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मंगलवार, मई 05, 2020

"कर दिया क्या आपने" (चर्चा अंक 3692)

स्नेहिल अभिवादन। 
 आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

सचमुच कोरोना जी ,क्या " कर दिया आपने " कुछ सवारा कुछ बिगाड़ा आपने... 
वर्तमान बिगाड़ रहें हैं कि भविष्य सवार रहें है.... 
अतीत की गलतियों की सजा दे रहें हैं या आने वाले कल के लिए सबक 
वो तो आप ही जाने.... 
इन दिनों आप ही की माया फैली हैं चहुँ ओर... 
अपने अपने समझ से हम इस माया में बंधे या मुक्त हो जाए... 
ये तो आपने हम पर ही छोड़ रखा हैं.... 
खैर ,जो भी हो आपने सोचने पर तो मजबूर कर ही दिया हैं.... 
चलिए कोरोना जी के जाल से खुद को बचाते हुए चलते हैं ,
आज की रचनाओं की ओर.....  
************

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

दुष्ट कोरोना जगत में कर दिया क्या आपने
मंजिलें है दूर फिर भी चल पड़े सब मापने
--
शब्द लिख भर दिये हैं डायरी के पृष्ठ भी
बन्द हैं बाजार सब जाये कहाँ अब छापने
******

अनपढ़ औरतें 

आज सुबह से ही मौसम बिगड़ रहा था। गीता गांव के हाल-चाल फोन पर ले रही कि मौसम की मार से पहले खलिहान में पड़ा अनाज घर तक सुरक्षित पहुँचा या नहीं। पुनीत अख़बार पढ़ रहा था, सासु माँ अंदर रुम में आराम कर रही थी। "वह अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए पत्थर उबाल रही थी।"

*****

लघुकथा - धर्म 

धर्म और मजहब - कविता, Dharm aur Majahab Hindi Poems ...

मेरे कस्बे के कुछ लोगों ने निर्णय लिया कि वे अपने धर्म के 

लोगों से सामान खरीदेंगे, मजदूरी कराएंगे। 

यहां तक कि दर्जी, नाई, मोटर मैकेनिक भी अपने , 

दर्र्मधर्म विशेष का ढूंढने लगे। 

*****
किसी की आँखें नम हुई
कुछ खुशियों से चहकी
खाली बर्तन बोल रहे हैं
अब घर में मदिरा महकी
*****
मेहनत मजदूरी, 
भाग्य लिखी मज़बूरी।
रात दिन खट के भी, 
मान नहीं पाती है।1।
******

नदी और किनारे के दरमियान 


नदी और किनारे के

दरमियाँ
रहता है एक ख़ामोश सा
रिश्ता, डूबने का सुख
वही जाने जो
टूटने को
हो
******
टीवी पर आजकल 'महाभारत' दिखाया जा रहा है. पहले भी देखा है
 पर रामायण की तरह यह कथा भी इतनी अनोखी है कि
 बार-बार देखने पर भी नई जैसी लगती है. कहते हैं
 जो महाभारत में नहीं है वह कहीं नहीं है 
******
देख लो शासन वालों ने, क्या गज़ब कर डाला है,
बन्द रखा है शिवालों को, खोल दिया मधुशाला है।
लॉकडाउन के पीरियड में, जब सारे कैद घरों में तो
दवा न मिलती है लेकिन, खुल गया दर हाला है।।
******

नफरतों के बाजार में मिला ना कोई कद्रदान l

खरीद सके जो इस तन्हा दिल के पैगाम ll

ख्वाईश हैं सौदागर मिले कोई ऐसा नायाब l
मेहताब बन निखर आये दिलों के अरमान ll
*****
जलती चिता हूँ
या हवन हूँ
उन हवन पर सजी देहों का
मैं ही हविष्य हूँ
महाश्मशान मे सीखाती
बैराग हूँ
******
आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दें  
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा 
--

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और सराहनीय अंक!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया कामिनी दीदी. सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर है मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  3. सार्थक भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुतीकरण।

    सभी रचनाएँ उम्दा एवं पठनीय। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर और सार्थक भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का संकलन । चयनित रचनकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  5. रोचक भूमिका के साथ सुंदर लिंक्स का चयन, आभार मुझे भी आज की चर्चा में सम्मिलित करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  6. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर संयोजन कामिनी जी। शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद कविता जी ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  9. सार्थक और संतुलित चर्चा।
    आपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति सखी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बहुत आभार पन्क्तियों को साझा करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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