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सोमवार, अप्रैल 19, 2021

'वक़्त का कैनवास देखो कौन किसे ढकेल रहा है' (चर्चा अंक 4041)

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

अब भारत करोना का 

भयावह दौर झेल रहा है,

वक़्त का कैनवास देखो 

कौन किसे ढकेल रहा है।    

#रवीन्द्र_सिंह_यादव 

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-

बालकविता "गर्मी को अब दूर भगाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

*****


लेकिन आज भी

मेरे मन में यह बात

 खटकती है

और प्रश्न बन बार-बार उभरती है

प्रश्नों का क्या ?

*****
किसी भी काम की कमीं

निकाल  उजागर करने में

जो दुश्टानंद उसे मिलता

वही उसका उस दिन का

सकारात्मक कार्य होता |

*****


मरूस्थली सुरंग के
दूसरी छोर की यात्रा में
हाँफते ऊँटों पर लदा,बोझिल दर्द
मुस्कुराकर बोल ही पड़ेगा...,
*****

घूरती आंखों के बीच

सच

निःशब्द सा 

खिसिया रहा है। 

सूनी

डामर की तपती सड़कें

बेजान 

मानवीयता के 

अगले सिरे पर सुलगा रही है

क्रोध।

*****

जिस तरफ जाती नज़र है
सिर्फ़ अँधेरा दिख रहा,
ऐसे में पहचान कल के
रास्तों की कैसे हो...?
*****

चाक चले जब गीली मिट्टी

लेती ज्यूँ आकार प्रिये

स्वर्ण तपे कुंदन बन दमके

रमणी ज्यूँ श्रृंगार किये।

लोहा गर्म-----------------।।

*****

कोरोना और उनकी दूसरी लहर !


जनसेवक जी इस पर कुछ कहते कि तभी सामने से कविश्री आते दिखाई दिए।सोशल-मीडिया से ताज़ा डुबकी लगाकर लौटे थे।उनकी कविताओं की दूसरी लहर कोरोना से भी अधिक मारक साबित हो रही है।कुछ प्रगतिशील आलोचकों का मानना है कि अगर उनकी नई कविता किसी यूनिवर्सिटी में लग गई तो कम से कम तीन पीढ़ी तक उनका भला हो जाएगा।जनसेवक जी के विशेष आग्रह पर उन्होंने कविता का एक अंश पेश किया;


परीक्षाओं से घबराते हैं बच्चे

उन्हें देने होते हैं हल।

नेता बच्चे नहीं हैं

वे केवल करते हैं चर्चा 

और सवालों को देते हैं कुचल।

*****

कैसे रोकें ‘दूसरी लहर’ का प्रवाह?



चित्रकला एवं साहित्य का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करती मेघदूत-चित्रण एक ऐसी अनुपम पुस्तक है जो कला एवं साहित्य के प्रेमियों को अवश्य पढ़नी एवं संगृहीत करके रखनी चाहिए । मेघदूत-चित्रण के पृष्ठों की यात्रा इस शाश्वत सत्य को रेखांकित करती है कि प्रेम का आनंद और विरह की वेदना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । विरह की वेदना क्या होती है, यह वही जानता है जो किसी को हृदय की गहनता से प्रेम करता है ।


*****

आज बस  यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपका चयन प्रशंसनीय है आदरणीय रवीन्द्र जी। मेरे आलेख को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. विधि-विधान से लगाई गयी सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    उम्दा रचाना लिंस से सजा आज का चर्चा मंच |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र यादव जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचनाओं के साथ बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति। संकलन में मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार। सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. समसामयिक चिंतन पर लिखी भूमिका की पंक्तियाँ,सराहनीय सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार रवींद्र जी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचनाएं,बहुत सुंदर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  8. विविध समसामयिक रचनाओं के बीच मेरी रचना को उचित स्थान देने के लिये मंच प्रबंधन का हृदय से आभार 🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत आभारी हूं आपका। मेरी रचना को स्थान देने के लिए। ये एक कठिन दौर है और इसमें सभी अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें। आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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