सादर अभिवादन !
रविवार की प्रस्तुति में आप सभी विज्ञजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ! आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी के अस्वस्थ होने के कारण मैं मीना भारद्वाज
उपस्थित हूँ आज की चर्चा प्रस्तुति के साथ ।
आज की चर्चा की शीर्षक
पंक्ति आदरणीया जिज्ञासा सिंह जी की रचना से ली गई है ।
--
आइए अब बढ़ते हैं आज के अद्यतन सूत्र की ओर-
हरसिंगार के फूल-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
करने में उपकार को, नहीं मानता हार।
बाँट रहा है गन्ध को, सबको हर सिंगार।।
--
केसरिया टीका लगा, हँसता हरसिंगार।
अमल-धवल ये सुमन है, कुदरत का उपहार।।
--
नतमस्तक होकर सदा, करता है मनुहार।
धरती पर बिखरा हुआ, लुटा रहा है प्यार।।
***
ये धुआँ धुआँ सा आसमाँ क्यूँ है
छुप रहे लोग सब यहाँ वहाँ क्यूँ है
जिसके दीए की लौ दूर तलक जाती थी
यूँ अंधेरे में डूबा हुआ वो जहाँ क्यूँ है
सुना था यहाँ कभी रात नहीं होती है
उजाला ढूंढ़ता अपने निशाँ क्यूँ है
***
कुछ पल ठहर पथिक
डगर कठिन है गंतव्य दूर तेरा।
सिक्कों की खनक शोहरत की चमक छोड़
मन को दे कुछ पल विश्राम तुम
न दौड़ बेसुध, पथ अंगारों-सा जलता है
मृगतृष्णा न जगा बेचैनी दौड़ाएगी
धीरज धर राह शीतल हो जाएगी।
***
जीवन शुष्क
ना कोई आकर्षण
बदरंग है
कष्टों की बेल
आसपास पसरी
स्वप्न अधूरा
**
मुदर्रिसी के दौरान अल्मोड़ा में एक से एक जीनियस विद्यार्थियों से मेरा पाला पड़ा था.
इन में से कुछ विभूतियाँ तो चाह कर भी भूली नहीं जा सकती हैं.
ऐसी ही एक हस्ती थी एम. ए. के हमारे एक पहलवान विद्यार्थी की.
पहलवान क्लास में मेरे लेक्चर्स के समय थोड़े-थोड़े अंतराल पर कहता रहता था -
'गुरु जी, नोट्स लिखा दीजिए. आपका लेक्चर हमारे पल्ले नहीं पड़ता.'
***
बुंदेलखंड की संकटग्रस्त परंपराएं : व्यंजन-परंपरा
बुंदेलखंड में परंपराओं पर छाए संकट के क्रम में इस बार ‘‘चर्चा प्लस’’ में चर्चा कर रही हूं बदलती व्यंजन-परंपरा की ।
कोरोना आपदा के पहले भोपाल एक माॅल के ‘फूडजोन’ में यह देख कर सुखद आश्चर्य हुआ था कि वहां पारंपरिक बुंदेली व्यंजनों का भी एक ‘काॅर्नर’ है। उसके बाद झांसी के में भी बुंदेली फूड जोन काॅर्नर देखने को मिला।
***
जन्म और मृत्यु के मध्य
बाँध लेते हैं हम कुछ बंधन
जो खींचते हैं पुनः इस भू पर
भूमिपुत्र बनकर न जाने कितनी बार बंधे हैं
अब पंच तत्वों के घेरे से बाहर निकलना है
***
आत्महत्या: मेरा कोई नहीं है, इसलिए...
दोस्तों, आज मैं उन लोगों से बात करना चाहती हूं, जिनके दिल में आत्महत्या (suicide) करने का ख्याल बार-बार आता है। जो सोचते है कि इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है...मैं किसके लिए जिऊं?...शायद आप सोच रहे होंगे कि आज मैं ये कौन से फालतु विषय पर बात कर रही हूं? दोस्तों, आत्महत्या फालतू विषय नहीं है।
***
ये वह दौर है जब एक सामान्य आदमी कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहा है, जूझ रहा है, खुद ही उलझ और सुलझ रहा है। बात करें उस अपने से लड़ते और सवाल करते आदमी की। भयभीत है क्योंकि महामारी फैली हुई है, घर से निकलना जरुरी है क्योंकि घर कैसे चले, पेट कैसे पले और बच्चों की पढ़ाई की गाड़ी कैसे खिंचे।
***
आत्मा को ललकारती
चीत्कारों को अनसुना
करना आसान नहीं होता ...
