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मंगलवार, जुलाई 22, 2014

"दौड़ने के लिये दौड़ रहा" {चर्चामंच - 1682}

मित्रों!
कल दिनभर हमारे नगर में बिजली नहीं थी।
किसी तरह से माँ सरस्वती का नाम लेकर
कुछ लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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प्रतीक चिन्ह कितने पवित्र 

विभिन्न समाजों में हिंसा के कई अस्त्र-शस्त्र आज पवित्र प्रतीक माने जाते हैं.त्रिशूल,तलवार,धनुष-वाण,चक्र आदि की पूजा वैदिक काल से ही भारत में होती आ रही है.शायद इसका संबंध शक्ति प्रदर्शन,रक्षा आदि से भी रहा हो.सलीब भी ईसाई धर्म का एक पवित्र प्रतीक है.....
देहात पर राजीव कुमार झा
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खुद को खुद से नंगा देख 

अपने भीतर गंगा देख 
खुद को खुद से नंगा देख...
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
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'एकलखोड़ों' की ज़मात'....... 

एकल = अकेला 
खोड़ = जिस ज़मीन पर कभी फ़सल नहीं लगाई गई हो 
कहीं एक शब्द पढ़ा 'एकलखोड़'....... 
इस बहुत ही हलके शब्द का प्रयोग, 
उनके लिए किया गया है, 
जो विवाह के बँधन में नहीं बँधे हैं, 
अर्थात जिनका अपना 'व्यक्तिगत परिवार' नहीं है....
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
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मौसमी इश्क 

मौसमी इश्क़ है, 
मौसम के बाद क्या होगा, 
हर चेहरे पर नया चेहरा चढ़ा होगा... 
प्रेमरस.कॉम पर Shah Nawaz
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धरती और आकाश 

ए आकाश !! 
बुझाओ न मेरी प्यास 
सूखी धूल उड़ाती, तपती गर्मी से 
जान तो छुड़ाओ...
Mukesh Kumar Sinha
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मुश्किल होता है 

दिल की बातों को अल्फाज दे पाना मुश्किल होता है 
किसी-किसी राज को दुनिया को बताना मुश्किल होता है 
यूं तो जी लेंगे हम तुम्हारे बिना भी जिंदगी 
पर दिए के बिना बाती का 
अस्तित्व बचाना मुश्किल होता है... 
उड़ान पर Anusha
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मेरी हथेलियों में नहीं हैं प्रेम की कविताएं - 

प्रतिभा कटियार 

कविता की तरह ही जीवन में सहज और मस्त 
प्रतिभा का आज जन्मदिन है
मैसेज बाक्स में बधाई की औपचारिकता की जगह 
उनकी यह कविता जो उन्होंने काफ़ी दिनों पहले भेजी थी. 
हज़ार साल जियो प्रतिभा और ऐसे ही जियो. 
मुझे माफ करना प्रिय इस बार 
बसंत के मौसम में मेरी हथेलियों में नहीं हैं 
प्रेम की कविताएं...
Ashok Kumar Pandey
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वाह !क्या विचार है ! 

मेरा फोटो
अनुभूतिपरकालीपद प्रसाद 
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अलबेलों का मस्तानों का ... 

ये देश है वीर-खुलासों का , 
रेपों का , आतंकों का ! 
इस देश का यारों क्या कहना, 
ये देश है दुनियादारों का ! 
यहाँ चौड़ी छाती नेता की 
यहाँ भोली शक्लें मीडिया की...
ZEALपरZEAL 
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कर्मफल ! 

जानता हूँ मैं ,पाप-पुण्य नाम से ,जग में कुछ नहीं है |
कर्म तो कर्म है ,कर्म-फल नर, इसी जग में भोगता है |
कर्मक्षेत्र यही है, ज़मीं भी यही है, कोई नहीं अंतर ,
उद्यमी अपने उद्यम से ,बनाते हैं बंजर ज़मीं को उर्बर 
कालीपद प्रसाद 
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एक नवगीत 

*पिस रही चाहत एैसे * 
*रोलर से गिट्टी जैसे * 
*पास टका नहीं किञ्चित * 
*सभी दगा देते परिचित * ...
jai prakash chaturvedi
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"हिन्दी व्यञ्जनावली-चवर्ग" 

Spoon
"च" से चन्दा-चम्मच-चमचम!
चरखा सूत कातता हरदम!
सरदीगरमी और वर्षा का,
बदल-बदल कर आता मौसम...

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चर्चा.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं यह चर्चा हर दिन पढता हूँ।
    अच्छा स्थान है अपनी जगह इसका।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर मंगलवारीय अंक । 'उलूक' के सूत्र 'प्रतियोगिता के लिये नहीं बस दौड़ने के लिये दौड़ रहा होता है' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ! बहुत सुंदर सूत्र शास्त्री जी ! मेरे प्रस्तुति को आज के मंच पर स्थान देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह ! बहुत सुंदर सूत्र शास्त्री जी ! मेरे प्रस्तुति को आज के मंच पर स्थान देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी रचना को अपने इस बेहतरीन प्रयास का हिस्सा बनाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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