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शनिवार, अप्रैल 10, 2021

'एक चोट की मन:स्थिति में ...'(चर्चा अंक- 4032)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अमृता जी । 


सादर अभिवादन। 
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

आज भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीया अमृता जी की रचना से वाक्यांश- 

   हृदय के बीचों-बीच कहीं परमाणु विखंडन-सा कुछ हुआ है और सबकुछ टूट गया है । उस सबकुछ में क्या कुछ था और क्या कुछ टूटा है, कुछ पता नहीं है । बस सुलगता ताप है, दहकती चिंगारियां हैं और भस्मीभूत अवशेष हैं । उसी में कोई नग्न सत्य अपने स्वभाव में प्रकट हो गया है । उस चोट से आँखें खुली तो लगा जैसे लंबे अरसे से गहरी नींद में सोते हुए, मनोनुकूल स्वप्नों का किसी काल्पनिक पटल पर प्रक्षेपण हो रहा हो और उसी को सच माना जा रहा हो । एक ऐसा सच जो शायद कोई भयानक, सम्मोहक भ्रम या कोई भूल-भुलैया जैसा, जिससे निकलने का कोई रास्ता नहीं हो । सोने वाला भी मानो उससे कभी निकलना नहीं चाहता हो । फिर उसी गहरी नींद में अचानक से कोई बहुत जोरों की चोट देकर जगा दिया।

आज प्रस्तुति कुछ विस्तृत-सी हो गई साथ ही गद्य की रचनाएँ भी पढ़कर प्रतिक्रिया अवश्य दे। 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ- 

 --

 ग़ज़ल "सितारों का भरोसा क्या, न जाने टूट जायें कब" 

बहारों का भरोसा क्या, न जाने रूठ जायें कब?
सहारों का भरोसा क्या, न जाने छूट जायें कब?
--
अज़ब हैं रंग दुनिया के, अज़ब हैं ढंग लोगों के
इशारों का भरोसा क्या, न जाने लूट जायें कब?
--

                        चोट लगी है, बहुत गहरी चोट लगी है । चोट किससे लगी है, कितनी लगी है,  कैसे लगी है, क्यों लगी है, कहाँ लगी है जैसे कारण गौण है ।  न तो कोई पीड़ा है न ही कोई छटपटाहट है, बस एक टीस है जो रह-रहकर बताती है कि गहरी चोट लगी है । न कोई बेचैनी है, न ही कोई तड़प और फूलों के छुअन से ही कराह उठने वाला दर्द भी मौन है । शून्यता, रिक्तता, खालीपन पूरे अस्तित्व में पसरा है । सारा क्रियाकलाप अपने लय और गति में हो रहा है पर कुछ है जो रुक गया है । कोई है जिसको कुछ हो गया है और बता नहीं पा रहा है कि उसको क्या हुआ है ।
--
ऊँचे खम्बों में लटकते हैं कहीं सपनों
के विज्ञापन, बिखरा हूँ मैं उसी
के नीचे कहीं, उपभुक्त
किताबों की तरह,
तुम्हारा दर्द
है गहरा,
सोम -
--
   गीत की हर कड़ी तुम्हारे लिए है।  
हर गीत में तुम्हारे स्मृति बसी है 
याद आना तो मन की बेबसी है 
 प्रीत की हर घड़ी तुम्हारे लिए है 
 गीत की हर कड़ी तुम्हारे लिए है। 
--
सब जानते हैं पहचानते भी है पर
मुझे मेरे नाम से क्यूं नही
जन्म लिया स्त्री के रूप में पर 
मेरी कोई पहचान क्यों नहीं
कोई कहता देखो फलनवा की बेटी हैं
सुनकर गौरांवित तो होती हूं पर इसमें मैं कहां हूं
--
यह लहज़ा ही है जो 
आपको 
किसी से दूर ले जाता है ।
यह लहज़ा ही है जो 
आपको 
किसी के करीब लाता है ।।
--
मानव ही सबसे श्रेष्ठ है, इस जगती की शान वो ।
यदि करता हो सतकर्म तो मानवता की आन वो।।
बंधन बांधो अब प्रेम के, मन में सुंदर भाव हो ।
जीवन को मानो युद्ध पर, जीने का भी चाव हो।।
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आज का दिन ठीक-ठाक ही था 
सूरज सर पर मीटिंग धड़ पर  था 
आहिस्ता से दिन गुज़र ही रहा था 
आलास सर चढ़ के चिल्ला रहा था 
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यूं तो हमको टीवी पर, रेडियो पर और समाचार पत्रों में, सदा छाए रहने वाली एक विभूति की छत्रछाया में रहने का सौभाग्य प्राप्त है लेकिन जब उनके अलावा हमको कुछ और हस्तियों को भी दिन-रात देखना-सुनना पड़ता है तो हम अपने इस सौभाग्य से परेशान हो कर इस दुनिया को छोड़ कर भाग जाना चाहते हैं.
फ़ेसबुक पर उन नायिकाओं और उन नायकों से भगवान बचाए जो कि रोज़ाना अपनी एक दर्जन तस्वीरें पोस्ट करती/करते हैं.\
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'फिर ऐसा करो कोई लम्बा वीकेंड देख लो' - उधर से व्यस्त

