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बुधवार, मई 27, 2020

"कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है" (चर्चा अंक-3714)

मित्रों!
           जेठ की गर्मी ने अपने तीखे तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। मंगलवार को पारा एक बार फिर से 44 डिग्री के पार चला गया। इस हफ्ते लोगों को गर्मी से राहत की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। 
           पिछले हफ्ते पहाड़ों और एनसीआर में अच्छी बारिश हुई थी। हल्की आंधी भी आईं। इस कारण तापमान की रफ्तार पर ब्रेक लगा रहा। मगर अब तापमान फिर से कुंलाचे भरता नजर आ रहा है।  तेज धूप ने लोगों को परेशान कर ही है। वातावरण शुष्क होने के कारण जरा भी राहत नहीं मिल रही है। शाम सात बजे भी हवा में नरमी महसूस नहीं हुई। तेज धूप का यह असर रहा कि अधिकतम तापमान 2.3 डिग्री उछलकर 44.1 डिग्री दर्ज किया गया।  
          चढ़ते तापमान के बीच हवा के थमने से उमस भी बढ़ेगी। दिन के मुकाबले रात में उमस ज्यादा परेशान करेगी। शहर के घने इलाकों के   लोगों के लिए रातें सबसे ज्यादा परेशान करने वाली होंगी।  
मौसम विज्ञान विभाग की वेबसाइट के हिसाब से गर्मी से राहत की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। 
   27 मई तक आसमान बिल्कुल साफ रहने की संभावना है।  
         ऐसे में कोरोना के ओर गरमी के प्रकोप के कारण आप घर से बाहर न निकलें। अगर बहुत जरूरी काम हो तो सिर और मुँह को तौलिया से अच्छी प्रकार ढककर ही बाहर जाये। 
लॉकडाउन 4.0 का ईमानदारी से पालन करें।
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अब देखिए बुधवार की चर्चा में  
मेरी पसन्द के कुछ लिंक... 
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कोशिश  

हर बार असफलता हाथ लगी 

कितनी कोशिश की थी मैंने
सफलता से दूरी अधिकाधिक हुई
जब भी चाहा नजदीकियां उससे बढाना |
पर हार नहीं मानी अपनी
चौगुने उत्साह से बड़ी लगन से
पूरी शिद्दत से यत्न किया है अब तो
कोशिश में कमी कहाँ है....
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व्याकुल मीन 


रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
अंतर्मन अकुलाता है।
मौन अबूझ संकेतों की,
भाषा पढ़-पढ़ बौराता है... 
मन के पाखी पर Sweta sinha  
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तू ही बिगाड़े तू ही संवारे 

समय सदा एक सा नहीं रहता. हर सुबह पिछली सुबह से अलग होती है और हर मौसम पिछले बार से कम या ज्यादा गर्म या ठंडा. हमारे इर्दगिर्द का सब कुछ जब बदल रहा हो तब भी हम कई मामलों में स्थायित्व की कामना करते हैं. हमारा खुद का मन भी दिन के हर प्रहर में बदल जाता है, भोर में जो सहज ही शांत था, दोपहर होते-होते उसकी भावदशा बदल जाती है. इस परिवर्तन को यदि हम स्वीकार कर लेते हैं तो अपनी ऊर्जा को बचा लेते हैं.,, 
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ये कैसा अन्याय ? 

हे विधाता
ये काल चक्र कैसा है?
धरती और आकाश सभी से तूने मृत्यु रची है।
किसके किसके घर उजड़े हैं?
किसके टूटे है परिवार?
कौन धरा पर तड़प रहा है
कैसा है किसका व्यवहार ?
नहीं दया आती है तुझको
मानव के जीवन पर... 
hindigen पर रेखा श्रीवास्तव  
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ईद 

इस ईद बस एक फरियाद हैं मेरीखुदा नज़रें इनयाते कर दे थोड़ी
चाँद नज़र आ जाए मेरी भी सर जमीं नमाज़ ईद की अदा कर दूँ उसकी सर जमीं... 

RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL 
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मंत्र 

पीर पराई समझे कब कोई   
मर-मर कर जीना छोड़े हर कोई   
खतम न हो ताल्लुकात सारा   
जीने का यह मंत्र दोहराना 
डॉ. जेन्नी शबनम 
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भीड़ का निर्माता- 

लघुकथा 

birds in the sky | Tumblr
अरे , ये तो पेड़ पर पेड़ काटते जा रहे| वो देखो, सामने उस जंगल के बहुत सारे पेड़ काट दिये| बिजली से चलने वाली कुल्हाड़ी की आवाजं है यह”, चौदहवें तल्ले से ध्यान से जंगल को देखते और आवाजों को सुनते हुए रोहित ने कहा... 
मधुर गुँजन पर ऋता शेखर 'मधु' 
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सपने साजन के 

जिस रोज कोई सपना नहीं आयेगा, मेरी धड़कन बंद हो गई होगी। भला सपनों का धड़कनों से क्या लेना-देना। लेकिन आप ही सोचिये जरा बिना सपनों के बेमकसद सी ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी होती है भला।
हाँ ये सच है सपने जिस दिन नहीं होंगे इंसान ज़िंदा भी नहीं होगा।... 
कुछ विशेष...पर सुनीता शानू  
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ऐ कोविड जिंदगी ! 

कभी यह सोचा न था, ऐ जिंदगी,
तू इक रोज, इतनी भी 'Fine' होगी।
स्व:जनों संग, इक्ठ्ठठे रहकर भी,
एकही घर मे 'Quarantine' होगी।। 
पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
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न्यूटन के गति विषयक नियम 

चलता पिण्ड न रूक सके, रुका न पाए चाल|  
बिना वाह्य बल के सतत, जड़ता की पड़ताल... 
विमल कुमार शुक्ल 'विमल 
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प्रेम कहानियों पर इतना कौतूहल क्यों 

लोगों की रुचि दूसरों की ज़िन्दगी में झाँकने की क्यों होती है? दूसरे की ज़िन्दगी में सुख है या दुःख इससे झाँकने वालों का कोई लेना-देना नहीं होता है, बस वे उसमें झाँकना चाहते हैं. इस ताका-झाँकी में यदि विषय प्रेम का, इश्क का हो तो फिर कहना ही क्या. इस विषय के आगे सभी विषयों को गौड़ कर दिया जाता है. किसी दूसरे के जीवन का कोई प्रेम-प्रसंग हाथ लग भर जाए फिर उसके आगे सारे प्रसंग बौने हो जाते हैं. किसी और के प्रेम-प्रसंगों के लिए, दूसरे की प्रेम-कहानियों को सुनने के लिए लोगों में बेताबी दिखाई देने लगती है. ऐसा किस मानसिकता के कारण होता है? 
राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर 
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मर्दानी नारी 

नारी सम कोई नहीं, नारी सुख की धाम  
बिन उसके घर घर कहाँ, घर की है वह खाम ... 
~Sudha Singh vyaghr~  
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हम भी 

इश्क़ की राह के,  
हमसफ़र हम भी हुये  
तुम बने जो आसमान,  
चांद हम भी हुये 
मुकम्मल हुए ख्वाब सारे, ... 
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वापसी 

चेहरे की झुर्रियाँ बता रहीं थीं  
कि आत्मा पर अनावश्यक 
अनिचछाओं का बोझ है ।  
मेरे सुंदर सलोने रूप के  
तुलनात्मक अनुपात में सोचूँ तो  
आत्मा अनन्त गुना सुंदर होनी चाहिये... 
एक बूँद पर Pooja Anil  
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आज के लिए बस इतना ही... 
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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लगता है जब आप हमारे पोस्ट की लिंक यहाँ लगाते हैं. अपनी कमेंट न करने की बुरी आदत के कारण एकाधिक बार ऐसा हुआ है कि कमेंट न किया. हाँ, आपकी इन पोस्ट को नियमित पढ़ते रहे हैं.
    बुरी आदत के लिए क्षमा करियेगा. अब आदत सुधारने का प्रयास है.
    आप स्नेह बनाये रखियेगा.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप प्रबुद्ध पाठक हैं। अभिनन्दन है आपका मित्र।
      धन्यवाद। शुभ प्रभात आपको।

      हटाएं
  2. प्रचंड गर्मी से विंध्यक्षेत्र भी तप रहा है, किन्तु मैं सोच रहा हूँ , उन प्रवासी श्रमिकों पर क्या बीत रही होगी,जो ट्रेनो से लगातार आ रहे हैं और यह रेलगाड़ी बैलगाड़ी बनी हुई है।
    सुंदर भूमिका एवं मंच, नमन।

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  3. उम्दा सजा आज का चर्चा मंच |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा चर्चा हेतु आभार,शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. समसामयिक चिंतन और विविधापूर्ण रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना शामिल करने के लिए सादर आभार आपका.आदरणीय सर।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. सारगर्भित भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का संकलन।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. समसामयिक विषयों से सजी विविधरंगी चर्चा ! आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुंदर चर्चा प्रस्तुति.
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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