इन दिनों सोचने लगी हूँ
एक दिन मेरे कर्मों का
हिसाब करती
प्रकृति ने पूछा कि-
महामारी के भयावह समय में
तुम्हें बचाये रखा मैंने
***
खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं
तुम कहते रहोगे वो सुनेंगे नहीं
अब तुम्हारे ही तुमसे मनेंगे नहीं
इक कदम जो उठाया सबक देने को
चाहकर भी कदम अब रुकेंगे नहीं
जा चुका जो समय हाथ से अब तेरे
जिन्दगी भर वो पल अब मिलेंगे नहीं
***
स्वर्गीय माता जी डॉ. विद्यावती "मालविका" की स्मृतियों को नमन - डॉ. वर्षा सिंह
माना यह दुनिया है फानी
सबकी लगभग एक कहानी
किन्तु ये मन है नहीं मानता
सुनना चाहे मां की बानी
आएं कितनी "वर्षा" ऋतुएं
बुझे न मन की ज्वाला
***
घर पर रहें..सुरक्षित रहें..
आपका दिन मंगलमय हो...फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
शुभ प्रभात। ।।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीया ।।।
बहुत ही सुंदर सराहनीय रविवारीय प्रस्तुति आदरणीय मीना दी।
जवाब देंहटाएंसमय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूँगी।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।आदरणीय शास्त्री जी सर जल्द ही स्वस्थ हो उनकी कमी मंच को खलती है।
एक बार फिर दिल से आभार आज इस सुंदर प्रस्तुति हेतु।
सादर
शानदार लिंक और अच्छी रचनाओं का संग्रह..। खूब बधाई मीना जी...।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,मीना दी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी, नमस्कार ।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले मेरी रचना को शीर्षक पंक्ति बनाने के लिए आपका असंख्य आभार व्यक्त करती हूं,सभी सूत्र पठनीय तथा रोचक हैं,आपके श्रमसाध्य कार्य हेतु आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई,सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह ।
एक से बढकर लिंक सजाये गये हैं| बहुत सुन्दर व सार्थक|
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सार्थक आज की चर्चा मंच की पोस्ट आदरणीया मीना जी,
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी आप जल्दी स्वस्थ होकर वापस पर आए ऐसी भगवान जी से प्रार्थना
विविधतापूर्ण विषयों पर उम्दा रचनाओं की खबर देती चर्चा, आभार मीना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब चर्चा प्रस्तुति सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय। मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद मीना जी !
जवाब देंहटाएंभगवान आदरणीय शास्त्री जी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दें यही प्रार्थना है।
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा। सभी लिंक्स शानदार।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री सर के शीध्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करती हूँ। इस मुश्किल समय में एक-दूसरे का साथ और स्नेह मानसिक संबल है।
जवाब देंहटाएंप्रिय दी हृदय से सादर आभारी हूँ आपने मेरी रचना को स्थान दिया।
आपकी प्रस्तुति सहेज ली है दी।
अभी रचनाएँ पढ़ने की मन:स्थिति में नहीं हूँ बाद में पढ़ूँगी।
प्रणाम
सादर।
आदरणीय सर शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें ईश्वर से प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएंखट्टी मीठी सभी रचनाएं सार्थक श्रमसाध्य चर्चा।
कुछ दुखद हादसे कुछ उपयोगी चर्चाएं सुंदर अंक।
साधुवाद।
सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप सभी प्रबुद्धजनों का हार्दिक आभार चर्चा में सम्मिलित हो मेरा उत्साहवर्धन के लिए । आदरणीय सर शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ लाभ करें यहीं कामना है । आप सभी गुणीजनों को पुनः बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं