शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ज्योति खरे जी की रचना से।
सादर अभिवादन बुधवारीय प्रस्तुति में आप सभी का स्वागत है।
चुप्पी वह भी अगर चालाक चुप्पी हो तो आप क्या सोचेंगे? करोना के भयावह दौर में किसी का चुप्पी साध लेना सालने जैसी पीड़ा का अनुभव देता है। कभी-कभी चुप्पी सार्थक हो सकती है लेकिन कभी अन्याय का साथ देने वाली हो सकती है।
-अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गुहार
थर्मामीटर नाप रहा
शहर का बुखार
सिसकियां लगा रहीं
जिंदा रहने की गुहार
आंकड़ों के खेल में
आदमी के जिस्म का
क्या मोल
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"मैं तुम्हें दिखता हूँ?"
उसने पूछा...
"नहीं..."
मैंने कहा...,
"फिर तुम
मुझसे लड़ोगे कैसे..?"
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आकाश है वही पूर्वकालीन, हाशिए में
कहीं छूट गए उजालों के ठिकाने,
पत्थरों के मध्य राह तलाशते
हैं छूटे हुए जल स्रोत,
दहकता हुआ सा
लगे है बांस
वन,
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ओढ़ा रेशम का पट सुंदर
सुख सपने में खोई थी
श्यामल खटिया चांदी बिछती
आलस बांधे सोई थी
चंचल किरणों का क्रदंन सुन
व्याकुल भोर पुरानी सी।।
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नींद भरी अखियों से देखा
हरी भरी धरती को रंग बदलते
मोर नाचता देखा पंख फैला
झांकी सजती बहुरंगी पंखों से |
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मेरे अश्क़ तुझसे हैं पूछते
मेरा क्या गुनाह है मुझे बता
जो बता सको न मुझे कभी
करो और ग़म न मुझे अता
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साजिशन अफ़वाह उड़ाई जा रही है
तुम्हारा प्रधान इतना नाकारा नही है
जिसे दोस्त समझ बैठे हो प्रधान मेरे
वो अमेरिका दोस्त तुम्हारा नही है
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घट आस का है फूटा
कुंठा का लगा मेला
पथभ्रष्ट हुआ मानव
किया प्रकृति से खेला
बोझिल हुई है धरणि, फिरे पाप ढोई ढोई
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चट्टानों सा अडिग धैर्य हूँ
कल-कल मर्मर ध्वनि अति कोमल,
मुक्त हास्य नव शिशु अधरों का
श्रद्धा परम अटूट निराली !
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मैंने इसी दौर में चीखते और रोते लोगों की मदद में उठते हुए कुछ हाथ भी देखे हैं जिन्होंने ये नहीं सोचा कि ये महामारी का दौर है और इसका असर उनके जीवन पर क्या होगा, कैसे बचेंगे वे इस दौर में। सिस्टम के अनुसार अपना सिस्टम बनाया और सेवा में जुट गए। ये सच है कि मानवीयता के कई उदाहरण भी हम देख रहे हैं लेकिन ये समाज की ओर से उठाए गए कदम हैं, समाज में कहीं दर्द बसता है, अपनापन भी बसता है जो अच्छे और भले लोगों ने सींचा है। ये दौर बहुत से सबक दे रहा है, कैसे जीना है, क्या खाना है, कितना खाना है, कैसे खाना है, कितने स्वतंत्र होकर बाहर निकलना है, किस पर भरोसा करना है, कैसे और कितना करना है।
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नायक के रूप में विनोद खन्ना की प्रथम फ़िल्म थी ‘हम तुम और वो’ (१९७१) जिसके शुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिन्दी में रचित प्रेम गीत – ‘प्रिय प्राणेश्वरी, हृदयेश्वरी’ के शब्द तथा उन पर विनोद खन्ना का अभिनय दोनों ही आज भी देखने वालों के हृदय को गुदगुदा देते हैं । पुरुषोचित सौन्दर्य से युक्त अपने अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व तथा अभिनय-प्रतिभा के कारण विनोद खन्ना नायक के रूप में अपने खलनायक रूप से कई गुना अधिक सफल रहे । उन दिनों दस्युओं की कथाओं पर बहुत फ़िल्में बनती थीं और उस दौर में दस्यु की भूमिका में विनोद खन्ना से अधिक प्रभावशाली और कोई नहीं लगता था । ‘मेरा गाँव मेरा देश’ (१९७१), ‘कच्चे धागे’ (१९७३), ‘शंकर शंभू’ (१९७६), ‘हत्यारा’ (१९७७) और ‘राजपूत’ (१९८२) जैसी फ़िल्में इस बात का प्रमाण हैं ।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे
शनिवारीय प्रस्तुति में
@अनीता सैनी
बहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय चयन किया है आपने अनीता जी। मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया👌
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स आज की |मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी |
जी बहुत आभारी हूं अनीता जी...। मेरे आलेख को शामिल करने के लिए आभारी हूं, रचनाकार साथियों को खूब बधाई।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभारी हूं अनीता जी...। मेरे आलेख को शामिल करने के लिए आभारी हूं, रचनाकार साथियों को खूब बधाई।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक उम्दा रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा अंक प्रिय अनीता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें ,आदरणीय शास्त्री सर शीघ्र-अतिशीघ्र स्वस्थ हो जाये यही प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंसटीक भूमिका के साथ पठनीय लिंक्स का चयन, आभार !
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शीर्षक।
जवाब देंहटाएंशानदार भूमिका सत्य के आसपास घूमती।
सच कहा आपने चुप्पी पीड़ा का अनुभव देती है ,वो भी वो चुप्पी जो व्यक्ति स्वयं की एक आत्म केन्द्रित सोच के तहत।
खुद ही ओढ लेता है , लाजवाब व्याख्या चुप्पी पर।
सभी लिंक बहुत आकर्षक सुंदर, श्रमसाध्य संकलन।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
आदरणीय शास्त्री जी पहले से बेहतर होंगे ,प्रभु से प्रार्थना है वो शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें।
सादर सस्नेह।
दिल से आभार आदरणीय दी।
हटाएंसर ठीक नहीं है।
वेंटीलेटर पर हैं।
प्रभु से प्रार्थना हैं वे अति शीघ्र स्वस्थ हो फिर से मंच को अपनी सेवाएं दे 🙏।
सादर
सुंदर चर्चा प्रस्तुति,एवम रोचक संकलन,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंअच्छी औऱ प्रभावी भूमिका
जवाब देंहटाएंमुझे मान देने का आभार
बहुत अच्छे लिंक संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
सादर