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रविवार, मार्च 30, 2014

"कितने एहसास, कितने ख़याल": चर्चा मंच: चर्चा अंक 1567

कितने एहसास, कितने ख़याल 

 ख़याल कितने है कुछ पता नहीं,
एहसासों कि भींड़ में सब इधर उधर हैं। 

सोचता हूँ लिखकर समेत लूँ,
लेकिन पन्नों पर भी बिखरे से ही हैं। 

संजोना इतना आसान नहीं होता,
तभी तो जज़्बात भी इनमे उलझे होते हैं।


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 सभी आदरणीय के समक्ष, मैं अभिलेख द्विवेदी, प्रस्तुत हूँ चर्चा मंच पर कुछ बेहतरीन रचनाओं/कृति के साथ :


सुना है मेरी शख्सियत मिजाज़ी हो गयी,
देखलो दुनिया कितनी सयानी हो गयी,
हाथ की लकीरें कितनी रूहानी हो गयी। 
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यह मत सोचना दोस्त!
आँसू की बूँदें
ज़मीन पर गिरकर
सोख ली जायेंगी
मिट्टी में
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हार या जीत ?
ज़िन्दगी क्या और कुछ भी नहीं ?
भगवान या शैतान ?
इंसान होना क्या काफी नहीं ? 
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हमें भगवान से अधिक, इन्सान से डर लगता है |
कब जीवन में क्या वसूल ले, उसके अहसान से डर लगता है |
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शुरू होती है फिर एक जद्दोजहद चेतन और अवचेतन के बीच
गुजरते समय के साथ उतरने लगते हैं समय के रँग 
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धड़कन कुछ ज़िलमिलाई सी  ....!!
साँसे पल पल धबराई सी  ....!!
चाँदनी कुछ यु मुस्कुराई सी   ... 
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हीरे की बनावट पर अब प्रश्न चिन्ह आया है 
पुराने कारीगर का हुनर नज़र नहीं आया है 
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अंजाना  सफ़र ....
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उम्मीद है सभी रचनाएँ आपको पसंद आयी होगी।
सादर आभार
"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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धर्म और इंसानियत 

धर्म का जन्म पहले हुआ या इंसानियत पहले आयी,
कुछ इसी उलझन में आज की सामाजिक व्यवस्था ...
अभिलेख...ख्यालों के कलम से
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ये भी तो कुछ कहते हैं----- 

जो हैं हमारे जीवन रक्षक 
क्यूं हम उनके भक्षक बन जायें...
JHAROKHA पर  पूनम श्रीवास्तव 
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''औरत से खेलता है मर्द '' 

औरत से खेलता है मर्द उसे मान खिलौना ,  
औरत भी जानदार है नहीं बेजान खिलौना .....
भारतीय नारी पर shikha kaushik 
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मरासिम...... 
रिश्तों की अनोखी शाम ..... 
यूं ही फेसबुक पर स्टेटस ,स्टेटस घूमते हुए इस पेज को देखा......"रक्त अर्चना" नाम ने ही रोक लिया फिर आगे पढ़ा, तो ये समझ आया की ये ग्रुप दान देने वालों का है जो वक्त जरूरत पर खून देते हैं .......
मैं कई दिनों से ए-निगेटिव ब्लड डोनर की तलाश में थी,इस पेज पर मेसेज लिखा की क्या मुझे मदद मिल सकती है.....5-10 मिनट में रिप्लाय में एक फोन नंबर के साथ मेसेज मिला -इस नंबर पर रिक्वायरमेंट शेअर कर दीजिए...
मेरे मन की पर Archana 

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विषय ‘बदलते समाज के आईने में सिनेमा और सिनेमा के आईने में बदलता समाज’ अवसर ‘पंचम बी. डी. पाण्डे स्मृति व्याख्यान’ स्थान ‘अल्मोड़ा’ वक्ता 'श्री जावेद अख्तर' 

उलूक टाइम्स
उलूक टाइम्स  पर  सुशील कुमार जोशी

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"गीत-मखमल जैसा, टाट बन गया" 
सुन्दर पैबन्दों को पाकर,
मखमल जैसा, टाट बन गया।
चाँदी की संगत में आकर,
लोहा भी इस्पात बन गया।।
उच्चारण
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पहाड़े ! 
उन दिनों पहाड़े याद करना मुझे दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता था, पहाड़े सबसे रहस्यमयी चीज | ९ के पहाड़े से तो मैं हमेशा चमत्कृत रहा वो मुझे अहसास दिलाता एक सुसंस्कृत बेटे का जो घर से बाहर जाकर भी घर के संस्कार न भूले...
तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी 'सलिल' 

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जीवन और मृत्यु का संघर्ष 

Kashish - My Poetry

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माँ, ( 200 वीं पोस्ट, ) 

काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया

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क्या खोया? क्या पाया? 
दो सगे भाई थे। दोनों आशिक़ थे। दोनों की अपनी-अपनी माशूक़ थीं। दोनों उनसे बहुत प्यार करते थे....

अब दोनों के सामने यह सवाल है कि क्या खोयाक्या पायाजिसका हल शायद वे ता’उम्र तलाशते रहें ।
ग़ाफ़िल की अमानत पर 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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तुझे देखा तो जाना 

तुझे देखा तो जाना 
कैसा होता है 
एकाकीपन के दर्द को चुपचाप झेलना, 
कैसा होता है 
चिलचिलाती धूप में चुपचाप झुलसना..
Sudhinama पर  sadhana vaid -
--
"मुस्कराता हुआ अब वतन चाहिए" 
मन-सुमन हों खिलेउर से उर हों मिले
लहलहाता हुआ वो चमन चाहिए। 
ज्ञान-गंगा बहेशन्ति और सुख रहे- 
मुस्कराता हुआ वो वतन चाहिए... 

18 टिप्‍पणियां:

  1. वाह.... सुन्दर चर्चा।
    --
    लिंक को शीर्षक में लगाया करो मित्र।
    मुझे दोबारा से पूरी मेहनत करनी पड़ती है आपकी चर्चा मे।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. Sir,Bahut hi sundar charcha...kai naye links se bahut sundar posts par pahunchane ka avasar mila...mujhe bhi is manch par lane ke liye abhar...aap blogeers ko ek dusare se jodane aur unhe aage badhane ka ek bahut mahan karya kar rahe.
    Shubhkamnayen.
    Poonam

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर रचनाऐं छाँट कर लाये हैं अभिलेख आज की चर्चा में । उलूक का सूत्र " विषय ‘बदलते समाज के आईने में सिनेमा और सिनेमा के आईने में बदलता समाज’ अवसर ‘पंचम बी. डी. पाण्डे स्मृति व्याख्यान’ स्थान ‘अल्मोड़ा’ वक्ता 'श्री जावेद अख्तर' को भी स्थान दिया । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुव्यवस्थित, सुसज्जित सुंदर चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित किया इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद ! नव वर्ष एवँ गुड़ी पडवा की सभी मित्रों व पाठकों को हार्दिक शुभकामनायें !

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  5. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया चर्चा,धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर और रोचक सूत्र...बहुत बढ़िया चर्चा...आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. रोचक चर्चा | मेरी कविता को स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर रचनाऐं छाँट कर लाये हैं अभिलेख आज की चर्चा में ....

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  11. मेरी कविता को स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर चर्चा ...!
    मंच में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार ...शास्त्री जी ...
    RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )

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