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गुरुवार, जुलाई 24, 2014

"अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684}

मित्रों!
चर्चा मंच के सर्वाधिक विश्वासपात्र
आदरणीय दिलबाग विर्क जी का
बी.एस.एन.एल. का ब्रॉडबैण्ड कनेक्शन
विगत 4 दिनों से बाधित है।
लेकिन इनकी यह विशेषता है कि 
ये समय से सूचित कर देते हैं।
आज सुबह सवेरे ही इन्होंने फोन करके
मुझे जानकारी दे दी थी।
एतदर्थ बृहस्पतिवार की चर्चा में
मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए।
--

ऑल इंडिया रेडियो की वर्षगांठ पर 

कुछ यादें... 

DHAROHAR पर अभिषेक मिश्र
--

तुम भी अपना ख्याल रखना.... 

मैं जा रहा हूँ 
पता नही फिर... 
कब बात हो 
अपना ख्याल रखना.....
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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जहाँ सदा ही रहा है, ‘आदर्शों’का ‘राज’ |

‘प्रबुद्ध भारत’ का हुआ, कैसा आज ‘समाज’ !!

इस भारत में कभी थे, सीधे-सच्चे’ लोग |

बदले –बदले आज कल, है अजीब ‘संयोग’ ||
‘छोटी मछली’ को यहाँ, खाता ‘भारी मच्छ’ |
‘अभिमानी’ ‘सामान्य-जन’, को कहते हैं ‘तुच्छ’ ||
हमें दिखाई दे रहा, यद्यपि सुखद ‘स्वराज’ ...
देवदत्त प्रसून
--

नवगीत -- नए शहर में 

कभी धूप है, कभी छाँव है 
कभी बरसता पानी 
हर दिन नई समस्या लेकर,
जन्मी नयी कहानी...
सपने पर shashi purwar
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वर्षा की बूँदें, कुछ रोचक तथ्य 

कुछ अलग सापरगगन शर्मा
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पलकों मे बंद तुम्हारी छवि - 

पता नहीं क्यों 
पलकों मे बंद तुम्हारी छवि 
मेरी आँखों में चुभ सी क्यों जाती है...

- साधना वैद 

कविता मंच पर संजय भास्‍कर
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 चुंगली 

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चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल
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जनरेशन गैप 

(कुछ दर्द जो सिर्फ महसूस होते है 
कह नहीं सकते 
ऐसा ही दर्द है ये 
जो हर पिता की ज़िन्दगी में आता है --)...
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माता पिता की सेवा करने से 

क्या लाभ मिलता हैं ? 

माता पिता को भारतीय संस्कृति मे 
सूर्य व चन्द्र ग्रहो से संबन्धित माना गया हैं 
इनकी सेवा करने से यह दोनों प्रकाशित ग्रह
 (जो धरती से दिखाई देते हैं ) 
अपनी शुभता देने लगते हैं...
Kishore Ghildiyal 
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एक गीत : मैं नहीं गाता हूँ... 

मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह गाती है
मैं नहीं गाता हूँ.......

बदली आ आ कर भी घर पर ,नहीं बरसती है
प्यासी धरती प्यास अधर पर लिए तरसती है
जा कर बरसी और किसी घर ,यहाँ नहीं बरसी
और ज़िन्दगी आजीवन  बस ,राहें   तकती  है

आशा की जो शेष किरन है ,राह दिखाती है
मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह  गाती है।
 मैं नहीं गाता हूँ........
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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याद आती रही ! 

 डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
हसरतों का जला कारवाँ देर तक , 
देखते ही रहे हम धुआँ देर तक...
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जग में कैसा है यह संताप 

कोई भूख से मरता, 
तो कोई चिन्ताओं से है घिरा, 
किसी पर दु:ख का सागर 
तो किसी पर मुसीबतों का पहाड़ गिरा...
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रंग कहाँ से लाऊँ 

तेरे जीवन को बहलाने, 
आखिर रंग कहाँ से लाऊँ ? 
कैसे तेरा रूप सजाऊँ ? 
नहीं सूझते विषय लुप्त हैं, 
जागृत थे जो स्वप्न, सुप्त हैं, 
कैसे मन के भाव जगाऊँ...
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय
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तुमको सोने का हार दिला दूँ 

सुनो प्रिया मैं गाँव गया था 

भईयाजी के साथ गया था 

बनके मैं सौगात गया था 

घर को हम दौनों ने मिलकर 

दो भागों मैं बाँट लिया था... 