भाव से कहा गया और इधर-उधर की कुशल-क्षेम पूछने

के बाद जल्दी  मिलने के वादे की औपचारिकता के

साथ विदा हुई।  वीणा फोन टेबल पर रखते

 हुए सोच रही थी - "लगभग 1800 किमी की दूरी ,

दस बरस का नेह और पाँच बरस के बिछोह के हिस्से में

केवल एक- दो दिन...।"

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आत्मीयता

मैंने हँसते हुए कहा, "तुमसे पहले तो तुम्हारी जूली से मुलाक़ात के कारण हम सभी की साँसें अभी तक गले में अटकी पड़ी है। "इतना सुनते ही अशोक की पत्नी पानी लेने रसोई की तरफ गई तब अशोक ने बात बढ़ाते हुए कहा, "सच पूछो तो राकेश, शुरू-शुरू में हमलोग भी इस जूली से परेशान थे। हमलोगों के पड़ोस में वर्मा जी के यहाँ जूली पड़ी रहती है। वर्मा जी सुबह और रात को इसे नियमित रूप से रोटी खिलाते हैं और यह दिनभर आवारा की तरह घूमती है और रात को इस गली की रखवाली करती है। एक-दो दिन जूली के भौंकने पर वर्मा जी ने इसे डाँट लगाई, उसके बाद हमलोगों को शान्ति मिली।"
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आज जब किसी इंसान की हाथ या पैर में एक छठी उंगली भी हो भले ही वह अंग क्रियाशील हो या ना हो उसे प्रकृति का अजूबा ही माना जाता है। कहीं-कहीं तो ऐसे अंग वाला भला आदमी हास्य का पात्र भी बन जाता है ! समाज में इसे एक तरह की चीज को विकलांगता के रूप में ही देखा जाता है। सालों पहले हमारे एक पहचान के  युवक को तो इसी ''कमी'' की वजह से रेलवे ने नौकरी भी दे दी थी !  हमारे फिल्म उद्योग में कई सितारे अपनी इन्हीं वजहों को सालों छिपाते रहे हैं। ऐसे में एकआदमी ! तीन पैरों वाला ! उस पर फ़ुटबाल का खिलाड़ी ! कपोल-कल्पना लगती है ! किसी किस्से-कहानी की काल्पनिक उड़ान ! सुन कर सहज ही विश्वास होना कठिन है !  
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"रतन उठो दादाजी को स्टेशन लेने जाना है।उनकी ट्रेन का समय हो गया..!"रीमा ने आवाज लगाई।
रतन ने अलसाते हुए इंटरनेट पर ट्रेन की लाइव लोकेशन देखी तो ट्रेन आधा घंटे लेट थी।"मॉम ट्रेन लेट हो गई है..!"
"ट्रेन लेट हो गई कितने घंटे..?"रीमा ने कमरे में आते हुए पूछा।
"मॉम आधा घंटे..!"
"बस आधे घंटे..? तू तो ऐसे कह रहा है जैसे दो घण्टे लेट है..अभी तुझे तैयार होने में ही आधा घण्टा लगेगा। फिर तैयार होकर दो-चार सेल्फी, कुछ ऐसे, कुछ वैसे पोज देकर..!"रीमा ने एक्टिंग करते हुए कहा।
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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

@अनीता सैनी 'दीप्ति' 


16 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक चर्चा एक से बढ़कर एक लिंक प्रस्तुत किया आपने
    बहुत-बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. अतिसुंदर संकलन मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार 🙏🌷🌹

    जवाब देंहटाएं
  3. Is sundar sankalan mein meri kavita ko sthan dene ke liye aapka bahut bahut shukriya
    Abhar!

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना को विशिष्ट स्थान देने के लिए आभार और सुन्दर प्रस्तुती के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत सुन्दर अंक । शुभ कामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  6. श्रम साध्य चर्चा सभी लिंक बहुत ही आकर्षक, पठनीय।
    भूमिका और अमृता जी का लेख अभी तक मस्तिष्क पर छाया है।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा पर रखने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह

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  7. बेहतरीन लिंकों का चयन है आज की चर्चा में।
    आपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।

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  8. बहुत श्रम से सजाया चर्चामंच !

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  9. बेहद उम्दा ल‍िंंक...सभी एक से बढ़ कर एक और उस पर वरिष्ठ साहित्यकार अमृता जी के गद्य से की गई अद्भुत स्टाइल में शुरुआत... हम जैसे आलस‍ियों को झकझोरते रहने के ल‍िए बड़ा अच्छा तरीका है.. वाह अनीता जी

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  10. लेखनी भरपूर प्रेम पाकर धन्य होती है । उसकी धन्यता का सदैव सम्मान हमें ही करना है । अति सुन्दर संकलित रचनाएं हृदय को तृप्त कर रही है । हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ये तृप्ति प्रदान करने के लिए ।

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  11. बेहतरीन लिंक्स, बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।

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  12. सुंदर एवम रोचक सूत्रों से सजी एक केे शानदार चर्चा अंक के लिए बहुत बधाई प्रिय अनीता जी, आपके श्रमसाध्य कार्य को हार्दिक नमन ।

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  13. बेहतरीन लिंक्स से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं

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