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गुरुवार, दिसंबर 10, 2020

चर्चा - 3911

 आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है 

क्या शांतिपूर्वक धरना देने आ रहे लोगों को सदके खोदकर, बैरिकेट लगाकर ऐसे रोका जाता है, जैसे वे विदेशी आक्रान्ता हों ? क्या आप भी सोचते हैं कि किसान आन्दोलन विरोधी पार्टियों द्वारा चलाया जा रहा है ? क्या आप सोचते हैं कि वर्तमान विपक्ष ऐसा करने में सक्षम है? क्या आपको नहीं लगता कि किसानों का डर सच्चा है? ( जिओ की फ्री सेवा से वर्तमान रेट को जरूर ध्यान में रखें |) बिहार , यू. पी. में फसलों के भाव कम क्यों हैं? ब्लॉग जगत शायद इन बातों पर गौर नहीं करना चाहता, इसीलिए वह या तो चुप या फिर किसानों को दोषी ठहरा रहा है ?

किसान आन्दोलन को खालिस्तान से जोड़ा जा रहा है,  यह पहली बार नहीं हुआ | हर आंदोलनकारी को देश द्रोही कहते हुए कबूतर की तरह आँख मूँदे नागरिकों को सलाम 

चलते हैं चर्चा की ओर 

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मेरी प्यारी पोती - 

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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चंचल तितली

रंग-बिरंगे पर फड़काती, 

तितली जब बगिया में आती 

सब बच्चो के मन को भाती,  

सब बच्चो का जी ललचाता

हरिवंशराय बच्चन

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मन और मौन - अनीता 

शब्दों की गलियों में गोल घूमता है
मन का मयूर यह व्यर्थ ही झूमता है
 
अनंता-अनंत जो चहुँ ओर व्याप्त रहा
नाप लिया हो जैसे ‘अम्बर’ नाम दिया

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जूही महारानी - प्रतिभा 

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असर अब गहरा होगा -  

कुसुम कोठारी 

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राजनीति का शिकार भारत का किसान -  

मालती मिश्रा 

हमारे हिंदी साहित्यकारों ने अपने साहित्य में किसानों की जिस दयनीय दशा का उल्लेख किया है माना कि वर्तमान समय में किसानों की स्थिति उससे भिन्न है परंतु यह भी सत्य है कि पूर्णतया भिन्न नहीं है, किसान आज भी कर्ज के बोझ तले दबा है, किसान आज भी मौसम की मार झेलता है, वह पहले मदद के लिए साहूकारों का मुँह देखता था, वह आज भी मदद के लिए सरकार का मुँह देखता है। आज भी उसे अपनी मेहनत को औने-पौने दाम में बेचना पड़ता है।
इतनी समस्याएँ क्या कम थीं जो आजकल राजनीतिक पार्टियों द्वारा आए दिन आंदोलन, बंद आदि करवाकर इनके लिए और समस्या खड़ी कर दी जाती हैं। खेत के खेत खड़ी फसलों को बर्बाद कर दिया जाता है, ट्रक के ट्रक सब्जियाँ, दूध आदि बर्बाद किए जाते हैं, जो कि किसान की स्वयं की सहमति नहीं होती उससे जबरन करवाया जाता। कोई भी किसान पुत्रवत पाली गई फसल बर्बाद नहीं कर सकता। ऐसी अनचाही परिस्थिति का वह राजनैतिक शिकार होता है और अनचाहे ही राजनीति के जाल में फँस जाता है। 

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सुबह का जश्न - आत्ममुग्धा 

वो स्याह अंधेरा था
फिर उसमे हल्की सी एक रेखा बनी
ज्यादा चमकीली नहीं
बस, धुंधली सी 
स्याह रात 

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मुस्कुराहट लबों पर - 

मीना भारद्वाज 

मुस्कुराहट लबों पर, सजी रहने दीजिए ।

ग़म की टीस दिल में, दबी रहने दीजिए ।।

 

छलक उठी हैं ठेस से, अश्रु की कुछ बूंद ।

दृग पटल पर ज़रा सी,नमी रहने दीजिए

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कवि के जीवन का साठवां वसंत -  

स्वप्निल श्रीवास्तव 

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समकालीन रूसी कवि  

विचिस्लाफ़ कुप्रियानफ़ की कविताएँ 

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भाड़ में जाय ऐसा इन्क़लाब -  

नवीन सी. चतुर्वेदी 

क़स्बाई संस्कृति के वाहक मध्यवर्गीय परिवार का एक होनहार लड़का रोज़ सुबह उठते ही घर के बाहर के चबूतरे पर बैठ जाता। 

अख़बार पढ़ता और रूस, अमरीका, जर्मन, जापान, चीन आदि-आदि की बातें ज़ोर-ज़ोर से बोलते हुए करता। 

साथ ही हर बार यह कहना नहीं भूलता कि अपने यहाँ है ही क्या? आदि-आदि। 

उस के अपने घर के लोग उसे डाँटते हुए कहते कि अरे बेटा अभी-अभी उठा है। ज़रा दातुन-जंगल कर ले। स्नान कर ले। घड़ी दो घड़ी रब को सुमिर ले। 

मगर वह नहीं सुनता। लोगों से बहसें लड़ाता रहता।  

*

क्यों बोलते हैं राम नाम सत्य है - 

ज्योति देहलीवाल 

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धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क 

8 टिप्‍पणियां:

  1. चिंतनपरक भूमिका के साथ सुन्दर लिंक संयोजन । हार्दिक आभार दिलबाग सिंह जी प्रस्तुति में रचना सम्मिलित करने हेतु ।

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  2. मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिलबागसिंह जी।

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  3. लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक है. किसानों के लाभ के लिए जो सुधार किए जा रहे हैं उन्हें समझने व समझाने की जरूरत है, कोई भी परिवर्तन आसानी से नहीं आता, नहीं तो उसे परिवर्तन ही क्यों कहते, पठनीय रचनाओं से सजा मंच, आभार !

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  4. गहन और सामायिक चिंतन देती सार्थक भूमिका।
    शानदार लिंक चयन।
    सभी रचनाकारों को बधाई,सभी रचनाएं उत्तम।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

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  5. बढ़िया लिंक्स चयन
    साधुवाद 🙏

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  6. उपयोगी लिंकों के साथ आकर्षक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी।

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  7. वाह!सराहनीय भूमिका संग बेहतरीन संकलन आदरणीय सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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