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गुरुवार, दिसंबर 24, 2020

लूट का बाज़ार (चर्चा - 3925)

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है
जैनेन्द्र कुमार जी अपने निबन्ध 'बाजार दर्शन' में लिखते हैं जिस बाजार में लोग सिर्फ गाहक और बेचक होते हैं, वह मानवता के लिए बिडम्बना है| हमारे पारम्परिक बाजार ऐसे नहीं थे लेकिन आज के बाजार जैनेन्द्र जी की बात पर खरे उतरते हैं| इसका एक उदाहरण आपके सामने रखना चाहता हूँ| amazon prime 999/-रुपए लेता है जिससे आपको फ्री डिलवरी मिलती है| हम बिना जांच पड़ताल के सामान मंगवा लेते हैं| पिछले दिनों बिटिया के लिए पुस्तक मंगवाते समय इनके धोखे का पता चला| amazon prime पर जो पुस्तक 319 रुपए की थी वही amazon पर 266 रुपए की थी, जिस पर 30 रुपए डिलीवरी चार्ज था यानी डिलीवरी चार्ज के वाबजूद वह 23 रुपए सस्ती थी| आप सालाना राशी का भुगतान भी करो और महंगे दाम पर सामान भी खरीदो| लूट का यह बाजार इसीलिए चल रहा है क्योंकि हम अपने इलाके के दुकानदार को छोड़कर इन पर आश्रित होते जा रहे हैं|
चलते हैं चर्चा की ओर  

11 टिप्‍पणियां:

  1. लूट का यह बाजार इसीलिए चल रहा है क्योंकि हम अपने इलाके के दुकानदार को छोड़कर इन पर आश्रित होते जा रहे हैं|
    –सौ फीसदी सत्य कथन

    श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक चेतावनी से साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    --
    आपका आभार आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. यथार्थ उजागर करती लिंक्स से सजा आज का चर्चामंच |मेरी रचना को शामिल किया धन्यवाद विर्क जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. पठनीय सूत्रों एवं सार्थक विमर्श से सजी सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर भूमिका सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत रोचक एवं पठनीय लिंक्स उपलब्ध कराने के लिए आभार एवं साधुवाद !!!

    जवाब देंहटाएं
  8. वाकई बहुत अच्छी प्रस्तुति... मेरी रचना को उचित स्थान देने के लिये... चर्चा संचलन से जुड़े सभी सदस्यों का ह्र्दय से आभार... एवं मयंक सर को एक बार फिर से नमन् एवं हार्दिक प्रणाम कि 'सर ये साहित्यिक बीज बोया तो आपका ही है, अभी तो चाहकर भी ज्यादा समय नहीं दे पाता यहाँ पर हृदय में चाह है कि कभी आपके रोपे गये साहित्यिक वृक्षों को कुछ खाद - पानी मैं भी दे सकूँ।' एक बार फिर से आप सभी का आभार...

    जवाब देंहटाएं
  9. विविध भावनाओं से सुसज्जित चर्चा मंच अपना अलग ही प्रभाव छोड़ता है - - सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार, नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  10. Aapka abhar Dilbaghsingh ji meri rachna ko yahan sammilit karne ke liye.
    sundar sankalan aur prastuti,
    Abhar !!!

    जवाब देंहटाएं

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