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चींटी 

मनोज पर मनोज कुमार 
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नवगीत की समर्पित हस्ताक्षर - गीता पंडित 

 हिंदी नवगीत विधा में एक समर्थ और समर्पित नाम है -गीता पंडित। पूर्व में ' मौन पलों का स्पंदन ' और 'अब और नहीं बस ' जैसे बेहतर नवगीत संग्रह समाज को समर्पित कर चुकी गीता जी का नया नवगीत संकलन ' लकीरों के आर - पार '...
मेरा काव्य-संग्रह

 नरेंद्र दुबे

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आया सावन झूम के 

जब ठंडी हवाओं के झोंके चलने लगे 
मिटटी की सोंधी सोंधी खुसबू महकने लगे 
पेड़ पोधे जब ख़ुशी से झूमने लगे 
चारों तरफ हरियाली छाने लगे 
   रिमझिम फुआरें तन मन को भिगाने लगे 
प्रियतम की जब मीठी मीठी याद सताने लगे 
तो समझो आया सावन झूमके...
prerna argal 
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एक गजल 

आइए अब काम की बातें करें।
कदम तो उठ गये जानिबे मंजिल मगर। 
पेशेनजर है जो उस तूफान की बातें करें...
कविता मंचपर Rajesh Tripathi 
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आज भी मुझ को... 

उस दिन मैं, जब मिला था तुम से,
वो दिन  याद है, आज भी मुझ को,
तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें,
सुनाई देती हैं, आज भी मुझ को...
मन का मंथन। पर kuldeep thakur 
--

कार्टून:- 

टमाटरि‍या बड़ो दुख दीन्‍हा हाय राम 

--

“हिन्दी व्यञ्जनावली-तवर्ग” 

आज सरल शब्दों में
बाल साहित्य का अभाव होता जा रहा है।
लेकिन मैंने माँ की कृपा से सभी विषयों पर
बाल साहित्य पर अपनी लेखनी चलायी है।
यद्यपि सीधे-सादे शब्दों में कविता रचना
इतना आसान नहीं होता है, 
जितना कि उनको पढ़ना सरल होता है।
परन्तु आजकल ब्लॉग और फेसबुक
दोनों ही स्थानों पर बालसाहित्य की
उपेक्षा होती देख कर मन में मलाल
जरूर होता है।
patti1[3]
"त" से तकली और तलवार!
बच्चों को तख्ती से प्यार!
तरु का अर्थ पेड़ होता है,
तरुवर जीवन का आधार!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर गुरुवारीय चर्चा । 'उलूक' के सूत्र 'क्योंकि खिड़कियाँ मेरे शहर के पुराने मकानों में अब लोग नई लगा रहे थे' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा सूत्र और सूत्र संयोजन |

    जवाब देंहटाएं
  3. suprabhat , sabhi links bahut acche lage , mujhe bhi charcha me shamil karne hetu abhaar , umda sutra hai sayonjan hai

    जवाब देंहटाएं
  4. सुषमा वर्मा.....
    apne charcha manch par bhaut hi khubsurat link diye hai.... meri rachna samil karne ke liye apka bhaut abhar.... sir charcha manch blog par mera comment pst nhi ho raha hai.... jisse hamne apko mail karke suchit karna sahi samjha.... apka ashirwaad yun hi milta rahe..... thank u sir....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सार्थक और बेहतरीन चर्चा, आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर लिंक्स ! कविता मंच पर प्रकाशित मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !

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  7. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बढ़िया चर्चा .... इसमें मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .. आभार सर ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन लिंक्‍स संयोजन एवं प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. इन सुंदर लिंकों की कतार में मेरी रचना को स्थान दिया आभार।

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन संयोजन एवं प्रस्तुति। हिन्दी वर्णों के उच्चारण कि जानकारी के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीय शास्त्री जी
    एवं सुधि पाठकों को
    सादर अभिवादन एवं आभार

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  13. बहुत सुन्दर चर्चा, कुछ दिनों से ब्लॉगर जगत से दूरी बन पड़ी है,रचनाओं के छूटने की कसक है......

    जवाब देंहटाएं
  14. सुन्दर संयोजन ....सादर अभिवादन एवं हृदय से आभार !

    जवाब देंहटाएं

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