फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, अक्तूबर 16, 2014

"जब दीप झिलमिलाते हैं" (चर्चा मंच 1768)

मित्रों।
आदरणीय दिलबाग विर्क जी
हरियाणा चुनाव ड्यूटी में व्यस्त हैं।
इसलिए बृहस्पतिवार की चर्चा में
मेरी पसंद के कुछ लिंक देखिए।
--
--

"दोहे-अहोई-अष्टमी" 

आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।

दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद।
बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद।।...
--

चला हूँ देर तक 

चला हूँ देर तक, यादें बहुत सी छोड़ आया हूँ । 
अनेकों बन्धनों को, राह ही में तोड़ आया हूँ ।। १।। 
लगा था, साथ कोई चल रहा है, प्रेम में पाशित । 
अहं की भावना से दूर कोई सहज अनुरागित ।। २।।.. 
प्रवीण पाण्डेय
--

तो कभी चाहत में !!!!! 

प्रेम को जब भी देखती हूँ मैं
अपेक्षाओं की आँखों में
रंग सारे बारी-बारी
बिखर जाते हैं
कभी प्रेम माँगता बदले में प्रेम
तो कभी चाहत में बलिदान माँगता
मैं हैरानी के सोपानों को 
पार करते हुए
इसकी हर ऊँचाई का
क़द मापती
पर कहाँ संभव था
प्रेम का आँकलन... 
SADA पर सदा 
--

मौसम के रंग 

बहुत अजीब होते हैं 
पल पल बदलते मौसम के रंग 
कभी पलट देते हैं मोड़ 
देते हैं तैरती नावों के रुख 
और कभी अपनी ताकत से 
चूर कर देते हैं धरती का घमंड .... 
Yashwant Yash 
--
बुलबुला: 
दादी, नानी की कहानी सी, 
एक नयी दुनिया बनानी है ......
नीम के पेड़ो में झूले डाल कर
फिर वही लम्बी पेंगे बढ़ानी है... 


Vikram Pratap singh:
--
बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं... 
अपनी आवाज़ में एक ग़ज़ल [ 
"मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन" पर आधारित ] 
प्रस्तुत कर रहा हूँ... 
मेरी ग़ज़लें, मेरे गीत/ प्रसन्नवदन चतुर्वेदी
--
स्वयं शून्य: कुछ मुक्तक - 7स्वयं शून्य
कहकहे भी कमाल करते हैँ 
आँसुओं से सवाल करते हैं। 
ज़ब  रोते हैं तन्हा हमहँसा
हँसा कर बूरा हाल करते हैं। 
कहकहे भी कमाल करते हैँ॥... 
--

न कोई गाँव न कोई ठाँव 

न कोई गाँव न कोई ठाँव 
फिर भी मुसाफ़िर 
चलना है तेरी नियति... 
एक प्रयास पर vandana gupta 
--

रंगीन दुशाला... 

आह... ऑटम ऑटम ऑटम... आ ही गया आखिर। इस बार थोड़ा देर से आया। सितम्बर से नवम्बर तक होने वाला ऑटम अब अक्टूबर में ठीक से आना शुरू हुआ है. सब छुट्टी के मूड में थे तो उसने भी ले लीं कुछ ज्यादा। अब आया है तो बादल, बरसात को भी ले आया है और तींनो मिलकर छुट्टियों की भरपाई ओवर टाइम करके कर रहे हैं... 
स्पंदन  पर shikha varshney 
--

यहाँ मर्ज़ क्या था और मरीज़ कौन ..? 

जीजाजी अपने जीवन की आखरी घड़ियाँ गिन रहे थे अस्पताल में, और मंजू दी बैठीं थीं उनके सामने, उनकी आँखों में आँखें डाल कर और पूछ रहीं थीं उनसे, मैंने तो तुमसे माँगा था, हंसी-ख़ुशी का एक छोटा सा घोंसला और तुमने मुझे थमा दिए, बदरंग रंगों में लिथड़े कई अनचाहे रिश्ते... 
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा  
-- 
भूचाल 
Akanksha पर Asha Saxena 
--

निष्कर्ष 

याद है मुझे अच्छे से वो जुलाई दो हजार आठ का 
छब्बीसवां दिन था और भोपाल से सीधा पहुंचा था 
अस्पताल में, 
माँ के आप्रेशन का बारहवां दिन था 
भाई ने बताया कि 
आज सारे दिन बोलती रही है माँ, 
बहनों को याद किया और... 
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik  
--
आज नासाज़ है तबियत मेरी .. 
चले आओ तुम... 

आज नासाज़ है तबियत मेरी 
चले आओ तुम.... 
दर्द मर जाएगा 
हाथो से ज़रा सहलाओ तुम.... 
"एहसास की लहरो पर ........"
 © परी ऍम 'श्लोक
-- 
डाली: गुड़िआ एक फरेब की... 
न तूं पूरी न मै पूरा 
आधी रात का प्यार अधूरा 
मॉग कहीं सिन्दूर कहीं 
सजती सुहागसेज कहीं... 

Sudheer Maurya 'Sudheer'
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal 


चौथाखंभा पर ARUN SATHI 

डार्विन के विकास के सिद्धांत को यों ही मान्यता नहीं मिली है. उसमें तमाम व्यवहारिक व वैज्ञानिक तथ्य हैं. ये प्राणीमात्र, ये समाज, और ये दुनिया पल पल बदलते रहे हैं. मनुष्य बन्दर से आदमी, जंगली से सभ्य मानव होते गए, यद्यपि मूलभूत गुणावगुण साथ चलते रहे हैं. कहानी का नायक श्यामू, जो अब सम्मानीय रिटायर्ड वरिष्ठ नागरिक है, गाजियाबाद में आबाद है... 
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय 

--

"ग़ज़लिका-ज़िन्दग़ी में न ज़लज़ले होते" 

सबसे मिल कर अगर चले होते
आज इतने न फासले होते

कोई तूफां नहीं कभी आता
ज़िन्दग़ी में न ज़लज़ले होते...

17 टिप्‍पणियां:

  1. कार्टून को भी चर्चा में सम्‍मि‍लि‍त करने के लि‍ए आपका वि‍नम्र आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. अब्बास अली जी को विनम्र श्रद्धाँजलि । सुंदर गुरुवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'धीरे से लाईन के अंदर चले जाना बस वहीं का रहता है मौसम आशिकाना' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया चर्चा प्रस्तुति!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

  5. बहुत ही चुनिंदा लिकों का समायोजन बहुत बहुत आभार !!
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है …

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर चर्चा। स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. DHANYWAAD MERI RACHNA SHAMIL KARNE HETU !! SANKLAN TO SHANDAAR HOTA HI HAI AAPKA !! WAAH !!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुन्दर चर्चा ।
    मैँ रोज पढ़ता हुँ आपकी चर्चा बहुत बढिया हैँ।
    धन्यवाद
    मेरी पोस्ट मैँ इस शुनशन जह पर अकैलीपर आपका स्वागत हैँ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही अच्छी चर्चा रही आज भी, आपका आभार !

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...

    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...

    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।