समन्दर
के किनारे चलते-चलते
जब कभी पीछे घूमता हूँ मुड़ता हूँ अपने ही पैरों के निशां देखने के लिए पर मिलते कहाँ हैं!
कोई
आवारा लहर
मिटा
देती है
मेरे क़दमों के निशां कोई हवा का कुँआरा झोंका उड़ा ले जाता है मेरे चलने के निशां फिर भी मैं चलता हूँ अनवरत चलता हूँ एक विश्वास लिए मन में
एक
दिन
कर्म
के हथौड़े
(साभार : नील) और मेहनत की छैनी से गढूंगा वक़्त के सीने पर कुछ ऐसे निशां जिन्हें न हवा का डर होगा न कुँआरे झोंकों का भय वक़्त के सीने पर ये निशां हमेशा जड़े रहेंगे और वक़्त संजोकर रखेगा अपने सीने में मेरे चलने के निशां! |
मैं, राजीव कुमार झा,
चर्चामंच : चर्चा अंक : 1503 में, कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ, आप सबों का स्वागत करता हूँ. --
एक नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर...
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इस धरा पर ही नहीं सम्पूर्ण ब्रहामंड में जो कुछ भी है यह सब मिटने वाला है. जो भी पैदा हुआ है या निर्मित हुआ है उसे एक दिन अपने वास्तविक स्वरूप में आना ही है. जिन तत्वों से उसका निर्माण हुआ है उन तत्वों को एक दिन निश्चित रूप से अपने स्वरूप में लौटना ही है, इसलिए यह कहा जाता है कि ‘जो कुछ दिसे सगल विनासे, ज्यौं बदल की छाहीं’.
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कहा था तुमने मुझसे कभी तुम बिन जी न पाएंगे |
जब दिल रोता है तो
लाख कोशिशों के
बावजूद
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चन्दन
अगले दो दिन, यानी शनि और रविवार हमने मेक्सिको सिटी की ज्यादातर महत्वपूर्ण चीजें-जगहें देख लेने में खर्च
किये. ऐसा इसलिए भी था की हम जल्द से जल्द ‘मेक्सिको सिटी’ के दायरे से बाहर निकल इकतीस प्रान्तों में बंटे असल ‘मेक्सिको’ से भी मिलना चाहते थे, |
तृतीय प्रहर रात्रि का
बनकर अभिसारिका चुपके से मुझे छोड़कर तू बड़ी निर्लज्ज होकर भाग जाती है कहीं | |
पूजा उपाध्याय
लड़की उतनी ही इमानदारी से अमानत अली खान के इश्क में डूबती जितनी कि कर्ट कोबेन के। एक आवाज मखमली थी...गालिब के पुराने शेरों से नये ज़ख्मों की मरहम पट्टी हुयी जाती। पूरी दोपहर कमरे के परदे गिरा कर संगेमरमर के फर्श पर सुनी जाती अमानत अली खान की आवाज़...विकीपीडिया उनकी तस्वीरें दिखाता.
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कोणार्क का सूर्य मंदिर वैसे तो विश्व में इकलौता सूर्य मंदिर कहा जाता है । मै इससे इत्तेफाक नही रखता क्योंकि मै तो अभी हाल में हिमाचल में स्थित निरथ के सूर्य मंदिर को देखकर आया हूं जिसमें पूजा अर्चना भी होती है । कोणार्क में तो कभी पूजा अर्चना ही नही हुई । देखा जाये तो इस मंदिर का ता निर्माण कार्य पूरा ही नही हुआ तो इसे मंदिर कहा जाये य नही ये भी विचारणीय प्रश्न है ।
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भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |
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प्रीति -----स्नेह
बग़ावत करनी पड़ेगी ये जीने नही देते हैं
ख्याल मेरे जब देखो तुमसे लिपटे रहते हैं
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लगभग दो महीनो के ब्रेक के बाद आज के पोस्ट में आपको जानकारी दूंगा 2013 में सामने आयी उम्मीद जगाने वाली दस ऐसी तकनीकों की, जो आने वाले वर्षो में हमारे जीने का अंदाज बदल सकती है।
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तुम्हारा मौन
साधना वैद
नहीं जानती
तुम्हारा यह मौन
वरदान है या अभिशाप
कवच है या हथियार |
शेखर सुमन
हो जाने दो तितर बितर इन
आड़े-तिरछे दिनों को
चाहे कितनी भी आंधी आ जाए
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क्षुधा
कौशल लाल
पर कोई शोर नहीं होता रेंगते से जमीं पर जैसे पाँव के नीचे से जीवन निकल रहा । |
विभा रानी श्रीवास्तव
कहानी थोड़ी पुरानी है ……
एक परिवार में माँ और तीन बच्चे(दो पुत्र और एक पुत्री) थे
तीनों बच्चे छोटे छोटे थे तभी पिता की मृत्यु हो गई थी। …
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डॉ. जेन्नी शबनम
'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है...
मेरा वो सामान लौटा दो...!''
'इजाज़त' की 'माया',
उफ़्फ़ माया !
