ला
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बीते साल के कुछ खूबसूरत लम्हे जो अब बस स्मृतियों में हैं-
न मैं कवी हूँ,न कवितायें
मुझे अब रास आती हैं;
मैं इनसे दूर जाता हूँ,
ये मेरे पास आती हैं,
हज़ारों चाहने वाले
पड़े हैं इनकी राहों में,
मगर कुछ ख़ास मुझमें है,
ये मेरे साथ आती हैं.
''कई चाहत दबी दिल में,
जो अक्सर टीस भरती हैं,
मेरे ख्यालों में आकर
मुझी को भीच लेती हैं ,
कई राहों से गुजरा हूँ
दिलों को तोड़कर अक्सर,
मगर कुछ ख़ास है तुझ में,
जो मुझको खींच लेती है.''
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सर से पानी गुज़र गया होता
ख़ौफ़ दिल से उतर गया होता
तू जो मुझको न भूल पता गर
तू भी मुझसा बिखर गया होता
आजिज़ी कितने काम आती है
सर उठाता तो सर गया होता
मुंतज़िर मेरा जो होता कोई
लौटकर मैं भी घर गया होता
ज़िंदगी हिज्र की बुरी है बहुत
इससे बेहतर था मर गया होता
------------------
धन्यवाद.....!!!
--
--
आगे देखिए "मयंक का कोना"
--
'किसने कहा कि मर रहा है आम आदमी ? '
- डॉ. शेरजंग गर्ग के गज़ल संग्रह
'क्या हो गया कबीरों को' से
एक चुनिंदा सामयिक गज़ल
इक खास काम कर रहा है आम आदमी।
हर ख़ासियत से डर रहा है आम आदमी।।
पाताल में समा रहा है ख़ास आदमी।
फुटपाथ पर उभर रहा है आम आदमी...
नुक्कड़
--
व्यंग्य---
सवाल साहब के साहबत्व का है
यहाँ जिस साहब का जिक्र मैं कर रहा हूँ, वे पूर्णतया काल्पनिक हैं। उनका किसी भी ज्ञात अज्ञात साहब से दूर दूर तक कुछ भी लेना देना नहीं है। लेकिन खुदा न खास्ते अगर उनका कोई गुण दोष किसी अन्य साहब से मिलता हुआ प्रतीत होता है, तो कृपया इसे महज़ एक संयोग समझें। और इस बात को हमेशा याद रखें कि घोड़े के पिछाड़ी और साहब के अगाड़ी कभी नहीं पड़ना चाहिए। और यह भी कि कोई भी साहब कभी भी गलत नहीं होता। *चाहे* *वह कोई छोटा साहब हो, मझोला हो या कि बड़ा...
रात के ख़िलाफ़ पर Arvind Kumar
--
सर्दी का मौसम!
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर कालीपद प्रसाद
--
मनमोहन की बुद्धि इतिहासकार है।
इतिहास का अर्थ क्या वह यह समझते हैं
कि सरकारी रिकार्ड देखकर इतिहास लिखा जाता है,
जो उन्होंने ठीक कर लिए हैं
--
घोटालों की बारात के दूल्हा
देश की जनता यह जानना चाहती है कि उन्होंने देश की सेवा किस रूप में की है। वे अपनी व्यक्ति गत ईमानदारी का ढिंढोरा पीटते रहे और उनकी नाक के नीचे घौटाले पर घोटाला होता रहा। नारी की इज्जत पर हमले होते रहे। चीन की सेनाएं अनेक बार भारत की सीमा का उल्लंघन करती रहीं और इतिहास में नाम पा जाने को आतुर प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह चुप्पी ...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--
धर्म
धर्म अच्छे बुरे कर्मो में भेद बताता है
सबको ईश्वर की संतान बनाता है
धर्म इंसान को इंसानियत सिखाता है...
आपका ब्लॉग पर Hema Pal
--
उत्सव व उत्साह
आपका ब्लॉग पर Ramesh Pandey
--
सीमित परवाज की अबाबील नहीं हो तुम -
तुम्हें उड़ना है दूर तक
अमृतरस पर डॉ. नूतन डिमरी गैरो
--
ठीक नहीं किया
जैसा किया जाता रहा था
वैसा ही क्यों नहीं किया
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
सरदारी दस साल की, रही देश को साल-
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
--
"मैं कितना अभिभूत हो गया"
तुमने अमृत बरसाया तो,
मैं कितना अभिभूत हो गया!
मन के सूने से उपवन में,
फिर बसन्त आहूत हो गया!..
