सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विज्ञजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा प्रस्तुति का शीर्षक आदरणीया
डॉ. वर्षा जी द्वारा सृजित दोहे की पंक्ति
"वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" है ।
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अब पढ़ते हैं आज के अद्यतन सूत्र-
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"महापर्व में कुम्भ के, मिलता मन को चैन"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुम्भ शब्द बहुविकल्पी, जिसके अर्थ अनेक।
मन में होना चाहिए, श्रद्धाभाव-विवेक।।
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कुम्भराशि में हो गुरू, मेष राशि में सूर्य।
तभी चमकती वो धरा, जैसे हो वैदूर्य।।
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सागर मंथन में मिला, अमृत का जो पात्र।
उसे हड़पने के लिए, पीछे पड़े कुपात्र।।
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वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष
"वर्षा" के माथे रहे, माता की आशीष ।
शक संवत भी देश का, विक्रम जन-जन मीत ।
दोनों हैं इस देश के, रखिए इनसे प्रीत ।।
कोरोना की आपदा, मिट जाए जड़-मूल।
क्षमा करें प्रभु आप अब, मानव की हर भूल।।
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साकी की अब नहीं तलाश मुझे
मेरे हाथों में तो जाम खाली है ।
मुन्तज़िर मैं नहीं तेरे आने का
तू ही दर पर मेरे सवाली है ।
घड़ी बिरहा की अब टले कैसे
आयी दूजी लहर कोरोना वाली है ।
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इतनी ख़ूबियाँ होती हैं माँ में
कि किसी भी इंसान में
माँ का कुछ-न-कुछ न मिलना
लगभग असंभव है,
वैसे ही जैसे एक ही इंसान में
पूरी की पूरी माँ का मिलना
लगभग असंभव है.
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सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुरगान।
जगती के मन को खींच खींच
निज छवि के रस से सींच सींच
जल कन्यांएं भोली अजान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुरगान।
***
हे जादूगर हे नट नागर कैसी मोहनी डारे तू,
मैं ग्वालन एक भोरी सीधी पहुँचो हुवो कलंदर तू।
बंसी धुन में कौन सो कामण मोरे मन को बाधें तू,
जग को कोई काज न सूझे मोरो चैन चुरायो तू।
मैं बस तूझको ही निहारूँ जग को खैवन हारो तू,
मैं बावरी बंसी धुन की अपनी धुन में खोयो तू।
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अँजुरी से छिटके जज़्बात
मासूम थे बहुत ही मासूम
पलकों ने उठाया
वे रात भर भीगते रहे
ख़ामोशी में सिमटी
लाचारी ओढ़े निर्बल थी मैं।
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सपनों की
भव्य अट्टालिकाओं को
ढह जाना होता है
नयनों में उमड़े
दर्दीले आँसुओं को
बस बह जाना होता है
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शून्य से शून्य तक के सफ़र में
उम्र के अंकों
और
आंकड़ों से खेलते
गुज़रते जाते हैं
दिन, सप्ताह, महीने, साल
इस दौरान साथ होती है
स्वप्नों की वह दुनिया
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अभी-अभी वे क्लब हाउस से रात्रि भोजन करके आये हैं, ‘देराजो’ नाम था उस रेस्तरां का. उससे पहले लाइब्रेरी में एक किताब पढ़ी, ‘द विज़डम ऑफ़ लाओत्से बाय लिन युतांग’. किताब बहुत अच्छी है, पढ़ने के लिए वह कमरे में ले आयी है. हिल्टन का यह रिजॉर्ट काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है, दूर-दूर तक छोटे-छोटे विला बने हैं.
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देखो ! कृष्ण सुदामय तारि रहे
झांकत और विलोकत सखियाँ, नयनन निरखि निहारि रहे।
लाय सुदामा ने तंदुल दीन्हों जो, कान्हा जू अंक पसारि रहे।
मीत की प्रीति लगाय हिये, मनमोहन नेह निहारि रहे।
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ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, मुरदादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं’ । हम सबने सुना है मशहूर शायर ज़ौक साहब का यह शेर जो कि हमेशा से किसी लोकोक्ति की तरह उद्धृत किया जाता रहा है । मगर ज़िन्दगी की दुश्वारियों से जिनका साबिक पड़ रहा हो, उनके लिए इस पर अमल करना कोई आसान काम नहीं । लेकिन जो इस पर अमल करते हैं और अपने वजूद को ज़िंदादिली के साँचे में ढालते हैं ।
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स्वयं से करें प्यार... होंगे चमत्कार!!
यदि आपसे कोई पूछे कि आप सबसे ज्यादा किससे प्यार करते है, तो क्या होगा आपका जवाब? सामान्यतः जवाब आएगा मेरे माता-पिता, मेरे बच्चे, मेरी पत्नी, मेरे पति या मेरा दोस्त। जितने लोग उतने जवाब। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस सवाल का सही जवाब होना चाहिए, 'अपने आप से'।
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आपका दिन मंगलमय हो..
फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
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प्रिय मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंआपने आज की चर्चा की शीर्षक पंक्ति में मेरे दोहांश को स्थान दे कर मुझे जो सम्मान दिया है उसके लिए हार्दिक आभार आपका🙏
बढ़िया लिंक्स...
बढ़िया संयोजन
साधुवाद 🙏
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
डॉ. वर्षा सिंह
आपका चयन प्रशंसनीय है माननीया मीना जी। मेरे आलेख को स्थान देने हेतु हृदय से आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स.हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेम और श्रम से सजाय गया है आज का चर्चा मंच, बधाई मीना जी, मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार !
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मीना दी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और विविधताओं से सज्जित अंक के लिए आपको बहुत बधाई और शुभकामनाएं, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका कोटिशः आभार व्यक्त करती हूं, सादर नमन.. जिज्ञासा सिंह ।
एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व पठनीय लिंक मिले ।
जवाब देंहटाएंडॉ. वर्षा सिंह के सुन्दर दोहे-
"वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष"
को शीर्षक बनाने के लिए धन्यवाद।
आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
शीर्षक में दीदी डॉ. वर्षा सिंह के सुन्दर दोहे-
जवाब देंहटाएं"वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष"
.... सभी उम्दा लिंक्स...
सुंदर संयोजन के लिए हार्दिक बधाई मीना जी 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
बहुत सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।मुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना दी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय मीना जी, वैसे समय आभाव के कारण रचनाओं को पढ़ने का आनंद नहीं उठा पाई हूं फुर्सत मिलते ही पढुंगी जरुर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंएक शानदार अंक शीर्षक पंक्ति सार्थक सुंदर।
जवाब देंहटाएंइस शानदार गुलदस्ते में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं सराहनीय, सुंदर।
मीना जी ,
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स दिए हैं , उसमें एक मेरा भी । आभार ।