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शनिवार, जुलाई 18, 2020

'साधारण जीवन' (चर्चा अंक-3766)

सादर अभिवादन। 
शनिवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 
"सादा जीवन उच्च विचार" इस सूक्ति को भारतीय जीवन शैली के संदर्भ में गहनता से समझा जा सकता। ज़रूरी नहीं कि आप अपने जीवन को जटिलताओं से भर दें और सबसे अलग दिखने के प्रयास में जीवन का मूलभूत सत्त्व ही विलोपित कर दें तभी हम चर्चित व्यक्तित्त्व कहलाएँगे बल्कि जीवन का सरलता और सादगी से भरा होना ज़्यादा सामाजिक और सर्वस्वीकार्य माना गया है। 
साधारण जीवन जीनेवाले भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री कैसे असाधारण हो गए अपनी सादगी और ईमानदारी से यह हमारे समक्ष स्थापित उदाहरण है। 
-अनीता सैनी 
आइए पढ़ते है मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ - 
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दोस्ती जिसने क़लम के साथ कर ली हो,
रास कब आई उसे तलवार की भाषा ।
गांव में दाख़िल हुई जिस दिन हवा शहरी,
लोग भूले झांझरी झंकार की भाषा ।
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सुन लो विनती अब नाथ हरे.भव के दुख संकट दूर करो ।
सिर जूट- जटा जल धार धरे,गल शोभित माल भुजंग प्रभो ।।
वसुधा निखरे बरखा बरसे,ऋतु पावन सावन मास सुनो ।
भवसागर से तब नाव तरे,मन पावन हो  शिव नाम जपो ।।
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ल रात यूँ हुआ, हाथ जा चाँद से टकरा गया,
तुम्हे छूने की चाह में, हाथ झुलस के रह गया। 
दूर जाते - जाते ये तुम कितनी दूर निकल गए !
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-वर्षा जल की
झड़ी लगी भादों की
तन भिगोती
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बात दोनों तरफ हो तो मज़ा देता है 
बात दोनों तरफ हो तो मज़ा देता है 
वर्ना इक तरफ़ा ईश्क़ सजा देता है 
रात वस्ल की हो या फिर हिज़्र की
ईश्क़ तो आँखों को रतजगा देता है 
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झूला लगा कदम की डाली 
झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में ।
चलती मधुर-मधुर पुरवाई,
मस्ती छाई तन-मन में।
आया सावन बड़ा सुहावन,
हरियाली छाई।
देख घटा का रूप सलोना,
मन में मैं हरषाई।
नभ की छटा बड़ी मनभावन,
खुशियाँ' लायी जीवन में।
झूला लगा कदम की डाली,
झूल रही मैं मधुवन में।
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रिश्तों की ऐसी माया है 
कोई पार निकल कर ही जाने 
यह निज कर्मों की खेती है 
सुख-दुःख के बोये थे दाने
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मार्क्स के लेखन के विवेचन पर अधिक ध्यान दिया है । 
गारेथ जोन्स ने पूंजी’ के लिखे जाने और इंटरनेशनल के गठन के दौर को ही उनकी सक्रियता में 
अधिक ध्यान से देखा है जबकि लेखक ने उनके समग्र लेखन को उनकी सक्रियता के भीतर ही गिना है ।
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जीवन भर इनकी गिरफ्त में जीते हुएइनके असर में काम करते हुए भी बहुत कम लोग हैं जो इनके बारे में गंभीर जिज्ञासा और रुचि रखते हैं। पर उन्हें गौर से देखना बड़ा ही दिलचस्प हैअपने विचारों को निहारना, ठीक वैसे ही जैसे अपनी हथेलियों में आप कुछ पंखुड़ियां उठा कर देखते हैं।
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केप्री भी बनाना 
हिपस्टर सिलवाना 
खादी का थोडा़ सा
नाम भी बचाना ।
जैक्सन का डांस हो
बालीवुड का चांस हो
गांधी टैगोर की बातें
कभी तो सुन जाना ।
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बहुरुपिया आया...................!!!!!
शोर  सुनकर  कौतूहलवश
बच्चे, बूढ़े, अधेड़, जवान  सभी
देखने  आये  लपककर
पहले  वह  धवल  वस्त्र  धारण  कर
योगी  के  वेश  में  आया
सड़क  के  दोनों  ओर
बनी दुकानों, छतों  और  बालकनी  से  देख  रहे  लोग
सत्कार भाव से
सराह  रहे  थे  निहार  रहे  थे  उसका  वियोग
अगले  दिन  हाथ  में  लाठी  लिये
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शब्द-सृजन-30 का विषय है- 
प्रार्थना /आराधना  
आप इस विषय पर अपनी रचना
 (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार
 (सायं-5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म
(Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवारीय अंक में प्रकाशित की जाएँगीं
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आज सफ़र यहीं  तक 
कल फिर मिलेंगे।
-अनीता सैनी
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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति अनुजा । मेरे सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंक्स
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. उपयोगी भूमिका के साथ,
    चर्चा की बेहतरीन प्रस्तुति।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. "सादा जीवन उच्च विचार" बहुत ही सुंदर विचारो से परिपूर्ण भूमिका के साथ सुंदर लिंकों का चयन किया है आपने अनीता जी। सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर भूमिका और पठनीय सूत्रों से सजा चर्चा मंच, मुझे भी शामिल करने हेतु शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  6. पठनीय सामग्री से सजी बेहतरीन रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!प्रिय अनीता ,सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छी links...
    मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🌟🍀🌺🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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