"धरा के रंग"
--
कार्टून :-
मजमून भाँप लीजिए लिफ़ाफ़ा देखकर
--
चूरण की गोली दो, खिच-खिच दूर करो
काजल कुमार के कार्टून
'किसने कहा कि मर रहा है आम आदमी ? '
- डॉ. शेरजंग गर्ग के गज़ल संग्रह
'क्या हो गया कबीरों को' से
एक चुनिंदा सामयिक गज़ल
इक खास काम कर रहा है आम आदमी।
हर ख़ासियत से डर रहा है आम आदमी।।
पाताल में समा रहा है ख़ास आदमी।
फुटपाथ पर उभर रहा है आम आदमी...
नुक्कड़
--
व्यंग्य---
सवाल साहब के साहबत्व का है
यहाँ जिस साहब का जिक्र मैं कर रहा हूँ, वे पूर्णतया काल्पनिक हैं। उनका किसी भी ज्ञात अज्ञात साहब से दूर दूर तक कुछ भी लेना देना नहीं है। लेकिन खुदा न खास्ते अगर उनका कोई गुण दोष किसी अन्य साहब से मिलता हुआ प्रतीत होता है, तो कृपया इसे महज़ एक संयोग समझें। और इस बात को हमेशा याद रखें कि घोड़े के पिछाड़ी और साहब के अगाड़ी कभी नहीं पड़ना चाहिए। और यह भी कि कोई भी साहब कभी भी गलत नहीं होता। *चाहे* *वह कोई छोटा साहब हो, मझोला हो या कि बड़ा...
रात के ख़िलाफ़ पर Arvind Kumar
--
सर्दी का मौसम!
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर कालीपद प्रसाद
--
मनमोहन की बुद्धि इतिहासकार है।
इतिहास का अर्थ क्या वह यह समझते हैं
कि सरकारी रिकार्ड देखकर इतिहास लिखा जाता है,
जो उन्होंने ठीक कर लिए हैं
--
घोटालों की बारात के दूल्हा
देश की जनता यह जानना चाहती है कि उन्होंने देश की सेवा किस रूप में की है। वे अपनी व्यक्ति गत ईमानदारी का ढिंढोरा पीटते रहे और उनकी नाक के नीचे घौटाले पर घोटाला होता रहा। नारी की इज्जत पर हमले होते रहे। चीन की सेनाएं अनेक बार भारत की सीमा का उल्लंघन करती रहीं और इतिहास में नाम पा जाने को आतुर प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह चुप्पी ...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--
धर्म
धर्म अच्छे बुरे कर्मो में भेद बताता है
सबको ईश्वर की संतान बनाता है
धर्म इंसान को इंसानियत सिखाता है...
आपका ब्लॉग पर Hema Pal
--
उत्सव व उत्साह
आपका ब्लॉग पर Ramesh Pandey
--
सीमित परवाज की अबाबील नहीं हो तुम -
तुम्हें उड़ना है दूर तक
अमृतरस पर डॉ. नूतन डिमरी गैरो
--
ठीक नहीं किया
जैसा किया जाता रहा था
वैसा ही क्यों नहीं किया
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
सरदारी दस साल की, रही देश को साल-
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
--
"मैं कितना अभिभूत हो गया"
मैं कितना अभिभूत हो गया!
मन के सूने से उपवन में,
फिर बसन्त आहूत हो गया!..
"धरा के रंग"
--
कार्टून :-
मजमून भाँप लीजिए लिफ़ाफ़ा देखकर
--
चूरण की गोली दो, खिच-खिच दूर करो
काजल कुमार के कार्टून
बहुत ही सुन्दर और पठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात...! आपका दिन मंगलकारी हो।
--
आभार राहुल मिश्रा जी आपका।
धन्यवाद राहुल जी ! सार्थक सुंदर सूत्रों से सुसज्जित चर्चामंच पर आपने मेरी रचना को भी स्थान दिया ! आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा सूत्रों से सजा चर्चा मंच |
बहुत ही सुन्दर सूत्रों का संकलन.
