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रविवार, दिसंबर 20, 2020

"जीवन का अनमोल उपहार" (चर्चा अंक- 3921)

 मित्रों!
रविवार  की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए कुछ ब्लॉगों के अद्यतन लिंक।
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आज  मैं एक ऐसे ब्लॉगर की से पाठकों को परिचित कराना चाहता हूँ, जो बहुत समय से लिख रहे हैं लेकिन उनकी ब्लॉगिस्तान में अभी कोई पहचान नहीं बन पाई है।
इनका नाम है "आचार्य प्रताप" ।     
ये अपने सन्देश में लिखते हैं-
भाषा कल्पवृक्ष है ,उससे जो भी आस्था पूर्वक माँगा जाता भाषा देती है उससे कुछ माँगा ही न जाए। क्योंकि वह पेड़ पर लटका हुआ कुछ दिखाई नहीं देता तो कल्पवृक्ष भी उसे कुछ नहीं देता।
इनके ब्लॉग हैं-
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शीत बढ़ासूरज शर्माया।
आसमान में कुहरा छाया।।
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चिड़िया चहकीमुर्गा बोला,
जब हमने दरवाजा खोला,
लेकिन घना धुँधलका पाया।
आसमान में कुहरा छाया।।
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"सांध्यगीत" 

धीरे धीरे सांझ उतरी ,

जीवन में गोधूलि बेला ।

रीत जगत की चली आई  ,

जीना चार दिन का खेला ।।

Meena Bhardwaj, मंथन  
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  • हवा गर्म हो रही है.... 
  • कैसा दौर आया है
    आजकल
    जिधर देखो उधर
    हवा गर्म हो रही है
    आया था चमन में
    सुकून की साँस लेने
    वो देखो शाख़-ए-अमन पर
    फ़ाख़्ता बिलख-बिलखकर रो रही है।
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  • जीवन का अनमोल "अवॉर्ड " 
  •  " मेरी बेटी शालू को समर्पित "
  • सुबह सुबह अभी उठ के चाय ही पी रही थी कि फोन की घंटी बजी मैंने फोन उठाये तो दूसरी तरफ से  चहकते हुये शालू की आवाज़ आई हैलो माँ --" Merry Christmas " मैंने कहा -" Merry Christmas you too" बेटा , मैं अभी अभी सो कर उठी हूँ और उठते ही मने सोचा सबसे पहले अपने सेंटा को  Wish  करू--वो चहकते हुये  बोली।  मैंने कहा --बेटा, मैं तो आप से इतनी दूर हूँ और पिछले साल से मैंने आप को कोई गिफ्ट भी नहीं दिया,फिर मैं आप की सेंटा कैसे हुई। उसने बड़े प्यारी आवाज़ में कहा -" आप जो हमे गिफ्ट दे चुकी है उससे बड़ा गिफ्ट ना किसी ने दिया है और ना दे सकता है, उससे बड़ा गिफ्ट तो कोई हो ही नहीं सकता "  मैं थोड़ी सोचती हई बोली --ऐसा कौन सा बड़ा  गिफ्ट मैंने दे दिया आप को बच्चे, जो मुझे याद भी नही। रुथे हुए गले से वो बोली -" पापा " आपने हमे हमारे पापा को वापस हमे दिया है माँ। ये सुन मैं निशब्द हो गई।
  • मेरी नजर से 
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खिड़की के उस पार 
भू तल में अभी तक है मेरा निवास,
एक खिड़की, टूटी हुई आराम -
कुर्सी, माटी की सुराही,
बेरंग, कांसे का
एक पैतृक
गिलास, 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा : 
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फेरे का गीत  ( बन्ना ,बन्नी, ) 

भाँवरी हो रही रघुवर की । 

भाँवरी हो रही सिया वर की ।।

पहली भाँवरी देवों को अर्पित, कृपा सदा रहे गौरीशंकर की ।

भाँवरी हो रही.....।। 

दूजी भाँवरी प्रकृति को अर्पित, छाँव रहे जीवन में तरूवर की ।

भाँवरी हो रही.....।। 

तीजी भाँवरी पृथ्वी को अर्पित, बखारें भरी रहें इस घर की ।  

भाँवरी हो रही......।। 

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आज का उद्धरण 
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल  
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वैदिक वाङ्गमय और इतिहास बोध (१६) 

ऋग्वेद और आर्य सिद्धांत: एक युक्तिसंगत परिप्रेक्ष्य - (ड)

(मूल शोध - श्री श्रीकांत तलगेरी)

(हिंदी-प्रस्तुति  – विश्वमोहन)

