शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अमृता तन्मय जी की रचना से।
सादर अभिवादन
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
त्राहि-त्राहि में फँसा है संसार
बढ़ता जाता लाशों का अंबार,
ऐ करोना! तुम क्यों आते हो
मानवता को सताने बार-बार?
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चुनिंदा रचनाएँ-
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जुनूं हमसे न पूछिए हुजूर कि हमसे क्या-क्या हुआ है ताउम्र
उलझे कभी आसमां से तो कभी बडे़ शौक़ से ज़मींदोज़ हुए
अपनी ही कश्ती को डूबो कर साहिल से इसकद उतर आए हम
अब आलम यह है कि इब्तदाए-इश्क का गुबार भी देखते नहीं
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अंतरतम को बेध जाती है जीवन की
शून्य दृष्टि, निर्मम नियति के
आगे सभी हैं आज बहुत
ही लाचार, चारों
तरफ टूटते
सांसों
के मध्य मानवता करती है हाहाकार,
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ईर्ष्या और रंजिश के भाव...
फसल के रुप में उगते तो नहीं ।
बस अमरबेल से पल्लवित हो जाते हैं ।
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कहने को तो यह वसंत है,
पर मुर्दनी छाई है सब तरफ़,
शाख़ें लदी हैं फूलों से,
मगर ख़ुशबू ग़ायब है,
दवाओं की बू आती है उनसे.
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पर तुम थे, बस, दो बातों के भूखे,
स्नेह भरे, दो प्यालों के प्यासे,
आसां था कितना, तुझको अपनाना,
तेरे उर की, तह तक जाना,
कुछ भान हुआ, अब यह मुझको!
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कभी इस पर विचार न किया
जब तक सीमा पार न हुई
तरह तरह की अफवाएं न उड़ी|
जब तक सीमा पार न हुई
तरह तरह की अफवाएं न उड़ी|
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बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारो को हार्दिक बधाई।
सादर
शुभ प्रभात ....
जवाब देंहटाएंमंच को नमन व समस्त रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
Sadar pranaam! aapki is khubsurat sankalan mein meri rachana ko shamil karne ke liye dhanyavaad!
जवाब देंहटाएंAbhar!
सुंदर संकलन.मेरी कविता शामिल की.आभार
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी |
बेहतरीन रचनाओं के सूत्रों से सजा सुन्दर संकलन। मेरे सृजन को
जवाब देंहटाएंचर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार ।
शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज के इस झझकोरती हुई चर्चा के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएं" सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया "
बहुत ही सराहनीय एवम पठनीय सूत्रों से सजी आज की चर्चा प्रस्तुति, आपको हार्दिक शुभकामनाएं रवींद्र सिंह यादव जी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को चर्चामंच पर साझा करने के लिए आपका आभार...एक से बढ़कर एक हैं सभी लिंंक...वाह
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