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुरूआत अति सुंदर चर्चा से करने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंचर्चा का अन्दाज़ दिल को भा गया राहुल मिश्रा जी ………सुन्दर व संयत चर्चा के लिये आपको बधाई और शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंNICE LINKS .THANKS
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा -
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
सादर -
बहुत सुंदर रविवारीय चर्चा ! उल्लूक का "ठीक नहीं किया जैसा किया जाता रहा था वैसा ही क्यों नहीं किया " को शामिल किया ! आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्रों का संकलन...सुन्दर चर्चा -
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्र समायोजन, संयोजक महोदय को कोटिश: आभार..इस विशाल मँच पर मेरी कविता को स्थान देने के लिए,
जवाब देंहटाएंसभी पाठकोँ को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यंजना
जवाब देंहटाएं-----------
५.जहरमोहरा ....अमृता तन्मय
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शून्य को खाते-पीते हुए
शून्य को ही मरते-जीते हुए
हम जैसे शून्यवादी लोग
अंकों के गणित पर
या गणित के अंकों पर
आदतन आशिक-मिज़ाजी से
किसकदर ऐतबार करते हैं
ये हमसे कौन पूछता है ?
कौन पूछता है हमसे कि
हम क्यों अंकों के
आगे लगने के बजाय
हमेशा पीछे ही लगते है
या फिर हमें बेहद खास से
उन तीन और छह को
अपने हिसाब से आगे-पीछे
या ऊपर-नीचे करते रहना
औरों की तरह क्यों नहीं आता है ?
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यंजना
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५.जहरमोहरा ....अमृता तन्मय
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शून्य को खाते-पीते हुए
शून्य को ही मरते-जीते हुए
हम जैसे शून्यवादी लोग
अंकों के गणित पर
या गणित के अंकों पर
आदतन आशिक-मिज़ाजी से
किसकदर ऐतबार करते हैं
ये हमसे कौन पूछता है ?
कौन पूछता है हमसे कि
हम क्यों अंकों के
आगे लगने के बजाय
हमेशा पीछे ही लगते है
या फिर हमें बेहद खास से
उन तीन और छह को
अपने हिसाब से आगे-पीछे
या ऊपर-नीचे करते रहना
औरों की तरह क्यों नहीं आता है ?
३६ का आंकड़ा हमारे और परमात्मा के बीच भी है वह हमारे हृदय में बैठा है हम उसकी तरफ पीठ किये हैं मुंह भौतिक ऊर्जा (माया )की तरफ है हमारा यही राजनीति में है ३६ का अ-प्रेम ,प्रेम पूर्ण सहयोग
तुमने अमृत बरसाया तो,
जवाब देंहटाएंमैं कितना अभिभूत हो गया!
मन के सूने से उपवन में,
फिर बसन्त आहूत हो गया!
आसमान में बादल गरजा,
आशंका से सीना लरजा,
रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारें,
हरा-भरा फिर ठूठ हो गया!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
कुहरे की फुहार...डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
जवाब देंहटाएं-----------------------------------------------
कुहरे की फुहार से,
ठहर गया जन-जीवन।
शीत की मार से,
काँप रहा मन और तन।
--
माता जी लेटी हैं,
ओढ़कर रजाई।
काका ने तसले में,
लकड़ियाँ सुलगाई।
सुन्दर शब्द चित्र मौसिम की बदसुलूकी का।
सशक्त काव्यात्मक टिपण्णी एक परिपूर्ण पोस्ट टिपण्णी का अतिक्रमण करती हुई .
जवाब देंहटाएंसरदारी दस साल की, रही देश को साल-
विदाई वेला की ज़हालत ये देश ऐसा मानता है कि वोट बड़ी चीज़ है पर श्रीमनमोहन सिंह को इसके लिए एक संविधानिक पद को कलंकित करने की क्या ज़रुरत थी। संविधान इस बात की किसी भी तरह इज़ाज़त नहीं देता कि प्रधानमंत्री किसी राज्य के मुख्यमंत्री के बारे में इतनी नितांत घृणास्पद और व्यक्तिगत जहरीली बात करें ,विष वमन करें।
Virendra Kumar Sharma
आपका ब्लॉग
सरदारी दस साल की, रही देश को साल |
उलटे सीधे फैसले, करें देश कंगाल |
करें देश कंगाल, आज यह गाल बजाये |
कठपुतली सा नाच, बाज फिर भी ना आवे |
कुटिल आखिरी बोल, भरी जिसमे मक्कारी |
खोली खुद की पोल, कलंकित की सरदारी ||
बहुत सशक्त और प्रासंगिक अभिव्यंजना लिए रहे काजल का चित्र व्यंग्य
जवाब देंहटाएंकार्टून :-
मजमून भाँप लीजिए लिफ़ाफ़ा देखकर
--
चूरण की गोली दो, खिच-खिच दूर करो
बहुत अच्छे अच्छे लिंक्स. चर्चा मंच में मुझे शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है..आभार तथा बधाई सुंदर चर्चा के लिए
जवाब देंहटाएं