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पानी में बनते
रहते हैं बुलबुले
कब बनते हैं कब उठते हैं |
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मौसम कैसा होगया है संवेदन-हीन
कोहरे में डूबी सुबह और दोपहर दीन । |
प्रतिभा कटियार
आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें
ज़िंदगी बीत गई और वही यादें-यादें जिस तरह आज ही बिछड़े हों बिछड़ने वाले जैसे इक उम्र के दुःख याद दिला दें यादें |
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"बदल रहा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हर रोज रंग अपना, मौसम बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।।
महफिल में आ गये हैं,
नर्तक नये-नवेले।
बेजान हैं तराने,
शब्दों के हैं झमेले।
हैरत में है ज़माना, दामन बदल रहा है।
घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।।
धन्यवाद !
धुल गये सब सुख भी सिंदूर के साथ ही ! ये पन्ने ........सारे मेरे अपने - पर Divya Shukla ज़िंदगी की शतरंज खामोशियाँ...!!! पर मिश्रा राहुल केजरीवाल की काली करतूत ... राजनीति में नई विधा की शुरुआत हो रही है, जिसका संस्थापक केजरीवाल ही रहेगा। आखिर में मैं चेतन भगत की बात का जिक्र जरूर करूंगा। मैं उनकी बातों से सहमत हूं। उन्होने दिल्ली की राजनीति को आसान शब्दों में समझाने के लिए एक उदाहरण दिया। कहा कि बाँलीवुड में लड़कियां आती हैं और सिनेमा में हीरोइन का अभिनय कर खूब नाम कराती हैं। लेकिन जब उनकी फिल्म नहीं चलती है तो वो फिल्म तड़का डालने की कोशिश में आइटम गर्ल बन जाती हैं। ठीक उसी तरह दिल्ली की राजनीति हो गई है... आधा सच...पर महेन्द्र श्रीवास्तव मेरा अपना गांव (रोला छंद) मेरा अपना गांव, विश्व से न्यारा न्यारा । प्रेम मगन सब लोग, लगे हैं प्यारा प्यारा ... आपका ब्लॉग पर रमेशकुमार सिंह चौहान अक्लमंद और बेवक़ूफ़ के 'वोट' का वज़न बराबर क्यों? हिमाच्छादित कश्मीर DHAROHAR पर अभिषेक मिश्र तेरे से ये उम्मीद नहीं थी जो तू कर रहा है ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ । उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी चाहता हूँ कि ग़म में भी... *चाहता हूँ कि ग़म में भी रोओ न तुम ॥ पर ख़ुशी में भी बेफ़िक्र होओ न तुम .... डॉ. हीरालाल प्रजापति तुम्हारे लिए...!!! तुम्हारे लिए अपनी आखो में लहरो, को छुपा कर ला रही हूँ..... जब तुम देखोगे मेरी आखों में तो, समंदर कि गहराई और..... लहरों कि मस्ती दिखायी देगी.... 'आहुति' पर sushma 'आहुति' |
बहुत सुन्दर और व्यवस्थित चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार।
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मित्रों।
4 दिनों तक नेट नहीं चला।
कल शाम से ठीक हुआ है तो
अपनी हाजिरी लगा दी है।
चुनिन्दा लिंक्स पढ़ने के लिए सुन्दर सूत्र संकलन |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजीव जी ! मेरी रचना को आपने आज के सुसज्जित मंच पर स्थान दिया आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंsundar links...mujhe bhi inmay sthan diya bahut bahut shukriya
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंमुझे भी स्थान देने के लिए आभार
बहुत खूब ... सुंदर लिंक्स संयोजन...!!!
जवाब देंहटाएंitne achhe links mein mere shabdon ko sthan dene ke liye abhaar
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
धन्यवाद राजीव जी। मेरी पोस्ट को आपने आज के सुसज्जित मंच पर स्थान दिया आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर रोचक व पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएं1. पता होता है फूटता है फिर भी जानबूझ कर हवा भरता है ।
जवाब देंहटाएं2. तेरे से ये उम्मीद नहीं थी जो तू कर रहा है
को आज की सुंदर चर्चा में शामिल किया ।
दो दो बार उल्लूक और उसका अखबार दिखा ।
आभार !
बहुत सारी सुन्दर रचनाओं का पता दिया है आपने । फुरसत से पढूँगी । फिलहाल मेरी रचना के चयन के लिये धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , राजीव भाई व मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: जाने क्या बातहै हममें कि हमारी हस्ती मिटती नहीं !
मित्रवर!गणतन्त्र-दिवस की ह्रदय से लाखों वधाइयां !
जवाब देंहटाएंरचना-संयोजन अच्छा !
मेरी रचना ''*चाहता हूँ कि ग़म में भी रोओ न तुम ॥ पर ख़ुशी में भी बेफ़िक्र होओ न तुम ....''को स्थान देने हेतु धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स. मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
धन्यवाद जी !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को आपने
सुसज्जित मंच पर स्थान दिया आभारी हूँ !