भारतीय-यूरोपीय संख्यायों के सबूत 

‘भारत-भूमि अवधारणा’ के पक्ष में एक और अप्रत्याशित और निर्णायक सबूत बनकर  हमारे सामने  भारतीय-यूरोपीय संख्यायों की व्यवस्था का सच आता है। इसकी विस्तार से चर्चा श्री तलगेरी ने अपनी पुस्तक “संख्यायों और अंकों की दुनिया में भारत का अनोखा स्थान’ ( India’s Unique Place in the world of Numbers and Numerals) में की है। 

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ऐसे विदा कर रहे हो  बेआबरू कर 2020 को आप  2021 कहीं बन जाये मेरा बाप

हमें भूल जाना अगर हो सके ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया 

  कितने जश्न मनाकर जिसे बुलाया था अब जब उसने जाना ही है तो विदा भी ढंग से करते। जाते जाते उसकी पलकें भीगी हुई हैं भला ऐसा भी कोई करता है। वक़्त कभी टिकता नहीं आदमी भी कब कहीं टिककर रहते हैं वक़्त को वक़्त पर चलते रहना होता है उसकी रफ़्तार बदलती नहीं है। लोग वक़्त को ख़राब बताते हैं फिर बाद में पछताते हैं इस से तो वही अच्छा था पुरानी यादों को याद करते हैं सुनते सुनाते हैं दिल को समझाते हैं। अच्छे दिन लौट कर कब वापस आते हैं  
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वर्तमान सुसज्जित करें  भविष्य स्वतः ही बेहतर बनेगा
समय जिस तेजी से निकल रहा है उसे देखकर भविष्य की योजनायें बनाने से बेहतर है कि वर्तमान को इस तरह से सुसज्जित किया जाये कि भविष्य स्वतः ही बेहतर बन जाए. इस वर्ष के पहले तक लोगों में आपाधापी देखने को मिलती थी, भौतिक वस्तुओं के प्रति एक तरह की तृष्णा दिखाई पड़ती थी, संसाधनों के प्रति अजीब सा मोह देखने को मिलता था. इसी सबके बीच अचानक से कोरोना बीमारी ने आकर कुछ महीनों के लिए सबकुछ रोक सा दिया. न केवल नागरिक, न केवल बाजार बल्कि वे सार्वजनिक प्रतिष्ठान, वे संस्थाएँ, वे सेवाएँ जो किसी भी व्यक्ति ने कभी बंद नहीं देखीं थीं वे भी महीनों के हिसाब से बंद रहीं. इस बंदी के बीच जब लोगों को अपने परिजनों के बीच रहने का अवसर मिला और उनको भी जिन्हें परिजनों से दूर रहने का कष्ट समझ आया... 
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आज के लिए बस इतना ही...।
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12 टिप्‍पणियां:

  1. वन्दन
    उम्दा लिंक्स चयन
    श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद

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  2. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति । मेरे सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सर.

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  3. बहुत ही सुंदर चर्चा प्रस्तुति।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर चयन और प्रस्तुति के लिए आपका आभार..मेरे गीत को शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार..शुभकामना सहित..जिज्ञासा सिंह..।

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  5. एक से बढ़कर एक रचना , बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  6. आकर्षक एवं प्रभावी सूत्रों का संकलन हेतु आभार ।

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  7. आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी,
    सादर नमन 🙏
    विविध पठनीय सामग्री से सुसज्जित इंद्रधनुषी चर्चा को इस ब्लॉग रूपी कैनवास पर उकेरने के लिए आपके प्रति साधुवाद 🙏🌹🙏
    मेरी पोस्ट को आपने इसमें शामिल किया, यह मेरे लिए किसी पारितोषिक से कम नहीं, बहुत-बहुत हार्दिक आभार 🙏🌹🙏☘️
    शुभकामनाओं सहित
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  8. बहुत सुंदर, पठनीय लिंक्स को संजो कर उपलब्ध कराने के लिए आपको साधुवाद 🙏🌷🙏

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  9. विभिन्न साहित्यिक विधाओं से सुरभित चर्चा मंच यथारीति मुग्ध करता है, मुझे जगह प्रदान करने हेतु ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।

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  10. आदरणीय सर,सादर नमस्कार
    कुछ घरेलू व्यस्तता के कारण इन दिनों ब्लॉग पर पूर्णरूपेण ध्यान नहीं दे पा रही हूँ,कोशिश करने के वावजूद ब्लॉग पर मेरी सक्रियता बहुत कम हो गई है,ऐसे में जब आप मेरी पुरानी रचनाओं को चर्चा मंच पर साझा करते हैं तो इतनी ख़ुशी होती है कि शब्दों में वया नहीं कर सकती। मेरी पुरानी रचनाओं को साझा करने के लिए तथा आपके इस स्नेह और आशीर्वाद के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद

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  11. बेहतरीन लिंक्स के साथ शानदार प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं

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