सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विज्ञजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
हिन्दी साहित्य में गद्य सृजन के पुरोधा महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी की जयंती पर उन्हें स्मरण करते हुए आज की चर्चा का आरम्भ उन्हीं की एक कृति वोल्गा से गंगा के शीर्षक के साथ करते है ।
बीस कहानियों का यह संग्रह मातृसत्तात्मक समाज में स्त्री के वर्चस्व की बेजोड़ पुस्तक के रूप में है ।
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आइए अब हम बढ़ते हैं आज के चयनित सूत्रों की ओर-
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समीक्षा-छन्दविन्यास (काव्यरूप)
(समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
छन्दों के बारे में कलम चलाना बहुत ही कठिन कार्य है। लेकिन विद्वान साहित्यकार डॉ. संजीव कुमार चौधरी ने इसे सम्भव कर दिखाया है।
पेशे से प्लास्टिक सर्जन डॉ. संजीव कुमार चौधरी लिखते हैं "यह पुस्तक नवोदित रचनाकारों को न सिर्फ लयबद्ध छन्द रचना की ओर आकर्षित करेगी बल्कि एक सन्दर्भ पुस्तिका के रूप में हर तरह से अधिकांश काव्य मनीषियों के लिए भी मददगार होगी।"
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कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें ...
ले कर गुलाब रोज़ ही आएँ … मुझे न दें.
गैरों का साथ यूँ ही निभाएँ … मुझे न दें.
गम ज़िन्दगी में और भी हैं इश्क़ के सिवा,
कह दो की बार बार सदाएँ … मुझे न दें.
इसको खता कहें के कहें इक नई अदा,
हुस्ने-बहार रोज़ लुटाएँ … मुझे न दें.
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आईए मनाएं सृष्टि का जन्मदिन - डॉ. वर्षा सिंह
पिछले 3 माह पहले की बात है, कोरोना आपदा से ग्रस्त वर्ष 2020 को विदा करते हुए जब मन बहुत हर्षित हो रहा था और 1 जनवरी 2021 को मैंने अपने एक मित्र को नववर्ष की शुभकामनाएं दीं तो प्रत्युत्तर में उन्होंने मुझसे कहा कि "वर्षा जी, यह नववर्ष तो अपना है नहीं, फिर इस पर शुभकामनाएं कैसी? अपना नववर्ष तो चैत्र माह में मनाया जाता है।"
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शिव,
समय आ गया है
कि तुम गंगा को
फिर से अपनी
जटाओं में समेट लो.
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जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान पर
न कुछ तेरा है
न कुछ मेरा है ।
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यह सारी कायनात
उस दिन चलेगी
हमारे इशारे पर भी
जब हमारी रजा
उस मालिक की रजा से एक हो जाएगी
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हर गीत में तुम्हारे स्मृति बसी है ,
याद आना तो मन की बेबसी है |
प्रीत की हर घड़ी तुम्हारे लिए है |
गीत की हर कड़ी तुम्हारे लिए है |
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स्वयं के अस्तित्व का
जिस क्षण हो जाए ज्ञान ,
करने लगो जिस क्षण
स्वयं से बेपनाह
मुहब्बत ....
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मेरे कुनबे में कुछ रंग बिरंगे पक्षी होते
बुलबुल गौरैया संग मोर मोरनी नचते
एक बनाती नीड़ चाँद तारों से छुपकर,
तोता मैना पपिहा करते यहीं बसेरा ।।
काश गगन .....
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मेरे इष्ट तुम
मेरी सृष्टि तुम
तुम ही मेरे आधार हो
मेरा मौन भी सुन लेते हो
तुम ही मेरे पालनहार हो
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कोमल निर्मल मन,लगे खरा है।
तप्त धरा जैसे,वृक्ष हरा है।
मिथ्या है जीवन,लड़ मत प्राणी।
कहना न किसी से,कड़वी वाणी।
काया की माया,मिली धरा है।
कोमल…
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एक नदी
बहती है
अब
भी निर्मल
और
पूरे प्रवाह से
मन
की स्मृतियों में।
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आपका दिन मंगलमय हो..
फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
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सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी, नमस्कार !
सुंदर तथा पठनीय सूत्रों से सजा आज का चर्चा अंक मन मोह गया,आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन तथा वंदन । मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन ।
जिज्ञासा सिंह ।
श्रम से लगाई गई सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
सुन्दर चर्चा.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंवाह!मीना जी ,खूबसूरत चर्चा अंक ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सराहनीय चर्चा अंक ।
जवाब देंहटाएंमहान साहित्यिक पुस्तक 'वोल्गा से गंगा' का स्मरण दिलाती भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मीना जी...। सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं... सभी को बधाई...।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएं, सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।
बेहतरीन चर्चा ... आभार
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिंक संयोजन.... शानदार चर्चा..
माता जी की अस्वस्थता के कारण विलम्ब से यहां आने हेतु क्षमा चाहती हूं।
मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार🙏
शुभकामनाओं सहित,
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
वर्षा जी, माताजी का स्वास्थ्य व उनकी देख रेख सर्वोपरि है।व्यस्ततम पलों में से आपका समय निकाल कर मंच को देने का भाव मेरे लिए सुखद अनुभूति है।माताजी के शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करती हूँ🙏
हटाएंसुन्दर लिंक्स से सुसज्जित चर्चा अंक....
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